रेल दुर्घटना अपने आप में एक बहुत बड़ी त्रासदी होती है और जो इसको भोग ले उसके मन मस्तिष्क से इसे निकलना बहुत ही मुश्किल होता है. इसे भुला पाना बहुत ही कठिन होता है.
मैं विगत ११ सालों में भी इसे नहीं भुला पाया हूँ. इन दुर्घटनाओं में सालाना हजारों लोगों की जाने जा रही हैं,उनके परिवार बर्बाद हो रहे हैं, सिर्फ चालकों एवं सिगनल की लापरवाही से. इसका जिम्मेदार कौन है?
मैं विगत ११ सालों में भी इसे नहीं भुला पाया हूँ. इन दुर्घटनाओं में सालाना हजारों लोगों की जाने जा रही हैं,उनके परिवार बर्बाद हो रहे हैं, सिर्फ चालकों एवं सिगनल की लापरवाही से. इसका जिम्मेदार कौन है?
बात २ या ३ सितम्बर १९९८ की है (मुझे तारीख़ ठीक से याद नहीं है.) मैं दिल्ली से रायपुर आने के लिए चला, मुझे नरेन्द्र ताम्रकार दुर्ग वाले निजामुद्दीन स्टेशन तक छोड़ने आये. गोंडवाना एक्सप्रेस से मेरी टिकट थी रायपुर आने के लिए.
उस समय गोंडवाना एक्सप्रेस दिल्ली से २.३५ पर छुटती थी. मैंने सोचा कि ट्रेन में बैठने से पहले घर एक फोन लगा लेता हूँ ,लेकिन लाइन नहीं मिली, मैं ट्रेन में चढ़ गया. ट्रेन में बैठने के बाद अपना सफारी उतार कर हाफ पेंट और टी शर्ट पहन ली।
मेरे कम्पार्टमेंट में कोई नहीं था, खाली था। तभी मेरे सामने सीट पर दो लोग और आ गए. ट्रेन चल पडी. ट्रेन ने फुल स्पीड पकड़ रखी थी.
मैंने अपनी किताब निकाली और खिड़की के पास बैठ कर पढने लगा. उसी समय रेल की पटरी से रोड़ियां उछल कर खिड़की से अन्दर आकर मुझे लगी.
मैं खिड़की से थोडा दूर हो गया और सामने बैठे व्यक्तियों से बोला" यार लगता है आज ड्राईवर ने दो पैग ज्यादा ही चढा लिए, ट्रेन फुल स्पीड में चला रहा है".
मैं इतना कहा ही था कि जोर से आवाज आई और सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया.
कुछ क्षण के लिए तो होश गायब कि ये क्या हो गया, मुझे लगा कि कोई भारी चीज मेरे ऊपर गिरी है, होश आने पर अपने आप को संभाला, तो देखा की एक आदमी जो साइड ऊपर सीट पर सो रहा था वो मेरे उपर गिरा हुआ है, मैं उसके नीचे दबा हुआ हूँ. मैंने उसे हटाया, देखा तो बोगी पलट गई थी.
गनीमत थी के हमारी बर्थ दरवाजे के नजदीक थी. मैंने अपना सामान बैग उठाया और दरवाजे से लटक के बोगी के ऊपर पंहुचा तो,और जो पॉँच लोग थे उनको भी बोगी के उपर खींचा.
देखा की ट्रेन के तीन टुकड़े हो गए हैं. १४ बोगीयां गिर गई थी.एसी बोगी बच गई थी उसके पीछे के पहिए ही उतरे थे. गाड़ी ड़ीरेल हो गयी थी, यानी पटरी से नीचे उतर गयी थी.
पटरियां उखड़ गयी थी और उन पर तार पड़े थे. मैं नीचे जमीन पर डर के मारे नहीं उतर रहा था मेरी बेक बोन में दर्द हो रहा था.
सांझ का समय था. अँधेरा होने वाला था. सुनसान बियाबान में खेतों के बीच में बल्लभगढ़ के पास गैस की बड़ी-बड़ी टंकियां लगी हैं, वहीँ पर गाड़ी गिरी थी. तभी एक ने कहा कि सर बिजली के तार टूटने से से इनमे करेंट का प्रवाह बंद हो जाता है.
तब हिम्मत करके बोगी से नीचे उतरा, आगे गया और गिरी हुई बोगियों के पास, बोगियाँ बड़ी बुरी हालत में थी. काफी लोग मारे गए थे, कुछ ने तो मेरी आँखों के सामने ही दम तोडा था. मैं वहां कुछ भी नहीं कर सकता था. असहाय खडा था.
२ घंटे तक दिल्ली या आस पास के स्टेशनों से कोई सहायता नहीं आई. जबलपुर जाने वाली बोगी में बहुत सारे फौजी थे. उसमे ही ज्यादा मौत हुई थी. क्योंकि स्पीड होने के कारण पीछे की बोगियों में नुकसान ज्यादा हुआ था.
