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सोमवार, 2 नवंबर 2009

डरपोक लोगों पर कु्छ ज्यादा ही इसका असर-टोनही का भय

कल हमने "हरेली अमावश" को हमारे "टोनही"(डायन)  ढूंढने के प्रयासों के विषय में चर्चा की थी. लेकिन हमे लोगों के कहे अनुसार  यह कहीं नहीं मिली और पूरी रात श्मशान में  निकाल दी. उस समय कुछ डर तो मेरे मन में भी था. लेकिन हम किसी तरह इस काम को कर पाए. हमें टिप्पणियों के द्वारा सुधि पाठकों कि राय भी मिली उसके आधार पर यह चर्चा आगे बढेगी. टिप्पणियों का दौर रात १० बजे तक चला और उसके बाद मैंने पोस्ट लिखनी प्रारंभ की है.प्रतिक्रियाएं हैं-  

Ratan Singh Shekhawat ने कहा… ज्यादातर लोग तो ऐसी बातों के वहम में डरे रहते है आवश्यकता है इन पर से पर्दा हटाने की |

विनोद कुमार पांडेय ने कहा… सच्चाई कितनी होती है आज तक कभी मेरे समझ में कुछ नही आई हाँ एक बात मैं ज़रूर कहना चाहूँगा की इसमें भय का योगदान बहुत होता है लोग भय में आकर कुछ ऐसे कार्य कर बैठते है जिनसे उन्हे ऐसे एहसास होता है की यह सब आत्माओं के वजह से हुआ...डर भी कही ना कही इसमें शामिल है. रोचक चर्चा शर्मा जी..धन्यवाद-

संगीता पुरी ने कहा… कल मैने दुबारा आपका आलेख पढ लिया था .. बहुत मार्मिक घटना थी .. मैं बाद में टिप्‍पणी नहीं कर पायी थी .. दरअसल तांत्रिकों की ये चाल है .. अपने अस्तित्‍व को बनाए रखने के लिए अशिक्षित लोगों के मध्‍य इस तरह की बातों का प्रचार प्रसार करते हैं .. मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं होता .. इस पोस्‍ट में आपने लिख ही दिया है कि .. आपने ढूंढने की कोशिश की .. तो आपको कुछ मिला भी नहीं !!  s

unilkaushal ने कहा… डरपोक लोगों पर कु्छ ज्यादा ही इसका असर होता है, और जहाँ रात अंधेरी काली हो यह डर और बढ जाता है-आप भी तारीफ़ के काबिल ही हैं जो उस उम्र मे टोनही ढुंढने निकल पड़े- एक ज्ञान वर्धक चर्चा है-

Anil Pusadkar ने कहा… हमको तो अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिये बनी सरकारी या पुलिस की समिति मे सदस्य बना दिया गया है और अब पता नही कब क्या कर पायेंगे,वैसे टोनही के नाम पर प्रापर्टी हडपने का प्रपंच आये दिन देखने को मिलता है।

ब हम आगे चलते हैं.इन प्रतिक्रियाओं से सामने निकल कर आ रहा है कि १. डर और वहम. २. तांत्रिको की रोजी रोटी ३. संपत्ति पर नज़र

सबसे पहले तो बात आती है कि हमारे समाज में हम अपने बच्चों को ही बचपन से डराते रहते हैं.जिसके कारण उनके मन में एक अज्ञात के प्रति भय बना रहता है. हम छोटे बच्चे को कहते हैं अरे रात को बाहर मत निकलना भूत खा जायेगा, या पकड़ लेगा, बाहर मत जाना बाऊ है. इस तरह कि अज्ञात चीजों के बारे में हम उनसे कहते हैं जिसे हमने भी स्वयं नहीं देखा है. 

बच्चा सोचता है अवश्य ही ऐसी कोई चीज होगी जो मेरे बाहर निकलने पर मेरा कोई नुकसान कर देगी. तो एक अज्ञात के प्रति भय उसके मन में बैठ जाता है जो जीवन पर्यंत बना रहता है और पीढी दर पीढी प्रसारित होता रहता है. 

मैं अपने घर कि ही बात करता हूँ, मेरी पत्नी को छिपकिली से बड़ा डर लगता है, अगर घर में एक भी छिपकिली देखती है चिल्ला पड़ती है और उस छिपकिली को मुझे घर से बाहर हर हालत में निकलना पड़ता है तभी वह सोती है. 

