Menu

सोमवार, 23 मई 2011

मेट्रो पिलर नंबर 420 और दाड़ी के लिए बस --- ललित शर्मा

ललित,संजीव,राजीव,गिरीश,अवधिया,बी.एस.पाबला
आरम्भ से पढ़ें  दिल्ली की सुबह हुई.. गुरुदेव जल्दी स्नान करके झोला लेने चले गए. सामान काफी हो गया था. इसलिए झोले की जरुरत पड़ गयी. मैंने आधा सामान गुरुदेव को थमाया और आधा अल्पना जी को. पाबला जी के रूम में पहुचे तो गिरीश बुलेरो लिहाफ में थे. चाय-चाय चिल्ला रहे थे. बिना चाय के इनकी नींद ही नहीं खुलती. चाय थोड़ी देर में आई. गिरीश जी ने आँखें खोली. फिर स्नानादि के पश्चात दही पराठों का आर्डर दिया गया. छक के नाश्ता किया. तब तक राजीव तनेजा जी पहच चुके थे. मुझे उनके यहाँ जाना था. और पाबला जी, संजीव तिवारी जी, जी.के अवधिया जी को सुनीता जी के यहाँ स्नेह भोज पर, अल्पना जी को फ्लाइट पकडनी थी. इसलिए वे होटल में ही रुक रही थी. इनकी फ्लाइट शाम की थी. गिरीश जी की ट्रेन दोपहर को थी. उन्हें जबलपुर जाना था, निजामुद्दीन से, हम साथ साथ ही चले. चलते-चलते सब से विदा ली. फिर मिलने के वादे के साथ.

ब्लॉगर मस्ती-- आ जा जरा नच के दिखा.
सुनीता+पवन जी के यहाँ कल की शार्ट मीट यादगार रहेगी. काफी आनंद आया. राजीव जी के साथ चल पड़े उनके घर की ओर. रास्ते में मशहूर दही-भल्ले की दुकान थी. वहीँ से राजीव जी ने दही भल्ले लिए. कहा कि ब्लोगिंग करते हुए बैठ कर खायेंगे. घर पहुचने पर बच्चों से मुलाकात हई. माणिक भी अब बड़ा हो गया. एकाध वर्ष में कद राजीव जी के बराबर हो जायेगा. थोड़ी देर नेट पर बिताने के बाद भाभी जी (संजू तनेजा) का आदेश आ गया था, खाना तैयार है. मैंने तो नाश्ता ही भरपूर कर लिया था. थोड़ी बहुत भी जगह खाली नहीं थी. फिर भी चावल, राजमा ले ही लिया. दही भल्ले भी लिए. भोजनोपरांत राजीव जी के कारखाने गए. मैं ड्राईविंग लायसेन्स घर भूल आया था. सोचा की इसकी फोटो का प्रिंट निकलवा कर लेमिनेशन करवा लूँ तो कम चल जायेगा. एक कलर लेब में गए तो उसने कहा कि १०० रूपये लगेगे और मेरे पास मोटा पेपर नहीं है. मतलब कि दिन दहाड़े डाका. हमने मना कर दिया.

नांगलोई मेट्रो स्टेशन
मेट्रो से नागलोई पहुचे. राजीव भाई का कारखाना मेट्रो पिलर नंबर 420 पर है. आज कल दिल्ली में पता मेट्रो के पिलर से ही बताया जाता है. नांगलोई स्टेशन के सामने ही राजीव जी का कारखाना है. पिछली बार यहीं पर यशवंत मेहता जी से मुलाकात हुयी थी. अब वो मुंबई बैंक ऑफ़ बड़ोदा में है. कभी-कभी फोन कर लेते है. राजीव भाई नांगलोई से काम निपटा कर मुझे कश्मीरी गेट छोड़ने आये. यहीं पर केवल राम से मुलाकात होनी थी. तब तक हमने मेक्डोनाल्ड में बर्गर खाया. टाइम पास करने के लिए ६.२० बजे केवल पहुँच चुके थे. राजीव जी से विदा लेकर हम बस स्टैंड चले गए. वहां धर्मशाला के लिए बस पकडनी थी. बस ६.५० पर चलती है. टिकिट खिड़की में लाइन लगी थी. हमें ३३-३४ नंबर सीट मिली 2x2  मामला पीछे की सीट का था. केवल के कंडेक्टर से गुजारिश करने के बाद भी सामने की सीट नहीं मिली. बस चल पड़ी.

केवल राम का बढ़ा हुआ कद
मेरी बस में पहली लम्बी यात्रा थी. जो लग-भग १२ घंटे की होने वाली थी. बस का पहला स्टापेज पिपली था. बस खड़ी होते ही होटल वालों ने पुकारना शुरू किया, खाना-खाना-खाना. हमें भी खाना ही था. होटल में सामने ही टायलेट बना रखा था. ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहाँ होटलों भट्ठी होती है. इसका फायदा उस होटल वाले को बहुत मिलता है. ३ घंटे की यात्रा के पश्चात सवारियां बस रुकने पर सबसे पहले टायलेट ही ढूंढ़ती है और उसके बाद खाने की तरफ बढ़ती है. हमने भी टेबल संभाली और खाने का ऑर्डर दिया. राजमा का साग लिया. मदरस के लिए पूछा तो बेयरे ने कहा की नगद १२०/- दीजिये. अभी लाता हूँ. उसका भी इंतजाम किया गया. जब बिल पेमेंट करने पहुचे तो एक सवारी होटल वाले से जूझ रही थी. ४ रोटी आधा चावल और सब्जी के उससे १२६ रूपये का बिल बना दिया था. सवारी कह रही थी "मैंने सब्जी मांगी ही नहीं, वेटर बोला कि चावल के साथ आती है, इसलिए मैंने खा ली." होटल वाला कहाँ छोड़ने वाला था. उसने पूरे पैसे वसूल कर लिए.

