सोमवार, 22 नवंबर 2010

भाटिया और अलबेला में युद्ध--ब्लोगर मिलन के बाद

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ब्लोगर्स हाउस सुबह हो गई है. कल के ब्लोगर मिलन के बाद. नीरज जाट अभी सोकर उठा है. अलबेला खत्री ने गरम पानी पिया नमक डाल के, आज किसी के यहाँ इनका न्योता है.

अल सुबह भाटिया जी और अलबेला में युद्ध हो गया. बरतन मांजने को लेकर. अलबेला देशी तरीके से मांजने के मूड में थे. लेकिन भाटिया जी को जर्मन तरीके से ही मांजना था.

केवल राम रचना सुनाने के लिए पीछे पड़ गए. कहने लगे मेरी रचना सुनो.... अब सुबह सुबह रचना झेलना बहुत भारी पड़ जाता है. क्योंकि रात भर वही रचना चलती रही. सभी ने अपनी अपनी रचना का जिक्र किया.......

लेकिन नीरज जाट में कुछ दम था. क्योंकि तिलियार में पानी कुछ कम था. इसलिए इसने ही सारी रचनाएँ झेली.... कल के गुलाब जामुन का असर जो था........ बाकी तो सारा आइटम कार में ही धरा रह गया............ समीर लाल की रचना सुनने का मन था...... लेकिन उन्होंने फोन पर अपनी रचना नही सुनाई..... 

मैंने तो सुबह सुबह अजवायन ली, क्योंकि कल रात से ही तबियत नासाज हो गई ...... सर्दी जुखाम और बुखार ने हालत गंभीर कर रखी है.. सब कुछ उल्टा पुल्टा ...........

नीरज बोल्ला.. कुछ लेते क्यों नहीं?.... अरे भाई तीन दिनों से ले ही रहे थे....... रात टीचर्स और अलबेला की रचनाओं के साथ कटी........

योगेन्द्र मौदगिल ने तो तम्बू ही उखाड़ दिया......रात ही पानीपत  चल पड़े.  लेकिन कविता कहानी और व्यंग्य की महफ़िल खूब जमी........



अब सुबह हो चुकी है और नहाने के बाद अलबेला जी जयपुर जायेंगे.....हम रिवाड़ी जायेंगे.........नीरज का नहाने का मन नहीं है..............

केवल राम कल ही नहा लिए थे.......... राज भाटिया जी को जर्मन मेड साबुन नहीं मिल रहा है......नहाने के लिए..

संगीता जी ने कल ही भविष्यवाणी कर दी थी कि मुझे सर्द गरम हो सकती है.......

अब देखते हैं कब तक तबियत ठीक होती है...... और ब्लोगर रजाई से बाहर निकलते हैं......  अभी केवल राम चाय बना कर ला रहे है. अगर किसी को हिमाचल की चाय पीनी हो तो टिप्पणी द्वारा सूचना दे ........... फिर मत कहना की जादू नहीं दिखाया............. आगे पढ़ें 

बुधवार, 17 नवंबर 2010

एक दिन के वकील--फैसला ऑन दी स्पाट


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रोहतक यात्रा प्रारंभ हो चुकी है. कल रायपुर से ४.५० को दुर्ग जयपुर एक्सप्रेस से रवाना हुए कोटा के लिए. स्टेशन पहुच कर देखा तो अपार भीड़ थी.

इतनी भीड़ मैंने कभी रायपुर रेलवे स्टेशन पर नहीं देखी थी. मैंने सोचा कि यदि ये सभी जयपुर की सवारी है तो आज की यात्रा का भगवान ही मालिक है. तभी रायपुर डोंगरगढ़ लोकल गाड़ी आ कर खड़ी हुई. आधी सवारी उसमे चली गई. थोडा साँस में साँस आया.

अपनी गाड़ी भी आकर स्टेशन पर लगी. अपनी सीट पर हमने कब्ज़ा जमा लिया. तभी एक बालक भी आकर बैठा. खिड़की से उसके मम्मी-पापा उसे ठीक-ठाक यात्रा करने की सलाह दे रहे थे.

उसके पापा ने मुझे मुखातिब होते हुए कहा-"सर जरा बच्चे का ध्यान रखना और इसके पास मोबाइल और रिजर्वेशन नहीं है. कृपया टी टी को बोल कर कन्फर्म करवा देना और आप अपना नंबर भी दे दीजिये मैं इससे बात कर लूँगा.

मैंने भी हां कह कर एक मुफ्त की जिम्मेदारी गले बांध ली. क्या करें अपनी आदत ही ऐसी है. दिल है की मानता नहीं है. दो चार सवारियां और आ गई हमारी बर्थ पर. 

हम प्रखर समाचार की दीवाली स्मारिका पढ़ने लगे. उसमे मानिक विश्वकर्मा जी की ४ उम्दा गजले छपी थी. हम रह ना सके और उन्हें फोन लगा बैठे. ग़ज़लों के लिए शुभ कामनाएं दी और काफी दिनों से चर्चा नहीं हुयी थी इसलिए लम्बी चर्चा भी कर बैठे.

पाबला  जी का भी फोन आया की गाड़ी में बैठा की नहीं. मैंने उन्हें अपने सकुशल स्थान प्राप्ति की सूचना दे दी और यात्रा की सफलता के लिए शुभकामनायें भी ग्रहण की.

घर से चले थे तो श्रीमती जी ने यात्रा के लिए सब्जी के विषय में पूछा था. तो मैंने उनसे मेरी प्रिय सब्जी जिमीं कंद बनाने के लिए कहा और उसे ठीक से पैक करने की सलाह भी दी, जिससे सब्जी कोटा तक पहुच जाये. क्योंकि वकील साहब को जिमीं कंद की सब्जी जो खिलानी थी.

बिलासपुर स्टेशन में ट्रेन २० मिनट रुकती है. वहां श्याम (उदय) भाई भी पहुच गए, बहुत दिन हो गये थे उनसे मिले. बिलासपुर में मिलकार अच्छा लगा. अरविन्द झा जी तो दरभंगा गए होए थे. ट्रेन चल पड़ी. तभी पेंड्रा रोड से गुड्डू को फोन लगाया ट्रेन वहां ८.३० को पहुचती है. लेकिन लेट होने पर मैंने उसे आने से मना कर दिया.

