tag:blogger.com,1999:blog-81093925458416812052024-03-18T14:44:38.791+05:30ललितडॉटकॉमचल पड़ा है जीवन का कारवाँ मंजिल की ओरब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comBlogger971125tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-8116905295070617852018-10-02T00:31:00.000+05:302018-10-02T00:31:19.038+05:30जानिए क्या होता है बस्तर का लांदा और सल्फ़ी
जब भी बस्तर जाना होता है तब बस्तरिया खाना, पेय पदार्थ का स्वाद लेने का मन हो ही जाता है, चाहे, लांदा हो, सल्फ़ी हो या छिंदरस। बस्तर की संस्कृति पहचान ही अलग है। गत बस्तर यात्रा के दौरान अंचल के विशेष पेय पदार्थ एवं भोजन विकल्प सल्फी का रस तथा चावल का लांदा का स्वाद लिया गया। सल्फी का वृक्ष बस्तर अंचल में ही पाया जाता है. चावल को खमीर उठा कर उसका लांदा नामक पेय पदार्थ बनाया जाता है. हाट बाजार में ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com55tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-31185197958692065942018-01-12T04:00:00.000+05:302018-01-12T04:01:04.408+05:30मैकल सुता रेवा एवं अमरकंटक
अमरकंटक मेकलसुता रेवा का उद्गम स्थल है, यह पुण्य स्थली प्राचीन काल से ही ॠषि मुनियों की साधना स्थली रही है। वैदिक काल में महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में ‘यदु कबीला’ इस क्षेत्र में आकर बसा और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमन शुरू हुआ।
वैदिक ग्रंथों के अनुसार विश्वामित्र के 50 शापित पुत्र भी यहाँ आकर बसे। उसके बाद, अत्रि, पाराशर, भार्गव आदि का भी इस क्षेत्र में पदार्पण हुआ। नागवंशीब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-53215248239706567832018-01-11T04:30:00.000+05:302018-01-11T04:30:20.026+05:30जनमानस में राम - सारासोर सरगुजा
छत्तीसगढ़ अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का कोई सानी नहीं है। नदी, पर्वत, झरने, गुफ़ाएं-कंदराएं, वन्य प्राणी आदि के हम स्वयं को प्रकृति के समीप पाते हैं। अंचल के सरगुजा क्षेत्र पर प्रकृति की विशेष अनुकम्पा है, चारों तरफ़ हरितिमा के बीच प्राचीन स्थलों के साथ रमणीय वातावरण मनुष्य को मोहित कर लेता है।
ऐसा ही एक स्थान अम्बिकापुर-बनारस मार्ग पर 40 किलोमीटर भैंसामुड़ा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है, ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-36828813133887077612018-01-10T04:30:00.000+05:302018-01-10T04:30:21.440+05:30कर्ण का बनवाया मंदिर : आम्रकूट
अमरकंटक मेकलसुता रेवा का उद्गम स्थल है, यह पुण्य स्थली प्राचीन काल से ही ॠषि मुनियों की साधना स्थली रही है। वैदिक काल में महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में ‘यदु कबीला’ इस क्षेत्र में आकर बसा और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमन शुरू हुआ। वैदिक ग्रंथों के अनुसार विश्वामित्र के 50 शापित पुत्र भी यहाँ आकर बसे। उसके बाद, अत्रि, पाराशर, भार्गव आदि का भी इस क्षेत्र में पदार्पण हुआ।
नागवंशीब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-27740572936482057912018-01-09T04:30:00.000+05:302018-01-09T04:30:47.024+05:30मिट्टी का कूकर : छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से लगभग दस किमी दूर दिसम्बर 2010 में एक गांव में कुम्हार परिवार से मिलने गया था। गांव का नाम भूल रहा हूँ। उस कुम्हार ने मिट्टी के भाण्डों को नवोन्मेष कर नया रुप दिया था।
