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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

रोहतक से विदाई और राम त्यागी का स्वागत

आरम्भ से पढ़ें 
रोहतक के तिलियार में राज भाटिया जी ने साबित कर दिया कि वे यारों के यार हैं। लोगों के पास अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिए मिलन कार्यक्रम करने का समय और साधन नहीं होता। लेकिन राज भाटिया जी ने ब्लागर्स से मिलने के लिए दिल खोल कर खर्च किया।

हमने 2000 किमी से आकर मुफ़्त का खाया भी और पीया भी। इतना तो हक बनता है यारों। भाटिया जी ने मुझे एक बीयर का जग भी दिया। जिसमें बीयर ज्यादा देर तक ठंडी रहती है। अब उसका उपयोग गर्मी के मौसम में करेंगे। राज भाई साहब को हम धन्यवाद देते हैं।

अंतर सोहिल (अमित गुप्ता जी) ने भाटिया जी का साथ हनुमान की तरह निभाया। कम समय में अच्छा आयोजन करके अपनी काबलियत सिद्ध कर दी। बाकी ब्लागर परिवार मिलन की रिपोर्ट सभी पढ ही चुके हैं। 

अगले दिन सुबह ही हम बस से रिवाड़ी के लिए चल पड़े। रेवाड़ी के लिए सीधी बस न होने के कारण पहले झज्जर गए। वहाँ से महेन्द्रा की युटीलिटी में लटक कर गुरावड़ा पहुंचे। वहाँ से टैक्सी से रिवाड़ी पहुंच गए। रिवाड़ी में विवाह समारोह में शरीक हुए।

शादियों का भी अलग ही आनंद हैं। बुड्ढे हो या जवान सभी “हट जा ताऊ पाच्छै नै” वाले रोल में फ़िट थे। बुड्ढा सड़क पै नाच्चै था और छोरे डी जे पे। बुड्ढा जब कतई फ़ुल्ल टुन्न हो गया तो डी जे पे पहुंच गया। छोकरों ने उस नवजवान बुड्ढे को कूट दिया। हो गया  हंगामा खड़ा।

बुड्ढे ने भी जवानों को नम्बर वन की धमकी दी और रायल चैलेंज किया। बड़ी मुस्किल से किंगफ़िशर से मामला शांत हुआ। उसके बाद बुड्ढा प्लेट समेत ही प्लेटफ़ार्म पर आ लिया। ये फ़ोटो उसे बिना सूचित किए,चित्त होते समय ली गयी है। इसलिए स्पष्ट नहीं है। वह सीधा मुंह के बल गिरा। पगड़ी - वगड़ी सबकी वाट लयी। धोती खुल गयी। बच्चे देख कर हंगामा करते रहे ताली बजाते रहे। फ़िर कोई उसे उठा कर ले गया। जब हजम ही नहीं होती तो फ़िर क्यों इतना पीते हैं लोग?

गुड़गाँव पहुंचने पर राम कुमार त्यागी जी का फ़ोन आया कि वे अमेरिका से फ़्लाईट में सवार हो रहे हैं। 26 तारीख को सुबह साढे चार बजे दिल्ली इंटनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचेगें और बताया कि उनका अमेरिका वाला फ़ोन बंद  हो जाएगा।

इन्डिया वाला नम्बर उनके पास है नहीं। अगर हम एयरपोर्ट पर जाते हैं तो फ़िर मुलाकात कैसे होगी। मेरी पास भी लम्बी कार आ गयी थी गुड़गाँव में। तो विचार किया कि निजामुद्दीन रेल्वे स्टेशन पे मिलेंगे। समता एक्सप्रेस से ग्वालियर जाएंगे।

मैने कहा “ये ठीक रही। और खुशदीप भाई को फ़ोन पर जानकारी दी। साथ ही उन्हे ये भी कहा था कि अगर सुबह नींद नहीं खुले तो कोई बात नहीं। मैं निजामुद्दीन पहुंच जाऊंगा।

