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शनिवार, 23 जनवरी 2010

खंडहर हुए इन्द्र प्रस्थ में धृतराष्ट्र की तरह राज करना!!

कांग्रेस और एन.सी.पी. के इस फैसले ने यह जता दिया कि महज किसी एक वर्ग को संतुष्ट करने के लिए कहाँ तक समझौता किया जा सकता है. निरीह गरीब मजदूरों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? 

कहीं से भी आकर मजदूरी करके खा रहे हैं कमा रहे हैं. पलायन कौन करना चाहेगा जब उसे घर बैठे रोजगार मिल जायेगा तो. कौन घर दुवार बीबी बच्चे भगवान भरोसे छोड़ कर जायेगा. ये पेट की भूख आदमी से क्या नहीं करवा देती. 

रोजगार के लिए पलायन कोई आज से नही हो रहा है, पलायन वह करता है जिसके हाथ में हुनर होता है, खोपड़ी में दिमाग. घर से दो हाथ लेकर निकलता है इस दुनिया में कमाने के लिए. बच्चों का पेट पालने के लिए. 

अभी महाराष्ट्र सरकार ने जो निर्णय लिया है उसके दूर गामी परिणाम होंगे. समुद्र के किनारे मुंबई को बसाने और बनाने में उत्तर भारतीयों का भी हाथ है. उन्होंने ने भी अपने खून और पसीने से इस शहर को सींचा है. जितना हक़ तुम्हारा बनता है उतना ही हक़ उत्तर भारतियों का भी है. 

क्या मराठी भारत में महाराष्ट्र में ही बसते हैं? और कहीं नहीं?. जरा अकल से काम लो. जिस दिन ये कामगार मजदुर मुंबई से चले जायेंगे उस दिन तुम्हे दाल आटे का भाव पता चल जायेगा. अगर पीने को पानी भी मिल जाये तो वह बहुत बड़ी बात होगी. 

मुंबई में मराठी भाषियों से अधिक अन्य भाषा-भाषी लोग रहते है. जो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान,  गुजरात केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश से आते है.मुंबई के कल कारखानों को अपने पसीने और मेहनत के दम चलाने वाले यही लोग हैं.

पिछले साल १५ दिसंबर को मैं मुंबई में ही था. जब दादर में खोमचे वालों को मारा पीटा जा रहा था. टैक्सी वालों से उनका नाम-नाम पूछ कर उनकी टैक्सियाँ जलाई जा रही थी. पुलिस इन गुंडों के सामने हाथ बांधे खड़ी थी. तब कहाँ थे? 

ये मुंबई में कानून व्यवस्था की दुहाई देने वाले नेता. शरद पवार की दोगली नीति जग जाहिर है. पहले बाल ठाकरे को बढ़ावा दिया, उससे गुप्त समझौता करके अपना उल्लू सीधा किया और अब नया मोहरा मिल गया राज ठाकरे के रूप में. अब इसका इस्तेमाल चालू है.

गरीबों, मजदूरों को मारना पीटना कहाँ क़ी बहादुरी है? जब मुंबई में आतंकवादी हमला हुया था. तब ये मराठी मानुस की दुहाई देने वाले कहाँ थे? उस समय दो चार आतंक वादियों को टपकाते तो हम भी मानते कि जिगर वाले लोग हैं और इनकी धमकी से डरना चाहिए. 

पूरा भारत तुम्हारी जय जयकार करता. लेकिन पता नहीं ये कागज के शेर उस दिन किस बिल में घुसे हुए थे. जब फौज आई तभी आतंकवादियों को धराशायी कर मुंबई को आतंक मुक्त करवाया गया. हम फौज के जज्बे को सलाम करते हैं और तुम्हारी राष्ट्र घाती हरकतों की निंदा करते हैं.

आज जिन उत्तर भारतियों के परिश्रम के दम पर मुंबई खड़ी है उसे स्वीकारना ही होगा. "गरीब की लुगाई सबकी भौजाई".उत्तर भारतीय टैक्सी वालों को प्रताड़ित करके तुम क्या सन्देश देना चाहते हो. यही ना की अब पुराना हफ्ता नहीं चलेगा. नया हफ्ता लगेगा. 

एक गुब्बारा बेचने वाला १० साल का बच्चा जो लाल बत्ती पर खड़ा है वही भी उस जगह मात्र खड़े होने का रोज का सौ रूपये से कम नहीं देता है. बाकी की तो बात छोड़ दो. यह जग जाहिर है. गरीबों का शोषण सदियों से होता आया है. 

गरीब लात खाने के लिए और कीड़े मकोड़े की तरह मरने के लिए ही पैदा होते है. अगर तुम्हारे में दम है तो मुंबई निवासी धनियों और पूंजी पतियों को भगाओ. वहां के कल कारखानों को बंद करवाओ.इसके बाद तुम्हारे को 

मुंबई में एक भी उत्तर भारतीय अपनी इच्छा से निवास करता हुआ दिख जाये तब बताना. फिर खंडहर हुए इन्द्र प्रस्थ में धृतराष्ट्र की तरह राज करना. प्रज्ञा हीन तथा प्रजा हीन राजा की तरह, कोई मनाही नहीं है किसी से भी टैक्सी चलवाना.
समस्त भारतियों को अब मुंबई की दशा देखते हुए उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर नियंत्रण केंद्र के हाथों में लेने की मांग करनी चाहिए. मुंबई केंद्र सरकार चलाये. बाकी प्रदेश प्रादेशिक नेता चलायें. इसका यही समाधान नजर आता है.

