आरम्भ से पढ़ें
ट्रेन शनै:-शनै: सरकती है चित्तौड़ की ओर, रास्ते में जलती हुई बत्तियाँ कह रही हैं कि आगे कोई इंतजार कर रहा है तुम्हारा, इसलिए आज राह-ए-रौशन की हुई हैं जिल्ले इलाही ने।
लगभग चार घंटे का सफ़र और आँखों में नींद। सोने का प्रयास करता हूँ, डर भी है अगर सोता रह गया तो उदयपुर पहुंच जाऊंगा। चलो कोई बात नहीं उदयपुर पहुंच भी गया तो बहुत मित्र हैं पुरानी यादें नयी हो जाएगीं। यही सोचते सोचते एक झपकी आ जाती है।
जब आँख खुलती है तो गाड़ी चंदेरिया पहुंच चुकी होती है। बस अगला स्टेशन चित्तौड़गढ ही है। वहाँ गाड़ी अपने समय से लगभग डेढ घंटे विलंब से पहुंच रही है।
हैंड बैग से मोबाईल निकालता हूँ तो पद्मसिंग की 3 मिस कॉल दिखाई देती है। मैं फ़ोन करके उसे बताता हूं कि सो गया था। गाड़ी चंदेरिया पहुंच चुकी है। रास्ते भर बरसात होते रही। गुना कोटा और चित्तौड़ तक। पद्मसिंग ने बताया कि वे स्टेशन पहुंच चुके हैं। जब तक बोगी के विषय में बताता नेटवर्क चला गया था।
पुरानी यादें चित्तौड़ग़ढ की आने लगती हैं चित्रपट की तरह। मैं 20 वर्ष पूर्व रघुनाथ जी राजपुरोहित के साथ उदयपुर से बस से आकर भीलवाड़ा जाने के लिए काचीगुड़ा एक्सप्रेस का इंतजार कर रहा था।
प्लेट फ़ार्म पर गर्मी के दिनों में ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। रात के कोई एक बज रहे थे। आँखों की नींद अब बैठने नहीं दे रही थी। स्टेशन के सामने साफ़ सुथरी जगह थी। कुछ लोग चाय दुकान में बैठकर बीड़ी फ़ूंक रहे थे। अनजान जगह में भी मैं अखबार का बिछौना कर सिरहाने बेग लगाकर फ़ुटपाथ पर ही सो गया।
वैसे निश्चिंतता की नींद आज तक नहीं आई। बेफ़्रिक होकर सोया। अब वही स्टेशन फ़िर आने वाला है। बस कयास लगाए जा रहा था कि इंदू और पद्मसिंग दोनो को पहचान लुंगा। इतना तो तय था।
ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर पहुंची, हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही है। मैने मीरा दीवानी की धरती पर पहला कदम वैसे ही रखा जैसे नीलआर्मस्ट्रांग ने चाँद पर रखा होगा।
मैने दूर से ही सवा छ:फ़ुटे पद्मसिंग को देख लिया भीड़ में,लेकिन इंदू कही दिखाई नहीं दी। मैने आवाज देकर हाथ हिलाया। पद्मसिंग मेरी ओर चल पड़े।
जब भीड़ से बाहर निकले तो दिखा इंदू भी साथ थी। बस इन्होने देखते ही गले लगा लिया। माँ भाई बहन आदि रुप सारे यहीं देखने मिल गए।
शायद पिछले जन्मों का ही कोई रिश्ता है जो इतनी दूर खींच ले गया। प्रेममयी वात्सल्य की देवी से साक्षात मिल रहा था। जिसके ह्र्दय में हर प्राणी के लिए अथाह प्रेम का सागर हिलोरें लेता है कहुंगा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
अद्भुत अनुभव था। निम्बाहेड़ा घर पहुंच कर पूरा परिवार मिल गया। बहुत सारी बातें होते रही है जैसे सारी बातें अभी ही एक दुसरे को कह देंगे। कल समय मिले या न मिले।
