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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

पॉन्डिचेरी का अरविंदो आश्रम फ़्रांसिसी वास्तु शिल्प

आरम्भ से पढ़ें 
सुबह तैयार होकर हम एक बार फ़िर समुद्र की सैर पर पहुंचे। आठ बज रहे थे। पॉन्डिचेरी, फ़्रांस का उपनिवेश रहा है, इसलिए यहां मकानों की बनावट से लेकर पुलिस की टोपी तक में फ़्रांसिसी संस्कृति की छाप है।

अरविंदो आश्रम पहुंचे,यहां फ़ोटो खींचने की मनाही है। इसलिए मैने चित्र गेट से ही लिए।

अंदर महर्षि अरविंद की समाधि है। उसका लोग स्पर्श करके चेतना की अदृष्य तरंगे ग्रहण कर रहे थे। आश्रम की संस्कृत लाईब्रेरी भी काफ़ी बड़ी है।

यहां संस्कृत भाषा की पुस्तकों का भी प्रकाशन होता है। सरस संस्कृत नामक एक पाठ्यपुस्तक दो भागों में मिलती है। जो संस्कृत के प्राथमिक विद्यार्थी के लिए उत्तम है।

मैने पहले भी यहां से यह पुस्तक खरीदी है। आश्रम से निकल कर हम समुद्र के किनारे पहुंच गए। धूप निकली हुई थी। 

पान्डीचेरी के इस समुद्र तट पर गांधी स्टेच्यु के पास का एक पत्थर मुझे हमेशा आकर्षित करता है। मैं जब भी तट पर पहुंचता हूं तो इस पत्थर पर बैठकर एक चित्र जरुर लेता हूँ यादगार के रुप में।

अब तो यह पत्थर भी मुझे पहचानने लगा है। गांधी जी के साथ भी हमने चित्र लिए। एक घंटा तट पर बिताने के बाद नास्ते के लिए होटल अदिति पहुंचे। यह थ्री स्टार होटल है।

पान्डीचेरी के परम्परागत व्यंजन इसके रेस्टोरेंट में मिल जाते है। थोड़ा मंहगा जरुर है लेकिन नास्ता करने के बाद लगता है कि कीमत सही है।

तभी फ़ोन पर पता चलता है कि हमारे अन्य मित्र भी आ चुके है। वे होटल आदित्य में रुके हैं। सरकारी व्यवस्था वहीं पर है।

होटल आदित्य में पहुंचने के लिए ऑटो लिया। पान्डीचेरी में ऑटो की सवारी करने के लिए सामान्य से कुछ ज्यादा ही जेब ढीली करनी पड़ती है।

चाहे आप आधा किलोमीटर जाओ या दो किलोमीटर 40 रुपए देने ही पड़ेंगे। इससे कम किराया नहीं है। होटल आदित्य में पहुंचने पर बेंगलुरु सुप्रीम कोर्ट के वकील मित्र मोहन कृष्णा, केरल से वी विश्वनाथन जी, सुधाकरन जी, रवि ताम्रकुलम, इत्यादि पहुंच चुके थे।

मोहन कृष्णा एंग्री यंग मैन है। इनके विचार हमेशा क्रांतिकारी रहे हैं। व्यवस्था के खिलाफ़ बहुत मुखर हैं। इनका यह अंदाज मुझे भाता है।

काफ़ी अरसे के बाद हम जी भर के मिले। तभी सूचना मिली कि उद्घाटन समारोह का समय बढाकर 3 बजे कर दिया गया है।

मेरी रात को 10 बजे तमिलनाडु एक्सप्रेस से वापसी थी। अगर 3 बजे के इस कार्यक्रम में शामिल होता तो ट्रेन छोड़नी पड़ती और जबलपुर जाने का कार्यक्रम भी स्थगित करना पड़ता।

दोपहर को सभी मित्रों के साथ पांडीचेरी का परम्परागत भोजन किया। जिसमें चावल रसम,छाछ,सब्जी, अचार, पापड़ इत्यादि था। बरसात शुरु हो चुकी थी।

मैने उन्हे बता दिया कि इस उद्घाटन समारोह में शामिल होना मेरे लिए मुस्किल है। मुझे क्षमा करें, सभी ने रुकने का पुरजोर आग्रह किया। लेकिन समयाभाव के कारण मैं रुक न सका।

मेरा भी दुर्भाग्य रहा कि पान्डीचेरी पहुंचने के बाद भी उद्घाटन समारोह में शामिल न हो सका। मैं आयोजकों को धन्यवाद देकर वहां से चल पड़ा।

सुरेश नें मुझे पांडीचेरी से चेन्नई जाने वाली लो फ़्लोर एसी बस में बैठा दिया। 170 रुपए में नानस्टाप बस से इ.सी.आर. होते हुए चेन्नई के लिए चल पड़ा। अब यह यात्रा समुद्र के किनारे किनारे हुई।