मैं अपना बैग उठा कर पैदल ही चल पड़ा, अँधेरा होने वाला था. बल्लभगढ़ और दिल्ली वाले रोड पर पहुंचकर बस पकड़ी,
उसने मुझे आश्रम वाले पुल पे उतारा, फिर वहां से बस पकड कर नार्थ एवेन्यू पंहुचा. वहां पर नरेन्द्र ताम्रकार ने मुझे वापस आए देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि अभी तो ट्रेन में बैठा कर आया था, वापस कैसे आ गए?
मैंने उसे सारी घटना बताई, तब उसने टी वी चालू करके देखा तो न्यूज में दुर्घटना के बारे में बता रहा था. जब रेलवे स्टेशन पंहुचा तो वहां अपने-अपने परिजनों के विषय में लोग पूछताछ कर रहे थे लेकिन उन्हें कोई माकूल जवाब नहीं मिल रहा था.
रेलवे वाले सीधे मुह बात नहीं कर रहे थे. मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी टिकिट वापस करी, फिर मेरे एक मित्र ने सुबह हवाई जहाज की टिकिट बनवा दी, जिससे मैं अपने घर सही सलामत वापस आ गया.
घर पर फोन नहीं लगने का एक फायदा ये हुआ कि उन्हें ये पता नहीं था कि मै इसी ट्रेन से आ रहा हूँ. नहीं तो घर में कोहराम मच जाता. इस दुर्घटना की उस दिन की टिकिट की फोटो स्टेट कापी एवं सभी अख़बारों की कापी आज भी मेरे संग्रह में है.
स्मृतियों में संजोने के लिए, इस दुर्घटना के कारण मेरी पीठ में बेक बोन का दर्द आज भी सालता है.इसीलिए कहते हैं ना -
उस समय गोंडवाना एक्सप्रेस दिल्ली से २.३५ पर छुटती थी. मैंने सोचा कि ट्रेन में बैठने से पहले घर एक फोन लगा लेता हूँ ,लेकिन लाइन नहीं मिली, मैं ट्रेन में चढ़ गया. ट्रेन में बैठने के बाद अपना सफारी उतार कर हाफ पेंट और टी शर्ट पहन ली।
मेरे कम्पार्टमेंट में कोई नहीं था, खाली था। तभी मेरे सामने सीट पर दो लोग और आ गए. ट्रेन चल पडी. ट्रेन ने फुल स्पीड पकड़ रखी थी.
मैंने अपनी किताब निकाली और खिड़की के पास बैठ कर पढने लगा. उसी समय रेल की पटरी से रोड़ियां उछल कर खिड़की से अन्दर आकर मुझे लगी.
मैं खिड़की से थोडा दूर हो गया और सामने बैठे व्यक्तियों से बोला" यार लगता है आज ड्राईवर ने दो पैग ज्यादा ही चढा लिए, ट्रेन फुल स्पीड में चला रहा है".
मैं इतना कहा ही था कि जोर से आवाज आई और सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया.
कुछ क्षण के लिए तो होश गायब कि ये क्या हो गया, मुझे लगा कि कोई भारी चीज मेरे ऊपर गिरी है, होश आने पर अपने आप को संभाला, तो देखा की एक आदमी जो साइड ऊपर सीट पर सो रहा था वो मेरे उपर गिरा हुआ है, मैं उसके नीचे दबा हुआ हूँ. मैंने उसे हटाया, देखा तो बोगी पलट गई थी.
गनीमत थी के हमारी बर्थ दरवाजे के नजदीक थी. मैंने अपना सामान बैग उठाया और दरवाजे से लटक के बोगी के ऊपर पंहुचा तो,और जो पॉँच लोग थे उनको भी बोगी के उपर खींचा.
देखा की ट्रेन के तीन टुकड़े हो गए हैं. १४ बोगीयां गिर गई थी.एसी बोगी बच गई थी उसके पीछे के पहिए ही उतरे थे. गाड़ी ड़ीरेल हो गयी थी, यानी पटरी से नीचे उतर गयी थी.
पटरियां उखड़ गयी थी और उन पर तार पड़े थे. मैं नीचे जमीन पर डर के मारे नहीं उतर रहा था मेरी बेक बोन में दर्द हो रहा था.
सांझ का समय था. अँधेरा होने वाला था. सुनसान बियाबान में खेतों के बीच में बल्लभगढ़ के पास गैस की बड़ी-बड़ी टंकियां लगी हैं, वहीँ पर गाड़ी गिरी थी. तभी एक ने कहा कि सर बिजली के तार टूटने से से इनमे करेंट का प्रवाह बंद हो जाता है.
तब हिम्मत करके बोगी से नीचे उतरा, आगे गया और गिरी हुई बोगियों के पास, बोगियाँ बड़ी बुरी हालत में थी. काफी लोग मारे गए थे, कुछ ने तो मेरी आँखों के सामने ही दम तोडा था. मैं वहां कुछ भी नहीं कर सकता था. असहाय खडा था.
२ घंटे तक दिल्ली या आस पास के स्टेशनों से कोई सहायता नहीं आई. जबलपुर जाने वाली बोगी में बहुत सारे फौजी थे. उसमे ही ज्यादा मौत हुई थी. क्योंकि स्पीड होने के कारण पीछे की बोगियों में नुकसान ज्यादा हुआ था.