रास्ते में मैंने खोंगसरा स्टेशन देखा तो पुरानी घटना याद आ गई. १६ जुलाई १९८१ गुरुवार को यहाँ एक भीषण रेल दुर्घटना हुई थी, जिसकी श्री रमेश नैयर दिनमान में रिपोर्टिंग की थी. मैंने उसे पढ़ा था.

यहाँ ट्रेन रुकी तो मुझे एक रेलवे ड्राईवर जगदीश प्रसाद निर्मल कर मिल गाय. उन्होंने बताया कि मैंने ७ जुलाई १९८१ को पदभार ग्रहण किया और १६ जुलाई की घटना होने के कारण मुझे इसकी पूरी जानकारी है. इस ट्रेक पर इंदौर जाने वाली गाड़ी थी. उसके पीछे एक माल गाड़ी जा रही थी जिसमे असिस्टेंट ड्राईवर था.

रास्ते में गाड़ी रोल हो गयी. असिस्टेंड ड्राईवर को अधिक जानकारी नहीं थी. इसलिए पता नहीं की उसने लोको ब्रेक लगाया की नहीं. वह चलती ट्रेन से उतर गया और गाड़ी धडधडाते सामने जा रही ट्रेन से जा टकरायी सैकड़ों लोग मारे गए. इस दुर्घटना के कारण एक छोटा सा स्टेशन खोंगसरा अभी तक याद किया जाता है.  

ट्रेन में खाटू श्याम जी जाने वाले बहुत से भगत मौजूद थे. उन्होंने खंजरी और सुर ताल के साथ भजन गाना शुरू कर दिया. हमने भी मौके का फायदा उठाया और पहुच गए उनके पास और २ घंटे तक भजन गाते सुनते रहे. भरपूर आनंद आया.

इस तरह की सवारियां रहे तो सफ़र मजे से कट जाता है और यदि कोई मनहूस शक्ल लिए बैठा हो तो सफ़र बहुत भारी पड़ जाता है. ऐसे लगता है जैसे हम फ्लाईट या एसी क्लास की सवारी कर रहे हैं. जो मजा स्लीपर क्लास में है वह इन सबमे कहाँ.

इस क्लास में तो असली भारत देखने मिलता है. सीट पर बैठते ही लोग ईज्जत से पूछते हैं कि "भाई साहब आप कहाँ जा रहे हैं?"

लेकिन फ्लाईट या एसी क्लास में कोई भी नहीं पूछता. सारे ही १२ सेर के होते हैं. भोजन करते वक्त भी एक बार मनुहार कर ही लेते हैं, चाहे सामने वाला अपरिचित क्यों ना हो.

भोजन-भजन करने के बाद देखा तो एक मोबाइल की बैट्री उतर रही है. हमने सोचा अब चार्ज ही कर लिया जाये. ४ बोगी में जाने के बाद एक जगह सही प्लग मिला लेकिन वह भी ढीला था उसमे पिन लगाने के बाद पिन को पकड़ कर खड़ा होना पड़ता था.

कुछ देर खड़े रहे फिर हिम्मत जवाब दे गई. दुसरे फोन में बैटरी फुल है सोचकर दरवाजे के पास पहुचे दो देखा एक सज्जन फुल तन्न हुए वहां खड़े खड़े हिल रहा था. कही थोडा झटका लगा और समझो हैप्पी बर्थ डे हुआ.

उसे हटा कर दरवाजा बंद किया और चल दिये अपनी सीट का किराया वसूल करने के लिए. सुबह नींद खुली तो अपने को गुना स्टेशन पर पाया. यह वही गुना है जहाँ से राजमाता विजया राजे चुनाव लडती थी. उसके बाद दिग्विजय सिंह से भाई लक्षम्ण सिंग चुनाव जीते थे.

सुबह के ८.२५ हुए थे ये वहां की घडी बता रही थी. हमें चाय की तलब लगी तो स्टेशन के काउंटर से चाय बेचने वाले के पास पहुचे वहां लाइन लगी थी. जैसे राशन की लाइन लगी हो. बड़ी मशक्कत के बाद एक कफ चाय मिली. उसे पीने के बाद यही सलाह दूंगा की कभी भी गुना में चाय नहीं पीना.

दिनेश जी का भी फोन आया, तो हमने बताया कि गुना पहुचे हैं. उन्होंने बताया की कोटा में बरसात हो रही है. मतलब मौसम खुशगवार हो गया है. लेकिन कहीं ज्यादा बरसात हो गयी तो इससे ज्यादा खुशगवार मौसम नहीं होना है.

रास्ते में बारां के बाद दो स्टेशन और आये. सरदारों वाले टाइम पे हम कोटा पहुच चुके थे. दिनेश जी फोन करके प्लेट फार्म पे ही रहने को कहा. थोड़ी देर में वे भी पहुच गए. स्टेशन से सीधा घर आये.....

आज उनकी कार हास्पिटल में लीवर का इलाज करने गई है. बस थोड़ी ही देर में आने वाली है फिर हम जरा कोटा शहर के एक चक्कर लगायेंगे. हां हमने मशहूर रतन लाल की कचौरियां जरुर खाई. कुछ तो दम है इन कचौरियों में, अभी तक भूख नहीं लगी है.

दिनेश जी ने बताया कि अमिताभ बच्चन भी कोटा की कचौरिया खाकर ही कोलाईटिस होने से अस्पताल में दाखिल हुए थे. लेकिन हमारे हाजमे पर कोई संदेह नहीं है. हमने आते ही दिनेश जी को कुर्सी संभाल ली. एक दिन के वकील बन गए. कोई मुक़दमा हो तो ले आओ. फैसला ऑन दी स्पाट, हा हा हा, मिलते हैं एक ब्रेक के बाद कल सुबह  में ....... आगे पढ़ें 

