गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

हल्का हल्का सुरुर है, ये पैट्रोल का कसूर है : काठमाण्डौ की ओर

नेपाल यात्रा प्रारंभ पढें
गोरखपुर में सुबह लगभग 7 बजे हुई। हम 8 बजे होटल छोड़कर नौतनवा के लिए चले। हमारे छत्तीसगढ़ से दुर्ग-नौतनवा के लिए ट्रेन भी है। एक बार इस ट्रेन से अयोध्या तक सफ़र भी किया। उस समय सोचता रहा कि यह नौतनवा है कहाँ पर? आज पता चला कि गोरखपुर से नेपाल मार्ग पर नौतनवा है। हमें पूरे उत्तर प्रदेश में कार के लिए स्पीड पैट्रोल नहीं मिला। पहले तो पाबला जी स्पीड से कम पैट्रोल डलवाने के लिए तैयार नहीं थे। जब स्पीड पैट्रोल नहीं मिला तो 10% गन्ने का खमीर उठा रस मिला पैट्रोल लेने पर भी मजबूर हो गए। यह पैट्रोल डलवाने के बाद गाड़ी भी मस्त हो जाती थी। हल्का हल्का सुरुर है, ये मेरा नहीं पैट्रोल का कसूर है।
नौतनवा प्रवेश द्वार
नौतनवा बस्ती में प्रवेश के पूर्व बांए तरफ़ एक रोड़ जाता है। हमारी मार्गदर्शिका सीधे ही चलने को कह रही थी। जब नेविगेटर संग है तो हम काहे मुड़ खपाएं सोच कर आगे बढ गए। थोड़ी दूर चलने पर नौतनवा नगर परिषद का स्वागत करता हुआ द्वार दिखाई दिया। द्वार के माध्यम से एक प्रसिद्ध कुकर्मी विधायक ने हमारा स्वागत किया। उसके साथ ही चंगु-मंगु भी उपस्थित थे। अगर इस यात्रा में मैं सड़क की चर्चा बंद कर दूं तो समझिएगा कि सड़क वैसी ही है जैसी हमने गाजीपुर वाली सड़क पीछे छोड़ी थी। यहाँ भी सड़क का मामला कुछ-कुछ ऐसा ही था। नौतनवा बस्ती के बीच से गाड़ी चल नहीं रही थी सिर्फ़ लुढक रही थी।
नौतनवा नगर
मार्गदर्शिका हमें नौतनवा से सोनौली की ओर ले जा रही थी। नौतनवा से सोनौली 7 किलोमीटर की दूरी पर है। चाहे बायपास से जाओ या बस्ती के बीच से। अब हम पगडंडीनुमा डामर रोड से सोनौली की ओर बढ़ रहे थे। टेढी मेढी बलखाती सड़क हजारों एकड़ के मैदानी खेतों के बीच से सोनौली गाँव में पिछले द्वार से प्रवेश करती है। रास्ते में एक दो छोटे गाँव थे, साथ अमराई भी। सूरत से बेवड़े दिखाई देने वाले लोग भरी जवानी में बुढापे का आनंद ले रहे थे। बाजार के बीच से गुजरते हुए हम संकरी गली से मुख्यमार्ग पर पहुंचे। सामने नेपाल भारत सीमा दिखाई दे रही थी। हमें जानकारी नहीं थी कि नेपाल की सीमा में प्रवेश करने के लिए क्या कार्यवाही करनी पड़ती है। सीमा में प्रवेश के पूर्व एक दुकानदार से जानकारी ली।
नेपाल सीमा में पार्किंग एवं प्रवेश द्वार
सीमा के इस तरफ़ भारतीय सीमा सुरक्षा बल मुस्तैद है, ट्रकों एवं अन्य सवारी वाहनों की कतार लगी हुई थी। सब धीरे-धीरे सरक कर सीमा पार कर रहे थे। सीमा पार करते वक्त भारतीय सुरक्षा बलों ने कोई तलाशी नहीं ली और नेपाल की सीमा में प्रवेश करने का कोई कारण भी नहीं पूछा। आप बिंदास इस मैत्री मार्ग से नेपाल की सीमा में प्रवेश कर सकते हैं। नेपाल की सीमा में प्रवेश करने पर बांई तरफ़ गाड़ियों की पार्किंग बनी हुई है। जहाँ हमने कार पार्क की वहाँ भारत से आने वाली अन्य गाड़ियाँ भी दिखाई दी। पार्किंग के ठीक सामने भंसार कार्यालय है। यहाँ से नेपाल में प्रवेश करने के अधिकार पत्र बनते हैं। साथ ही बाहर की गाड़ियों को अस्थायी नम्बर भी दिए जाते हैं।
कागजात बनवाने वाला राजु
कार पार्क करते ही कागजी कार्यवाही कराने वाले दलाल सक्रीय हो गए। इलाहाबाद के पंडों जैसे इन्होंने भी पार्किंग में अपने पाटे लगा रखे हैं। हमें राजु नामक दलाल मिला, उसने कहा कि 100 रुपए के सेवा शुल्क के एवज में वह 10 मिनट में सभी कागजी कार्यवाही करवा देगा। उसने पाबला जी का लायसेंस और गाड़ी की आर सी बुक लेकर एक लड़के को तुरंत भेज दिया। मैने मोबाईल से उसकी एक फ़ोटो ले ली, अगर कहीं कागज और पैसे लेकर भाग जाए तो सबूत तो रहेगा और ढूंढने में आसानी रहेगी। परदेश में किसका क्या भरोसा? हम उसके पाटे पर बैठ गए। धूप बहुत चमकीली थी और गर्मी उमस के मारे हाल-बेहाल हो रहा था।
हमें नेपाल में 3 दिन रहना था इसलिए परमिट 3 दिन का बनवाने की जगह 1 दिन अधिक का बनवाया। परमिट के लिए 500 नेपाली रुपए प्रतिदिन लगते हैं।