वहां और भी ब्लागर्स का इंतजार था, जिनके चित्रों के साथ कमरे बुक थे। समीर दादा, महफ़ूज, सतीश सक्सेना, इत्यादि के लिए भी। एक फ़्लैट ब्लागर हाऊस ही बना रखा था और सजावट देख कर तो कई रिश्तेदारों के सीने पर सांप लोट गए होगें।
उन्होने भी सोचा होगा कि ये ब्लागर क्या बला है भाई, क्या रिश्ते-नातेदारों से भी बढकर हो गए? हा हा हा ऐसा ही कुछ था, जो मुझे महसूस हुआ। लेकिन हमारी तो चूल्हे तक पहुंच थी। इसलिए नो टेंशन।
शादी के घर में 11 बजे तक तो यूं ही गप्पें मारते रहे जैसे कि किसी को कोई चिंता ही नही है और शाम को शादी है। बस बिंदास बोल हा हा हा।
ठहाके ब्लॉगर हाऊस की छत से टकरा कर फ़र्श पर गिरते रहे। ढेर लग गया ठहाकों का। सिर्फ़ ठहाके ही ठहाके गुंजते रहे। शादी के बाद सभी को सीख में ठहाकों का वितरण किया जाएगा ऐसा लग गया था।
उन्होने भी सोचा होगा कि ये ब्लागर क्या बला है भाई, क्या रिश्ते-नातेदारों से भी बढकर हो गए? हा हा हा ऐसा ही कुछ था, जो मुझे महसूस हुआ। लेकिन हमारी तो चूल्हे तक पहुंच थी। इसलिए नो टेंशन।
शादी के घर में 11 बजे तक तो यूं ही गप्पें मारते रहे जैसे कि किसी को कोई चिंता ही नही है और शाम को शादी है। बस बिंदास बोल हा हा हा।
ठहाके ब्लॉगर हाऊस की छत से टकरा कर फ़र्श पर गिरते रहे। ढेर लग गया ठहाकों का। सिर्फ़ ठहाके ही ठहाके गुंजते रहे। शादी के बाद सभी को सीख में ठहाकों का वितरण किया जाएगा ऐसा लग गया था।
दोपहर में बरसात शुरु थी और हम आदित्य बिरला सीमेंट के चीफ़ श्री तिवारी जी के निमंत्रण पर फ़ैक्टरी देखने गए। हमारे साथ इंदू की मुंबई से आई सहेली और उनके पतिदेव उनका भाई प्रत्युष और भतीजी पिऊ, पद्मसिंग और उनकी बेटी नेहा भी थी।
प्लांट में पहुंचने से पहले हमे नए नकोर हेलमेट दे दिए। मन तो था कि हेलमेट साथ घर भी ले चलूं क्योंकि 20 दिन के बाद घर पहुंचने पर इसकी जरुरत पड़ सकती थी।
नहीं ला सका। उसके लिए हमने दूसरी जुगत भिड़ा ली थी। इसके विषय में बाद में बताऊंगा। शायद किसी के काम आ जाए। अपने चेम्बर में तिवारी जी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया और सबसे पहले सीमेंट बनाने की प्रक्रिया और प्लांट के विषय में व्हाईट बोर्ड पर समझाया।
यहां विद्युत का निर्माण भी होता है। इनका अपना पावर प्लांट भी है। इसके बाद हमने पुरा पावर प्लांट और सीमेंट प्लांट देखा। पानी लगातार बरस रहा था। कार में बैठे बैठे ही प्लांट के चक्कर काटते रहे। दोपहर के खाने पर हम घर पहुंचे।
प्लांट में पहुंचने से पहले हमे नए नकोर हेलमेट दे दिए। मन तो था कि हेलमेट साथ घर भी ले चलूं क्योंकि 20 दिन के बाद घर पहुंचने पर इसकी जरुरत पड़ सकती थी।
नहीं ला सका। उसके लिए हमने दूसरी जुगत भिड़ा ली थी। इसके विषय में बाद में बताऊंगा। शायद किसी के काम आ जाए। अपने चेम्बर में तिवारी जी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया और सबसे पहले सीमेंट बनाने की प्रक्रिया और प्लांट के विषय में व्हाईट बोर्ड पर समझाया।