सोमवार, 15 नवंबर 2010

आन मिलो सजना--लागी छुटे ना -- हम तो चले ----- ललित शर्मा

ताम्रकार समाज ने भगवान सहस्त्रबाहु जयंती का कार्यक्रम रखा था जगन्नाथ मंदिर रायपुर में। धीरज ताम्रकार ने मुझे फ़ोन आमंत्रित किया कि शाम 5 बजे के मिलन कार्यक्रम में आपको आना है। मैं 5 बजे जगन्नाथ मंदिर में पहुंच गया। थोड़ी ही देर बाद आर्टिजन वेलफ़ेयर आर्गेनायजेशन के अध्यक्ष व्ही विश्वनाथ जी, महापौर दुर्ग डॉ शिव तमेर, आर एस विश्वकर्मा जी भी पहुंच चुके थे। गरिमा मय आयोजन में ताम्रकार समाज के सभी बंधु पधार चुके थे। अतिथियों के स्वागत के पश्चात भाषण इत्यादि का कार्यक्रम हुआ। समाज के संगठन के विषय में उपस्थित महानुभावों ने प्रकाश डाला। इस तरह कार्यक्रम 9 बजे तक चला। भोजन प्रसादी के पश्चात देर रात हम घर पहुंचे।

सुबह भाई अशोक बजाज जी का फ़ोन आया कि छत्तीसगढ सरकार द्वारा खेलों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें मैराथन दौड़ का शुभारंभ किया जाना है। उन्होने के कहा कि मैं 20 मिनट में पहुंच रहा हूँ। बस फ़िर मुझे  फ़टाफ़ट तैयार होना पड़ा। तब तक अशोक बजाज जी पहुंच चुके थे। हम सब आयोजन स्थल की ओर चल पड़े। वहां सभी तैयारी में थे। हमारे जाते ही औपचारिक शुभारंभ हुआ और भाई अशोक बजाज ने हरी झंडी दि्खा कर मैराथन दौड़ का शुभारंभ किया। छोटे छोटे बच्चों में अपार उत्साह था। स्थानीय थानेदार ओटी और तहसीलदार देवांगन की भूमिका भी सराहनीय रही। हम भी खिलाड़ियों के साथ समापन स्थल तक गए।

हमारा यात्रा पर निकलने का मुहुर्त बन रहा था, इसी बीच राजभाटिया जी और समीर लाल जी के आने का समाचार मिला। राज भाटिया जी ने तो रोहतक में ब्लागर मिलन का आयोजन ही कर डाला। मैने और पाबला जी ने रुट तय कर लिया और टिकटें बुक कर ली। अब यात्रा का दिन नजदीक आते जा रहा था। तभी पाबला जी को अपनी यात्रा स्थगित करनी पड़ी और मुझे ही अकेले निकलना पड़ा।15 नवम्बर को प्रारंभ इस यात्रा में मेरा पहला पड़ाव धोरां री धरती याने कोटा राजस्थान है, द्विवेदी जी से राम राम के बाद निकल पड़ेगें महाराणा प्रताप और इंदुपुरी की नगरी चित्तौड़ की ओर यहां दो दिनों तक रुकने का कार्यक्रम है। रोहतक ताऊ जी के भी पहुंचने की संभावना है।
यहां से चलकर पहुंचेगे 20 नवम्बर को दिल्ली और वहां से रोहतक की तरफ़ प्रस्थान करेंगे। रोहतक गए कई साल  हो गए। एक बार मैं भिवानी से रोहतक स्कुटर से भी गया था। जब काठ मंडी की तरफ़ जा रहा था तो कोतवाली के सामने पुलिस वालों ने रोक लिया और कहा कि आपका हेल्मेट कहां है? चालान काटना पड़ेगा। मैने कहा कि मुर्खों महकमे के आदमी को भी नहीं पहचानते। सुनते ही उन्होने झट बैरियर खोल दिया। उस दिन से मैने सोच लिया कि रोहतक में स्कुटर तो चलाना ही नहीं है। चार चक्के की गाडी से ही जाना है देखना है फ़ेर सुसरे किसका चालान काटते हैं :) अब विचार किया कि जब चक्कों पर ही जाना है कम पर क्यो जाएं। इसलिए  हो सके तो सैकड़ों चक्कों वाली गाड़ी पर जाने का मन बनाया है।

एक बार लौहपथ गामिनी से रोहतक जाने का कार्यक्रम बनाया था। सदरबाजार से लोकल पकड़ी, उस दिन रविवार होने के और ट्रेड फ़ेयर लगने के कारण गाड़ी ओवरलोड थी। धक्कम धक्का करके बोगी के भीतर घुसे, पैर रखने की जगह नहीं थी। उपर वाली सीट पर एक बंदा अकेला सो रहा था। मैने उसे उठाया तो उसने एक बार मेरी तरफ़ दे्खा तो मैने कहा -" सरक ले परेनै"। वो बिना कुछ बोले सीट के एक कोने में सरक लिया। मैं और राजेश जी आराम से सीट पर बैठ लिए। तभी सामने बैठा एक छोरा बोल्या-" क्युं उठ लिया, आ ग्या ना तेरा फ़ूफ़ा"। यह सुनकर भी वो छोरा चुपचाप बैठा रहा।

रोहतक आने वाला था, तब वो बड़ी हिम्मत करके हिकमत से बोला-" सर आप कौण से थाणे में हैं?" ओ ह्हो सारा किस्सा मेरी समझ में आ गया। कि वो पूरी सीट छोड़ कर क्यों उठा था। मैने कहा - " आन मिलो सजना"। इतना सुन के उसको भी सारी बात समझ में आ गयी। वो और भी ज्यादा अटेंशन हो गया। अब "आन मिलो सजना का राज बहुत ही मजेदार है। क्योंकि वहाँ सजन मिलने को तैयार खड़े हैं। अगर कोई एक बार मिल ले तो उसके पुरखे भी आन मिलो सजना की तरफ़ मुंह करके नहीं देखे। दिन में भी सोच ले तो रोंगटे खड़े हो जाएं और अगर सजना सपने में दिख  जाएं तो चिल्ली मार  कर उसका मूत निकल जाए। इसलिए आन मिलो सजना कहना और सुनना भी ठीक नहीं है। भई हम तो रोहतक पहुंच गए पर सजना से मिलना किसी को गवारा नहीं था।
भले ही सजना ना मिले कोई बात नहीं लेकिन हम ब्लागरो से तो जरुर मिलेंगे। वहां से 22 अंतर सोहिल जी के साथ पहुंचेगे रिवाड़ी जहां मुझे एक विवाह समारोह में शामिल होना है। 23 को गुड़गांव में कुछ चिरपरिचित मित्रों से मुलाकात है। इसके बाद मुझे नारनौल जाना है वहां से वापसी पर दिल्ली के मित्रों से मिलते हुए वापसी है। लागी छूटे ना अब तो बलम।


