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मंगलवार, 1 जून 2010

दिल्ली यात्रा-4 डॉक्टर टी एस दराल से पारिवारिक मिलन

यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें 

जैसे ही हमारी गाड़ी क्लब के गेट पर पहुंची डॉ दराल एवं भाभी जी (डॉ.रेखा दराल) बेसब्री से इंतजार करते मिले। अभिवादन के पश्चात हम क्लब के हॉल में पहुंचे,

वहां टेबलें सेट करवा कर बैठे, समय कम था, क्लब 11 बजे तक ही चलता है, उसके बाद सप्लाई बंद हो जाती है, इसलिए निर्णय हुआ कि आर्डर दे दिया जाए फ़िर साथ में चर्चा के चटखारे भी लेते रहेंगे।

डॉ.दराल जी से मिलकर लगा कि एक बड़े भाई के रुप में विपुल स्नेह के स्वामी से मुलाकात हो गयी और उनके व्यक्तित्व के आगे मैं नतमस्तक हो गया। बस हम अपनी पारिवारिक चर्चा में लगे रहे, अब आर्डर देने कि बारी आई तो डॉ.दराल जी ने टी्चर्स काकटेल मंगाया और हमने सोडा के साथ टीचर्स, यशवंत जी ने भी यही चाहा।

राजीव तनेजा जी राधास्वामी के अनुयायी हैं उन्होने कोल्ड ड्रिंक से साथ दि्या। क्योंकि हम विलंब से पहुंचे थे क्लब 11 बज़े बंद हो जाता है। इसलिए खाने का आर्डर भी साथ ही साथ दे दिया गया, राजीव जी ने अपने कैमरे से कु्छ तश्वीरें ली, लेकिन उसकी बैटरी चूक गयी।

मुझे याद था कि डॉ.दराल जी भी फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन हैं वे कैमरा अवश्य ही लाए होगें, मेरा अंदाजा सही निकला, भाभी जी पर्स से अपना कैमरा बाहर निकाला फ़िर उससे तश्वीरे ली गई। मैंने भी कुछ तश्वीरें अपने पॉकेट कैमरा से ली।

डॉ.दराल जी ने कुछ दिनों पहले गोत्र से संबंधित एक बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी थी, टिप्पणियों के माध्यम से पाठकों के विचार भी सामने आए थे। लेकिन सगोत्री विवाह को कोर्ट भले ही जायज ठहरा दे लेकिन समाज उसे मान्यता नहीं देगा।

क्योंकि सगोत्री होना याने एक ही कुल परिवार से रक्त संबंध रखना है और इसमें विवाह को जायज नहीं ठहराया जा सकता। एक कहावत है" गोती गोती भाई भाई, बाकि सब असनाई" (सगोत्री में भाई-बहन का संबध होता है तथा अन्य गोत्र वाले रिश्तेदार हो सकते हैं)

यह हमारी प्राचीन व्यवस्था है, जो सात पीढियों तक के संबंधों को परिभाषित करती है। हां इसमें ऑनर किलिंग सही नहीं है इसके लिए समाज की पंचायतों को कोई दूसरा समाधान अवश्य निकालना चाहिए, यदि कोई गलती करता है तो उसे समझाना चाहिए। कोई नया रास्ता निकालना चाहिए।

टीचर्स याने गुरुजी, हमारे गुरुजी को अब किस्सा सुनकर अखर रहा है कि हम दिल्ली क्यों ना पहुंचे, हम भी सारी राम कहानी इसलिए लिख रहे है कि लोगों को मिलन की प्रेरणा मिले।

हमारा पहला पैग चल ही रहा था कि मंदिर के जैसी घंटी की आवाज आई, मुड़ कर देखा तो एक बैरा घंटी बजा रहा था। लेकिन हमने ध्यान नहीं दि्या। डॉ.दराल जी ने खाने के विषय में पूछा कि वेज ले्गें या नानवेज?

