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मंगलवार, 10 नवंबर 2009

गाँव में टोनही प्रथा से प्रताड़ित सहपाठिन की कथा

टोनही विषय पर आगे बढ़ते हैं. सुधि पाठकों की टिप्पणियाँ इसे आगे बढ़ाने की खुराक दे रही हैं और उनसे प्राप्त उर्जा से ही मै इस विषय पर आगे बढ़ रहा हूँ, 

अब हम टिप्पणियों की ओर चलते हैं.पी.सी.गोदियाल ने कहा… ललित जी, घटना मजेदार थी मगर यह कहूंगा की सामान्य तौर पर शायद आप कभी अगर उत्तराँचल हिमालय में मौजूद पवित्र बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने गए हो तो वहा मौजूद पड़ित जब आप से पूजा अर्चना करवाते है और अगर आप अपना अता पता सही-सही बताते है तो वे आपकी सात पुसतो का लेखा-जोखा निकाल कर आपको बता देते है ! 

यह उनकी परम्परा रही है की जो भी दर्शनार्थी वहा जाता है उसकी पूरी खानदानी परिचय वे रखते है और चूँकि शर्दियो में धाम के कपाट बर्फ की वजह से बंद हो जाते है अतः वे पंडित लोग इस दरमियान उन जजमानों के पते पर उन्हें मिलने ( मोटी दक्षिणा की उम्मीद लेकर) जाते है!

संगीता पुरी ने कहा… बहुत अच्‍छी जानकारी दे रहे हैं ललित भाई आप मुझे .. मैं तो स्‍वयं लोगों के द्वारा इन ठगों के करामातों को सुनकर आश्‍चर्यित रह जाती हूं .. विज्ञान का इतना गलत उपयोग .. पर आपके ब्‍लाग पर गहरे रंग संयोजन से लोगों को पढने में दिक्‍कत तो नहीं होती ना .. मैं चाहती हूं कि जागरूकता भरे इन आलेखों को अधिक से अधिक लोग पढें .. और इन ठगों के चमत्‍कारों का रहस्‍य समझने की कोशिश करें .. समाज में इसका प्रचार प्रसार बहुत आवश्‍यक है .. 

आप हर आलेख में पिछले सभी आलेखों का लिंक दे दें .. या फिर पिछले सभी आलेखों का एक टैग में डालकर उसके अंतर्गत लिखकर साइड बार में लगा दें .. ताकि इन आलेखों का पढकर लोग हर रहस्‍य का कारण समझ सकें !!

वैसे एक बार ऐसा संयोग हमारे पारिवारिक मित्र के घर पर भी हुआ था .. हजारीबाग में उनके रिश्‍तेदारों को ठगने के बाद बाबा लोग बोकारो में इनके दरवाजे पर पहुंच गए थे .. और बिल्‍कुल उसी स्‍टाइल में बातचीत की शुरूआत की .. 

जैसा वे लोग कई दिन पूर्व अपने पीडित रिश्‍तेदारों से फोन पर बातचीत के दौरान सुन चुके थे .. बस इन्‍होने पुलिस बुलाने की धमकी दे डाली और वे तुरंत कहां गायब हुए पता भी नहीं चला !!

Mithilesh dubey ने कहा… बहुत अच्छी जानकरि दी है आपने। आखें खोल के रख दी। आभार

कुलवंत हैप्पी ने कहा… जानकारी भरपूर लेख बहुत अच्छा लगा।

संगीता पुरीकी टिप्पणी भी जानकारी प्रदान करती है।

ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा… समाज में प्रचलित अंधविश्वास को ऐसे ही प्रयासों से दूर किया जा सकता है।आपके इस प्रयास को प्रणाम करता हूं

लवली कुमारी / Lovely kumari ने कहा… अच्छा लिख रहे हैं ललित जी ..रंग संयोजन बदल दीजिए ..आँखों को चुभता है सफ़ेद बैक ग्राउंड में काले अक्षर ही ठीक रहेंगे.

Dipak 'Mashal' ने कहा… Ye log isi layak hote hain bhai sahab... bahut sahi kiya aapne..Jai Hind...अब आगे बढ़ते है..

मेरे साथ बचपन में एक लडकी पढ़ती थी और मैट्रिक तक साथ में पढ़ी फिर गांव की परम्परा के अनुसार उसकी शादी हो गयी. 

शादी के कुछ साल के बाद क्या हुआ भगवान जाने उसके पति ने उसे त्याग दिया. वो अपने मायके वापस आ गई. 

बाप तो पहले ही नही था, माँ भी चल बसी. उसके परिवार में अब उसके आलावा कोई नहीं बचा, ये अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी. 

हाँ इसके चचा का भरपूर परिवार था. अब इसके पास गांव के बीच में मकान था और ४ साढ़े चार एकड़ जमीन थी. जिससे वो अपना गुजारा कर सकती थी. 