रविवार, 14 नवंबर 2010

बाल दिवस और जीवन संघर्ष का प्रथम पाठ ---------- ललित शर्मा

आज 14 नवम्बर बाल दिवस का दिन है, साल में यह एक दिन बच्चों के नाम कर दिया गया। वैसे भी बाकी 364 दिन इन्ही के होते हैं।इस अवसर मैं कहना चाहता हूँ कि दुनिया की स्वनिर्मित (सेल्फ़ मेड) हस्तियों ने जीवन में संघर्ष किया तब किसी मुकाम तक पहुंचे। मैंने कई कामयाब लोगों के विषय में पढा जो सुबह अखबार बांट कर या कार पोंछ कर कुछ पैसे जुटाते थे। जीवन संघर्ष की यात्रा कार की पोंछाई से ही आगे बढती है। कई फ़िल्मों में भी यही कहानी देखी।
परसों रात विलंब से घर पहुंचा कोई 1 बज रहा होगा। सुबह भी देर से उठा। अगर पाबला जी का फ़ोन नहीं आया होता तो शायद 12 बजे तक सोया रहता। तभी श्रीमति जी कहा देखो चंदु (उदय) क्या कर रहा है? मैं जब जिज्ञासावश उसकी हरकतें देखने बाहर निकला तो कुछ अलग ही नजारा था। वह कामयाब होकर सेल्फ़ मेड हस्तियों में शामिल होने की तैयारी कर रहा था। आज बाल दिवस है इसलिए उसकी हरकतें आप भी देखें।

एक कुर्सी का जुगाड़ और काम शुरु

थोड़ी ऐसी सफ़ाई भी

मुझे गाड़ी पर धूल पसंद नहीं

क्यों ठीक है ना?

पहला पाठ शुरु है जीवन संघर्ष का। अभी ये नहीं जानता कि अभाव से भाव पैदा होता है। जो विरासत में मिलता है उसकी कोई कद्र नहीं होती। लेकिन खुद का कमाया हुआ धन आत्म संतुष्टि के साथ धन-जन की कद्र करना भी सिखाता है। जीवन की प्रथम पाठशाला यही है जो हमें मजबूत बनाती है। सभी को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, सभी बच्चों को ढेर सारा प्यार।

मिलिए वार्ताकार रुद्राक्ष पाठक से ========= ललित शर्मा

दुनिया को सभी अपने अपने चश्मे (नजरिए) से देखते हैं। एक नवयुवक के नजरिए और एक भूतपूर्व नवयुवक के नजरिए में काफ़ी अंतर आ जाता है। स्कूल में पढने वाला नवयुवक ने मेरे जन्मदिन 21 मार्च से 2009 में  इंग्लिश ब्लागिंग प्रारंभ की एवं 28/08/2010 हिन्दी ब्लॉग लिखने लगे। उस पर अपने विचार प्रकाशित करने लगा। इस उम्र ज्यादर नवयुवक आर्कुट की प्रदक्षिणा करते हैं लेकिन ब्लॉग तक नहीं पहुंच पाते। मैं जिक्र कर रहा हूँ रुद्राक्ष पाठक का। जी हाँ रुद्राक्ष पाठक  दुनिया मेरी नजर से देखते हैं। इनका एक तकनीकि ब्लॉग है जिस पर बाजार में उपलब्ध होने वाले नए उपकरणों की जानकारी देते हैं। मैनपुरी के श्री संजीव पाठक जी के योग्य सुपुत्र रुद्राक्ष पाठक हायर सेकेन्डरी में पढ रहे हैं। इंटरनेट पर सर्फ़िंग करते हैं एवं खेल में रुचि लेते हैं। वर्तमान में आगरा में विद्याध्ययन कर रहे हैं।

परसों ही ब्लाग4वार्ता पर वार्ताकार के रुप में भूमिका निभाने उपस्थित हुए। मेरी जानकारी में रुद्राक्ष पाठक सबसे कम उम्र के वार्ताकार हैं। इनमें हम असीम संभावनाएं देखते हैं एवं उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

Rudraksh Pathak
date of birth 07/11/1995
fathers name Sanjeev Pathak
hobbies surfing internet, and in sports
education high school 2010
started blogging on 21 march 2009 as a technology blog
started writing in hindi on 28/08/2010
blog help in country growth: ya absolutely, by sharing their views

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

पैमाने में व्यग्र होते सोडे के बुलबुले ---- ललित शर्मा

शब-ए-रोज यह वाकया घटता है मेरे साथ, तेरे घर के सामने लगे नियोन ब्लब की नीली रोशनी दूर से ही दिखाई देती है,जब तेरे घर से सामने से गुजरता हूँ तो वह खींचता है मुझे। कदम ठिठकते हैं एकाएक गाड़ी के ब्रेक पर पैर टिक जाता है, मैं कहता हूँ चला जाए अंदर, मन कहता है, रुकना नहीं है जाना है। मन जीत जाता है, मैं रुकता नहीं, चलते जाता हूँ। कहता हूँ कि फ़िर कभी आऊंगा। कांच के पैमाने में तेरा अक्स देखने।

कुछ मील चलने के बाद एकबारगी तेरी याद फ़िर आती है, रास्ते में एकांत ढूंढता हूँ जहाँ आराम से बैठ कर उन गलियों के चक्कर काट आऊँ जहाँ कभी मैं गुजरा करता था। अलियों से खेला करता था। लेकिन मन कहता है कि रुकना नहीं है चलते जाना है। मन व्यर्थ ही दुश्मन बना हुआ है, कहीं रुकने ही नहीं देता। उसके कहने से फ़िर मैं चल पड़ता हूँ और चलता ही जाता हूँ।

रास्ते में यमदूतों से भेंट होती है, सड़क  के बीच जुगाली करते हुए, निश्चिंत होकर बैठे हैं। जैसे संसद में किए गए प्रश्न का जवाब मिलने के बाद तन्मयता से निरीक्षण कर रहे हों। या फ़िर उपर की कमाई को गिनते हुए कोई सिपहिया और बाबू। एक संतोष का भाव दिखता है इनके चेहरे पर। अब कोई भिड़ जाए तो उसकी आई थी। बच जाए तो भी राम राम है। बात तो तब है जब तु रहे साथ और ये यमदूत आ जाएं। लेकिन तुझे देख कर आते नहीं हैं। अरे जान का डर सबको है। चाहे दूत हो या यम दूत।