यहां विद्युत का निर्माण भी होता है। इनका अपना पावर प्लांट भी है। इसके बाद हमने पुरा पावर प्लांट और सीमेंट प्लांट देखा। पानी लगातार बरस रहा था। कार में बैठे बैठे ही प्लांट के चक्कर काटते रहे। दोपहर के खाने पर हम घर पहुंचे।
शाम अपूर्वा की शादी थी। लेडिज संगीत भी, भोजन के साथ साथ हमारे लिए टीचर्स का भी इंतजाम था और फ़िर डांस का। अरे कहें तो नाच-नाच के धरती फ़ोड़ दी।
वो तो 53 ग्रेड बिरला सीमेंट का कमाल था वरना समारोह स्थल का स्टेज भी टें बोल जाता। बिरला सीमेंट वाले अपने ग्रेड की क्वालिटी इसी तरह चेक करते हैं जिससे गुणवत्ता बनी रहे।
पद्मसिंग और हमने भी साथ दिया, बस मत पूछो। इंदू दिल खोल कर नाची। शायद ही मैने किसी शादी का इतना आनंद लेते किसी को देखा हो। जिसके घर में शादी होती है वह तो बरसों से बोझा लाद कर रखता है खोपड़ी पर। जाने हरक्युलिश ने सारी धरती सिर पर उठा रखी हो।
यहां छोटे से कस्टम से शादी सम्पन्न हुई। फ़िर संगीत की महफ़िल जमी, गीत चलते रहे, पद्म सिंग ने भी गाए। मेरे से बस यही एक काम नहीं होता फ़िर भी मैने साथ दिया। शादी की कमेंट्री पद्म सिंग सुनाएगे। हम कल आपको चित्तौड़गढ ले चलेंगे रानी पद्मनी से मिलाने। आगे पढ़ें
अपडेट -- पद्मसिंग की पोस्ट एक घर,दो जोड़े,तीन दिन,चार शादियाँ और पाँच ब्लॉ्गर
वो तो 53 ग्रेड बिरला सीमेंट का कमाल था वरना समारोह स्थल का स्टेज भी टें बोल जाता। बिरला सीमेंट वाले अपने ग्रेड की क्वालिटी इसी तरह चेक करते हैं जिससे गुणवत्ता बनी रहे।
पद्मसिंग और हमने भी साथ दिया, बस मत पूछो। इंदू दिल खोल कर नाची। शायद ही मैने किसी शादी का इतना आनंद लेते किसी को देखा हो। जिसके घर में शादी होती है वह तो बरसों से बोझा लाद कर रखता है खोपड़ी पर। जाने हरक्युलिश ने सारी धरती सिर पर उठा रखी हो।
यहां छोटे से कस्टम से शादी सम्पन्न हुई। फ़िर संगीत की महफ़िल जमी, गीत चलते रहे, पद्म सिंग ने भी गाए। मेरे से बस यही एक काम नहीं होता फ़िर भी मैने साथ दिया। शादी की कमेंट्री पद्म सिंग सुनाएगे। हम कल आपको चित्तौड़गढ ले चलेंगे रानी पद्मनी से मिलाने। आगे पढ़ें
अपडेट -- पद्मसिंग की पोस्ट एक घर,दो जोड़े,तीन दिन,चार शादियाँ और पाँच ब्लॉ्गर
ऐसे ही स्नेह बनाए रहें
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर...वाकई में ब्लॉग के रिश्ते दिल को छूने वाले हैं.......लगता ही नहीं कि अजनबी हैं..
जवाब देंहटाएंचित्रों के साथ कमरे बुक होने की बात खूब रही.
जवाब देंहटाएंब्लागर हाऊस बने फ़्लैट की सजावट देख कर कई रिश्तेदारों के सीने पर सांप लोट गए होगें। उन्होने भी सोचा होगा कि ये ब्लागर क्या बला है भाई, क्या रिश्ते-नातेदारों से भी बढकर हो गए?
जवाब देंहटाएंवाकई में ब्लॉग के रिश्ते दिल को छूने वाले हैं।
आपकी यात्रा में हम भी साथ-साथ चल रहे हैं
बढ़िया एवं रोचक विवरण...
जवाब देंहटाएंब्लोगरों में ऐसा स्नेह देख कर अच्छा लगा
बहुत बढिया प्रस्तुतिकरण .. आपकी यात्रा में हमलोग साथ ही चल रहे हैं .. जारी रखिए !!
