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मंगलवार, 20 जुलाई 2010

एग्रीगेटर हमारी वाणी, सुनो हमारी जुबानी

ल दिन में बिजली चली गयी थी, इसलिए कुछ काम नहीं हो पाया। इसलिए आज रात में एक नींद के बाद जाग गया, सो कम्प्युटर पर चला आया। ब्लाग पर देखा हमारी वाणी की एक टिप्पणी पड़ी हुई थी। पूर्व में हमारी से इस तरह की टिप्पणियाँ आती रही हैं।

लेकिन उस समय इनका एग्रीगेटर फ़ीडकल्स्टर पर बना हुआ था। इस तरह का एग्रीगेटर  हमने शिल्पकार के नाम से भी बना रखा है। जिससे हम अपनी पसंद की पोस्ट पढ लेते है।

ब्लागिरी एग्रीगेटर भी खुलने में समय लेता था। आज कुछ सु्धार हुआ। जल्दी खुलने लगा। जिज्ञासावश हमारीवाणी एग्रीगेटर पर गया। तो उसका कलेवर बदला हुआ था। स्क्रिप्ट ब्लागवाणी जैसी ही है। जल्दी खुल गया तो अच्छा लगा। उसमें हमने रजिस्टर करके देखा और अपने सभी ब्लाग की रिक्वेस्ट भेज दी।

मुझे लगा की एग्रीगेटर की तलाश पूरी हो गयी। लेकिन इसमें भी वही ब्लागवाणी वाली बीमारी नजर आई। नापसंद और पसंद वाली। ब्लागवाणी पर झगड़ा इसी बात का था कि लोग नापसंद की सुविधा का गलत उपयोग कर रहे थे। 

यहां भी नापसंद सुविधा का गलत उपयोग होने की पूरी आशंका है। ब्लागवाणी पर भी यही हो रहा था। लोग बिना पढे ही कुंठा निकालने के लिए अच्छी से अच्छी पोस्ट को नापसंद कर गड्ढे में डाल रहे थे। जिससे सभी ब्लागर प्रभावित हुए।

हमारी वाणी एग्रीगेटर के माडरेटर से मेरा निवेदन है कि अभी आपको एग्रीगेटर लाए कुछ दिन ही हुआ है और यह विज्ञापित एवं स्थापित ब्लागरों के सहयोग से होगा। इसलिए विवादास्पद विजेट अभी से बंद कर दें। जैसे नापसंद वाले विजेट। तो भविष्य के लिए सही रहेगा।

ब्लागवाणी के बंद होने के बाद हमने देख लिया कि हमारे ब्लाग पर पाठकों की आमद में कोई ज्यादा अंतर नहीं पड़ा। पाठक आते रहे। पाठक सर्च इंजन से आते हैं और ब्लागर एग्रीगेटर से। इसलिए बिना एग्रीगेटर के भी ब्लाग पढे जा रहे हैं। इंडली स्वचालित एग्रीगेटर नहीं होने से फ़ेल है। वह स्वयं फ़ीड नहीं लेता।

मेरा आपसे यही आग्रह है कि यदि आप हमारी वाणी को निर्विवादित रुप से चलाना चाहते है तो पहले नापसंद वाले विजेट को हटाएं एवं जैसे इंडली ने एक सुविधा दी है कि विवादित पोस्ट को अलग से दिखाना।

विवादित ब्लाग और पोस्ट को आपको दिखाना है तो उसके लिए अलग से टैग बनाकर वहां दि्खाएं। जिससे बाकी ब्लाग प्रभावित न हों।

अगर आपको हमारी बात समझ में आती है तो सुने और सुधार करें। हमारी वाणी के नए कलेवर के साथ आने पर मैं आपको हार्दिक बधाई देता हूँ और हमारी वाणी लोकप्रिय हो इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।

26 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. कोई भी हिंदी एग्रीगेटर पसंद ना पसंद और हॉट सूचि के चक्कर में ना पड़े तो ही ज्यादा अच्छा है

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  3. पर यह मानवीय कमजोरी है शेखावत भाई।

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  4. ललित भाई की बात से पूरी तरह सहमत...
    हमारी वाणी की टीम वाकई नए एग्रीगेटर को स्थापित करने में काफी मेहनत कर रही है...लेकिन नापसंद को लेकर मेरी राय ये है कि अगर ये बटन देना भी जरूरी हो तो इसका रिजल्ट सार्वजनिक तौर पर न दिखे सिर्फ पोस्ट लेखक को ही दिखे....अगर ऐसा संभव हो सकता है तो विवाद या जानबूझकर किसी से खुंदक निकालने की प्रवृत्ति पर रोक लग सकेगी...

    जय हिंद...

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  5. ... मानवीय कमजोरी हो या व्यवहारिक कमजोरी या चमचागिरी वाली कमजोरी हो या जी-हुजुरी वाली कमजोरी हो ... जो गलत है सो गलत है ... अगर शुरुवात में ही सुधार हो जाये तो बेहतर है नहीं तो वही हाल होगा जो "ब्लागवाणी" का हुआ है ... साहित्य के क्षेत्र में भ्रष्टाचार उचित नहीं है ... बेहद शानदार-जानदार पोस्ट ... बधाई ललित भाई !!!

