कार्यक्रम - परिचर्चा : मन पखेरु उड़ चला फ़िर
स्थान - कान्स्टिट्युशन क्लब डिप्टी स्पीकर हॉल नई दिल्ली
दिनांक-18 मई 2013, समय - 5 बजे सांय
काव्य संग्रह का पुनः लोकार्पण |
घन चक्करों से घुरते-फ़िरते दिल्ली के गोल चक्करों के चक्कर काटते हुए मेजबान के साथ वीपी हाउस के समीप स्थित कान्स्टिट्युशन क्लब कुछ विलंब से पहुंचे। द्वार पर पहुंचते ही सुनीता शानु जी का चित्र लगा फ़्लेक्स बैनर दिखाई दिया। इससे प्रमाणित हो गया कि सही स्थान पर पहुंच गए। हाथों में गुलदस्ते थामे डिप्टी स्पीकर हॉल की ओर बढते हुए हमारी ओर लोगों की निगाहें जमी हुई थी। गुलदस्ता चीज ही ऐसी है, दिल्ली की सारी राजनीति और औपचारिकताएं गुलदस्तों पर टिकी है। ये दिल्ली है भाय, गुलदस्ता किसी का होता है और मौज कोई और ले जाता है गुलदस्ते के दाम चुकाने वाला खोपड़ी खुजाते रहता है कि सोचा था क्या और क्या हो गया? पलक झपकते ही परदा बदल जाता है, रामलीला की जगह कृष्णलीला( अश्वत्थामा हत: नरो वा कुंजरो वा) का प्रहसन शुरु हो जाता है। कांच के दरवाजे को खोलते ही सामने एक बड़ा फ़्लेक्स लगा दिखाई देता है। जिससे प्रदर्शित होता है कि प्रकाशक ने "मन पखेरु उड़ चला फ़िर" काव्य संग्रह पर परिचर्चा करने हेतु बड़ा आयोजन किया है।
सम्मानित अथितिगण |
बड़ी बड़ी धवल प्राचीरों के मध्य नीले रंग की कुर्सियाँ गजब का कांट्रास्ट बना रही थी। सर्व प्रथम शैलेष भारतवासी ने आगे बढ कर अभिवादन किया और उसके पश्चात रतनसिंह शेखावत जी के साथ हमारा मेंट्रो अखबार के प्रधान सम्पादक राजकुमार अग्रवाल जी से भेंट हुई। विशेष अतिथि, मुख्यातिथि एवं अथिति श्रोता इत्यादि धीरे-धीरे सभागृह में स्थान ग्रहण कर चुके थे। आज काव्य संग्रह की परिचर्चा में आनंद कृष्ण (जबलपुर) मैत्रेयी पुष्पा (दिल्ली) लक्ष्मी शंकर बाजपेयी (दिल्ली) को बोलना था और संचालन का जिम्मा ओम निश्चल (बनारस) के जिम्मे था। सुनीता शानु जी को अपने काव्य संग्रह से कविता पाठ भी करना था। ये एक ऐसा अवसर था जब दो वर्षों के पश्चात मेरी भेंट ब्लॉगर मित्रों से होनी थी। साथ ही साहित्य जगत की महा हस्तियों के भी दर्शन होने थे।
ब्लॉगर रतनसिंह, ललित शर्मा, अविनाश जी |
कार्यक्रम प्रारंभ हो गया। सारी नीली कुर्सियाँ भर चुकी थी। सम्मानादि की औपचारिकता के पश्चात आनंद कृष्ण जी ने कविता संग्रह पर प्रकाश डाला। शैलेष भारतवासी बारातियों के स्वागत में व्यस्त दिखाई दिए। राजीव तनेजा, संजु तनेजा, मोहिन्दर कुमार, अनिवाश वाचस्पति, संतोष त्रिवेदी, पवन चंदन, सुमीत प्रताप सिंह, सिद्देश्वर जी उत्तराखंड से, अंजु चौधरी, वंदना गुप्ता, डॉ अरुणा जी, आलोक खरे, शाहनवाज हुसैन, राघवेंद्र अवस्थी, मुकेश सिन्हा, बबली वशिष्ठ (हेमलता), बलजीत कुमार, राजीव कुमार इत्यादि ब्लॉगर उपस्थित हो चुके थे। सारी कुर्सियों ने मेहमानों का भार वहन कर लिया था। साथ ही सामने रखे सोफ़े पर भी मेहमान शोभायमान हो चुके थे। आनंद कृष्ण जी ने काव्य संग्रह की गहन समीक्षा की। इसके पश्चात लक्ष्मीशंकर बाजपेयी जी ने काव्य संग्रह की सराहना करते हुए सुनीता जी से अपेक्षा रखी कि वे अब छंद बद्ध, मुक्त कविता, दोहे, गजल इत्यादि के पृथक संग्रह प्रकाशित करें। मैत्रेयी पुष्पा जी ने कहा कि कोई भी कथाकार पूर्व में कवि होता है। मैं भी कविताएं लिखती थी उसके बाद ही गद्य लेखन लेखन प्रारंभ किया।