जवाब देंहटाएंब्लाग रिश्ते का सचित्र यात्रा वृतान्त खूब भायो भैया जी
जवाब देंहटाएंपढ़कर आनन्द आ गया। चित्र देखकर तो ब्लॉगर बन्धु अभिभूत हो गये।
जवाब देंहटाएं... dhamaakedaar va paarivaarik abhivyakti ... blogger house ... svaagat yogy ... behatreen post !!!
जवाब देंहटाएंmene galti kar di thoda let aakar
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
आनन्द आया सारा विवरण जानकर..अफसोस न पहुँच पाने का.
जवाब देंहटाएंअपनी तो बस यही दुआ है की लोग यूँ ही मिलते रहें, प्रेम यूँ ही बढ़ता रहे....
जवाब देंहटाएंख़ुशी हुई पढ़कर...
प्रेमरस.कॉम
रोचक संस्मरण, हम पढ़ रहे हैं भईया, अगली पोस्ट का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंयहां तो हिन्दी ब्लॉगर दीवाने कहाने लगे हैं
जवाब देंहटाएंजब दोबारा से इतिहास लिखा जाएगा तो
ब्लॉगर हाउस का नाम स्वर्णिम अक्षरों में
दर्ज किया जाएगा, दिल की देहरी पर तो
अर्ज हो ही चुका है
अनंत ब्लॉगर, ब्लॉगर कथा अनंता।
एक कथा यहां भी है
शनिवार को गोवा में ब्लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्लॉगर सम्मेलन
वैसे पूरी नहीं परी कहिए
जवाब देंहटाएंआओ बंधु, गोरी के गांव चलें
रात देर तक बतियातीं रही ताई बहुत पावन हैं
जवाब देंहटाएंउनको नमन
आलेख भी ज़बरदस्त है
जवाब देंहटाएंबदिया है......ऐसे रिश्तों को निभाने के लिए जिस उर्जा की जरूरत पड़ती है है ललित जी वो आपमें भरपूर है.
जवाब देंहटाएंब्लाग जगत का ये प्रेम बना रहे। बहुत अच्छी रिपोर्ट है बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण लगे. .... आनंद आ गया ...
जवाब देंहटाएंपद्म सिंह जी के ब्लॉग पर भी पढ़ लिया और आपके यंहा भी | आगे की कड़ी का इन्तजार है |
जवाब देंहटाएंबढ़िया एवं रोचक विवरण...
जवाब देंहटाएंरिश्तेदारों को छोड़ दीजिये ..... हमारे सीने पर भी सांप लोट रहे है !!
जवाब देंहटाएंगजब आप और गजब आपकी पोस्ट !
और सब से गजब इंदु दी !
जय हो !!
अच्छा लगा इंदुजी की व्यवस्था को जानकर ..
जवाब देंहटाएंयादगार संस्मरण !
चित्तोड,ब्लोगर हॉउस,चित्रों से सजी दिवार, वात्सल्य स्नेह, खाना पीना, संगीत,डांस ......सांप तो जी हमारे सीने पर लोट रहे हैं ...बस कीजिये कितना जलाएंगे ?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण लगे..बधाई।
जवाब देंहटाएंaek pyaar bhraa jivnt khubsurt vivrn ke liyen mubark ho . akhtar khan akela kota rajthan
जवाब देंहटाएंसुन्दर विवरण ।
जवाब देंहटाएंकमरे में लगे चित्र हैरान कर रहे हैं ।
अति सुंदर व रोचक विवरण.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आप तो ब्लाग जगत के राहुल सासंस्कृतायन हैं ...
जवाब देंहटाएंभाई ललित जी ... जब मैंने ब्लोगिंग शुरू की थी तो शायद जो पहला चेहरा मेरे जेहन में चढ़ा था वो बड़ी बड़ी मूंछों और चश्मे वाला चेहरा था... सच मानिए गुण्डा ही माना था मैंने .. लेकिन आप का सानिध्य मेरे लिए अविस्मरणीय बन गया है... पोस्ट थोड़ा जल्दी में लिखी हुई और संक्षिप्त सी लगी ... लेकिन अगली कड़ी मिलेगी इसका संतोष है..
