गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

खूनी रेड हंट : ताड़मेटला

दन वाड़ा की घटना के बाद नक्सलियों दुसरी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया। ७५ सुरक्षा बलों के जवानों का नृशंस नरसंहार किया। यह एक बहुत चिंता जनक घटना क्रम है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नक्सली कितने मजबूत होते जा  रहे हैं। अब वे सरकार की कमजोरी का फ़ायदा उठा कर सुरक्षा बलों को सीधा निशाना बना रहे हैं।

दंतेवाड़ा के ताड़मेटला के जंगलों में हुई वारदात अफ़सोस जनक है। नक्सलियों का सूचना तंत्र कितना मजबुत है इस घटना से पता चल जाता है। सुरक्षा बलों के द्वारा रात्रि विश्राम गाँव में करने की सू्चना उन्हे मिल चुकी थी।

यहां पुलिस का गुप्तचर तन्त्र असफ़ल नजर आता है। विश्वसनीय मुखबिरों की कमी के कारण पुलिस तक नक्सली गतिविधियों की जानकारी नहीं पहुँच पाती. इसलिए वे नक्सलियों के जाल में फँस जाते हैं. 

सरकार की इच्छा शक्ति में कमी के कारण नित लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है. इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए उतनी कम है. इस घटना को गंभीरता से लेना चाहिए सरकार को.

अघोषित युद्ध जैसे हालत बने हुए हैं. कभी कारगिल के युद्ध में भी हमने कहीं पढ़ा या सुना नहीं कि पूरी एक कम्पनी को ही घेर कर लाशों के ढेर लगा दिये हों. लेकिन नक्सलियों ने युद्ध से ज्यादा खतरनाक हालत पैदा कर दिये और पूरी एक कम्पनी को ही घेर कर तबाह कर दिया. 

सरकारी नाकामी के कारण इनके हौसले बढ़ते ही जा रहे है. एक तरफ सरकार इनसे बात करना चाहती है. दूसरी तरफ तथा कथित मानवाधिकार वादी अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.

अब कहाँ है वो मानवाधिकार वादी, जब नक्सलियों ने ९१ जवानों का खून बहा दिया. अब क्यों नहीं बोल रहे हैं? 

क्यों विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे है? कहाँ गई उनकी मानवतावादी विचारों की टोकरी जिसे सर पर धरे हमेशा घूमते रहते हैं?

सरकार को दृढ इच्छा शक्ति के साथ काम करना पड़ेगा. जब धीरे धीरे रोज नुकसान उठाना पड़ रहा है तो एक बार पूरी ताकत से ही सही. फिर आर या पार की लड़ाई हो जाये. इस तरह जवानों को खोने की बजाये, पूरी ताकत से लड़ा जाये.

जब पंजाब से खूंखार आतंकवादियों का सफाया किया जा सकता है, श्रीलंका में संगठित लिट्टे को नेस्तनाबूत किया जा सकता है तो नक्सलवादियों का सफाया क्यों नहीं हो सकता?

क्यों इन्हें पला जा रहा है. सबसे बड़ी बात तो यह है की इस हत्याकांड के बाद सुरक्षा बलों के सारे हथियार भी ले गए हैं और उनका इस्तेमाल नक्सली सुरक्षा बालों के खिलाफ ही करेंगें. इस तरह वे अपनी ताकत बढा रहे हैं. 

प्रधान मंत्री जी कह रहे हैं कि फ़िलहाल सेना की आवश्यकता नहीं है. फ़िर कब आवश्यक्ता पड़ेगी? अभी सेना का आवश्यकता नहीं है का मतलब यह लगाया जाये कि इससे भी बड़ी घटना का इंतजार किया जा रहा है.

अभी सुबह से ही देख रहा हूँ मेरे सर के उपर से हेलीकाफ्टर मंडराते हुए आ - जा रहे हैं बस्तर की ओर. जो घायलों और शहीदों के शवों को लेकर आ रहे हैं.

इन सिपाहियों की असमय हुई विधवाओं के आंसूं किस तरह रुकेंगे. जो प्रश्न इनके आँसुओं कर रहे हैं इनका जवाब कभी मिल पायेगा इन्हे? 

मै यही सोचकर व्याकुल हूँ. बस अब समय आ गया है सरकार को चेत जाना चाहिए. अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी. ताड़मेटला के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा इसी उम्मीद के साथ शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

केरा तबहिं न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर।
अब चेते क्या हुआ, जब कांटन्ह लीना घेर।

(चित्र--नव भारत से साभार) 

10 टिप्‍पणियां:

  1. शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि.

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  2. शहीदों को अश्रुपूरित श्रद्धांजली |
    कथित मानवाधिकारवादियों को दुत्कार |

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  3. ...शहीदों को नमन .... श्रद्धांजलि...!!!
    ....बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!

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  4. हमारे ज़वान यूँ ही मरते रहेंगे और हम यूँ ही श्रधांजलि देते रहेंगे ।
    आखिर कब तक ।

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  5. शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि.

    रामराम.

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