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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

एलियन से फोन पर बात चीत : सत्य घटना

आज तो हमारे साथ गजब ही हो गया. एलियन से बात  गई, लोग सोचते हैं कि  एलियन परग्रही हैं, उनसे बात नहीं हो सकती, परन्तु मेरी एलियन से बात हुई, यह सत्य घटना है. सुबह योगेन्द्र मौदगिल जी से फोन पर बतिया रहे थे. बड़ा मजा आ रहा था. एक से एक किस्से निकलते जा रहे थे और हंसी के ठहाके फोन पर ही लग रहे थे.  

सुबह सुबह हास्य टानिक एवं विटामिन का सेवन हो रहा रहा. मुझे ऐसा लगा कि बचपन में मेले के बिछड़े हुए किसी भाई से मुलाकात हो गई है. बड़ा आनंद का समा बंधा हुआ था. इस मुलाकात का जिक्र तो फिर करेंगे.

जैसे ही मैंने फोन बंद किया और वैसे ही एक काल और आई, 

फोन नंबर मुझे तो कहीं बाहर का लगा, 

उठाया तो आवाज आई "ललित भाई नम्बर देख रहे हैं क्या? 
कहाँ का है? 

आवाज मेरी समझ में नहीं आई. मुझे लगा कि हमारे एक मित्र विनोद गुप्ता जी का है, जो अभी सचिवालय में विशेष सचिव है. 

योगेन्द्र जी से बात होने के बाद मैं भी बड़े हलके मजाक के मूड में था, सोचा कि विनोद गुप्ता जी किसी नई कंपनी के नंबर से मजे ले रहे है. 

तो मैंने कहा कि "लगता है अन्तरिक्ष का नंबर है किसी का."

तो फोन में आवाज आई, "अन्तरिक्ष में किसको किसको जानते हैं?"

मैंने कहा "अन्तरिक्ष क्या पूरा ब्रह्माण्ड हमको जानता है."

बस फोन पे आवाज आई "अन्तरिक्ष से ही बोल रहा हूं."

अब मैं चक्कर में पड़ गया और मेरी तो पुतली घूम गई के आज तो भाई एलियन का फोन आ गया, और अब इनकी निगाह मेरे गांव पर पड़ गई, एकाध दिन में यु ऍफ़ ओ (उड़न तश्तरी)यहीं उतरने वाला. अब क्या होगा? बस अब तो वाट लग गई. 

दिसम्बर 2012 का महाप्रलय तो मेरे लिए 16 दिसंबर 2009 में ही आ गया. कुछ दिन और जी लेते दोस्तों के साथ खा पी के मौज मना लेते, भले ही फिर चाहे कुछ भी हो जाये. ऐसे सोच रहा था. 

तभी फोन में आवाज आई "पहचाना"? 

अब मैं पहचानने की कोशिश करने लगा कि "ये तो भाई कोई जानकर आदमी है. जो मौज ले रहा है. ऐसी स्थिति में कह भी नहीं सकता था कि नहीं पहचान पाया यार जरा नाम तो बताओ? 

फिर उधर से आवाज आई "ललित भाई मैं समीर लाल बोल रहा हूँ." 

क्या बताऊँ ? जिस कुर्सी पे मैं बैठा वो ही उछलने वाली थी. बच गया, 

"हाँ कहिये समीर भाई क्या हाल चाल है?"

ऐसा लगा कि कहीं लाखों चिराग लाल उठे हैं. एक रौशनी का सैलाब सा आ गया. 

समीर भाई ने कहा कि "मैं मार्च अप्रेल में आ रहा हूँ. अगर हो सका तो फरवरी में भी पहुँच सकता हूँ." 

फिर कुछ बातें और हुई, उन्होंने राजकुमार ग्वालानी जी का नंबर लिया मेरे से और उनसे बात करने निकल पड़े. 

हम तो बहुत खुश हैं कि अब हमारे गांव में भी उड़न तश्तरी लैंड करेगी और गांव के लोग भी देख पाएंगे. उड़न तश्तरी कैसी होती है? अब तक तो सिर्फ नाम ही सुना था. "समीर भाई शुक्रिया" समझाना कि ये कविता आपको  बुलाने के  लिए पुकार है. 