मैं अपना बैग उठा कर पैदल ही चल पड़ा, अँधेरा होने वाला था. बल्लभगढ़ और दिल्ली वाले रोड पर पहुंचकर बस पकड़ी,
उसने मुझे आश्रम वाले पुल पे उतारा, फिर वहां से बस पकड कर नार्थ एवेन्यू पंहुचा. वहां पर नरेन्द्र ताम्रकार ने मुझे वापस आए देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि अभी तो ट्रेन में बैठा कर आया था, वापस कैसे आ गए?
मैंने उसे सारी घटना बताई, तब उसने टी वी चालू करके देखा तो न्यूज में दुर्घटना के बारे में बता रहा था. जब रेलवे स्टेशन पंहुचा तो वहां अपने-अपने परिजनों के विषय में लोग पूछताछ कर रहे थे लेकिन उन्हें कोई माकूल जवाब नहीं मिल रहा था.
रेलवे वाले सीधे मुह बात नहीं कर रहे थे. मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी टिकिट वापस करी, फिर मेरे एक मित्र ने सुबह हवाई जहाज की टिकिट बनवा दी, जिससे मैं अपने घर सही सलामत वापस आ गया.
घर पर फोन नहीं लगने का एक फायदा ये हुआ कि उन्हें ये पता नहीं था कि मै इसी ट्रेन से आ रहा हूँ. नहीं तो घर में कोहराम मच जाता. इस दुर्घटना की उस दिन की टिकिट की फोटो स्टेट कापी एवं सभी अख़बारों की कापी आज भी मेरे संग्रह में है.
स्मृतियों में संजोने के लिए, इस दुर्घटना के कारण मेरी पीठ में बेक बोन का दर्द आज भी सालता है.इसीलिए कहते हैं ना -
"जाको राखे सांईंया,मार सके ना कोय,
बाल ना बांको कर सके,जो जग बैरी होय"
हाँ एक घटना भूल रहा था" जब ट्रेन डिरेल हुई तो एसी बोगी नहीं गिरी थी, तभी उसका दरवाजा खोल कर एक आदमी बाहर निकला और बोला - क्या तमाशा लगा रखा है, इतनी देर से बोगी का एसी बंद है, कितनी गर्मी लग रही है? ये उसकी बात वहां पीड़ित लोगों को नागवार गुजरी और उसके बाद उन्होंने उसको पकड़ लिया पीटने के लिए वो बड़ी मुश्किल से वह फिर एसी बोगी में घुस पाया तो बच गया नहीं तो उसका.....................
बहुत भयानक हादसा होता है ! इंसानों ने जीतनी भी उन्नति की है उन्ही साधनों से मौत होती है ! अगर एक साधन से एक आदमी की भी मौत हो जाए तो ऐसे साधन का कोई फायदा नहीं ! विज्ञान ने उन्नति की है? या मौत के सामान तैयार किये हैं | क्या हम घर में कोई ऐसी चीज इजाद कर सकते हैं की : भाई इससे फायदा तो है पर कभी जान भी जा सकती है < घर वाले तुंरत लानत भेजेंगे की रहने दो नहीं चाहिए अगर एक आदमी की भी जान चली जाती है, किसी इजाद से तो घर के किसी सदस्य की कीमत पर नहीं , पर विज्ञान में कौन घर का है, सम्पूर्णता जिसे कहते है किसी भी वास्तु में नहीं है !!
जवाब देंहटाएंBahut dardnaak kissa hai........
जवाब देंहटाएंएक वो घायल रेल, जो गौ-धुली पर सिसकिया हवा में बिखेरती थी,
जवाब देंहटाएंऔर एक वो पागल रेल, जो सीटी बजाते हुए उसे ठोकर मारती थी,
इंसान की गलतियों की वजह से पता नहीं पलभर में कितनी जिंदगिया खामोश कर दी, बड़ा दुखद !
ट्रेन दुर्घटना! बहुत ही दर्दनाक हादसा है। शुक्र है आप को चोट न आई। और ऐ सी वाले सज्जन। उन्हें तो शायद पता ही नहीं था कि दुर्घटना हो गई है।
जवाब देंहटाएंयह देखें Dewlance Web Hosting - Earn
जवाब देंहटाएंMoney
सायद आपको यह प्रोग्राम अच्छा लगे!
अपने देश के लोगों का सपोर्ट करने पर हमारा देश एक दिन सबसे आगे
होगा
चर्चा पान की दुकान पर...का कमेंट बॉक्स काम नहीं कर रहा है...जरा चैक करके खबर करियेगा.
जवाब देंहटाएंदुखद घटना!
जवाब देंहटाएंजान बची तो लाखो पाए .. बडी दर्दनाक हादसे से गुजर चुके हैं आप !!
जवाब देंहटाएंye sab channle or kamal dono hi apni trp bdha rhe hai aajkal kisi bhi bare chanle par kuch asa kar do jisase sab aapki taraf akrshit ho ka chaln badhta ja rha hai or fir bakhtiyar or tanaz bhi to miya biwi on camera jo kuch karte hai wo bhi to galat hai
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