उपरोक्त चित्र में दिख रहा मिट्टी का कूकर उसने तैयार किया था, जो धातु के कूकर जैसे ही कार्य करता है एवं इसमें पकाया गया भोजन माटी की सौंधी खुश्बू लिए होता है।
औद्योगिकरण ने सबसे ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-25527113655158822052018-01-08T04:30:00.000+05:302018-01-08T04:30:30.160+05:30शिल्पकार की चतुराई : हम्पी विजय नगर साम्राज्य
चतुर शिल्पकार वही होता है जो निर्माण सामग्री व्यर्थ न होने दे। ऐसी ही कुछ शिल्पकार की चतुराई हमें हम्पी के विट्ठल मंदिर स्थित विष्णु रथ में दिखाई देती है। विष्णु रथ का निर्माण एकाश्म शिला की बजाय पृथक पृथक खंड में हुआ है। जैसे #काष्ठ रथ का निर्माण होता है उसी तरह प्रस्तर से इसका निर्माण प्रस्तर से किया गया है। यह रथ हम्पी का प्रतीक चिन्ह है। इसे देखकर ही समझ आ जाता है कि यह हम्पी है।  ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-57124230072437289572018-01-07T03:30:00.000+05:302018-01-07T03:30:32.233+05:30मल्हार की मौर्यकालीन अद्भुत विष्णु प्रतिमा
मल्हार नगर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में अक्षांक्ष 21 90 उत्तर तथा देशांतर 82 20 पूर्व में 32 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। बिलासपुर से रायगढ़ जाने वाली सड़क पर 18 किलोमीटर दूर मस्तूरी है।
मल्हार की मौर्यकालीन अद्भुत विष्णु प्रतिमा
वहां से मल्हार, 14 कि. मी. दूर है। मस्तुरी पहुंचने पर मल्हार जाने वाले मार्ग पर एक बड़ा द्वार बना हुआ है और यहीं से तारकोल की इकहरीब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-35684503683258192102018-01-06T04:00:00.000+05:302018-01-06T04:00:00.231+05:30हमारा राष्ट्रीय पक्षी मोर और मौर्य सम्राट
पंख झाड़ चुका मोर, यह चित्र मध्य नवम्बर माह में पुष्कर राजस्थान के पास अजयपाल के मंदिर के समीप का है। इस समय मोर अपने सारे पंख झाड़ चुका था और नए पंख निकल रहे थे।
वैसे वर्ष में एक बार अगस्त माह के आस पास मोर अपने सारे पंख झाड़ देता है और ग्रीष्म काल आते तक उसके सारे पंख पुन: आ जाते हैं। मोरनियों को रिझाते समय नृत्य के दौरान भी इसके पंख टूट जाते हैं।
प्राचीन काल से ही लोक के लिए मोर ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-4132428347179625582018-01-05T04:00:00.000+05:302018-01-05T04:00:16.512+05:30प्राचीन काल के शिल्प में शय्या/खाट अंकन
प्राचीन शिल्प में विश्राम हेतु बाजवट/खाट या शय्या प्रयोग दिखाई देता है। खाट या शय्या का मनुष्य के दैनिक जीवन में कब से प्रवेश हुआ, इसकी जानकारी तो स्पष्ट रुप से नहीं है, परन्तु शिल्पांकन में अवश्य दिखाई देती है।
खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर की भित्ति शिल्पांकन में शय्या।
भूमि पर शयन करने से जहरीले कीटों के दंश का भय रहता है। इसलिए भूमि से कुछ दूरी बनाकर शयन करने के लिए शय्या का ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-36636684209194214562018-01-04T04:30:00.000+05:302018-01-04T04:31:07.257+05:30प्राचीन प्रतिमा शिल्प में अंकित तत्कालीन स्त्री मनोविनोद
प्राचीनकाल के मंदिरों की भित्ति में जड़ित प्रतिमाओं से तत्कालीन सामाजिक गतिविधियाँ एवं कार्य ज्ञात होते हैं। शिल्पकारों ने इन्हें प्रमुखता से उकेरा है। इन प्रतिमाओं से तत्कालीन समाज में स्त्रियों के कार्य, दिनचर्या एवं मनोरंजन के साधनों का भी पता चलता है।
