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शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

आतंक वाद कब तक झेलेगें हम

आजादी को 63 वर्ष हो चुके हैं और हम 64 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं। बंटवारे के बाद काश्मीर को लेकर पनपे विवाद को भी इतने ही वर्ष हो चुके हैं। कबाईलियों के भेष में पाकिस्तान के सैनिक हमले से प्रारंभ हुआ युद्ध घोषित और अघोषित रुप से आज तक निरंतर जारी है।

भारत की सरकार,सेना,और जनता के लिए काश्मीर हमेशा की समस्या बन गया है। हमारे देश की शांति पड़ोसी देशों को भाती नही है। जब भी थोड़ी सी शांति दिखाई देती है वे किसी न किसी प्रकार से अशांति फ़ैलाने का प्रयास करने लगते हैं।

षड़यंत्र करके भारत को विश्व समुदाय के सामने बदनाम करने की नाकाम कोशिश करते हैं। ऐसा पड़ोसी देशों का चरित्र रहा है।

काश्मीर की सरकार हमेशा केन्द्र के दिए पैसे से ही चलती है।कर्मचारियों को वेतन भी केन्द्र सरकार के अनुदान पैकेजों से प्राप्त राशि से ही दिया जाता है।

आज तक सेना के हजारो-हजार जवान काश्मीर की रक्षा एवं उसके अमन चैन को बनाए रखने की भेंट चढ जाते हैं। शहीद हो जाते हैं, उनकी शहादत पर कोई जिक्र नहीं होता, अगर सेना या सुरक्षा दलों की गोली से कोई एक भी आतंकी मारा जाता है तो चारों ओर हा हा कार मच जाता है।

पाकिस्तानी मीडिया हमेशा की तरह झूठे समाचारों को अपने टीवी पर दिखाता है। यह बताता है कि काश्मीर में कितना अधिक अत्याचार सुरक्षा कर्मियों द्वारा किया जा रहा है। पाकिस्तान का यह दुश्चक्र वर्षों से जारी है।

जब देखो तब काश्मीर से सेना हटाने की बात वहां के नेता करते हैं। अपने देश की सेना से इन्हे इतना डर क्यों है?

सेना तो वहां पर नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए है, सरकार के सुरक्षा बलों को सहारा देने के लिए है। इसका मतलब है कि इन नेताओं की आस्था संदिग्ध है। जो भारतीय सेना की उपस्थिति का विरोध करते हैं, वे देशद्रोही ही हैं, क्योंकि सेना उनके भारत विरोधी कार्यों में एक बहुत बड़ा रोड़ा है, जिसे वे हटाकर आजादी से अपने कुत्सित कार्यों में लगे रहना चाहते हैं।

यही देशद्रोही नेता नागरिकों को सरकार और सेना के प्रति भड़काते हैं और अशांति का वातावरण निर्मित करते हैं। जिससे राज्य में शांति व्यवस्था की जगह हमेशा अफ़रा तफ़री का माहौल बना रहे और वे अपनी राजनैतिक रोटी सेंक सके।

इनका उद्देश्य हमेशा रहा है कि घाटी में हालत को इतना बिगाड़ो कि अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर भारत की छवि बिगड़ सके। मीडिया भी वस्तुस्थिति को सही सही समझने में नाकाम हो जाता है, अभी मैने एक समाचार पत्र में कुछ चित्र देखे थे जिसमें बदमाश सुरक्षा बलों की सड़क पर पटक कर पिटाई कर रही है और सुरक्षा बल बेबस हो कर पिट रहे हैं।

ऐसे चित्र दिखा कर मीडिया क्या कहना चाहता है?

यह सब भारतीय सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने की साजिश है जिसमें मीडिया भी भागी बन रहा है। सेना को घाटी से हटाने के लिए दबाव बनाने की एक साजिश चल रही है। जिससे घाटी में खुल कर आतंकवादी अलगाववादी कार्यों को अंजाम दिया जा सके।पाकिस्तानी आतंकवादियों का आगमन निर्बाध हो सके।

आज भी घाटी से भगाए गए 3 लाख काश्मीरी पंडितों की सुनने वाला कोई नहीं है, उनके आंसु पोंछने वाला कोई नहीं है। अपनी मिट्टी से उजड़ कर वे अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन बसर कर रहे हैं। एक बहुत बड़ा समुदाय सामाजिक विकास की दौड़ में पिछड़ रहा है।

