जादूगर तरह तरह के खेल दिखा रहा था, बच्चे मंत्र मुग्ध होकर उसके हैरत अंगेज करतब देख रहे थे। कभी डिब्बे से कबूतर निकालता और उसे गायब कर देता तो कभी रंग बिरंगे फ़ूल निकाल कर दिखाता। कभी छोटी सी बॉल को फ़ुटबाल बना देता तो कभी रुमाल को हवा में गायब कर देता। उसकी छड़ी में गजब का जादू था, उसे घुमाते ही पलक झपकते जादू हो जाता। बच्चों के मन में कौतुहल था कि जादूगर ये सब कैसे करता है। सब बच्चों के बीच से उदय उठा और जादूगर के पास पहुंचा। उसे अपनी खिलौना कार दी और बोला - इसे बड़ा कर दो। जादूगर चकित होकर उदय की ओर देखकर बोला - "बेटा कार को बड़ा करने वाला जादू सिर्फ़ आपके पापा ही दिखा सकते हैं, वे ही इस कार को बड़ा कर सकते हैं, मैं नहीं। उस वक्त उदय तीन साल का था। अब वह मेरे से जिद करने लगा कि कार को बड़ा करो। मैने उससे कुछ दिनों का समय लिया और कार को बड़ा कर दिया।
जादूगर ने यह बात सहज ही कही थी लेकिन उसमें गुढार्थ था। पापा ही दुनिया के एकमात्र ऐसे जादूगर होते हैं जो परिवार की सभी मांगों को पूरा कर सकते हैं। बच्चा हो या बूढा हो, सभी की आशाएं उसके साथ लगी रहती हैं। दुनिया के महान जादूगर होते हैं पापा। मेरे पापा भी जादूगर थे, मैं सोचता था कि उनके पास जादू की असीमित शक्तियाँ हैं। उनके पास नाग मणि है, जो चाहो मांग लो। मनवांछित मिल जाएगा। लेकिन यह जादू क्या होता है और कैसे होता है, इसका रहस्य पापा बनने के बाद ही पता चलता है। जो चीजें पलक झपकते ही प्राप्त होने की कामना करने बाद प्राप्त हो जाती थी वे किस तरह से आती हैं और उस जादू को दिखाने के लिए कौन से मंत्र को सिद्ध करके उसका सफ़ल प्रयोग करना पड़ता है। यह सिर्फ़ पापा ही जानते हैं और कोई नहीं। उदय भी जान जाएगा कि पापा ने छोटी सी कार को बड़ा कैसे किया जब उसका बेटा उससे यह इच्छा जाहिर करेगा।
पापा को हमेशा कई मोर्चों पर लड़ना होता है, उसके लिए युद्ध के कई मोर्चे खुले होते हैं। इतने मोर्चों पर कोई बहादूर योद्धा ही लड़ कर विजय प्राप्त कर सकता है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते ही दो मोर्चे तो सभी के लिए खुल जाते हैं। अर्थ अर्जन करना और गृहस्थी की आवश्यकताओं की पूर्ति करना। कुछ कम खट कर अधिक कमा लेते हैं तो कुछ अधिक भाग दौड़ करने के बाद भी गृहस्थी की आवश्यकताओं की पूर्ति ही कर पाते हैं। लेकिन बच्चों को हमेशा पापा से जादू की ही उम्मीद होती है, उनके सपने अनंत होते हैं और सभी सपने मूर्त हो जाएं यह किसी भी जादूगर से संभव नहीं है। कल्पनाओं की उड़ाने अनंत होती हैं। आज एक बच्चे की कल्पनाओं को साकार करने के लिए सारा परिवार तैयार रहता है। लेकिन कभी वह समय भी था जब कल्पनाएं और आकांक्षाए सारी जिन्दगी पूर्ण नहीं हो पाती थी।
जादूगर पापा तो प्रत्येक युग में हुए हैं, समय के परिवर्तन के साथ उनका जादू भी परिष्कृत होते गया। पहले होली और दीवाली ही नए कपड़े सिलाए जाते थे। घर में दर्जी अपनी मशीन लेकर आता था और महीने भर सभी के कपड़े सिलता था। उस जमाने में सिले सिलाए कपड़ों को अच्छा नहीं समझा जाता था। कहा जाता था कि - न जाने किस बीमार या मुर्दे के उतार कर सिले सिलाए कपड़े बेचे जाते हैं। इसलिए कपड़े सिलवा कर ही पहने जाते थे। आज वे बीमारों और मुर्दों के कपड़े घर घर में मौजूद हैं। जब भी मांग हुई और पापा को जादू से कपड़े उपलब्ध करवाने ही पड़ते हैं, वार-त्यौहार की बात क्या की जाए। एक पट्टी सिलेट में साल भर निकल जाता था। आज नर्सरी से ही कापियों और पुस्तकों का ढेर लगाना पड़ता है। एक गणवेश सारे साल चल जाती थी। लेकिन आज 5-5 गणवेशों का प्रबंध करना पड़ता है। वर्तमान में बढती हुई मंहगाई को देखते हुए घर-गृहस्थी के सामान का प्रबंध करना भी किसी जादू से कम नहीं है।
3 साल पहले उदय ने जिद पकड़ ली कि उसे छोटी सायकिल चाहिए। जबकि घर में 2 छोटी सायकिलें मौजूद थी। लेकिन उसे तो नई चाहिए थी। नई सायकिल आते ही कुछ दिन चलाई फ़िर उसके टायर आरी से काट कर देखे कि उसमें हवा कहाँ होती है। टायर शहीद हो गए लेकिन हवा की उपस्थिति का पता नहीं चला। थोड़े दिन छोटी सायकिल चला कर बड़ी सायकिल पर हाथ मारने लगा। छोटी सायकिल मुरचा खाई हुई पड़ी है। अब स्कूटी की मांग चल रही है। सायकिल को स्कूटी में बदलने का जादू सिर्फ़ पापा ही दिखा सकते हैं, दुनिया का अन्य कोई जादूगर नहीं दिखा सकता। हम 24 इंच की सायकिल से ही कैंची चलाना सीखे थे। छोटी सायकिल चलाने का सपना तो अधूरा ही रह गया। शायद मेरे पापा को सायकिल छोटी करने का जादू नहीं आता था। बदलते समय के साथ पापाओं को यह सब जादू आना जरुरी हो गया है। जिससे गृहस्थी की हर जरुरतें पूरी हो सकें और बच्चे कह सकें मेरे पापा बहुत बड़े जादूगर थे।