एक चौका हमने भी मार दिया छत्तीसगढ़ी कविता का |
इसके पश्चात दूसरे सत्र में कुछ कवियों द्वारा कविता पाठ किया गया। जिसमें मुकेश कुमार सिन्हा, ब्लॉगर ललित शर्मा, अंजु चौधरी, सिद्देश्वर जी, बबली वशिष्ठ, अमन दलाल, नीलम नागपाल मेंहदी रत्ता, संगीता विज के साथ ओम निश्चल एवं लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन मंचीय कवियत्री ममता किरण ने किया। कार्यक्रम सम्पन्न होने पर सभी कवियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए, इसके पश्चात भोजन की घोषणा हो गयी और ब्लॉगर साथियों के साथ चर्चा करने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यक्रम की उपलब्धि यह रही कि "मन पखेरु उड़ चला फ़िर" के बहाने ब्लॉगर साथियों के साथ एक अर्से के बाद मुलाकात हो गयी। भोजनोपरांत कार्यक्रम में उपस्थित सभी देवी एवं देवता अपने-अपने ग्राम को प्रस्थान कर गए और मेरा ग्राम दूर होने के कारण मैं दिल्ली का मेहमान बना रहा।
कवियत्री हेमलता को स्मृति चिन्ह देते अविनाश जी |
काव्य संग्रह के विमोचन का कार्यक्रम पिलानी में रखा गया था, लेकिन व्यवधान होने से मैं पहुच नही पाया। इसलिए दिल्ली के कार्यक्रम में उपस्थित होना अत्यावश्यक हो गया था। कार्यक्रम बढ़िया रहा, इसकी सफ़लता का श्रेय परदे के पीछे से संचालन कर रहे सुनीता जी के पतिदेव पवन चोटिया जी को देना होगा। उनकी अथक मेहनत एवं परिश्रम से यह आयोजन सफल हो सका। ये उनका स्नेह ही था जिसने मुझे 1500 किलो मीटर दूर से दिल्ली खींच लिया। सुनीता जी की रचनाधर्मिता से तो सारा ब्लॉग जगत एवं साहित्य जगत परिचित है। कम्पनी के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद भी उनका लेखन कार्य 25 वर्षों से अहर्निश जारी है। व्यंग्य लेखन में उन्हे महारत हासिल है। पवन जी उन्हे हमेशा प्रेरित करते रहते हैं। तीन दशकों के लेखन के बाद पवन जी चाह्ते थे कि सुनीता जी का काव्य संग्रह भी साहित्य जगत के सामने आए और वह घड़ी आ गई जब सुनीता जी का काव्य संग्रह " मन पखेरु उड़ चला फ़िर" के नाम से सामने आया।
अगली शाम सुनीता जी, पवन जी के साथ |
सुनीता जी को लेखन के प्रति प्रोत्साहित करने के पीछे सारा परिवार ही दिखाई देता है। जिसमें उनके माता-पिता, सास-ससुर, पति पवन चोटिया जी , पुत्र आदित्य तथा अक्षय का नाम उल्लेखनीय है। पवन जी ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, दिल खोल कर खर्च किया और कहीं अहसास नहीं होने दिया कि यह आयोजन उनका है। सभी को यही लगा कि हिन्दी युग्म में बड़े पैमाने पर इस काव्य संग्रह की लांचिग की है। फ़िर भी शैलेष जी ने काफ़ी मेहनत की उन्हे साधुवाद। साथ ही सुनीता शानु जी को भी प्रथम काव्य संग्रह के प्रकाशन मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। वे उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर हों। अस्माकं वीरा/वीरांगना उत्तरे भवन्तु की कामना के साथ साधुवाद। :)
कार्यक्रम उपरांत एक विमोचन फुटपाथ पर |
मिलते हैं अगली कथा में .......... जारी है।