हमने वेज लेना ही पसंद किया। हम ठहरे वनवासी,वेज-नानवेज कुछ भी खा सकते हैं, टीचर्स की जगह महुआ के फ़ूल का हर्बल अर्क भी पी सकते हैं। महुआ के फ़ूल की सौंधी-सौंधी खुश्बु मदमस्त कर जाती है। बैठे-बैठे ख्याल आया कि एकाध बोतल ले ही आते तो आज कुछ स्वाद डॉ.दराल जी भी ले लेते। लेकिन वे जब आएंगे हमारे यहां तो स्पेशल ग्रामीण डिस्टलरी से महुआ फ़ूल का रस चुवाया जाएगा।

जब दुसरे पैग का आर्डर देने के लिए बैरे को बुलाया गया तो उसने बताया कि बार का समय समाप्त हो चुका है, अब हम भी सो्चने लगे कि न इधर के रहे न उधर के, इस बात को डॉ.दराल जी भांप चुके थे, उन्होने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए एक पैग की व्यवस्था की। उसके बाद ही कुछ रौनक आई।

तभी यशवंत जी ने याद दिलाया कि मैट्रो बंद हो जाएगी तो उन्हे घर जाने में समस्या आ जाएगी। राजीव जी ने आस्वस्त किया कि वे उन्हे साधन उपलब्ध करवा देंगे। पार्टी का आनंद लें जाने के विषय में चिंता ना करें।

  "फैमिली लाउंज में बैठकर ऐसा लग रहा था जैसे एक ही परिवार के तीन भाई साथ बैठे हों । बड़े भैया , सपत्निक और नौज़वान बेटा साथ में , सबसे छोटे जैसे नवविवाहित हों , और मूंछों वाले मंझले भैया जैसे बाल ब्रहमचारी । एक सुखी परिवार ।" इस कथन से अहसास हुआ कि ईश्वर कितना मेहरबान है मुझ पर, एक स्नेहिल परिवार दिया।

जीवन की सुखद स्मृतियों में एक पन्ना और जुड़ चुका था।भोजनोपरांत एक बार फ़िर चित्र लिए गए और सभी से विदा ली। डॉ.दराल जी का स्नेह पाकर हम गदगद हो गए, क्योंकि लालपरी जो मस्त कर रही थी। दिल्ली की भीषण गर्मी भी कुल्लु-मनाली की शीतल बयार में बदल चुकी थी।

गर्मी का अहसास कम हो गया था।अब घर की तरफ़ चल पड़े। रास्ते में एक जगह कार रोक कर यशवंत जी के लिए ऑटो पूछते रहे, लेकिन ऑटो वाले भी जनकपुरी का नाम सुनकर बिदक जाते थे। जिस ऑटो में पहले से सवारी बैठी थी

उसमें राजीव जी यशवंत जी को बैठाना नहीं चाहते थे। रात के समय लूट-पाट का खतरा जो  था। जब ऑटो नहीं मिला तो हम आगे चल पड़े।


कार की चाबी राजीव जी की जेब में रह जाने के कारण भाभी जी पैट्रोल और सीएनजी नहीं भरवा पाई थी अब दोनों ही गाड़ी में खत्म होने को थे। रास्ते में जो भी पैट्रोल पंप दिखा, वहां सोमवार बंद का बैनर लगा था, मतलब अघोषित हड़ताल चल रही थी।

राजीव जी उसका समाधान यूँ निकाला कि यदि कार का पैट्रोल खत्म हो गया तो कार को रास्ते में ही छोड़ कर ऑटो से घर चल पड़ेगें। तभी रास्ते में एक जगह सीएनजी का पंप चालु था, हम वहां पहुंचे। वहीं पर यशवंत जी को ऑटो भी मिल गया। उन्हे विदा किया गया, उसके पश्चात सीएनजी के साथ पैट्रोल भी डलवाया गया।

अब यहां से गाड़ी संजु तने्जा जी ने ड्राईव की। कुशलता से चला लेती हैं मिलेट्री वालों के बेटे-बेटियाँ वैसे भी ट्रेन्ड रहते हैं, हर परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए। मैने यह होश संभालते ही देखा है। हमारे पापा जी तो डेशबोर्ड पर पानी का भरा गिलास रख देते थे और स्वयं साथ बैठते थे कि ड्राईविंग के वक्त गि्लास का पानी नहीं छलकना चाहिए।

यह ड्राईविंग की ट्रेनिंग का एक अंदाज था। जब भाभी जी यहां आएंगी तो घुमने जाने के वक्त ड्रायविंग की जिम्मेदारी उनकी ही रहेगी।