बुटबल मार्ग
परमिट खत्म होने के बाद सीमा पार करने पर 1100 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अर्थ दंड लगाया जाता है। इसलिए हमने 4 दिन का परमिट बनवाया। थोड़ी देर में वह लड़का कागजी कार्यवाही के साथ अस्थाई नम्बर प्लेट भी लेकर आ गया। नेपाल में पहुंचने के बाद मोबाईल इंटरनेट इत्यादि ने काम करना बंद कर दिया और आईडिया का नेटवर्क नेपाल के एन सेल नेटवर्क से रोमिंग में कनेक्ट हो गया। एक ने पूछा कि आपको नेपाली नम्बर की जरुरत है क्या? अगर जरुरत है तो आपको बिना पहचान पत्र के 350 भारतीय रुपए में उपलब्ध हो जाएगा। जिसमें 50 रुपए का बैलेंस भी मिलेगा। हमने जरुरत को देखते हुए नेपाल का नम्बर ले लिया तथा 200 रुपए से रिचार्ज भी करवा लिया। भारत कॉल करने पर साढे तीन रुपए प्रतिमिनट खर्च होते थे। इस हिसाब से हमारे लिए ढाई सौ रुपए बहुत थे।
भैरवा में रास्ता बतलाता फ़लक
पार्किंग से बाहर निकलने पर नेपाल प्रहरियों ने हमारी गाड़ी एवं सामान की तलाशी ली। धूल अधिक होने के कारण प्रहरियों ने मुंह पर जैन मुनियों वाला पट्टी लगा रखी थी। तलाशी के वक्त हम भैरवा में थे, बुटबल वाले सीधे रोड़ पर नेपाल का आव्रजन कार्यालय है। यहां से नेपाल द्वारा दिए गए कागजों को सत्यापित करके मुहर लगवानी पड़ती है। राजु का लड़का हमारे साथ गया और उसने कागजी कार्यवाही पूर्ण कराई। इस तरह नेपाल में प्रवेश करने एवं 4 दिन प्रवास करने के हमें 1750/- कुल लगे। मुहर लगा कर हम वापस लौटे। चौराहे पर लड़के को ड्राप किया। वहाँ लगे हुए मार्गदर्शक पर काठमांडौ 262 किलो मीटर लिखा था। हमें काजगी कार्यवाही पूर्ण करते हुए 12 से अधिक बज गए थे। यहाँ से अब हमें नारायणगढ़ से काठमांडौ जाना था।
नेपाल की कुतुबमीनार
थोड़ा आगे बढने पर सड़क के किनारे झोंपड़ी में बैठे कुछ लड़कों ने रुकने का इशारा किया। यहाँ पर सड़क के बीच में एक छोटे से खम्बे पर टोल का बोर्ड लगा था। उसने हमने टोल चार्ज के रुप में 25 नेपाली रुपए लिए। भैरवा से चलते वक्त पाबला जी ने 2000 भारतीय रुपए के बदले 3200 नेपाली रुपए लिए। इतने में हमारा काम चल जाना था। दुख भरी कमरतोड़ सड़कों से गुजरने बाद चिकना हाईवे रास नहीं आ रहा था। कुछ ऐसा ही था कि अत्यधिक भूखे व्यक्ति ढेर सारे पकवान खिलाने से उल्टी हो जाती है। 10-20 किलोमीटर चलने के बाद यह सड़क अब हजम होने लगी थी। भैरवा से चलने पर तराई का इलाका प्रारंभ हो जाता है। सड़क के दोनो तरफ़ हरियाली दिखाई दे रही थी। खेतों में धान की फ़सलें लहलहा रही थी। लेकिन सड़क के किनारे छायादार वृक्ष नहीं थे।