गाना बज रहा है एफ़ एम पर रात 12 बजे। मैं कार में रिकार्ड नहीं सुनता इस समय। एफ़ एम स्टेशन वालों को शायद मेरी पसंद का अंदाजा है और  रात के 12 बजे के बाद शायद मेरे जैसे ही कुछ श्रोता होगें जो सुनते होगें। “एक  दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल लल्ला ल ल ल ला” फ़िर एक और गीत बजता है “ चांदी की दिवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया’ फ़िर रेड़ियो कहता है “घुंघट के पट खोल,तोहे पिया मिलेंगे” बस सुन कर गहरे उतर जाता हूँ, पट नहीं दिखते।

सड़क दि्खाई देनी बंद हो जाती है। कार हवा में तैरते जाती है। बस तैरते जाती है हाईवे पर, जैसे बिना ड्रायवर के चल रही हो। मैं पुतले की तरह स्टेयरिंग पर हाथ धरे गीतों में मुग्ध हो जाता हूं। किसी वाहन से टकराने का खतरा उठा कर। वैसे टकराना तो मेरी फ़ितरत में शामिल हो गया है। कभी टकरा जाता हूं तो कभी सलामत घर तक पहुंच जाता हूँ। सोचता हूँ कि यह कातिल तो कभी जान लेकर ही छोड़ेगा। लेकिन जान निकलती नहीं है। जीवटता रग-रग में भरी है। दुश्मनों की छाती पर मुंग दलने के लिए फ़िर बच जाता हूँ।

यही सोचते सोचते फ़िर तेरा घर आ जाता है जहाँ तू मिलती है। ब्रेक पर पैर पहुंच जाते हैं, मन कहता है रुकना मना, लेकिन अबकि बार मन पर मैं विजय पा लेता हूँ और ब्रेक लग जाता है। राम लाल सैल्युट दागता है, बरसों का सेवक है। मेरी पसंद और नापसंद का ख्याल रखता है और यह भी जानता है कि मुझे कब क्या चाहिए। कोठरी में तिपाई सजा देता है पानी, सोडा गिलास और चखना के साथ तेरे दीदार होते हैं। बेसब्री से होठों से लगाता हूँ, एक कड़वाहट पूरे वजूद में भर जाती है। आज के बाद तुझसे फ़िर कभी नहीं मिलुंगा। सच कह रहा हूँ।

कमरे में जलती मोमबत्ती रो रही है, लौ थरथरा रही है,आंसू पिघल कर तिपाई पर गिर रहे हैं। जैसे कहती हो कैसे हो पाएगा तुमसे बिछोह, ये तो तुम रोज कहते हो। साक्षी हूँ मैं पल पल की।

तभी एक मच्छर गुनगुनाता हुआ अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाता है। “तुम अगर मुझको न चाहो तो कोइ बात नहीं” शायद उसकी गुनगुनाहट की धुन कुछ ऐसी ही थी। बस अब वो भी मस्त है और मैं भी मस्त हूँ। कड़ुवाहट कुछ क्षण की थी अब आनंद का सागर हिलोरें लेने लगा। मोबाईल पर निगाहें चली जाती हैं। नम्बरों पर सरसरी निगाह दौड़ाता हूँ। धीरे धीरे नम्बर भी आकार लेने लगे। अरे कितने दिन हो गए इस नम्बर से बात किए, लेकिन रात के एक बज रहे होगें, कोई तुम्हारी तरह येड़ा तो नहीं है। चलो आगे बढते हैं किसी और नम्बर की तरफ़ जो मुझ जैसा होगा।

प्याले में मोमबत्ती की लौ का प्रतिबिंब झिलमिलाता है। जैसे हिलते हुए नदी किनारे के घाट के पत्थर पर बैठने पर नदी हिलती हुई दिखती है। आज मोमबत्ती की लौ थिरक रही है। शायद तुम्हारा चेहरा स्पष्ट दिखाना चाहती है जो अंधकार में छुपा हुआ है। फ़ोन के नम्बर चलते ही रहते हैं, सहसा एक जगह रुकते हैं नम्बर, डायल करने पर कहती है कि “ इस रूट की सभी लाईने व्यस्त हैं, कृपया थोड़ी देर बाद कोशिश करें।“ कोशिश करने के लिए समय कहाँ है अपने पास। अधीरता बढ जाती है। पैमाने में बुदबुदाते सोडे के बुलबुले व्यग्र हो उठते हैं। शायद कहते हों महाराज बहुत झेलाता है भाई, कह दो आगे पानी से ही काम चला लिया करे। कुछ तो तमीज होनी चाहिए मयखाने की। ऐसे कैसे पट खुलेगें?

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

ओबामा और महाघाघ हिंदी ब्लागर की शिखर वार्ता

ओबामा ने उड़न खटोले से उतरते ही सबसे पहले संतरी से पूछा—“यहां इंडिया में ताऊ नाम के महाघाघ ब्लागर रहते हैं, क्या आप उन्हे जानते हैं?

हमें तो राज काज से ही फ़ुरसत नहीं मिलती, अब ताऊ का पता कहां से करें?