ट्रेन साढे सात बजे सुबह प्लेटफ़ार्म पर लग जाती है। इसलिए मैं जल्दी ही स्टेशन की तरफ़ चल पड़ा। दिल्ली में सुबह सुबह धुंध में रास्ता नजर नहीं आ रहा था।

स्टेशन पहुंच कर मैने प्लेटफ़ार्म टिकिट खरीदी और प्लेट फ़ार्म का एक चक्कर लगाया तो कोई नजर नहीं आया। मैं एक नम्बर प्लेटफ़ार्म पर फ़िर चला आया।

तभी खुशदीप भाई का फ़ोन आ गया कि वे भी निजामुद्दीन पहुंच चुके है। इसे कहते हैं ब्लागर परिवार। हम छत्तीसगढ से आकर राम त्यागी से मिल रहे हैं और खुशदीप भाई रात को दो बजे सोकर सुबह जल्दी उठकर नोएडा से निजामुद्दीन पहुंच रहे हैं।

कमाल हो गया भई। उन्होने बताया कि वे प्लेटफ़ार्म नम्बर तीन पर ही हैं। हमने खुशदीप भाई को ढूंढा। लम्बे आदमी का ये फ़ायदा है कि दूर से ही दिख जाता है और दूर तक देख लेता है।

अब बात ये आई की पहचानेंगे कैसे? ब्लाग की फ़ोटो में भी चेहरा साफ़ नजर नहीं आता टोपी के कारण। मैने कहा पहचान लेगें।

प्लेटफ़ार्म पर एक बंदा दिखाई दिया एक बच्चे और बीबी के साथ। खुशदीप भाई ने कहा कि ये होगा। इससे पूछ लेते हैं। मैने कहा कि ये राम त्यागी नहीं है। उसके सामान पर फ़्लाईट के टैग लगे होगें।

बस जी कान्सेप्ट क्लियर हो गया। बात जच गयी। आगे बढने पर एस 9 के सामने एक मेडम खड़ी थी और बहुत सारा सामान था। बड़े-बड़े बैग और दो बच्चे साथ में।

मैने खुशदीप भाई से कहा कि यही हैं। चलो थोड़ी मजाक हो जाए। हमने पास पहुंच कर सुटकेश पकड़ लिए और बोले –“ मैडम कुली, कुली।“ मैडम ने कहा कि “ कुली की जरुरत नहीं है। हमने कहा कि-“ हम सामान मुफ़्त में चढा देंगे।

तब तक राम त्यागी डिब्बे से बाहर आ गए। हमें देखकर बोले – ये अपने ब्लागर्स मित्र हैं। फ़िर हमने सबने मिलकर सूटकेश और अन्य सामान ट्रेन में चढा दिया। बच्चों से बात की। दो सुंदर बच्चे मिले सुबह सुबह। प्लेट फ़ार्म पर बात करते रहे।

राम त्यागी शायद अभी तक को वापस अमेरिका पहुंच गए होगें। ट्रेन चल पड़ी थी। हमने चलती ट्रेन में बच्चों को चढाया। आधा घंटा कब निकल गया पता ही नहीं चला। खुशदीप भाई वापस नोएडा की तरफ़ चले गए और हम जाम में फ़ंस कर 11 बजे गुड़गाँव।

हमारी नानी गुजर गयी थी। इसलिए हमें एक बार वहां फ़िर जाना था। और अगले दिन 27 को 11 बजे हमारी चेन्नई के लिए फ़्लाईट थी। अब हम जा रहे थे उत्तर से दक्षिण की ओर। आगे  पढ़ें 

26 टिप्‍पणियां:

  1. बुड्ढे ने जवानों को नम्बर वन की धमकी दी और रायल चैलेंज किया। बड़ी मुस्किल से किंगफ़िशर से मामला शांत हुआ।

    सारा कांसेप्ट ही किलयर हो गया जी :-)

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  2. हम छत्तीसगढ से आकर राम त्यागी से मिल रहे हैं और खुशदीप भाई रात को दो बजे...उठकर नोएडा से निजामुद्दीन पहुंच रहे हैं। कमाल हो गया भई।

    और लोग कहते हैं कि यह ब्लॉग परिवार वगैरह फालतू बात है!