अभी जिस तरह से काश्मीर को के अमन चैन को अस्थिर कर वहां से सेना हटाने की मांग उठ रही है,इससे जाहिर होता है कि वहां के अलगाववादी क्या चाहते हैं, सेना के विशेषाधिकार वापस लेने की मांग कर रहे हैं जिससे सेना पंगु हो जाए और आतंकवादी अपने घृणित मंसुबे में कामयाब हो जाएं।

केन्द्र सरकार को इस कठिन परिस्थियों में राष्ट्र हित में सेना हटाने का निर्णय नहीं लेना चाहिए इससे घाटी की स्थिति और भी विकट हो सकती है।
काश्मीर के मसले का सैनिक हल हो या राजनैतिक हल निकालने का प्रयास दृढ इच्छा शक्ति से करना चाहिए, जो भी काश्मीर के खिलाफ़ आतंकवादियों के समर्थन में आवाज उठाए उसे देशद्रोही करार देकर दंड देना चाहिए। देश के अंग में पल रहे इस नासूर का इलाज करना चाहिए। जब कोई एक आतंकवादी मारा जाता है तो मानवाधिकार वादी सांप पिटारी से निकल कर नाचने लगता है, इस सांप को दूध पिलाना बंद कर, इसे पिटारे में ही बंद करके रखना चाहिए। जब तक सरकार कठोर निर्णय नहीं लेगी तब तक काश्मीर की घाटियों में अलगाववादी और देशद्रोही ताकतों को उत्पात करने का बल मिलता रहेगा। हमने 63 वर्षों में अपने लाखों सैनिकों को काश्मीर की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, इस आशय का संकल्प हमें स्वतंत्रता दिवस पर लेना चाहिए।

22 टिप्‍पणियां:

  1. In 63 salon me hamari sarkaren bhee to kashmir ko upeksha hee deti raheen wahan agar industries lagayee jateen aur logon ko rojgar ke behatar awasar uplabdh karaye jate to ye din dekhana nahee padta wahee hal North east ke states ka bhee hai jahan jahan atankwad hai wahan wahan logon kee garibee hai. agar hum kuxh karate to janta Bharat sarkar ke sath hotee.

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  2. कश्मीर के बहाने आयें उस दिन को याद करें ..जब हम न थे और हमारे बुजुर्गों ने क्या किया इस प्यारे देश के साथ !!

    आज़ादी की वर्षगांठ एक दर्द और गांठ का भी स्मरण कराती है ..आयें अवश्य पढ़ें
    विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html

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  3. जब तक राजनीती में छद्म सेकुलर नेता रहेंगे तब तक आतंकवाद न तो ख़त्म होगा और न ही उस पर काबू पाया जा सकेगा | और भारत में ये उम्मीद कम ही है कि इस तरह के राजनेताओं से कभी निजात मिलेगी |
    अब तो इस आतंकवाद के साथ रहने की आदत ही डालनी पड़ेगी देशवाशियों को !

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  4. आतंकवाद के साथ जीना सीख लो..कभी ये तो कभी वो..कल ही आप हमारीवाणी के आंतक से ग्रसित भी नजर अये थे. :)

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  5. समीर जी का भी कथन सही है . अगर हालात यह रहे तो आतन्क के साथ जीना सीखना ही पडेगा . जैसे वियतनाम मे बम गिरते थे लोग मरते थे फ़िर भी कोई फ़र्क नही पडता था .

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  6. काश्मीर के मसले का सैनिक हल हो या राजनैतिक , हल निकालने का प्रयास दृढ इच्छा शक्ति से करना चाहिए .लेख अच्छा है . वन्दे - मातरम

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  7. अभी तो हल कहीं आस पास नजर नही आता। सही आज़ादी दिवस तो उस दिन होगा जब ये मसला हल होगा। धन्यवाद जै हिन्द।

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  8. हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं की तुष्टिकरण नीति ही कारण इस समस्या का कारण है। काश्मीर के महाराज हरीसिंह की सहायता की गुहार पर यदि उन्हें सही प्रकार से सहायता दी गई होती तो न लाखों कश्मीरी पण्डितों को बेघर होकर भटकना पड़ता और न आज ये समस्या ही रहती।

