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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

कल्लू मल घी वाले की बेटी और चचा गालिब

चचा की इश्कबाजी तो मशहूर है, कोतवाल साहब ने मौका देखकर बदला ले ही लिया था, लेकिन काजी की दोस्ती काम आ गयी। चचा हवालात की हवा खाने से बच गए।

कर्ज की पीते थे मय और समझते थे कि हां, रंग लाएगी अपनी फाकामस्ती एक दिन। गालिब चचा की कर्ज की मय बहुत रंग लाई। मुफ़्त की होती तो और भी रंग लाती। क्योंकि खुद खरीदी गई मय में रंग कहाँ होता है।

सितारे नहीं झिलमिलाते, चाँद भी नजर नहीं आता। छोड़ गए बालम जरुर याद आता है। इश्क भी गजब की शै है। इसका चढा हुआ खुमार उतरता कहाँ है। ताजिन्दगी कायम रहता है। थोड़ा सा झोंका चलते ही जख्म हरे हो जाते हैं। 

ड्रायवरी करते वक्त मनभावन संगीत चलना चाहिए। चाहे एक ही गीत बार बार बज रहा हो। अब कारों में कैसेट के जमाने लद गए। एफ़ एम रेड़ियो ने कसर पूरी कर दी।

गालिब चचा के जमाने में होता तो वे क्यों जाते चंडूखाने में। अचकन की जेब में रेड़ियो रख कर मन की मुराद पूरी कर लेते। न डोम टंटा होता, न कोतवाल से साबका। कल्लु खाँ को चुगली करने का मौका नहीं मिलता। खैर, कार का रेड़ियो रेंज से बाहर होते ही सरसराने लगा। जैसे सागर किनारे लहरों की घरघराहट होती है।

अब बिना गीत के मन नहीं करता ड्राईव करने का। खोपड़ी खुजाने लगती है, जब टेप बंद हो तो गाना कौन सुनाए? हम ही गुनगुनाने लगे, लेकिन कोई वाह-वाही करे तो मजा आए गाने का। पर गर्दभगान पर कोई वाह वाही कैसे करे?

मय भी कमाल की चीज है, बस इशारा कर दो कि “साथ चलो यार फ़ुल इंतजाम है।“ फ़िर तो ऐसे लोग मिल ही जाते हैं, जो गंगा तक पहुंचाकर आ जाएं। साथ न छोड़ें रास्ते भर। थोड़ी लगी होनी चाहिए।

चचा के पास मौरिस (फ़िएट) कार थी। उन्हे काली घोड़ी पसंद थी। लेकिन कार हरियाली होनी चाहिए। दरवाजे भी उसके उल्टे खुलते थे। केरोसिन तेल से चलाते थे इसलिए उसका कोई भरोसा नहीं था कि कहाँ खड़ी हो जाए।

चचा ने इसके लिए जुगाड़ किया। घर से कार निकालते ही दो बोतल डेशबोर्ड पर ऐसे रखते कि लोगों को दिख जाए। फ़िर तो चार-पाँच निठल्ले आदमी उन्हे मिल ही जाते थे। कार में बैठते ही बोतल उन्हे पकड़ा देते और शहर की ओर चल पड़ते।

जहाँ कार खड़ी होती, वहीं एक-एक गिलास उन्हे दे देते। वे भी मस्त और चचा भी मस्त। अब चाहे उनसे धक्के लगवा कर ही कार घर पहुंचानी पड़े तो वो भी काम हो जाएगा और किरासन तेल भी बच जाएगा। बड़ी जुगत लगाते थे। कल्लु खाँ तो स्थाई सेवा देता था एक अद्धे के बदले।

टेप बंद होते ही हमने भी उन्हे गाना सुनाने के लिए कहा। उनका कहना था कि उन्हे गाना नहीं आता। हम भी चक्कर में पड़ गए। जीवन विरथा चला गया इनका। एक गीत भी इंद्रधनुष के दिखने पर इन्हे नहीं आया।

जीवन में प्रेम उमड़ा ही नहीं, श्रंगार रस से रचे बसे गीत अंतर में ही नहीं उतरे। वह प्रेम को क्या जाने, वह तो गुंगे का गुड़ है। चचा की गज़ल नहीं सही, चना जोर गरम ही सही। कुछ तो चलता रहेगा।

