वर्तमान में समाज सेवा का रोग छुतहा रोग बनकर जड़े गहरे पैठा चुका है, जिसको भी देखो वही समाज सेवा करने निकल पड़ा है। कुछ काम धाम नहीं है तो समाज सेवा ही सही। कुछ लोगों के राशन कार्ड में व्यवसाय की जगह समाज सेवा करना लिखा है। इसका सीधा तात्पर्य है कि समाज से बड़ा कोई धंधा नहीं है। हल्दी लगे ना फ़िटकरी रंग चोखा आय। समाजिक आयोजनों में बैठने के लिए ऊंची कुर्सी मिलती है और खाने के लिए नाना प्रकार की जड़ी-बूटी। मान मनुहार अलग से होता है। छोटे-मोटे अधिकारी कर्मचारी उपर से सलाम अलग ठोकते हैं।
कुछ लोग समाज सेवा शौक से करते हैं तो कुछ लोग बेरोजगारी के मारे समाज सेवा में लग जाते हैं, नही से कुछ भी सही। कुछ लोग समाज सेवा अपना जीव – प्राण बचाने के लिए करते हैं। समाज सेवा का व्यवसाय शुरु करने के लिए कुछ ज्यादा पूंजी की जरुरत नहीं पड़ती। बस किसी तथाकथित नामी गुरु के चेले का वेश धारण कर लो। उसकी फ़ोटो अपने पूजालय में लगा लो। उसकी फ़ैक्टरी की अगरबत्ती-धूप, आयुर्वेदिक दवाई, पुस्तकें, पेन, की रिंग, बेचने लग जाओ। गुरुजी की फ़ोटो लगा एक गांधी झोला और दुपट्टा धारण करो और समाज सेवा का धंधा शुरु।
प्रज्ञा नगर के एक हमारे मित्र बहुत ही हलाकान रहते थे। सरकारी नौकरी में थे, हल्के के पटवारी थे। आप तो जानते ही हैं एक पटवारी का गाँव में कितना रुतबा होता है। 100 एकड़ का किसान भी उसे सैल्युट करता है। क्योंकि क्या पता उसकी जमीन कब किसके खाते में चढाकर गायब हो जाए। लड़ते रहो फ़िर कोर्ट में दीवानी मुकदमा कई पीढियों तक। लेकिन गिरधारी (पटवारी) साहब भी कुछ लोगों से परेशान रहते थे। जब से नौकरी लगी तब से उनकी उपर की आमदनी बढ गयी थी। उनके पास बरसते हुए पैसे की भनक कुछ नेता और पत्रकारों को लग गयी। बस जब देखो तब ये उसके पास पहुंच जाते और खर्चा पानी लेकर टलते। दुसरी तरफ़ चंदा लेने वालों की भरमार। कभी गणेश के लिए चंदा तो कभी दुर्गा पूजा, कभी दशहरा, दीवाली और होली का चंदा। जितनी मेहनत और मगज मारी करने के बाद इन्हे ऊपर की रकम मिलती थी उसे लोग इस तरह लूट ले जाते थे।
एक दिन प्रज्ञा नगर में बड़े महात्मा का प्रवचन हुआ। गिरधारी के घर के पास पंडाल लगा था तो वे भी बैठकर सुनते थे। उनकी प्रज्ञा जाग गयी। गिरधारी ने देखा कि बड़े-बड़े नेता, अफ़सर और मंत्री महात्मा के प्रवचन में आ रहे हैं और पैर छूकर आशीर्वाद ले रहे हैं। महात्मा के चरणों में विराज मान हो रहे हैं। गिरधारी की छठी इन्द्री ने तुरंत काम किया। उसने भी पत्र-पुष्प लिए और जाकर महात्मा जी के चरण पकड़ लिए कि महाराज मुझे भी चेला बना लीजिए। गुरु जी ने लाल वाले नोट की चढोतरी देख कर फ़ूंक दिया कान और बना लिया चेला। बस फ़िर क्या था, गिरधारी की पांचो उंगलिया घी में और मुड़ कड़ाही में।
गुरुजी के आशीष से मंत्रियों के साथ फ़ोटो खिंचवा कर लगा ली बैठक में और अब जो भी आता चंदा वाला वो फ़ोटुओं को देखकर ही वापस चला जाता। गिरधारी की पहुंच ऊपर तक नजर आती। अब सारे मंत्री उनके गुरु भाई बन चुके थे। साल में गुरुजी के नाम का भंडारा करवा देते और गुरु भाई मंत्रियों को बुला लेते भंडारे में। इस तरह उनकी धाक जम गयी। समाज सेवी भी हो गए। आम के आम गुठली के दाम। अब दिन भर ज्ञान बांटना उनका काम हो गया। जिन लोगों से पहले ये डरते थे और देखते ही भाग कर छुप जाते थे वे अब इन्हे देख कर छुप जाते हैं कहीं गुरुजी के आश्रम के चंदे की रसीद बुक न निकाल ले। इसे ही कहते हैं "जब से कान फ़ुंकाए पटवारी, तब से मजा करे गिरधारी।"