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त आलेख और सुंदर चित्र
जवाब देंहटाएंब्लाग जगत का ये प्रेम बना रहे।
जवाब देंहटाएंयादगार संस्मरण !
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख ,रोचक वृतांत .धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंभाई जी अच्छा लगा आपका यात्रा वृतांत पढ़ कर । अच्छी पोस्ट , आप शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ" में आये अच्छा लगा । आशा है आपका स्नेह इसी तरह प्राप्त होता रहेगा । धन्यवाद - आभार ।
जवाब देंहटाएंइन्दुजी के आतिथ्य सत्कार को जान कर अच्छा लगा ....उनको बधाई और शुभकामनायें ....बहुत प्रवाहमयी यादें लिखी हैं ...
जवाब देंहटाएंअब तो विस्तार से परिचित हो गए ! आज ही सतीश सक्सेना जी के यहाँ भी जिक्र देखा ! आभार !
जवाब देंहटाएंअरे किसी रिश्तेदार के सीने पर सांप नही लौटा भई.आपने देखे नही और मैंने फोटो लिए नही शायद किसी ने लिए हो .लिए होंगे तो जरूर पोस्ट करूंगी. मैंने सबके रूम्स इसी तरह सजाये थे.मेरी भतीजी मेरी बहुत लाडली है -अंजली उफ़ मिका- उसके कमरे की थीम 'लिटल फैरिज़' थी.नीले रंग के परदे बेडशीट्स के साथ मैंने नीले रंग में सजे नन्हे नन्हे 'लिटिल एन्जिल/फैरिज़' के फ्लेक्स लगाए थे.
जवाब देंहटाएंदामाद जी के कमरे को मैंने पिंक कलर के पर्दों बेडशीट्स ,दोर्मेट्स और अपनी बेटी के फोटोज तथा दोनों के सगाई के फोटो के फ्लेक्स बना कर लगाये थे.बहु के कमरे में बारात,डोली ,दुल्हन की कशिदकरी की हुई बेडशीट्स ,दुल्हन के फ्लेक्स,उसके यानि बहु डोली के और बेटे आदित्य के फ्लेक्स से सजाया था.उनके परेंट्स के लिए येलो कलर का उपयोग किया और पीले फूलों के फ्लेक्स लगाये.वे पूजा पाठ बहुत करते है सो उनके कमरे को राधा,करीसहन के फोटोज से सजाया.कुछ मेहमानों रिश्तेदारों के रूम की थीम 'चाँद' था .सो सफेद पर्दे,चादरें और चाँद से सम्बन्धित फ्लेक्स लगाए.किसी को इग्नोर नही किया.मेरे लिए हर रिश्तेदार वी.आई.पी. था.इसलिए उन्हें कहीं ऐसा महसूस होने ही नही दिया कि मेरे लिए कोई ज्यादा खास है.मेरे लिए मेरे घर आया हर व्यक्ति खास होता है.इसलिए सबने हर पल को इंजॉय किया और बहुत खुश हो कर गए.
गुजराती,राजस्थानी ट्रेडिशनल लुक वाले घर के 'पार्ट' को लोगो ने बहुत पसंद किया.इन सब चीजों का मुझे बहुत शौक है.क्या करू? ऐसिच हूँ मैं तो.
हा हा
इंदु जी की शख्सियत ही इतनी जिंदादिल है...पल भर में किसी को अपना बना लेती हैं और ज़िन्दगी तो क्या भरपूर जीती हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया विवरण
पढ़कर आनन्द आ गया...बहुत ही बढ़िया विवरण..!
जवाब देंहटाएंmaan gaye ustaad....iss mamale men to bhai, kaiyon k ustaad ho......
जवाब देंहटाएंवाह हमें भी शादी में घुमा लाए भई आप तो
जवाब देंहटाएंबहुत प्यार है स्नेह मई में ललित भाई और ललित जैसे कद्रदानो का भी जवाब नहीं ! इन पर एक लेख लिख रहा हूँ ! पढियेगा शायद पसंद करोगे !
जवाब देंहटाएंyaaden taza ho gai...........pabla bhaiya aur maaoo ko lekr yahan aa jao lalit bhaiya!
जवाब देंहटाएं