कंदुक क्रीड़ा कर मनोविनोद करती त्रिभंगी मुद्रा में नायिका : खजुराहो
जिस तरह तेरहवीं शताब्दी के कोणार्क के सूर्य मंदिर मेंब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-79479771485449484642018-01-03T03:30:00.000+05:302018-01-03T03:30:15.609+05:30प्राचीन प्रतिमा शिल्प में आखेट अंकन
शिकार द्वारा मनोरंजन वैदिक काल से समाज में विद्यमान रहा है एवं प्राचीन काल के मनोरंजन के साधनों का अंकन मंदिरों की भित्तियों में दिखाई देता है। मंदिरों की भित्तियों में अंकित प्रतिमाओं से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल के समाज में किस तरह के मनोरंजन के साधन प्रचलित थे। देखा जाए तो सभी आयु वर्ग के लिए पृथक मनोरंजन के साधन होते थे। इसमें आखेट भी मनोरंजन का एक साधन था।
हजारा राम मंदिर ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-79871017828036327132018-01-02T04:00:00.000+05:302018-01-02T04:00:04.664+05:30प्राचीन भारतीय मूर्तिकला में केश विन्यास एवं अलंकरण
सौंदर्य के प्रति मानव प्राचीन काल से ही सजग रहा है, देह के अलंकरण में उसने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी एवं नख सिख से लेकर गुह्यांग तक अलंकरण करने के लिए नवोन्मेष किए। सौंदर्य वृद्धि के लिए किए गए भिन्न भिन्न अलंकरण हमें तत्कालीन प्रतिमा शिल्प में दिखाई देते हैं।
क्या मुखड़ा देखे दर्पण में…… सर्वांग अलंकृत स्त्री - राजा रानी मंदिर भुबनेश्वर उड़ीसा।
पुरुष एवं स्त्री दोनो ही सौंदर्य ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-49924906221627588352018-01-01T04:30:00.000+05:302018-01-01T04:30:05.391+05:30हिन्दी ब्लॉगिंग : दशा एवं दिशा
अरसे से मृतप्राय ब्लॉगजगत को एक बार पुनः जीवन देने का आह्वान पुराने ब्लॉगरों ने फेसबुक के माध्यम से किया। इस आह्वान पर कुछ ब्लॉगरों ने ध्यान दिया और एक जुलाई को पोस्ट भी लगाकर श्रीगणेश भी किया। मेरे व्यक्तिगत संकलक के हिसाब से चौबीस घंटों में 70 ब्लॉग अपडेट भी हुए।
कुछ ब्लॉगरों ने ब्लॉग का इतिहास सा लिख डाला तथा इसके पतन के कारणों का उल्लेख भी अपनी समझ के अनुसार किया। जब ब्लॉगिंग के मेरे ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-41547493127588835272017-12-30T05:30:00.000+05:302017-12-30T05:30:10.962+05:30प्राचीन प्रतिमा शिल्प में स्वर्ग की अप्सरा अंजना : खजुराहो
तीखे तीखे नयन…। नायिका के नयनों की सुंदरता का वर्णन करते हुए कवियों ने खूब कागज काले किए एवं इन्हें विभिन्न उपमाओं से विभुषित किया। आँखे ही वह रास्ता है, जहाँ से कामदेव का प्रवेश हृदय में होता है और रोम रोम रोमांचित हो जाता है, लग जाती है लगन। कवि बिहारीे सुंदरियों के ऐसे त्रिगुण आकर्षक नयनों का वर्णन करते हुए कहते हैं…
अमिय हलाहल मद भरे, सेत स्याम रतनार।
जियत, मरत, झुकि झुकि परत, जिहि ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-22750414655108675222017-12-29T05:30:00.000+05:302017-12-29T05:30:45.180+05:30खजुराहो के प्रतिमा शिल्प में शूल निवारण अंकन
खजुराहो के विश्वनाथ मंदिर में शिल्पकार ने स्त्री के पैर के तलुए में गड़ी शूल देखते एवं उसे निकालते हुए चिकित्सक का प्रदर्शन किया है। यह इस मंदिर का महत्वपूर्ण शिल्प है। घर-बार दैनिक जीवन में कार्य करते हुए शूल गड़ना सहज बात है, परन्तुं वह शूल किसी कोमलांगी को गड़ जाए तो उसकी वेदना उतनी ही अधिक होती है, जितनी महत्वपूर्ण रुपसी है।