    वोट की राजनीति और तुष्टिकरण नीति के कारण ही आज धरती का स्वर्ग काश्मीर नर्क से भी बदतर बन कर रह गया है।

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  9. इसके कुछ हद तक हम ही जिम्मेवार हम ही चुनते है ऐऐ नेता जो आगे कुर्सी पर बैठकर दलाल बन जाते है।
    बहुत ही मन को छुने वाली पोस्ट है यह आपकी

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  10. सेठक चिंतन ...पर इस पर पहल भी होनी चाहिए ...यदि ऐसे लोगों के लिए दंड की व्यवस्था हो तो शायद कुछ सुधार हो...

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  11. सही कहा जी आपने
    सरकार जब तक कोई कठोर निर्णय नहीं लेगी, तब तक देशद्रोही ताकतों को बल मिलता रहेगा।

    प्रणाम

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  12. कठोर निर्णय लेने या कानून बनाने से क्या होगा ...उन पर अमल भी तो होना चाहिए .

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  13. बहुत सही लिखा है आप्ने...आतँकवाद से पता नहीँ कब मुक्ति मिलेगी...जहाँ तक सैनिको का सवाल है कइ बार उनको रैल से यात्रा करते देखा है उनके व्यवहार से कभी नही लगता कि ऐसे लोग किसी के साथ भी मानवीय व्यवहार कर सकते है....मुझे सन्देह है कि आज के सैनिक सच्मुच देश के लिये जान दे सकते है.

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  14. चोली दामन का साथ है और जिन्दगी भर रहेगा क्योंकि हमारे पूर्वज ( कुछ हरामखोर ) नहीं चाहते थे की हम आगे चलकर चैन से जिए !

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  15. कुछ मसले हल नहीं होने के लिए बढ़ाए जाते हैं. राजनीति नहीं चाहती इसका हल.

    आपके चिंतन से सहमत हूं भईया.

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  16. हमें तो निकट भविष्य में कोई उम्मीद नज़र नहीं आती ।

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  17. मानवाधिकार नहीं ’मानव-धिक्कार’ वाले हैं ये। जो मानवता के दुश्मन हैं, उन्हीं के अधिकार दिखाई देते हैं इन्हें।
    अपने देश की सुरक्षा के रास्ते में जो भी आये, उससे सख्ती से निपटना चाहिये।

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  18. कोन कहता है हल नही, है इस का हल है, कठोर कदम ऊठाना चाहिये लेकिन सरकार मर्दो की हो तो....., या फ़िर जब कोई अंग बेकार हो जाये तो उसे काटना पडता है, तो कशमीर को एक दम से अलग कर दे, भारत की सरकार कोई मदद ना दे, जाये भाड मै, दो दिन मै इन्हे नानी याद आ जायेगी, जो काशमीर पकिस्तान मै है उस के हालात केसे है? लोग नर्क मै जी रहे है, तो इन्हे भी इन की जन्नत दे दो,दो दिन मै यह उसे जहनुम बना देगे ,लेकिन कोन करेगा यह काम सब को चाहिये वोट, ओर नोट

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  19. इन लोगों के क्‍या इरादे हैं आप इस कविता को पढ़कर अंदाज लगा सकते हैं

    आजादी पाने की खातिर अंग्रेजों से नहीं लड़ा था
    मरने वाले थे आगे मैं सबसे पीछे दूर खड़ा था

    देख रहा था मैं गोरों को वतन लूटते हैं कैसे
    दौलत की लत कैसे पनपे कैसे बनते हैं पैसे

    सीख रहा था नमक डालना जनता के हर घाव में
    कसरत तो लाठी डण्‍डों से होती रही चुनाव में

    जनता को बहकाया है बस झूठे झूठे वादों में
    सारा जीवन बीत गया यूं दंगे और फसादों में

    देख देख कर पारंगत हूं कैसे राज किया जाता है
    भोली भाली जनजनता का कैसे खून पिया जाता है

    हो जाए गर ऐसा कुछ मैं भवसागर से तर जाऊं
    राजघाट और विजयघाट सा घाट एक बनवा जाऊं

    सरकारी शमशान घाट पर अपना नाम लिखा जाऊं
    अंतिम इच्‍छा है बाकी बस कुर्सी पर ही मर जाऊं

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