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  3. खुशमिज़ाज़ अंतर सोहिल से हमारी भी मुलाकात हुई, एक अजीब से सिलसिले के साथ।

    इसका खुलासा फिर कभी :-)

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  4. यात्रा विवरण की बढ़िया श्रंखला चल रही है :)

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  5. आपका व्यक्तित्व भी ऊँचा है, कद की तरह।

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  6. ये ताऊ का किस्सा तो मजेदार रहा ।
    राम मिलन पहले भी पढ़ चुके हैं ।
    खुशदीप भाई जाने सोते कब हैं ?

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  7. यात्रा प्रसंगों और अनुभवों को याद रखना और उन्हें सिलसिलेवार लिख कर प्रस्तुत करना भी एक बड़ी खूबसूरत कला है . इस नज़रिए से ललित भाई लगता है आप एक मंजे हुए कलाकार हैं . बहुत अच्छा प्रस्तुतिकरण .आभार .

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  8. पहली फोटो में तो शो खाली-खाली लगा, आगे बढ़ने पर बात बनी.

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  9. lalit ji aap ke bare mai sirf ye kahunga. aap milte rahi gumte rahe logo se pyar bathe rahe aur jab chalkne lage to idhar ham bhi katar me hai.maja aa raha hai

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  10. भाई आज तो मजे ही ला दिए। रेवाड़ी की शादी बड़ी जोरदार रही। मुझे तो लग रहा है कि आप ब्‍लाग जगत के राजदूत बने हुए हैं जो सभी से सम्‍बंध स्‍थापित कर ब्‍लाग जगत को परिवार का दर्जा दिला रहे हैं। बहुत आभार।

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  11. बहुत बढ़िया लगा ताऊ का मामला और निशुल्क कुली!
    :)

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  12. यात्रा विवरण की बढ़िया श्रंखला चल रही है

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  13. बहुत सुंदर विवरण जी,मजा आगया, ताऊ किसी से पिछे नही जी, राम जी तो बहुत जवान हे जी मै समझता था कि आप की उम्र के होंगे:)

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  14. आपकी ये रिपोर्ट बहुत दिनों बाद आ रही है | लेकिन मजा आ रहा है जारी रखे |

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  15. यस. कौन कहता है ब्लोग-परिवार नही.मुझे तो इतना प्यारा और बड़ा परिवार मिला कि थेंक्स उस दिन को जिस दिन मैंने ब्लॉग की दुनिया में कदम रखा वरना जाने क्या क्या 'मिस' कर जाती.
    राम और उनके परिवार से मिल कर बहुत अच्छा लगा.ललित भैया आप जो कर रहे हैं उसके लिए शब्द नही है मेरे पास.अरे! आप तो पुराने जमाने वाले घर के मुखिया दादाजी वाला रोल प्ले कर रहे हैं.( आज तो मुखिया ओडल एज होम तक सिमित रह गए है बड़े शहरों में और .....आम लागों में भी).एक बार में पढ़ जाती हूँ आपकी पोस्ट.कुछ तो है लेखनी में बाबु!......जादूऊऊऊ!

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  16. ललित भाई,
    आड़े वक्त के लिए दोनों ने एक हुनर तो सीख ही लिया है...कुलीगिरी का...

    जय हिंद...

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  17. गज़ब का ज़ज्बा है ..ऐसा ही बना रहे शुभकामनायें.

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  18. @राज भाटिय़ा जी

    राम त्यागी जी और हम एक ही उमर के हैं जी।
    अभी से बच्चों को क्यों बूढा बनाने में लगे हो :)

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  19. bबहुत रोचक रहा आपका यात्रा विवरण्\ लेकिन इसे लिखने मे इतने दिन लगा दिये। शायद ब्लागर मीट का नशा अब उतरा है। शुभकामनायें। रामत्यागी जी का स्वागत है।

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  20. जय हो प्रभु शब्दों की जादूगरी

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