ये तो हमें हमारे बचपन में लेकर चला गया हमें बड़ा प्रिय था और जो सन्देश है वो भी अभी तक हमें तो याद है | मेरी बेटी को भी काफी पसंद है आशा करती हु की जब वो बड़ी हो तो वो भी इसमे दिया गया सन्देश हमेशा याद रखे|
मैंने अनुरोध किया तो कुमार अंबुज जी ने अपनी एक पुरानी कविता भेजी है। यह अब भी सामयिक है (अफसोस) ः- तुम्हारी जाति क्या है कुमार अम्बुज/ तुम किस के हाथ का खाना खा सकते हो/और पी सकते हो किसके हाथ का पानी/चुनाव में देते हो किस समुदाय के आदमी को वोट/ऑफिस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें/और कहॉं ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन बेटियॉं/ बताओ अपने धर्म और वंशावली के बारे में/किस धर्मस्थल पर करते हो तुम प्रार्थनाऍं/ तुम्हारी नहीं तो अपने पिता/अपने बच्चों की जाति बताओ/ बताओ कुमार अम्बुज/इस बार दंगों में रहोगे किस तरफ/और मारे जाओगे किसके हाथों।
मैंने अनुरोध किया तो कुमार अंबुज जी ने अपनी एक पुरानी कविता भेजी है। यह अब भी सामयिक है (अफसोस) ः- तुम्हारी जाति क्या है कुमार अम्बुज/ तुम किस के हाथ का खाना खा सकते हो/और पी सकते हो किसके हाथ का पानी/चुनाव में देते हो किस समुदाय के आदमी को वोट/ऑफिस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें/और कहॉं ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन बेटियॉं/ बताओ अपने धर्म और वंशावली के बारे में/किस धर्मस्थल पर करते हो तुम प्रार्थनाऍं/ तुम्हारी नहीं तो अपने पिता/अपने बच्चों की जाति बताओ/ बताओ कुमार अम्बुज/इस बार दंगों में रहोगे किस तरफ/और मारे जाओगे किसके हाथों।
आमीन। इस वीडियो के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं...bahut sundar ....behatreen post !!!
जवाब देंहटाएंवीडियो नजर नहीं आ रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस वीडियो को कौन भूल सकता है :) आभार.
जवाब देंहटाएंहिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं...........
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsundar
जवाब देंहटाएंराम राम सा
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी अपके ब्लॉग पर से विडियों दिखाई नहीं दे रहा है। क्या खराबी है।
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
बहुत सुंदर लगा चित्र पट जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहिंद देश के निवासी सभी जन एक है
जवाब देंहटाएंफूल हैं अनेक किन्तु माला तो एक है
बहुत सुंदर...ये कोई भूल भी सकता है....?
http://veenakesur.blogspot.com/
ये तो हमें हमारे बचपन में लेकर चला गया हमें बड़ा प्रिय था और जो सन्देश है वो भी अभी तक हमें तो याद है | मेरी बेटी को भी काफी पसंद है आशा करती हु की जब वो बड़ी हो तो वो भी इसमे दिया गया सन्देश हमेशा याद रखे|
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुतई उम्दा किये हो सरकार
जवाब देंहटाएंपर कुछेक ब्लागर हैं फ़ेक ब्लागर
बहुत सुंदर लगा चित्र
जवाब देंहटाएं.........धन्यवाद
मेरे मन्दिर तेरी मस्ज़िद का हो इक दरवाज़ा,
जवाब देंहटाएंपास से चर्च की घण्टी सुनाई दे मुझको
घर बिरहमन के कुराने पाक़ पढ़ी जाए
मौलवी दे दीवाली की बधाई सबको
बहुत ही प्यारा वीडियो है.....यहाँ शेयर करने का आभार
जवाब देंहटाएंपुराने दिनों की यादें ताजा हो गई भाई साहब, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमैंने अनुरोध किया तो कुमार अंबुज जी ने अपनी एक पुरानी कविता भेजी है। यह अब भी सामयिक है (अफसोस) ः-
जवाब देंहटाएंतुम्हारी जाति क्या है कुमार अम्बुज/ तुम किस के हाथ का खाना खा सकते हो/और पी सकते हो किसके हाथ का पानी/चुनाव में देते हो किस समुदाय के आदमी को वोट/ऑफिस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें/और कहॉं ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन बेटियॉं/ बताओ अपने धर्म और वंशावली के बारे में/किस धर्मस्थल पर करते हो तुम प्रार्थनाऍं/ तुम्हारी नहीं तो अपने पिता/अपने बच्चों की जाति बताओ/ बताओ कुमार अम्बुज/इस बार दंगों में रहोगे किस तरफ/और मारे जाओगे किसके हाथों।
मैंने अनुरोध किया तो कुमार अंबुज जी ने अपनी एक पुरानी कविता भेजी है। यह अब भी सामयिक है (अफसोस) ः-
जवाब देंहटाएंतुम्हारी जाति क्या है कुमार अम्बुज/ तुम किस के हाथ का खाना खा सकते हो/और पी सकते हो किसके हाथ का पानी/चुनाव में देते हो किस समुदाय के आदमी को वोट/ऑफिस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें/और कहॉं ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन बेटियॉं/ बताओ अपने धर्म और वंशावली के बारे में/किस धर्मस्थल पर करते हो तुम प्रार्थनाऍं/ तुम्हारी नहीं तो अपने पिता/अपने बच्चों की जाति बताओ/ बताओ कुमार अम्बुज/इस बार दंगों में रहोगे किस तरफ/और मारे जाओगे किसके हाथों।
इस पोस्ट को एक बार फिर ऊपर लाने की जरूरत है। रिपोस्ट कर फिर अपील जारी करने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंHats off to your ideas and hard work.
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