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रविवार, 21 मार्च 2010

बनवासी बनगे रे मोर राम बेटा--एक जस गीत

यह जसगीत बहुत ही सुंदर बना है। 36गढ मे परम्परा से गाए जाने वाले गीतों मे इसका शुमार है। रचयिता कौन है? इसकी जानकारी तो मुझे नही मिल पायी, लेकिन आप इस गीत का आनंद अवश्य ले। प्रस्तुत है---
 बनवासी बनगे रे मोर राम बेटा


बनवासी बनगे रे मोर राम बेटा
कैकई के कारने उदासी बनगे रे

गुरु वशिष्ठ जी हां बताईस, पुत्र जग कराईन
उही जग के खीर प्रसादे, हमन तोला पायेन
तोला कैइसे छोड़ो रे मोर बेटा, तोला घर दुवार के
कैकई के कारने उदासी बनगे रे

महल अटारी के रहवैया, बन मा कइसे रहिबे
कांटा सही तोर काया सुखाही, भुख प्यास ला सहिबे
अड़बड़ दुख पाबे रे हीरा बेटा तैहा मोर दुलार के
कैकई के कारने उदासी बनगे रे

तैं जाथस तोर संग जाबो, कहिथे लछमन सीता
तीनो परानी के जाए ले, घर हो जाही रीता
बनवासी बनगे राम बेटा, मोर दुलार के
कैकई के कारने उदासी बनगे रे

तोर जाएके बात ला सुनके, आंखी मा आगे पानी
मैं हां दुखियारी कही डारेंव, तोर बनवास कहानी
तोला कईसे छेकों रे, किलकइया बेटा, तोला घर दुवार के
कैकई के कारने उदासी बनगे रे

9 टिप्‍पणियां:

  1. जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई!

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  2. सुन्‍दर जसगीत पढवायेस भईया. बहुत बहुत धन्‍यवाद.


    आपला जनम दिन के कोरी कोरी बधई.

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  3. ललित जी आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ |

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  4. badhaai...janm din ki. isi tarah likhate raho.sakriy raho...aage barho....yahi shubhkamana hai.
    blog jagat me lalit ka, hoy dhamaka roj,
    kare ham sabhi gyan ka, rozana hi bhoj

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  5. गीत पढ़कर मन प्रसन्न हुआ।
    ललित जी , जन्मदिन की हार्दिक बधाई अवम शुभकामनायें।

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  6. ललित जी आपको जन्मदिन मुबारक हो

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  7. बढ़िया प्रस्तुति! अच्छा गीत!!


    आपके जन्म दिवस की बहुत बधाई.

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