घर पहुंचते-पहुंचते यह मुलाकात टाईम मैग्जिन की कव्हर स्टोरी बन चुकी थी।:) घर पहुंचने पर राजीव जी के चमत्कारी साफ़्टवेयर को देखा जिससे वे होली पर धड़ाधड़ लिंग परिवर्तन करने का कारखाना चला रहे थे।

जो फ़ोटो ली थी उन्हे डाउनलोड किया, एक पेन ड्राइव में डाली, कुछ चर्चा ब्लाग सबंधी हुई, एक गिलास ठंडा शरबत पीया। राजीव जी को चाय पीने की आदत है दिन में 8-10 चाय तो पी लेते होगें, लेकिन मै दिन में दो ही चाय पीता हूँ, शायद इन्होने चाय ही ली होगी।

थोड़ी नजर ब्लागवाणी पर डाली एक दो पोस्ट देखी। रात के डेढ बज रहे थे अब सोचने लगे कि सो लिया जाए, क्योंकि दो रात से ठीक से नींद नहीं ली थी। एक  रात का किस्सा तो खुशदीप भाई ने सुना ही दिया था कि रात कैसे गुजरी? आगे की विडम्बना देखिए जैसे ही बिस्तर पर लेटा वैसे ही बत्ती ...गुल... हो.... गई.....जय राम जी की.............कथा जारी है...............!

31 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा मजा आया रोचक दास्तान सुनकर...लेकिन ये बत्ती आपके साथ बड़ा खिलवाड़ की ऐन गरमी में भई..वो भी जब दो पैग लगाकर पहुँचे तो तब तो रहम खाना था उसे. :)

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  2. टाईम मैगजीन के कवर पेज पर आने के लिये बधाई
    सुन्दर संस्मरण

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  3. वाह..!!
    बहुत रोचक प्रस्तुति...
    ब्लॉग्गिंग कितनों को कितने करीब ले आई है...दिल्ली ब्लोग्गर्स मीट वास्तव में एक बहुत ही सफल प्रयास रही...
    बहुत आभार...हमारे साथ इतने मीठे संस्मरण को बांटने के लिए....

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  4. पहले लगा कि शायद विरोधी गुट वालों ने बिजली वालों से सेटिंग कर ली है कि ललित शर्मा जी को रात भर सोने नहीं देना है...लेकिन सुबह जा के ये दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ के ...बेटा राजीव!...ये तो तेरी ही...खुद की बेवकूफी थी जो दो रात भर ललित जी परेशान रहे...अपने इन्वर्टर से जो तूने दो दिन पहले पंगा ले लिया था और गलती ने इनवर्टर की तार को मेन स्विच के बजाय वापिस इन्वर्टर में ही लगा बैठा था

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  5. हम दादा जी हैं
    हमारा पोता यहां पापाजी बना घुम रहा है, कब से उसको खोज रहे हैं।
    अब बुढा शरीर साथ नहीं देता,ठीक से दिखाई भी नहीं देता और यह नालायक यहां पापा गिरी कर रहा है। जब से यह घर से भागा है, रो रो कर इसकी मां का बुरा हाल है।

    बेटा ललित कहीं दिखाई दे तो मुझे खबर करना। उस नालायक को सुधारना है। सभी को हलाकान कर रहा है।

    तुम्हारा दादाजी

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  6. काश ललित जी आप टाइम से पहुंच गए होते तो टीचर्स आपको यूं न तरसाते...

    जय हिंद...

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  7. बिलकुल टाईम कवर स्टोरी जी ,बिलकुल !

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  8. रोचक। अपनी खुशी हमलोगों के साथ बाँटी - अच्छा लगा।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  9. बेटा ललित एक समस्या तो बताना ही भूल गया था मेरा पुत्र स्वयं भू "पापा जी" बना घूम रहा है अगर मिले तो उसके कान में कह देना घर पहुंच जाओ नहीं तो तुम्हारे भी दादा जी छडी लेकर निकलने वाले हैं !!
    शेष कुशल मंगल
    तुम्हारे दादा जी

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  10. पारिवारिक भेंट के बहाने रोचक और सार्थक बातों की विवेचना करता पोस्ट,विचारणीय प्रस्तुती |

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  11. ...डम डम ...बम बम ... !!!