ऐसे लोग हर जगह देखने मिल जाते हैं ...सही कहा..जब से कान फ़ुंकाए पटवारी, तब से मजा करे गिरधारी।
जवाब देंहटाएंbilkul sahee kaha
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कहानी सुनाई आपने ! आजकल हकीकत में एसा ही होता है |
जवाब देंहटाएंवर्तमान समाज पर रोचक और मजेदार बात बताई गयी |
जवाब देंहटाएंऐसा होता तो है ...!
जवाब देंहटाएंसार्थक और सराहनीय विचारों से भरी प्रस्तुती..वास्तव में एक सबसे जटिल कार्य जिसका नाम समाज सेवा है को लोग आज मसखरापन के रूप में करना चाहतें हैं ..जबकि यह काम अगर ईमानदारी से किया जाय तो व्यक्ति को अपना सबकुछ छोड़ना परता है ...ऐसे समाज सेवकों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है जो सही मायने में समाज को ईमानदारी से सही राह दिखा सके ....
जवाब देंहटाएंछठी इन्द्री अक्सर कमाल दिखा जाती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे पटवारी जी...
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा
जवाब देंहटाएंपर ध्यान रखने वाली बात यह है कि किसी भी ऐरे-गैरे साधु से कान फुँकवाने से मजा नहीं मिलने मिलने वाला, मजा तो तभी मिलेगा जब किसी सरकारी संत से कान फुँकवाया जाए।
आज के समय में समाज-सेवा कुछ लोगों के लिए एक प्रकार का 'कुटीर -उद्योग 'है. यही कारण है कि सच्चे -मन से जन-सेवा करने वाले विलुप्त होते जा रहे हैं . पटवारी के बहाने एक उम्दा व्यंग्य का अच्छा प्रस्तुतिकरण . बधाई और आभार .
जवाब देंहटाएंललित भाई, इसी बहाने मुहावरों की कथा का सुंदर रूप देखने को मिला। आभार।
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वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
सही कहा ..यही हाल है आजकल.
जवाब देंहटाएं... बहुत खूब ... बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंमजा आ गया जी , कहा रहते हे यह गुरु महत्मा हमे भी पता भेज दे,:) धन्यवाद
जवाब देंहटाएं" कान फ़ुंकाए पटवारी, तब से मजा करे गिरधारी " आनंद आ गया .. बहुत सही ...
जवाब देंहटाएं" कान फ़ुंकाए पटवारी, तब से मजा करे गिरधारी " पटवारी के बहाने एक उम्दा व्यंग्य badhai.
जवाब देंहटाएंकहां से प्रेरणा मिलती रहती है आपको. अच्छा-अच्छा... आपके इर्द-गिर्द तो अब आश्रम भी कई हैं.
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंएक कहावत का रूप उठाकर सामाजिक शल्य-चिकित्सा ही कर डाली आपने !
दिलचस्प ! और भी कई मुहावरों का प्रयोग सहज गति को बढ़ा रहा है ! आभार !
बढिया फिलोसोफी है...........
जवाब देंहटाएंबहुते सटीक, दुर्गा अष्टमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
sahi he lekin patwari itna bura nahi hota bhai
जवाब देंहटाएंWonderful Information.
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