अब मेरे बच्चे भी छिपकिली से डरने लग गए. क्योंकि माँ डर रही है. इससे उनके मष्तिष्क पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. मैं उनको समझाता हूँ उन्हें छिपकिलियों के विषय में जानकारी देता हूँ और उनसे छिपकिलियाँ मरवाता हूँ कि उनके मष्तिष्क से ये भय निकल जाये.

इसी भय के विषय में एक बताना और चाहूँगा. एक लड़की जंगल में घास काटने गयी थी-आदिवासी वैसे भी जंगल में ही रहते हैं . वह शाम को घास लेकर वापस आ रही थी, कुछ धुंधलका हो चूका था. रौशनी कम हो गयी थी अचानक झाडियों के बीच से कुछ निकल कर उस लड़की के उपर कूदा, 

लड़की घास के गट्ठर समेत गिर गयी, लड़की को लगा कि उसके उपर कुछ गिरा है. उसने तुंरत अपने हाथ में लिए हुए घास काटने के "हँसिया" से उस चीज के ऊपर कई वार किये, लड़की के वार करते ही वह चीज उस पर से हट गई, लड़की घास का गट्ठर छोड़ कर अपने घर दौडी चली आई, 

उसने हँसिया एक किनारे रखा और अपने माँ बाप को ये कहानी बताई. उसके माँ बाप ने कहा कि सुबह चल कर देखेंगे. जब सुबह हुई तो उन लोगों ने हंसिये में खून लगा हुआ देखा तो समझ में आया कि शाम को लड़की के साथ किसी हिंसक जीव की मुडभेड हुई है. 

सभी गांव वाले जंगल में उस लड़की के साथ उस स्थान पर गये तो देखा की एक तेंदुआ मरा हुआ पड़ा था उसके उपर हंसिये के गहरे घाव थे. 

लड़की ने तेंदुए को देखा और बोली "इसे मैंने हंसिये से मारा है, मैंने मारा है" ऐसे कह कर वह अचेत हो गयी उसके बाप ने पानी डाला तब तक उसकी साँस बंद हो गई थी. 

ऐसा भय के कारण हुआ. मारे हुए तेंदुए को देखकर उस लड़की ने सोचा कि मैं इसे मार दिया-अगर ये मुझे मार देता तो....... 

इतना बड़ा बहादुरी का कार्य उस लड़की ने अनजाने में ही किया। अगर उसे पता होता कि ये तेंदुआ है तो वह उस समय ही उसका शिकार हो गयी थी. लेकिन मारे हुए तेंदुए के भयभीत होकर उसके प्राण पखेरू उड़ गए. ऐसा भय होता है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने . दर और बहम की कोई दवा नहीं, अगर इंसान डरपोक किस्म का है और रात को अँधेरे में कहीं जा रहा है तो उसे रस्ते में बीसियों भूत नजर आ जायेंगे मगर यदि वह इस तरह डरने वाला इंसान नहीं है तो जो जंगल के असली भूत शेर, भालू, तेंदुए है वे भी रास्ता छोड़ देते है उसके लिए !

    BTW: ललित जी छिपकली भगाने का धंधा चोखा लगा :)

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  2. रात्रि के समय अंधकार भय उत्‍पन्‍न करने के लिए काफी है .. और यही उन अंधविश्‍वासों का कारण बना होगा .. पर स्‍टेशन पर या उन सडकों में जहां रात भर गाडियों की आवाजाही चलती है .. या उस फैक्‍टरी या आफिस के आसपास जहां रातभर नाइट ड्यूटी के कारण चहल पहल रहती है .. यदि भूत प्रेत या नजर लगने के किस्‍से देखे जाते .. तब ही उनपर विश्‍वास किया जा सकता था !!

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  3. जानकारी से लबरेज सुन्‍दर कडी के लिए आभार. छत्‍तीसगढ में टोनही नाम से भय बढाने के पीछे कुछ यौन कुत्सित मानसिकता भी देखने को मिलती है. कुछ गावों में ऐसी महिला जो प्रभावी अईयासी प्रवृत्ति के पुरूषों के दबावपूर्ण यौन इच्‍छाओं का प्रतिकार करतीं उसे बदनाम करने के हथकंडे अपनाए जाते हैं और उसे 'टोनही' करार दिया जाता है।
    कहीं कहीं बांझ (छत्‍तीसगढी में बंग्‍गडी, ठगडी) महिलाओं को टोनही करार दिया जाता है।

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