    ...अब ये दादा जी भी दिख रहे हैं ...लगता है पूरा खानदान भटक गया है ...!!!

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  12. भई वाह , तनेजा जी का कौशल तो कमाल का है ।
    महुआ के फूलों का हर्बल अर्क --यह तो टेस्ट करना पड़ेगा एक दिन ।
    बहुत दिलकश रहा ये यात्रा वर्णन ।
    आपकी यात्रा ने निसंदेह ब्लॉगजगत में एक नई जान फूंक दी है ।

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  13. यात्रा सन्स्मरण तो सभी लिखते हैं। मगर ललित भाई का जवाब नही। देशी/विदेशी स्वास्थ्य केन्द्र की दवाइयों के सेवन से लेकर "घर पहुंचते-पहुंचते यह मुलाकात टाईम मैग्जिन की कव्हर स्टोरी बन चुकी थी" तक का चित्रण बखूबी से किया है। शायद यह चौथी किश्त है। है अगली किश्त का इन्त्ज़ार्………जय जोहार्।

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  14. आपके इस यात्रा वृतांत के हम भी सहयात्री बन गए हैं...लग रहा है जैसे सब आँखों के सामने घटित हो रहा है....सुन्दर प्रस्तुति

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  15. आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
    आचार्य जी

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  16. दिल्ली की मीठी यादों को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं ललित जी आप!

    "टीचर्स की जगह महुआ के फ़ूल का हर्बल अर्क भी पी सकते हैं।"

    एक बार हमारे साथ 'छुरा' चलना, "पहली धार की" पिलवा देंगे।

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  17. सोचा था कि अच्छी सी टिप्पणी करूँगा
    लेकिन
    आखिरी लाईन पढ़ते ही हंसी जो शुरू हुई तो मूड़ ही बदल गया

    जैसे ही बिस्तर पर लेटा वैसे ही बत्ती ...गुल... हो.... गयी.
    हा हा हा

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  18. एक पारिवारिक भेंट की मीठी यादें,
    हमें पढवाने के लिये बहुत धन्यवाद जी
    रोचक संस्मरण

    प्रणाम

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  19. ललित जी बहुत सुंदर चर्चा चल रही है, सारा दिन तो मजे मै गुजरता है, लेकिन जब सोने जाते हो तो लाईट भाग जाती है, जरुर किसी विरोधी की चाल लगती है, चित्र भी बहुत सुंदर लगे, आप की यह पोस्ट एक शान दार याद गार बन गई है.
    धन्यवाद

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  20. बड़ा मजा आया रोचक दास्तान सुनकर

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  21. हा हा हा मतलब जहां जहां आप पहुंचे ..बीएसईएस वालों को पूरी खबर हो रही थी । अब शहर में यूं शेर के पहुंचने से हलचल तो होगी ही न । बहुत बढिया संस्मरण रहा ।

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  22. आज नेट चल पाया है अब आपकी दास्ताने दिल्ली पीछे से पढना शुरु करेंगे, तब मालूम पडेगा.

    रामराम.

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  23. घर पहुंचते-पहुंचते यह मुलाकात टाईम मैग्जिन की कव्हर स्टोरी बन चुकी थी।
    ye to gajab ka likha hai apne

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  24. कुडि़यों से चिकने आपके गाल लाल हैं सर और भोली आपकी मूरत है http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/06/blog-post.html जूनियर ब्‍लोगर ऐसोसिएशन को बनने से पहले ही सेलीब्रेट करने की खुशी में नीशू तिवारी सर के दाहिने हाथ मिथिलेश दुबे सर को समर्पित कविता का आनंद लीजिए।

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  25. bahut dino se prateeksha thee is post ki aaj parh kar khushi hui. dilli valo ka dil jeet kar laute ho. badhai. dilli me jitane log bhi mile, unhone jaisaa sneh udelaa, use dekh achchha lagaa. dilli me aise log bhi hai...? itane pyare...? itane achchhe...? yah man, yah sneh, yah dostanaa banaa rahe.

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  26. रोचक दास्ताँ.. भले ही आपको बत्ती गुल होने के संकट से गुज़ारना पड़ा हो.. :)

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