अजब शेख तेरी जिन्दगानी गुजरी, एक शब भी न सुहानी गुजरी। मुझे तो कुछ याद नहीं रहता। चचा कहते थे सुनाने के लिए, लेकिन याद रहे तब न सुनाऊं। एक अंतरा सुनाकर चुप रह जाता।

शादी की पार्टी में आर्केष्टा हो रहा है। लोगों की फ़रमाईश चल रही है, सोफ़े पर लातें लम्बी किए काले अंगूर के रस की चुस्कियाँ ले रहे थे।

हमने भी “तेरे नैना हैं जादू भरे, ओ गोरी तेरा नैना हैं जादू भरे” की फ़रमाईश कर दी। गायक ने गाया भी उम्दा। डूब गए जादू भरे नयनों में।

सहसा देशी घी की खुश्बू तंद्रा से बाहर ले आई। इस मंहगाई के जमाने में देशी घी। कनखियों से देखा तो कल्लू मल घी वाले की बेटी मंहगाई टहलते हुए आ रही थी। लग रहा था कोई रोड़ रोलर आ रहा है घी के फ़व्वारे उड़ाते हुए।

पी.डी.एस का सारा माल ही जैसे उदरस्थ कर लिया हो, पहले तो ऐसी नहीं थी। सुंदर कमसिन काया का क्या हाल कर लिया। इतर की खुश्बू से दूर से ही पता चल जाता था कि कल्लु मल घी वाले की बेटी आ रही है।

अब तो कोई भी सेंट इतर का इस्तेमाल कर लेता है, समाज में बदलाव आ रहा है, अमीरी का रौब-दाब दिखाने के लिए घी की खुश्बू से उम्दा रास्ता कोई नहीं।

चचा भी दीदे फ़ाड़े ताक रहे थे, उनके जन्नत-ए-उलफ़िरदौस इतर के खुश्बू की देशी घी ने खाट खड़ी कर दी। वे कभी अपनी अचकन तो कभी रोड़रोलर को देखते हैं।

25 टिप्‍पणियां:

  1. गर्दभ गान पर कोई वाह वाही कैसे करे? क्यो जी धक्का भी मरवाते हो ओर इलजाम भी लगाते हो, अजी हम किस लिये हे, वाह वाही करने के लिये हे पेदा हुये हे, गाये कोई समझ आये या ना आये वाह वाही तो करेगे, बस..... वो बोतल दिखा दो पहले..
    ओर इस ( रहा था कोई रोड़ रोलर आ रहा है घी के फ़व्वारे उड़ाते हुए।) चीज को दुर रखो जी हम तो स्कुट्री चलाने वाले हे,थोडा डाला ओर चल पडे मस्ती करने, इस रोड रोलर मे तो पुरा टेक ही डलवाना पडेगा, तोबा जी...

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  2. मामला फूड, एक्‍साइज और पीडब्‍ल्‍यूडी तीनों में कन्सिडर हो सकता है.

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  3. हा हा हा .. हँसा दिया ..
    और व्यंग भी खूब..
    कल आपकी यह चर्चा चर्चामंच पर होगी ...
    ललित जी आपका आभार .. सादर

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  4. हा हा हा हा हा हा----- बहूत खूब!

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  5. हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण अच्छी रचना .आभार .

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  6. अपनी समझ से बाहर
    आशा है माफ करेंगें

    प्रणाम

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  7. मैं भी देसी घी की खुश्बू सूँघ कर ही यहाँ तक आयी। बहुत बढिया। शुभकामनायें।

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  8. हा हा हा हा हा हा!हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण अच्छी रचना .आभार!

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  9. हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण अच्छी रचना .आभार

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  10. ऐसे लेख नेट पर लिखने से कुछ लोग झूठे पड़ सकते हैं :) कि यह वाहियात लागों/रचनाओं की जगह है

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  11. महाराज, जी सा आ गया:)
    सब हमारे फ़ेवरेट ही फ़ेवरेट। चचा, चचा की मैकशी और आपकी वेगमयी प्रस्तुति।

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  12. कल्लू मल घी वाले की बेटी और चचा गालिब .....

    मन आनंदित हो गया !
    शुभकामनाएँ !

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  13. वाह ! मन प्रसन्न हो गया इस उम्दा प्रस्तुति से ।हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण अच्छी रचना .

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  14. फर्राटेदार चला है आपका रोड रोलर.

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