इसके मायके वापस आने के कारण चाचा का परिवार सबसे अधिक रुष्ट था क्योंकि यदि ये नही आती तो जमीन जायदाद पर उनका अधिकार बनता था. लेकिन अब इसके आने से उनकी योजना धरी की धरी रह गई

उसका परिवार इस लड़की को भगाने की युक्तियाँ करने लगा, पहले तो उसे कहा गया कि उसकी दूसरी शादी कर देते हैं. जब वो नही मानी तो उसके घर का रास्ता बंद कर दिया जो उसके चाचा के घर के तरफ आता था.

इसके बाद एक दिन नया ड्रामा चालू हुआ, इसके चाचा के पोते की तबियत ख़राब हो गयी शायद उसे टायफाइड हो गया था, उन लोगों ने गांव में कहना शुरू कर दिया कि ये तो जादू मंतर करती है और इसने ही मेरे लड़के को टोना किया है इसलिए वो बीमार है. 

इसके तो आल -औलाद है नहीं और मेरे बेटे को भी खाना चाहती है. और ये भी अपने घर में तांत्रिक बुलाकर कुछ तन्त्र मंत्र करवाने लगे, 

जिससे ये लड़की भयभीत रहने लगी, वो चाहते थे कि किसी तरह ये भाग जाये, लेकिन ये भी भागने को तैयार नहीं थी. अब इसके घर में कभी सिंदूर लागे निम्बू तो कभी काले कपडे का पुतला तो कभी नारियल इत्यादि चीजे मिलने लगी. 

लड़की परेशान रहने लगी .इसे इतना बदनाम कर दिया कि गांव में लोग अब इससे बचने लगे, कोई भी इसके घर में आने से कतराता था. जब नल पर पानी भरती थी, तो सभी औरतें वहां से हट जाती थी. एक तरह से प्रताड़ना अपने अंतिम चरण पर थी. 

एक दिन मुझे मिल गयी -मैंने हाल चल पूछा,  तो रोने लगी. और उसने सारी कहानी बताई. उसकी बातों से मुझे लगा कि यदि ये ज्यादा दिन रह गई तो शायद इसे जान से मार डालेंगे और पता भी नहीं चलेगा. 

मैंने उसे ले जा कर थाने में रिपोर्ट लिखवाई, उसे आई. जी. से मिलवाया और उसके चाचा के परिवार के खिलाफ अपराध दर्ज करवाया. उनको जेल भी जुई,. लेकिन अब उसके लिए गांव का माहौल रहने के लायक नहीं लगा कई लोगों से दुश्मनी हो गई थी. 

मैं भी जब कई दिनों के बाद उसके गांव पंहुचा तो पता चला कि वो सब जमीन जायदाद बेच कर  शहर में रहने के लिए चली गई है. 

लेकिन उसके उपर एक "टोनही" होने का जो दाग लग गया है उसे धोना बहुत ही कठिन ही नहीं नामुमकिन है. 

5 टिप्‍पणियां:

  1. झूट बोल रहे है आप, अगर लड़कियों के साथ पढ़े होते तो इतनी डरावनी मूछे नहीं रखी होती आपने :)))

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  2. @पी.सी.गोदियाल-झूट बोल रहे है आप, अगर लड़कियों के साथ पढ़े होते तो इतनी डरावनी मूछे नहीं रखी होती आपने :)))
    गोदियाल साब-मुछों के पीछे भी राज है और ऐसा नही है कि इसके कदरदान नही हैं, ये एक ऐसा बिजली का प्रवाह है जो एक बार पकड़ ले छोड़ता नही है और झटका मार दे तो कोई पकड़ने के लायक नही बचता-चलो मुंछ के लाभ और हानि पर कभी और पोस्ट ही लगायेगे।

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  3. ललित जी,
    खामख्वाह इतना टंटा किया...आप मूछों पर ताव देकर एक बार खुद ही लड़की के चाचा के सामने जाकर खड़े हो जाते...न अपने भूतों के साथ सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा होता तो मेरा नाम नहीं...
    वैसे आपकी पोस्ट पर एक बात और कहना चाहूंगा...इश्क और मुश्क लाख छुपाओ, नही छिपते....कहीं ये भी तो वही...खैर जाने दो...
    जय हिंद...

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  4. ललित जी,

    बहुत ही अच्छी श्रृंखला चला रहे हैं आप! बीच की कुछ कड़ियाँ नहीं पढ़ पाया हूँ। आज की कड़ी को पढ़ा है और प्रतीक्षा है अगली कड़ी की।

    टिप्पणियों में मूँछ की बातें पढ़ कर अखर रहा है कि पूरी तरह से सफेद हो जाने के कारण हमें 'क्लीनशेव्ड' बनना पड़ा, वरना हम भी आदमी थे मूँछो वाले।

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  5. बड़े ही दुःख की बात है, लोग अपने स्वार्थ के आगे किसी की तकलीफ और मज़बूरी को भी नहीं देखते औए एक मासूम को भी न जाने क्या से क्या बना देते हैं...

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