स्कूली बच्चे
जिस दिन हमने नेपाल में प्रवेश किया, उस दिन स्कूलों में राष्ट्रीय बाल दिवस मन रहा था। रास्ते के एक स्कूल में बच्चों का कार्यक्रम चल रहा था। इस सड़क पर गाड़ी चलाने का आनंद भी आ रहा था। सड़क किनारे खड़े बच्चों को देखता हूँ तो मुझे दूर से गाड़ी धीमी करनी पड़ती है। पता नहीं कब कौन बच्चा सड़क के पार दौड़ जाए। एक धुकधुकी सी मन में लगी रहती है। एक बार ऐसे ही अचानक एक बच्चा सड़क पार गया। बड़ी मुस्किल से खुद एवं उसे बचाया। तब से सावधानी बरतने में ही भलाई समझता हूँ। गाड़ी तो हम दोनो ही चला रहे थे। सड़क किनारे कोई बच्चा दिखाई दे जाता था तो स्वत: मेरा पैर ब्रेक पर चला जाता था। परासी से आगे बढने पर पहाड़ियां दिखाई देनी शुरु हो जाती हैं। पहाड़ियाँ पार करने बाद नारायणगढ़ आता है। नारायणी नदी के किनारे होने के कारण इसका नाम नारायण गढ़ पड़ा हो। नेपाल यात्रा की आगे की किश्त पढें……

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत रुचिकर |
    भारत और नेपाल की सडको में मुख्य अंतर क्या दिखा ?
    आभार

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  2. आपका यह पोस्ट बेहतरीन और आनंददायी खुबसूरत चित्र

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  3. नवागंतुकों के लिए जानकारियों का खज़ाना है आपकी यह पोस्ट…
    और हाँ बेचारा राजू दलाल देखिये तो फोटो में पहले ही से कैसे डरा - सहमा है, मन ही मन रोता सा लग रहा है , वो क्या भागता पैसे लेकर बेचारा…:)
    वैसे सही कहा आपने सतर्कता रखनी बहुत जरुरी है

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  4. यह गाड़ी के कागजात और अस्थायी नंबर प्लेट की बात अच्छी बतायी

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  5. नेपाल के नए कानून के अनुसार परमिट बनने लगे होंगे वर्ना हमने तो कभी परमिट नहीं बनवाया !

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  6. @वाणी गीत

    परमिट वाहन का बनता है, यात्रियों का नहीं।

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  7. यही ध्यान में रख टिप्पणी करने लौटी तो देखा , आपने शंका का समाधान कर दिया है !

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  8. वाह ! शानदार व रोचक यात्रा विवरण पढ़कर मजा आ गया !

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