ओबामा - अरे आप ताऊ को नहीं जानते? मशहूर महाघाघ हिन्दी ब्लागर हैं। उनके नाम के डंके तो पुरी दुनिया में बजते हैं। मुझे उनसे मिलना है। सबसे पहले हम ताऊ के साथ हिन्दी ब्लागिंग पर चर्चा करेगें फ़िर आपके साथ शिखर वार्ता होगी।

बस क्या था, पीएमओ से ताऊ तक दौड़ लगाई गयी। ताऊ इधर बिग बॉस में घास छील रहे थे फ़ावड़ी लेकर। दूत पहुंचा ताऊ को राम राम किया और कहा-“अमेरिका के राष्ट्रपति आपसे मिलकर हिन्दी ब्लागिंग पर वार्ता करना चाहते हैं, आप चलिए।


ब्लागर्स बिग बास में घास छीलते हुये ताऊ


ताऊ बोले - हम भी ब्लाग जगत के महाघाघ ब्लागर है अगर उन्हे वार्ता करनी है तो हमारे महल में पधारें। अभी हमें ब्लागिंग की घास छीलने से फ़ुरसत नही है। दूत संदेश लेकर चला गया। बात आखिर हिन्दी ब्लागिंग की थी यहां तो अच्छे अच्छों के घुटने टिक जाते हैं, ओबामा क्या चीज है। आखिर थक हार कर ओबामा को ही ताऊ के पास आना पड़ा।

ताऊ तब तक घास काट कर अपनी खटिया पर बैठकर हुक्का गुडगुडाने लग गया था कि वहां ओबामा आ पहुंचे और ओबामा के साथ ताऊ की शिखर वार्ता शुरु हो गई। राम प्यारे ने ताऊ चैनल पर इसका सीधा प्रसारण शुरु कर दिया।

ओबामा बोले - ताऊ राम राम, आपकी ब्लागिंग कैसी चल रही है? मैने हिन्दी ब्लागिंग में आपके बहुत चर्चे सुने हैं। इसलिए मिलने आया हूँ।

ताऊ बोले - ओबामा जी हमारी हिन्दी ब्लागिंग धड़ल्ले से चल रही है। हिन्दी सेवा चल रही है। हिन्दी के पैरोकार हैं। आप सुनाईये आपकी ब्लागिंग कैसी चल रही है?

ओबामा - ब्लागिंग तो मैं भी करता हूँ लेकिन जितने कमेंट का आपका रिकार्ड है उतने कमेंट तो मुझे कभी नहीं मिले, ऐसा क्या किया जाए जिससे आपके ब्लाग के जितने ही कमेंट मुझे भी मिले.. और अनामी बेमामी कमेंट्स से कैसे निपटा जाये? यानि टिप्पणी प्रबंधन के बारे में कुछ सलाह दीजिए।

ताऊ बोले - भाई ओबामा जी ज्यादा कमेंट पाना, बेनामी कमेंट से निपटना, हाथीपछाड कमेंट, बंदरपछाड कमेंट, घोडापछाड यानि सब तरह के कमेंट प्रबंधन से निपटना हम आपको सीखा सकते हैं...ये कौन सी बड़ी बात हैं? बस आप हिन्दी ब्लागिंग शुरु करें आपको सारे गुर सीखा दिए जाएंगे। ये हमारा वादा है और यूं भी इन पर हमारा पेटेंट है ...कुछ रायल्टी वगैरह तय हो जाये तो यह तकनीक आपको ट्रांसफ़र कर दी जायेगी।

ओबामा - तो यह सब सीखने के लिए हिन्दी ब्लागिंग शुरु करनी पड़ेगी?

ताऊ बोले - हां ब्लागिंग की सारी तकनीक हिन्दी ब्लागिंग में ही हैं। सबसे ज्यादा अविष्कार और अन्वेषण यहीं हुए हैं। ब्लागिंग के स्वनाम धन्य असली मठाधीश ब्लागर भी हिंदी ब्लागिंग में ही हैं। जब आप हिंदी ब्लागिंग शुरू करेंगे तब अपने आप जान जाएगें।


ताऊ, ;ललित शर्मा, अजय झा एवम माननीय ओबामा जी शिखर वार्ता करते हुये।
बायें रामप्यारे, ताऊ-टीवी के लिये प्रसारण करते हुये


ओबामा - ताऊ, एक काम करिए हम अपने सारे अंग्रेजी ब्लागरों को तकनीकि ज्ञान सिखाने हिन्दी ब्लागरों के पास भेज देते हैं, इसके लिए एक परियोजना बनाईए और हम उसे वर्ड बैंक से अनुदान दिला देते हैं।

ताऊ - वाह ये तो आपने मेरे मन की बात कह दी, हमें तो अनुदान के नाम पर आज तक कभी हिंदी ब्लागर सम्मेलन के रिटर्न रेल्वे टिकट के पैसे भी नही मिले, और पैसे की तो बात कहां से करें, उसका निमंत्रण तक नही मिला। और वैसे भी आपके अमेरिकी डालर में दम है। आते ही गर्मी आ जाती है। अब मैं भी आपका डालर मेरे अपने वालों को ही रेवडी की तरह बांटूंगा, जैसे वो सम्मेलन् की रेवडियां अपने वालों को ही बांटते हैं।

ओबामा - ताऊ अब आप ये रेवडियां क्या बांटने लग गये? ये रेवडियां क्या चीज होती है?

ताऊ - अजी ओबामा जी, यही रेवडियां तो असली हिंदी ब्लागिंग की जान हैं? मतलब रेवडी किसी और की, बांटने वाला कोई और..खाते हुये दिखेगा कोई और, और असल में खा जायेगा कोई और। खैर ये सब तो मैं आपके अंगरेजी ब्लागर्स को सिखा ही दूंगा...आप चिंता नही करें...आप तो शिखर वार्ता को आगे बढाईये।

ओबामा - जरूर जरूर ताऊ, हमको आपसे ऐसी ही उम्मीद है कि आप हमारे अंगरेजी ब्लागर्स को ट्रेंड करके ही छोडेंगे.. तो ऐसा करते हैं कि एक एक हिन्दी ब्लागर के पास 20-20 अंग्रेजी ब्लागर को भेज देते हैं ब्लागिंग का क्रेश कोर्स कराने के लिए। इससे हिन्दी ब्लागरों को ब्लागिंग से कमाई भी हो जाएगी।

ताऊ - जरुर जरुर हमारे पास हिन्दी के बहुत से फ़ुल टाईम ब्लागर हैं। कुछ ऐसे भी ब्लागर हैं जो ऑफ़िस में काम कम और ब्लागिंग ज्यादा करते हैं, उनके पास शाम की ट्युशन के लिए भेज देंगे। आप भी क्या याद करेंगे कि हम आपके अंग्रेजी ब्लागरों को फ़ुल टुश ट्रेन्ड कर देंगे। फ़िर देखना अंग्रेजी ब्लागिंग में भी हिन्दी ब्लागिंग के मजे आने लगेगें। यानि खांटी ब्लागिंग आनंद।

