मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

आनंदप्रभ कुटी विहार सिरपुर ...Sirpur Chhattisgarh............. ललित शर्मा

यायावर - चित्र - प्रभात सिंह 
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भोजनोपरांत कुछ देर का ब्रेक लेने  लिए रेस्ट हाउस पहुंचे, भोजन की खुमारी कान में कह रही थी, देह कुछ देर का विश्राम चाहती है, देह है तभी देहि है, देह विश्राम न करे तो देहि पूर्ण विश्राम की और बढ़ जाता है। नदी का बहता जल बहुत दूर तक चला जाता है फिर हाथ नहीं आता। अंजुरी में जल ठहर जाए तो अर्पण-तर्पण कौन करे। संसार तो पत्थरों से घर भर लेना चाहता है। सिरपुर के सभी घर पत्थरों से भरे है। जिस घर को भी देखो वह पत्थरों का ही बना है। पता नहीं किस गंगु तेली के घर में राजमहल की ड्योढ़ी का पत्थर लगा है, जिसके सामने कभी उसे किसी ने खड़ा होने नहीं दिया। यह समय की बात है, काल का पहिया रुका कब, उसे तो चलते ही रहना है। प्रत्येक के नसीब में नहीं होता कि उसकी कीर्ति युगों-युगों तक अमर हो, ऐसे लोग बिरले ही होते हैं। कहावत है ना " माई तू एह्ड़ा पूत जण, कै दाता कै सूर। या तो तू रह बाँझड़ी, मति गंवावे नूर।। यहाँ कुछ ऐसे सूर-वीर पैदा हुए जिनकी कीर्ति आज तक गायी जा रही है और हम उसके साक्षी अनायास ही बन रहे हैं। 

युद्ध रत स्त्री पुरुष 
रेस्ट हाउस के बिस्तर पर लेटते ही विचारों की श्रृंखला शुरू हो जाती है। जैसे यह बिस्तर नहीं राजा विक्रमादित्य का सिंहासन बत्तीसी हो गया हो। फोन से विचारों की तन्द्रा से बाहर आता हूँ, प्रभात सिंह रायपुर से लौट आए हैं, राजीव और आदित्य सिंह कैंम्प चले जाते हैं, मैं बिस्तर पर ही पड़ा रहता हूँ। झपकी आने को चल पड़ी, जैसे ही उसने दिमाग के दरवाजे पर दस्तक दी, एक बार फोन फिर से बज उठा, लो हो गया सत्यानाश, दोपहर की झपकी बहुत ही शर्मीली है, जरा सी आहट पर लौट जाती है, फिर तो मनुहार करने से भी नहीं आती ........... हेलो ..........कौन?........ रांग नंबर ..... सत्यानाश जाये तुम्हारा, सामने होता तो मुर्दा और खटिया भी रेंगा देता रांग नंबर के साथ। घर से बाहर होने पर मोबाइल का गला भी नहीं घोंट सकता, न जाने कब आपातकालीन सेवा की जरुरत पड़ जाये मालकिन को। पराधीन सपनेहु सुख नाहि। 

बाज़ार क्षेत्र से प्राप्त धातु प्रतिमा 
बिस्तर छोड़ दिया मैंने और कैम्प का रुख किया। कैम्प वह जगह है जहाँ अरुण कुमार शर्मा जैसे पुराविद ऋषि रहते हैं तो वहां आरुणि जैसे प्रभात शिष्य भी मिलते हैं। जिस गाँव में डॉक्टर की सुविधा नहीं है, जहाँ दिन में एक बार ही रायपुर के लिए बस चलती है, जहाँ शाम होते ही आस-पास के खेतों के कीड़े आकर घर में भर जाते हैं, जहाँ बरसात में सांप बिछुओं की भरमार है, वहां ऋषितुल्य इच्छा शक्ति का धनी व्यक्ति ही अडिग रह कर कार्य कर सकता है। कार्य करने वाले की आलोचनाएँ समालोचनाएँ होती है। अरुण कुमार शर्मा लगभग 80 बसंत देख चुके हैं, उनमे अभी भी एक नौजवान से अधिक उर्जा है, पिछली बार जब आया था तो उन्होंने बताया कि कैम्प में रोज़ जहरीले सर्प घुस आते हैं उन्हें किसी तरह टोकरी में दबा कर बाहर फेंक आता हूँ, "जाओ इधर तुम्हारा कोई काम नहीं है।" ऐसा कह कर भगा देता हूँ। जंगल में रहने पर तो सभी तरह के जीव जन्तुओं से पाला पड़ता है।

ताले,कुल्हाड़ी
कैम्प में पहुचने पर राजीव, आदित्य सिंह, प्रभात सिंह वहीँ मिल जाते हैं, उत्खनन में प्राप्त मूर्तियों के विषय में प्रभात सिंह जानकारी दे रहे थे। राजीव रंजन चित्र ले रहे थे। उत्खनन में प्राप्त  लोहे के औजार दीवार पर टंगे हुए हैं, जिनमे ताले, संसी, शिरस्त्राण, कुल्हाड़ी, चाकू, हल के फाल एवं अन्य बहुत सारी चीजे भी हैं। तालों के प्राप्त होने से सीधा-सीधा ही अनुमान लग जाता है कि उस ज़माने में चोर भी होते थे। तभी उनसे बचने के लिए तालों का प्रयोग होता था। ऐसे ही ताले मेरे घर में भी थे, ढाई हजार वर्ष बाद भी ताले बनाने की तकनीक नहीं बदली। मेरे सामने ही खोला गाँव का लोहार फिरतु कई ताले बनाकर लाया था। इस बात को लगभग 30 बरस हो गए। ताले मजबूत थे, पता नहीं फिरतु अब जिन्दा है भी कि नहीं, बरसों हो गए उससे मुलाकात हुए। प्रचलन में नहीं होने एवं मशीनों का बना सामान सुलभ होने के कारण परम्परागत कारीगरी लुप्त हो गयी। अब इस कार्य को नयी पीढ़ी करना भी नहीं चाहती।