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही और तल्ख, यह तो कंग्रेस की ही साजीश है, इसे हम आप तो समझ रहें है पर पुरे भारत को समझना होगा।

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  2. राजनैतिक दल क्षेत्रीयता की आंच पर हाथ सेक रहे हैं ...जलने पर ही कुछ एहसास होगा ...नहीं ...जलने पर भी नहीं ...ये लोग तो सभी एहसासों से परे हैं ....!!

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  3. कांग्रेस और एनसीपी से तो राज ठाकरे और बाल ठाकरे ही अच्छे हैं...जो दिल में है, वही कम से कम खुल कर कहते तो हैं...ये कांग्रेस-एनसीपी ऊपर से राष्ट्रवादी का मुखौटा बेशक लगाए रखें, लेकिन आग लगाकर वोटों का खेल खेलने में सबकी बाप हैं...

    जय हिंद...

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  4. महराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाहवाण की कैबिनेट द्वारा लिए गये एक फैसले ने महाराष्ट्र में नफरत अलगाववाद की राजनीत करने वालों के पक्ष को शक्ति प्रदान की है। कैबिनेट में लिए गये निर्णय के मुताबिक महाराष्ट्र में उन्हीं टैक्सी चाल.......bhi dakhay...........http://loksangharsha.blogspot.com/
    nice

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  5. अभी लुधियाना में क्‍या हुआ? नरेगा में काम मिलने के कारण और लुधियाना में स्‍थानीय लोगों से प्रताडित होते मजदूर वापस बिहार चले गए। वहाँ की कारखाने बन्‍द हो गए। इसी प्रकार मुम्‍बई से भी मजदूर वापस अपने शहरों में चले जाएंगे तब मुम्‍बई का क्‍या हाल होगा? यह मराठी लोग नहीं सोच पा रहे हैं। आपने बहुत ही अच्‍छा लिखा है। बधाई।

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  6. बहुत बड़ा देशद्रोह है यह।

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  7. बीज तो काँग्रेस ने ही बोया भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करके जिसकी आँच आज तक ठंडी नहीं हुई . तेलंगाना जल रहा है . इनकी तो आदत है आग लगाओ और गरीब की झोपड़ी जलाओ

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  8. ललित ही फसाद की सारी जड़ तो केंद्र में बैठी है !

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  9. समस्त भारतियों को अब मुंबई की दशा देखते हुए उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर नियंत्रण केंद्र के हाथों में लेने की मांग करनी चाहिए. मुंबई केंद्र सरकार चलाये. बाकी प्रदेश प्रादेशिक नेता चलायें. इसका यही समाधान नजर आता है.

    अच्छा सुझाब है जी!

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  10. राज ठाकरे जो बोलता है एकदम सही है. हर एक प्रदेश में वहां के स्थानीय लोगो को प्रथम नौकरी मिलनी चाहिये. वहां कि भाषा और संस्कृती को प्रथम दर्जा देना चाहिये. अगर ये सब चीजे बाहरी लोग उनसे छिन्ने कि कोशिश करते होंगे और अपनी भाषा और संस्कृती उन्पर घुसाते होंगे तो ये दृष्टीकोन सिर्फ महाराष्ट्र में हि नाही अन्य प्रदेशो में या देशो में भी उसके 'साईड एफ्फेक्ट्स' ऐसे हि बाहर निक्लेंगे जैसे राज ठाकरे के निकलते है. उत्तर भार्तियो को मारने कि कोशिश कर्नाटक, आसाम, पंजाब और तामिळ नाडू में भी कि गयी थी. शीला दीक्षित और शिवराज सिंघ चौहान भी बिहारियो का विरोध किया था. परंतु इनको कभी देश एक रखने की चीजे सिखाई नहीं जाती. यह केवल महाराष्ट्र को ही सिखाया जाता है क्यूंकि उत्तर भारतीय लोगो और नेताओ को मुंबई की सत्ता अपने हाथ में लेनी है और राज ठाकरे ने उनका 'प्लान' चौपट कर दिया, इसलिए वे भड़क गए. मेरी इन उत्तर भारतीयों को सलाह है की वे किसी भी प्रदेश में रहने जायेंगे, तब वहा की भाषा सीखनी चाहिए और उनके संस्कृति का भाग होना चाहिए और अपने अलग मतदार संघ नहीं करने चाहिए. भारत एक बहुभाषिक राज्य है, केवल हिंदी भाषिक नहीं है. हमारा देश में विविधता में एकता होती, हिंदी से एकता नहीं होती. खुद को भारतीय मानने के लिए हिंदी भाषा सिखने की कोई जरुरत नहीं है. वह भाषा हिंदी प्रदेशो में सीखी तो ही उचित है.

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