पहले शिल्प में स्त्री पैर में गड़े हुए कांटे (शूल) काब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-78176682298179184822017-12-28T09:49:00.000+05:302017-12-28T09:49:15.136+05:30राजा जी नेशनल पार्क का वन मुर्गा
वन मुर्गा जंगल सफ़ारी के दौरान कई बार दिखाई देता है, परन्तु आहट सुनकर जल्दी ही झाड़ियों में गायब हो जाता है। राजा जी नेशनल पार्क चिल्ला रेंज में दिखाई दिया और इसने फ़ोटो लेने का भरपूर अवसर भी दिया। अपने रंगों के प्रभाव के कारण यह बहुत सुंदर दिखाई देता है। वन मुर्गी धूसर रंग की होती है, इसलिए अधिक प्रभावशाली दिखाई नहीं देती।
विकिपीडिया कहता है कि यह पक्षी भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेशब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-47761856745640641382017-12-27T04:00:00.000+05:302017-12-27T04:00:04.591+05:30बुंदेलखंड के दो प्राचीन नगर हैं, ओरछा एवं गढकुंढार
बुंदेलखंड के दो प्राचीन नगर हैं, ओरछा एवं गढकुंढार। गढ कुंढार तो नहीं देख सके पर गत वर्ष पहाड़ों से लौटते हुए ओरछा जाना हुआ और इस वर्ष भी पहाड़ों से लौटते हुए ओरछा पहुंच गए। वैसे तो ओरछा का इतिहास 8 वीं सदी से प्रारंभ होता है, परन्तु यहां रौनक बुंदेलाओं के कार्यकाल में आई एवं बुंदेलाओं ने भव्य निर्माण कार्य करवाए।
निर्माण कार्यों में जहाँगीर महल, राज महल, राम राजा मंदिर, रायप्रवीण महल,ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-36922869617487081342017-12-26T05:30:00.000+05:302017-12-26T05:30:12.538+05:30खजुराहो के मंदिर अनुपम का शिल्प : सद्यस्नाता
सद्यस्नाता नाभिदर्शना का खजुराहो के मंदिर शिल्पकला में अनुपम प्रदर्शन हैं। वह एक दौर था जब प्रतिमा शिल्प में देह सौष्ठव, वस्त्रादि अलंकरण एवं लावण्यता का विशेष ध्यान रखा जाता था।
मंदिर की भित्तियों पर दिनचर्या का विशेष तौर पर अंकन किया गया है। जिसमें स्नानोपरांत शृंगार से लेकर दिन ढलने पर आंगिक शिथिलतायुक्त अंगड़ाई तक को प्रदर्शित किया गया है।
उपरोक्त प्रतिमा ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-51104283134591868832017-12-25T04:30:00.000+05:302017-12-25T04:30:42.324+05:30शौचालय के पहले जलस्रोतों के संरक्षण की आवश्यकता
वर्तमान में जल संकट का सामना ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक मनुष्य को करना पड़ रहा है। नदियाँ सूख रही हैं, कूप एवं तालाब सूख जाते हैं, बांधों में जल का स्तर कम हो जाता है, घर घर में बोरवेल के कारण भूजल का स्तर भी रसातल तक पहुंच रहा है। जहाँ दस हाथ की खुदाई से जल निकल आता था वहाँ हजार फ़ुट में भी जल निकलने की संभावना नजर नहीं आती।
इसके साथ ही हर वर्ष ग्रीष्म काल में जल संकट से वन्य ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-34020035363477693032017-12-24T03:30:00.000+05:302017-12-24T03:30:36.997+05:30मोबाइल का अविष्कार चौदहवीं शताब्दी में
छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव जिले के गंडई ग्राम में फणी नागवंशीकालीन 13 वीं शताब्दी का प्रस्तर निर्मित शिवालय है। इसकी बाह्य भित्तियों में प्रतिमा अलंकरण है। भित्तियों में विभिन्न पौराणिक प्रसंगों को लेकर बनाई गयी प्रतिमाएँ जड़ी हुई हैं।
मोबाईल पर बात करती स्त्री
इन प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा मेरा ध्यान विशेष रुपये से आकर्षित किया। इस प्रतिमा में एक स्त्री पलंग पर तकिए का सिरहाना लिए ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-17779478099245397392017-12-23T04:00:00.000+05:302017-12-23T04:00:40.357+05:30प्राचीन मंदिर की भित्ति में सांप एवं नेवले की लड़ाई का अंकन