मुहर
व्यापार क्षेत्र के ताम्रकार के घर से मिला ताम्रपत्र लेख भी हमें देखने मिला। इसमें मुहर भी बनी हुई है। सातवीं सदी के बालेश्वर महादेव मंदिर में बहुत सारी मूर्तियाँ उत्खनन में प्राप्त हुयी हैं, इन शिलाओं में दोनों तरफ मूर्तियाँ गढ़ी गयी हैं। समाज में घट रही घटनाओं का भी अंकन शिल्पकार ने अपनी मूर्तियों में किया है।  मूर्ति में एक व्यक्ति अपनी पत्नी को पीट रहा है, दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्था दिखाई दे रहे हैं। पति ने पत्नी का गला पकड रखा है तो पत्नी ने भी लातें फंसा रखी है। बाजार क्षेत्र के एक भवन से धातु की 80 मूर्तियाँ प्राप्त हुयी हैं। लगभग 2000 से अधिक वस्तुएं उत्खनन में निकली हैं, जिनमे धातु प्रतिमा, आभूषण बनाने के औजार, लोहे के अनके प्रकार के बर्तन, कीलें, जंजीर, सिलबट्टा, दीपक,पूजा के पात्र, घड़े, मिट्टी के मटके, कांच की चूड़ियाँ, मिट्टी की पकी मुहरें एवं खिलौने तथा तीन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इनमे से एक सिक्का शरभपुरीय शासक प्रसन्नमात्र का है, दूसरा कलचुरी शासक रत्नदेव के समय का है, तीसरा महत्वपूर्ण सिक्का चीनी राजा काई युवान (713 से 741 ईस्वी) के समय का है।

आनंदप्रभ कुटी विहार
शाम होने को थी, हमे और भी स्थान देखने थे, हम आनंदप्रभ कुटी विहार पहुचे।सिरपुर में उत्खनन के दौरान दो बौद्ध विहार प्रकाश में आए हैं। विहारों के निर्माण में मुख्य रूप से ईंटों का प्रयोग हुआ है। अधिकांश ईमारतों में ईंटों का प्रयोग यह दर्शाता है कि महानदी के कछार की मिट्टी से मजबूत ईंटें बना करती थी। विहारों में भिक्षुओं के अध्ययन अध्यापन के साथ निवास की व्यवस्था थी। यहाँ के मुख्य विहार से प्राप्त अभिलेख से पता चलता है कि महाशिवगुप्त बालार्जुन के राज्यकाल में आनन्द प्रभ नामक भिक्षु ने इसका निर्माण कराया था। यह विहार दो मंजिला था। विहार के सम्मुख तोरण द्वार था जिसके दोनों तरफ द्वारपालों की प्रतिमाएं रही हैं। अभिलेख के आधार पर इस विहार का नाम  आनंदप्रभ कुटी विहार किया गया है। इसके निकट एक विहार और प्रकाश में आया है जिसे तल योजना के अनुसार स्वस्तिक विहार के नाम जाना जाता है। यहाँ भी भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है।

कचरियाँ
आनंदप्रभ कुटी विहार की घास काटी जा रही थी, मुझे कुछ पकी हुयी कचरियाँ दिखाई दी, मैं स्वयं को रोक नहीं पाया। सोचा कि आज लहसुन के साथ इसकी चटनी बनवायेंगे और रात के भोजन में प्रयोग करेंगे। कचरी को स्थानीय बोली में बुंदेला कहते हैं, साथ ही इसे इन्द्रायण भी कहा जाता है। मैंने कचरियाँ इकट्ठी करके कार में रखवा दी। अब हम तीवरदेव महाविहार देखने चल पड़े। यहाँ आने पर अँधेरा हो चुका था। इसलिए तीवरदेव विहार देखने का कार्यक्रम रद्द कर रेस्ट हाउस पहुच गए। रात का खाना प्रभात सिंह के सौजन्य से था। उन्होंने कहा था कि खाना मैं बना कर लाऊंगा। रात हमने खाना साथ ही खाया। दूसरे दिन सुबह 6 बजे से सिरपुर भ्रमण करने की योजना बना कर आदित्य सिंह और प्रभात सिंह अपने निवास को प्रस्थान कर गए। हम अपनी सिंहासन बत्तीसी पर ढेर हो गए। ...... आगे पढ़ें .........

7 टिप्‍पणियां:

  1. मूर्तिमान युद्धरत स्‍त्री-पुरुष!

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  2. एक नया अध्याय खुल रहा..बहुत ही रोचक श्रंखला..

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  3. सुंदर यात्रा वृतांत ..
    शुभकामनाएं !!

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  4. सचमुच धन्य हैं, अरुण कुमार शर्मा जैसे पुराविद ऋषि और आरुणि जैसे प्रभात शिष्य... रोचक जानकारी के लिए आभार ...

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  5. ललित सर आपकी यात्रा और जानकारी रोचक तो होती ही है साथ ही ज्ञान वर्धक भी होती है .....ये निरंतर जारी रहे और हमें भी इस यात्रा का फल मिलता रहे ऐसी आशा है और रहेगी ........
    डॉ रत्नेश त्रिपाठी

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