इसी ख़ुशी में हमारे ब्लॉग ने भी नया चोला पहन लिया पुराना उतार कर, कैसा लगा बताएं?
 ओ!!!! मेरे परदेशी सजना
लौट के आ घर दूर नही
बाट जोह रही राह है तेरी
आ जा अब तू जरुर यहीं

बालकपन का भोला बचपन
रह-रह याद दिलाता है
गांव पार का बुढा बरगद
तुझको रोज बुलाता है

खेलकूद कर जिस पर तुने
यौवन पाया जरुर यहीं
ओ!!!!मेरे परदेशी सजना.....

पनघट की जिस राह चला तू
उसकी याद सताएगी
चंदा की पायल की छम-छम
प्रीत के गीत सुनाएगी

पंख फैलाये नाचेंगे तेरे
चारों ओर मोर वही
ओ!!!मेरे परदेशी सजना........

आए बसंत तो सुमन खिलेंगे
पवन झकोरे खूब चलेंगे
महकाए जो तुझे हमेशा
मधुर सुवासित समीर बहेंगे

खेतों की विकल क्यारी की 
तुझे याद आएगी जरुर कहीं
ओ!!!! मेरे परदेशी सजना........

वह माँ के आँचल की छाया
जिसमे छिपकर सो जाता था
वही पुराना टुटा छप्पर
जहाँ सपनों में खो जाता था

मधुर सुरीली माँ की लोरी
तुझे तडफाएगी जरुर कहीं
ओ!!!!मेरे परदेशी सजना
लौट के आ घर दूर नही..  

12 टिप्‍पणियां:

  1. ग्वालानी जी ने तो पहले ही स्वागत् कर दिया है समीर जी का छत्तीसगढ़ में। हम भी स्वागत् के लिये तैयार बैठे हैं।

    आपके ब्लोग का नया चोला तो जोरदार है!

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  2. मजेदार इत्तेफाक।
    मौदगिल जी से तो हमारी आज बात हुई और एक आनंद की अनुभूति हुई।
    लेकिन समीर लालजी का तो इंतज़ार ही है।
    बढ़िया रहा ललित जी ।

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  3. इस मौके विशेष पर नया चोला...हा हा!! बेहतरीन लगा!

    रचना तो भावुक कर गई. आना ही होगा.

    बहुत मजा आया आपसे बात कर के. :)

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  4. ललित जी,
    आप उछल गए और हम भी उछल गए.
    क्या खूब रही होगी ये मुलाक़ात. अब तो इंतज़ार है आने वाली मुलाकातों का...

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  5. पनघट की जिस राह चला तू
    उसकी याद सताएगी
    चंदा की पायल की छम-छम
    प्रीत के गीत सुनाएगी

    वाह भाई...बेहद सुंदर अभियक्ति..भावनाओं की..घर और बाहर में बहुत अंतर होता है...

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  6. इस बात पे किसी अनाम शायर का एक शेर अर्ज है :-

    "शिकवा रहे गिला रहे हमसे,
    आरजु यही है एक सिलसिला रहे हमसे।
    फ़ासलें हों,दुरियां हो,खता हो कोई,
    दुआ है बस यही नजदीकियां रहें हमसे॥"

    :)

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  7. वाह बिलकुल सही कविता लिखी है समीरजी के लिए !! भाव विभोर हो उठे मुलाक़ात तो जरुरी है!!!

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  8. बाअदब...बामुलाहिजा...होशियार...

    शहंशाह-ए-ब्लॉगिंग जल्दी ही जलवा-अफ़रोज़ हो रहे हैं...

    जय हिंद...

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  9. बधाई हो भईया.


    टैम्‍पलेट व कविता दोनों बहुत सुन्‍दर.

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  10. वाह ललित जी ,
    डायरेक्ट एलियन जी खुद ....कमाल तो हईये है...और लोग कहते हैं कि हिंदी ब्लोग्गिंग में का होता है जी ...बताईये तो है कौनो और ब्लोग्गिंग अईसन जिसमें खुद आपको एलियन जी कांटेक्ट करें और बतियाएं ....हमें भी हिस्टियोराइटिक दौरा सा पड गया था मार खुशी के उनका फ़ोन आने पर ...कह दिए हैं दिल्ली आए जाए बगैर कहीं कोई विकल्प नहीं है ...ऊ भी मान रहे हैं ...सो पकड लेंगे यहीं पर और पजिया लेंगे भर बांह ।

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  11. समीर जी के लिये गाडी बडी ही रखना साईज के हिसाब से । कविता अच्छी लगी ।

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