सांप और नेवले की कहानी महाभारत से लेकर हितोपदेश तक उपलब्ध होती है। बचपन में सांप एवं नेवले की लड़ाई खूब देखी परन्तु वर्तमान में वन्य प्राणी कानून होने के बाद सांप एवं नेवले की लड़ाई दिखाने वाले दिखाई नहीं देते।
नारायणपुर (कसडोल-छत्तीसगढ़) के मंदिर की भित्ति में सांप एवं नेवले की लड़ाई का खूबसूरत अंकन
नारायणपुर (कसडोल-छत्तीसगढ़) के मंदिर की भित्ति में सांप एवं नेवले की लड़ाई का खूबसूरत अंकन ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-70557667789955697612017-12-22T04:30:00.000+05:302017-12-22T04:30:28.958+05:30खजुराहो की प्रतिमाओं में खुजली प्रदर्शन
खुजली एक ऐसी चीज है, जिसे ब्याधि माने या सुख, यह तय करना बहुत ही कठिन है। जितना सुख खुजाने में है उतना किसी बात में नहीं है। मीठा मीठा सुख, लगता है तो खुजाते रहो। खुजली शरीर के किसी भी अंग क्षेत्र में चल सकती है। जीभ से लेकर वर्ज्य प्रदेश तक। यह खुजली भी ऐसी चीज है कि कभी कभी ऐसे स्थान पर चलती है जहाँ तक आदमी की पहुंच नहीं होती। उसे आड़ा टेढ़ा होकर खुजाने के लिए कसरत करनी ही पड़ती है।
ऐसी ही ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-31798794767392984222017-12-21T04:30:00.000+05:302017-12-21T04:30:18.239+05:30प्राचीन शिल्प में वाद्ययंत्र एवं नृत्य : खजुराहो
बरसन लागे सावन, बूंदिया आवन लागे… गायन-वादन हमारी प्राचीन विद्या है। पता नहीं कितने हजारों वर्षों से बांसुरी की मधूर तान मनुष्य हृदय के तारों को तरंगित कर रही है। वैसे माना जाता है कि सभी वाद्य यंत्रों में बांसुरी एवं मृदंग का प्रयोग मानव ने पहले प्रारंभ किया। भारत से लेकर युरोप जर्मनी तक प्राचीन काल में बांसुरी की उपस्थिति मिलती है। लगभग 40,000 से 35,000 साल पहले की कई बांसुरियां जर्मनी के ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-8925352193627669272017-12-19T04:30:00.000+05:302017-12-19T04:32:25.297+05:30स्थापत्य एवं शिल्प के विषयों में बदलाव
समय के साथ स्थापत्य एवं शिल्प के विषयों में बदलाव आता है, जिससे उसके कालखंड की जानकारी मिलती है। छठवीं शताब्दी से लेकर अद्यतन हम देखते हैं तो शनै शनै बदलाव दिखाई देता है। जो शिल्प के लावण्य, शरीर सौष्ठव, वस्त्राभूषण आदि में परिलक्षित होता है। इस बदलाव को देखने के लिए मीमांसक का नजरिया चाहिए। जहाँ बड़ा बदलाव हो वह हर किसी को दिखाई देता है और अपना ध्यान आकृष्ट करता है।
प्राचीन ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8109392545841681205.post-76711507043890956032017-12-18T04:30:00.000+05:302017-12-18T04:30:31.840+05:30स्वस्थ रहने के लिए ॠतु के अनुसार भोजन करें
धरती के किसी भी प्राणी को जीवन संचालन के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है एवं प्राण संचालन की उर्जा भोजन से प्राप्त होती है। मनुष्य भी चौरासी लाख योनियों में एक विवेकशील प्राणी माना गया है, इसे भी उर्जा के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। अन्य सभी प्राणियों का तो भोजन निर्धारित है, उन्हें पता है कि क्या खाना है। परन्तु मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी रुचि, स्वाद एवं उपलब्धता के आधार पर ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com2