रास्ते में बारिश हो रही थी। चारों तरफ़ पानी ही पानी था। जैसे हमारे यहां बारिश के मौसम में होता है। बस भी अपनी रफ़्तार से चल रही थी।

सबसे पहला स्टाप बस ने चेन्नई एयरपोर्ट का लिया। उसके बाद सीएमबीटी (कोयम्बेट) बस स्टैन्ड का।  वहां से मैने 7 बजे चेन्नई सेंट्रल के लिए 15 बी नम्बर सीटी बस पकड़ी।

जिसका किराया सिर्फ़ 4 रुपए था। जबकि पिछली बार मैने चेन्नई सेंट्रल से बस स्टैंड जाने के लिए ऑटो का किराया 100 रुपए दिया था।

सफ़र में जानकारी के अभाव में जरुरत से ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते है।1800 रुपए में पान्डीचेरी गए और 170 रुपए में वापस आए। 11 गुने रुपए अधिक खर्च करने पड़े। इसलिए सफ़र में जानकारी रखना महत्वपुर्ण होता है।

चेन्नई सेंट्रल से 10 बजे तमिलनाडु एक्सप्रेस नागपुर के लिए चल पड़ी। नागपुर से रायपुर के लिए मैने अहमदाबाद हावड़ा एक्सप्रेस से रिजर्वेशन करवा रखा था।

तमिलनाडु एक्सप्रेस द्रुतगति से चलने वाली गाड़ियों में से एक है। चेन्नई से चलकर पहला पड़ाव विजयवाड़ा (आंध्रप्रदेश) दूसरा वारंगल (आन्ध्रप्रदेश) और तीसरा बल्लारशाह (महाराष्ट्र) है।

2 बजे मैं नागपुर पहुंच चुका था। मेरी ट्रेन शाम को 6 बजे थी। घर से 300 किलोमीटर पर होने के बाद अब एक लम्बी यात्रा के बाद घर पहुंचने की व्यग्रता बढती जा रही थी। तभी पता लगा कि अहमदाबाद एक्सप्रेस डेढ घंटा विलंब से चल रही थी। अब रुका नहीं जा रहा था।

 नागपुर के मित्रों को फ़ोन करने का भी मन नहीं बन रहा था। एक कुली से मैने पुछा तो उसने बताया कि कोचीन एक्सप्रेस भी खड़ी है तीन नम्बर पर प्लेटफ़ार्म पर। लेकिन मेरे पास कन्फ़र्म टिकिट थी अहमदाबाद एक्सप्रेस की। अब क्या किया जाए सोचता रहा। अंतिम निर्णय पर पहुंचा की कोचीन एक्सप्रेस से ही चला जाए। पहले वाली टिकिट को फ़ाड़ कर फ़ेंका जाए।

कोचीन एक्सप्रेस के लिए टिकिट लेने का समय नहीं था। मैं सपाटे से प्लेटफ़ार्म नम्बर 3 पर पहुंचा तो एसी कोच के पास दो टी टी दिखाई दे गए।

मैने उन्हे बताया कि रायपुर जाना है। एक टी टी बोला “रायपुर ही क्या आपको हावड़ा तक पहुंचा देते हैं।“ उसने अपने चार्ट में से एक छोटा सा कागज फ़ाड़ा और उस पर एस 1 की 55 नम्बर की सीट लिख दी और कहा कि “ आप इस सीट पर मजे से सोयें, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।

आपको 330 रुपए अधिक लगेंगे। मैने कहा कोई बात नहीं। 4 घंटे बचाने के लिए 100 रुपए घंटे के हिसाब से ये सौदा भी कोई बुरा नहीं है।

विजेन्दर नाम का यह टी टी भी बड़ा दिलदार था। 435 रुपए लेकर मेरी टिकिट बनाई। पता चला कि वह रोहतक से ही था। पहलवान होने के कारण स्पोर्ट कोटे में रेल्वे की नौकरी लगी थी। उसने मुझे अपना नम्बर दिया।

शाम को 7 बजे मैं रायपुर स्टेशन पर पहुंचा। धीरज को फ़ोन करके बुलाया। क्योंकि बस बाजार से कुछ खिलौने खरीदने थे।

जब भी सफ़र से वापस आता हूँ तो घर पहुंचने से पहले गिरीश भाई की गजल का एक शेर याद आ जाता है –“ कैसी बेकार किस्मत है उस बाप की, बिन खिलौने के वो फ़िर से घर जाएगा। यह शेर दिलो दिमाग पर छा गया है, मुझे भूलने नहीं देता कि उदय के लिए खिलौने लेने हैं।