ओबामा - अभी मेरे पास समय कम है आप एम ओ यु साईन कर लें बाकी बाते बाद मे हो जाएंगी।

अंग्रेजी ब्लागिंग की दशा और दिशा सुधारने के लिए महाघाघ ब्लागर ताऊ के साथ ओबामा ने एम ओ यू साईन किया। इस तरह शिखर वार्ता संपन्न हुई।

(फ़ोटो-ताऊ टीवी के फ़ोटोगार से) एक निर्मल हास्य

सोमवार, 8 नवंबर 2010

एक युद्ध खत्म हुआ--अगले युद्ध की तैयारी-----ललित शर्मा

कई महीनों से रसद एकत्रित की जा रही थी, गोले-बारुद और मन पसंद बंदूक-पिस्टल संभाली जा रही थी। कब युद्ध हो और सारा असला काम आए। वह दिन आ ही गया जिसका इंतजार था। निश्चित समय पर गोली बारी शुरु हो गयी। सहसा धमाकों की बाढ आ जाती है। गोलियों की बौछार लगातार हो रही है। इधर सम्पर्क साधा जा रहा है, हेलो हेलो चार्ली हियर हेलो हेलो कुमुक भेजो। गोलियां रुक रुक कर चलती हैं कुछ देर बाद। शुरुआत में जोश था कि फ़तह कर लेंगे। अब सारी रात रह रह कर धूम धड़ाके हो रहे हैं। तभी सुबह होते ही युद्ध विराम हो जाता है।पौ फ़टते ही यत्र तत्र युद्ध के अवशेष ही दिखाई पड़ते हैं। सारे सैनिक निढाल पड़े हैं। कोई यहां कोई वहां। गोलियों के खोखे और ग्रेनेड के सिक्के कुछ लोग सकेल रहे हैं। कुछ लोग निढाल सैनिकों की मरहम पट्टी कर रहे हैं। यही नजारा दिख रहा है। एक युद्ध आया और गुजर गया। याने विराम हो गया। तुफ़ान गुजर जाने के जैसी स्थिति दिख रही है या बेटी की बारात जाने के बाद के बाद की सुबह जैसी बात है। चहुं ओर सन्नाटा।
 
यह कोई युद्ध नहीं है लेकिन युद्ध जैसा ही है। दीवाली के त्यौहार की तैयारी और उसके जाने के बाद बस ऐसा ही कुछ लग रहा है। एक महीने पहले से तैयारी चल रही थी सभी व्यस्त थे, घर का हर प्राणी तैयारी में लगा हुआ था। एक-एक दिन गिने जा रहे थे। दीवाली के इंतजार में। माता जी चिंतित दिख रही थी कि कुम्हारी नहीं आई है दीए लेकर, अब बाजार से ही लाने पड़ेंगे जा कर।हमारी खानदानी कुम्हारी ही दीए लेकर आती है, तीन पीढियाँ तो मुझे देखते हो गए। पहले उसकी सास आती है अब बहु दिए लेकर आती है। श्रीमति कहने लगी कि लाई वाली (खील लाने वाली ढिमरी) नही आई है। इसे भी त्यौहार से पहले खील लाते देख रहा हूँ बचपन से। बिना खील के पूजा नहीं होती। इसलिए खील जरुरी है। इनके आते ही कुछ काम कम हो जाता है। 

अरे अभी तक पेंटर नहीं आए हैं। बहुत कम दिन रह गए हैं। उन्हे पकड़ कर लाओ। आंगन की घास नहीं छीली गयी है, कितना खराब दिख रहा है। गेट पर पेंट कराओ अब उस पर जंग लग गया है। समय बचा ही कहां है? दीवाली सर पर आ गयी है। चन्दु को पेंसिल जीन्स चाहिए।सलमान के जैसी। उसे तो वही लेना है। बस एक ही राग चल रहा है “मुन्नी बदनाम हूई तेरे लिए” ये जनाब मुन्नी को इतना बदनाम कर चुके हैं, इतना तो सलमान ने भी नहीं किया। एक स्कार्फ़ और चश्मा मिलते ही “दबंग दबंग दबंग”।

एक और रुठ कर बैठी है कि उसे तो स्कूटी चाहिए और कुछ नहीं चाहिए। अरे स्कूटी तो ऐसे कह रहे हैं जैसे तीन चक्के की सायकिल लेनी हो। सभी की अपनी फ़रमाईश। अब स्कूटी आ गयी तो अल सुबह चल दिए चलाने मैदान में और धड़ाम। स्कूटी उपर ये नीचे, स्कूटी भी तोड़ लाए, साथ में टांग भी फ़ोड़वा आए। दीवाली है कुछ तो धमाका होना चाहिए। दो घंटे तो ये भी नहीं बताए की टांग की मरम्मत हो गयी है। जब रुई और डेटाल ढूंढने लगी तो पता चला कि स्कूटी के साथ टांग की मरम्मत हो गयी है।रंगोली बनाने से पीछा छूट जाएगा। लेकिन छूटा नहीं, रंगोली बनानी ही पड़ी।
 
फ़िर पकवान बनाने की जद्दोजहद में लगे। खोवा (मावा) लेकर नहीं आया है, पहले ही बोल दिया था उसे धनतेरस को मावा ले आना। अरे आ जाएगा, जब 30 साल से मावा दे रहा है तो आज ही छुट्टी थोड़ी कर देगा। लो मावा वाला भी आ गया, अब तैयारी शुरु करो। अब आखरी काम बच गया आंगन की गोबर से लिपाई, गोबर से लिपाई जरुरी है, तभी तो लक्ष्मी जी घर आएंगी। ये महरी भी न जाने ऐन वक्त पे कहां मर जाती है।अंतिम क्षणों तक बस तैयारी चलती ही रही।
 
उदय, आदि, हनी को पिस्टल चाहिए पटाखे वाली, किसी को बड़े वाले अनार, कोई बड़ी फ़ुलझडियों की डिमांड कर रहा है। एक ने फ़रमाईश की, ईको फ़्रेंडली पटाखे चाहिए चाईना वाले। लो कर लो बात, अरे सारी डिमांड एक साथ कर दो फ़िर बाद में कुछ नहीं मिलेगा। एक लिस्ट बना कर दो। जब लिस्ट पटाखे वाले के पास पहुंची तो मत पूछो, जैसे सारे पटाखे वहीं चल गए।3800 का बिल बना दिया। जब घर पहुंचे तो श्रीमति जी ने बोली कि इतने के पटाखे लाने किसने कहा था? लिस्ट तो तुम्ही लोगों ने दी थी। उसी पर अमल किया है। करो तब मरो नही करो तब मरो।