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  6. पसंद और नापसन्द को निष्किय करना ही उचित होगा!

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  7. सही कह रहे हैं ललित जी । कृपया इसे हमारी वाणी पर टिप्पणी के रूप में भी भेज दें ।

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  8. जय हो । सहगल जी ठी ही फ़रमाते हैं कि - "नापसंद को लेकर मेरी राय ये है कि अगर ये बटन देना भी जरूरी हो तो इसका रिजल्ट सार्वजनिक तौर पर न दिखे सिर्फ पोस्ट लेखक को ही दिखे....अगर ऐसा संभव हो सकता है तो विवाद या जानबूझकर किसी से खुंदक निकालने की प्रवृत्ति पर रोक लग सकेगी । "

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  9. बढिया लिखा है भाई साहब पर हम बिल्कुल नये हैं इसलिये कुछ समझ नहीं आ रहा है पर हफ़्ता-दस दिन में समझ जायेंगे !

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  10. आपके विचारों का पुरजोर समर्थन है .....

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  11. आपसे पूर्णत: सहमत
    ये पसन्द-नापसन्द ही तो जड है सारे फसाद की

    वैसे मैं ब्लागवाणी से बहुत बाद में जुडा था और कभी कभार ही उससे पोस्ट पढता था। फिर भी मुझे जो चाहिये उसे पढ ही लेता था और मेरे ब्लाग पर पाठक तब भी आते थे।

    प्रणाम

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  12. gekj g हमारा काम तो चिठ्ठा जगत से चल रहा है। हमारे ब्‍लाग पर भी लोग आ रहे हैं इसलिए नए ब्‍लाग एग्रीगेटर आते हैं तो उन्‍हें पसन्‍द और नापसन्‍द के चक्‍कर से बचना चाहिए। नहीं तो काम तो बखूबी चल रहा है।

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  13. मेरी नजर में तो चिटठाजगत सही काम कर रहा है फिर ब्‍लागर्स ब्‍लागवाणी को क्‍यूं याद कर रहे हैं? या फिर हमारीवाणी में ब्‍लागवाणी क्‍यूं तलाश रहे?

    इस लिये कि उनको पसंद/नापसंद का खेल चाहिये जो कि सक्षम होते हुये भी चिटठाजगत नहीं दे रहा, अब कोई भी पोस्‍ट डालो कमेंटस का जुगाड करो बस, खेल खत्‍म, पसंद/नापसंद से होता यह है कि पोस्‍ट पब्लिश करने के बाद भी खेल चलता है, दोस्‍तों को फोन करना, मेल करना वगेरा वगेरा, किसी पर नापसंद देख कर हंसना, अपने नापसंद देख कर रोना, झुंझलाना, वही तो ब्‍लागिंग है कि डूबे रहो
    उसी की तलाश है
    उसी की आवश्‍यकता है

    बस यह चीज मिल जाये खुले तौर पर
    यानि हाट लिस्‍ट का क्‍या फंडा है? पलस माइनस की क्‍या रेटिंग है

    या फिर एग्रीगेटर पर लिख दो
    "मेरी मर्जी मैं चाहे यह करूँ, मैं चाहे वह करूँ"

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  14. ललित भाई, आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ।
    पसंद/नापसंद का लफड़ा ही सारे फसाद की जड़ है।
    ................
    अथातो सर्प जिज्ञासा।
    महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?

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  15. सही लिखा..पूरी तरह सहमत हूँ। पसंद-नापसन्द को निष्किय करना ही उचित होगा.

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  16. भई इस विषय में तो हमारी भी सहमति समझिए.....

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  17. नमस्ते ललित जी
    आपने इंडली के बारे में सही कहा |
    यह स्वचालित नहीं है |

    ब्लागजगत में यह जानी मानी बात है की, ज्यादातर लोग जो खुद ब्लॉगर हैं,वहीँ लोग दूसरों के ब्लॉग में टिप्पणियाँ देनेकेलिये उत्सुक रहते है |बाकी लोग , जिनका लगाव सिर्फ ब्लागों को पड़ने तक ही सीमित है |(या फिर टिपण्णी देने में आलस लगे , या उसे जरूरत नहीं समजते ),
    .. ऐसे लोगों को अपना पसंद - नापसंद ज़ाहिर करने केलिए प्रेरित करने का प्रयास हैं |
    इसी वजह से इंडली स्वचालित नहीं है |

    यह हमारा निजी मानना है की कोई भी "स्वचालित" व्यवहार मैं कुछ भी तो "पारस्परिक" नहीं होता |
    और इंडली में, पारस्परिक व्यवहार को अपने ही स्थर में ले जाने के प्रयास में आप सब लोगों का योगदान की आशा रखते है |

    इंडली की तरफ से
    दीपा गोविन्द

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