खिलौनों की दुकान पर पहुंच कर उदय ही फ़रमाईश पूरी की उसके लिए बैटरी से चलने वाली रेलगाड़ी खरीदी। बस युं लग रहा था कि अब उड़ कर घर पहुंच जाऊं नहीं तो उदय सो जाएगा। उसे रेलगाड़ी चलाते हुए खुशी से झुमते हुए देखना चाहता था।

घर साढे नौ बजे पहुंचा। सभी व्यग्रता से इंतजार कर रहे थे। एक लम्बी यात्रा के बाद घर पहुंचा था। उदय सो चुका था,

मैंने रेलगाड़ी उसके सिरहाने रख दी कि सुबह वह जब सोकर उठेगा तो उसे सबसे पहले दिखाई दे जाए और वह आनंद से भर उठे। इस तरह सुखद अनुभवों के साथ एक लम्बी यात्रा सम्पन्न हुई।

19 टिप्‍पणियां:

  1. bhaaijaan arvindon ashrm se lekr raaypur tk ke sfr men aapne jo selaani ke saath sath pita ke pyar or apnepn ka ehsaas dilaaya he use to bs dil ki ghraiyon ne qed kr liya bhut bhut bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. हमारे लिए भी तो इतनी सारी बढि़या पोस्‍ट आ गई आपके साथ.

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  3. सफर में जल्दबाजी न हो और थोड़ा धीरज से काम लिया जाए तो पैसा बचाया जा सकता है।

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  4. इतनी सहजता से कितना कुछ घुमा दिया, आनन्द आ गया।

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  5. महराज जी की जय हो , कहाँ-कहाँ घूमते रहते हो यार ! कभी शहर में भी रहा करो मालिक !!! अच्छी पोस्ट , बधाई । - आशुतोष

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  6. उदय की रेलगाड़ी का और हर चीजों से अधिक महत्व होना ही चाहिए ...शुभकामनायें ललित भाई !

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  7. हिंदी साहित्य में यात्रा-वृतांत लिखने वाले कम है. तुम्हारा लेखन इस कमी को पूरा करने वाला है. इस बार के संस्मरण बेहद निखरे हुए है, इनमे साहित्यिकता भी दृष्टव्य हो रही है. सहज-सरल भाषा भी है. लेखक की सफलता यही है कि वह पाठक को सहयात्री बना कर रखे. मै तुम्हारे सुखमय-उज्ज्वल भविष्य की शुभकामना करता हूँ.

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  8. अच्छी लगी छत्तीसगढ़ के व्हेनसांग / वास्कोडिगामा / कोलंबस की यह यात्रा डायरी .बधाई .

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  9. aapki yatra ke sath pandecheri yatra ki jankarari sabhi bloggarske liye accha hai aur aant me sab ko ye yaad rakhna hai ki ghar vapas aane ke samay khilona lana hai bachho ke liye aur sabhi ke liye aap mithai lekar gaye ki nahi sirf khilono se kam nahi chalega.

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  10. घूमने के अलावा और कोई काम धंधा नाही है क्या ? कितना घुमाते हो ......|

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  11. अरविन्द पहले तो क्रन्तिकारी आन्दोलन में थे ,फिर छुट मिलने पर फ्रेंच बस्ती पांडिचेरी चले गए,यह रूपांतरण सुविधाजनक था पर मूल में अवसरवाद था या अंदर की बात थी?ये माजरा क्या था मैं पक्के से समझ नहीं पाया अब तक.आप के पोस्ट ने पूरे प्रसंग की याद दिला दी.

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  12. देखा आप ने एक बार मेरे यहां आये ना, तो अब आप को हर तरफ़ रोहत्क के ही लोग मिलेगे, थोडे दिन रुक जाये फ़िर सपने भी रोहतक के ही आयेगे, लेकिन साबधान आप तीनो की फ़ोटू आज कल ब्लांग जगत मे खुब छप रही हे,लोग स्पेशल चर्चा करते हे, फ़िर अनामी बन कर उस फ़ोटू का लिंक देते हे, लगता हे कोई हाथ पैर धॊ कर आप के पीछे पड गया/ गई हे,शायद आप की मुछो पर कोई फ़िदा हो गया हे:) उदय तो बहुत खुश हुआ होगा, बच्चो की एक मुस्कान के लिये एक पिता उन का कितना ध्यान रखता हे, बहुत सुंदर रही आप की यह यात्रा. धन्यवाद

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  13. बहुत घुमाई हो गई हमारी भी ..और केले के पत्ते पर भोजन बहुत आकर्षित कर रहा है.

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  14. आपकी यात्रा कि सारी पोस्ट्स पढ़ी. यात्रा खासी लंबी और इवेंट्स से भरी रही. उदय कि खुशी देखते ही बनती है. अगली यात्रा में जयपुर आगमन हों तो याद कीजियेगा.. :)

    मनोज

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  15. बहुत सुंदर रही आप की यह यात्रा

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