अभी तक रंगीन बल्बों की झालर नहीं लगी हैं घर पर, जल्दी से लगाओ, देखो पड़ोसियों के यहां पर तो दो दिन पहले से ही लग जाती हैं, अब इस कम्पयुटर से पीछा छूटे तब तो कुछ करोगे। लगाते हैं भई इतना गरम होने की क्या जरुरत है। बालुशाही जल जाएगी। तोड़ा ठंड रखो।जितनी तैयारी हम दीवाली मनाने के लिए करते हैं समझ लो उतनी तैयारी एक युद्ध के लिए भी होती है। दोनों में कोई खास फ़र्क नहीं है। इधर भी धूम धड़ाका और उधर भी धूम धड़ाका। परम्परागत ढंग से पूजा करके दीए रौशन किए गए, लक्ष्मी जी पूजा हुई और पटाखे शुरु। रात भर पटाखे चलाते रहे। इधर फ़ोन भी घनघनाते रहे। युद्ध जीतने की बधाईयों का आदान प्रदान प्रारंभ हो चुका था और हम इधर नेट पर टिपियाने बैठ गए। सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

रविवार, 7 नवंबर 2010

दीवाली कैसी मनी? यह क्यों पूछते हैं लोग

प्रतिवर्ष हम दीवाली मनाते हैं दशहरे से ही दीवाली की तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं। सभी अपने-अपने सामर्थ्य के हिसाब से त्यौहार मनाने की तैयारी करते हैं। जब दीवाली आती है तो सभी हर्षोल्लास से दीवाली मनाते हैं। मैं भी बचपन से यही प्रक्रिया देखते आ रहा हूँ। इस दिन हम पूजा करके अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। रिश्तेदारों इष्ट मित्रों के यहाँ पूजा का प्रसाद पहुंचाते हैं। इस तरह त्यौहार का व्यवहार चलता है।

लेकिन एक बात मुझे बहुत ही खराब लगती है कि मिलते ही लोग पूछते हैं दीवाली कैसी रही? बस इतना सुनते ही खोपड़ी चढ जाती है। अरे भाई कल ही मिले थे, आज भी मिल रहे हैं। अब एक दिन में क्या दीवाली अच्छी या बुरी हो जाएगी। मेरे मायने में तो त्यौहार सभी वर्ग उत्साह से मनाता है और त्यौहार सभी का अच्छा ही गुजरता है। अच्छा खाना,अच्छा पहनना और रिश्तेदारों और इष्ट मित्रों के साथ मिल कर आनंद लेना। पता नहींलोग यह प्रश्न क्युं करते हैं कि "दीवाली कैसी मनी?

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

दीपावली की बधाई--खूब बांटे खील पताशे और मिठाई ----- ललित शर्मा

दीपावली की बधाई--खूब बांटे खील पताशे और मिठाई

Orkut Scraps Diwali Hindi




बुधवार, 3 नवंबर 2010

ब्लॉगर की अर्जी-कुबेर की मर्जी------------ललित शर्मा

गत वर्ष धनतेरस पर हमने नुक्कड़ पर यह अर्जी लगाई थी।कुबेर जी नहीं मानी तो एक बार फ़िर निवेदन जारी किया गया है, हो सकता है इस वर्ष हमारी अर्जी मान ली जाए।
 
जय  कुबेर  महाराज तू सुन ले अर्ज हमारी
आज धन तेरस है तुझे पूजे है दुनिया सारी

धन के देवता हो कुछ ऐसा कमाल दिखाओ
सारे  बेईमानों   को आज कंगाल  कर जाओ
गरीबों को लूटके  भरी जिनकी तिजोरी सारी
 
जय कुबेर महाराज तू सुन ले अर्ज हमारी
आज  धन तेरस है तुझे पूजे दुनिया सारी

धन   धनाधन   धन  कुछ  धन इधर  आने दो
सूखा  खेत  पड़ा   है   कुछ इसे  भी  सरसाने दो
जनता  मर  रही  देखो  नित  मंहगाई की मारी
 
जय कुबेर महाराज तू सुन ले अर्ज हमारी
आज धन तेरस है तुझे पूजे दुनिया सारी

तुम  देवता सबके हो थोड़ा हक हमारा भी बनता
कुछ स्वर्ण मुद्राएं भेजो हममें भी आये चेतनता
धनतेरस पर हम यह निवेदन करते है जारी

जय कुबेर महाराज तू सुन ले अर्ज हमारी
आज  धन तेरस है तुझे पूजे दुनिया सारी

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

निशाना टारगेट पे--एक सफ़र शुटिंग रेंज का ---------ललित शर्मा

छत्तीसगढ प्रदेश रायफ़ल एसोसिएशन के तत्वाधान में वार्षिक शुटिंग प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा है। प्रतियोगिता के शुभारंभ के अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर एडीजी रामनिवास जी एवं छत्तीसगढ और उड़ीसा ब्रिगेड के ब्रिगेडियर ए कृष्णन उपस्थित थे। आज एक अर्से के बाद एडीजी रामनिवास जी से मुलाकात हुई।
बांए से दांए-- कर्नल जेम्स, ब्रिगेडियर कृष्णन, एडीजी रामनिवास,वाईस प्रेसिडेंट जिंदल ग्रुप, कमांडेंट पाल



उदय महाराज भी आ गए हैं मैदान में-इनका पहला शॉट


 देखो बेटा, ऐसे लगाते हैं निशाना

श्रुति प्रिया रेंज पे

 श्रुति का टारगेट

श्रेयांशि मैच खेलते हुए

जी न्युज पर श्रेयांशि

पुलिस के दो शुटर-- के.पद्मा और अभय

अरे ये रायफ़ल जाम हो गयी--सुनील कौशल

अमितेष देशपांडे -- नया शुटर

मम्मी! ये रायफ़ल बहुत भारी है--अदिति

एक किश्त और बाकी है शुटिंग रेंज से................