डीजल यहाँ से डलबायें
अब यहाँ से चलने पर हिचकोले खाती सीट पर नींद आ गयी. कब चंडीगढ़ निकल गया पता ही नहीं चला. अगले स्टॉप उन्ना में बस रुकी, वहां सरकारी पेट्रोल पंप है जहाँ हिमाचल प्रदेश रोडवेज की गाड़ियाँ डीजल लेती है. यहाँ विसर्जन करके फिर बस चल पड़ी. अगला स्टॉप था ढलियारा. यहाँ एक होटल में तरह-तरह की मिठाइयाँ सजी थी. कोई रात के ३ बज रहे थे. कुछ ठण्ड का अहसास होने लगा था. हमने चाय बनवा कर पी. इसके बाद केवल सोने लगा. बस चक्करदार रस्ते में चक्कर काट रही थी. चक्कर सा आने लगा और पसीने भी. आँख बंद कर के सीट पर पड़ गया. बस जवाला जी में रुकी. जैसे तैसे सुबह ६ बजे धर्मशाला पहुचे.बस स्टैंड से हमने दाड़ी  के लिए बस ली. ३ रुपये का किराया लगा दोनों सवारियों का. केवल के रूम पर पहुच कर सबसे पहले तो चाय पी और सोने का मन था. रात भर की थकान से बेहाल था.

पोस्ट ऑफिस चौक 
केवल खाना खिला कर कालेज चला गया और मैं सो गया. दिन भर सोया रहा. उठने का मन ही नहीं किया. फिर शाम को केवल के आने के बाद खाना खाया और फिर सो गया. रात को कुछ बदन में हरारत सी हो गयी थी. थकन इतनी थी की उठने की हिम्मत ही नहीं थी. आज नहाया भी नहीं. सुबह डॉ.श्रीधर को फोन लगा कर दवाई पूछी तो पता चला कि वो दार्जलिंग में है. उसकी भी घुमाई चल रही है. उसने एंटीबायोटिक बताई. शाम को केवल दवाई लेकर आया. २५०/- की ६ टेबलेट. पता नहीं डॉ. ने भी कौन से जनम की दुश्मनी निकाली थी. सोच रहा होगा.. कि "साले फोन पर दवाई पूछते हैं, थोडा झटका दे ही दिया जाये." 

छत्तीसगढ़िहा-सबले बढ़िया 
शाम को एक खुराक लेने के बाद हम लोग धर्मशाला में घुमने निकले.बाज़ार में घुमते हुए मुझे कुछ  हमारे छत्तीसगढ़ के मजदूर मिले. मुझे आश्चर्य हुआ. मैंने जब उनसे चर्चा करने की कोशिश की तो उन्होंने बात नहीं करना चाहा. थोड़ी देर बाद देखा तो बाजार में हर जगह यही दिख रहे है. स्थानीय लोगों से चर्चा के पश्चात पता चला कि ये लोग यहाँ निर्माण के काम में संलग्न हैं. नीव खोदने से लेकर लेंटर ढलने तक इनके अलग ग्रुप हैं. भाटापारा, सरसींवा के लोग अधिक मिले. सरकार छत्तीसगढ़ में भरपूर रोजगार दे रही है. १ रूपये किलो में ३५ किलो चावल, मुफ्त में नमक और चरण पादुका तक बांटी जा रही है. ऐसी स्थिति में मजदूरी के लिए पलायन तो नहीं  हो सकता. हाँ कुछ लोग हैं जिन्हें बहार की आब-ओ-हवा पसंद है. इसलिए काम करने चले आते हैं, मजदूरी भी अधिक मिलती है. इसका लालच भी इन्हें खींच लाता है. जबकि हमारे यहाँ  बिहार, उड़ीसा एवं आँध्रप्रदेश के मजदुर काम कर रहे हैं.

लाल किला खरीदने के लिए लगी लाइन
शहर का एक चक्कर लगते हुए. गुरुद्वारे की तरफ से हम कचहरी, डाकखाना देखते हुए, हनुमान जी के दरबार में पहुच गए. हनुमान जी ही सकल कष्टों को दूर करते हैं. इनके दर्शन होते ही, हरारत और थकान गायब हो गयी. बाज़ार से सब्जी लेते हुए. हम लाल किले की दुकान में पहुच गए. यहाँ लाल किला मिलता है. मूल्य साईज के हिसाब से है. और जो दुकान दार मुंह से कह दे वही देना पड़ेगा. मर्जी है उसकी. नए लोगों से अधिक मूल्य लिया जाता  है. यह मुझे बाद में पता चला. साथ में संतरा भी मिलता है. स्वाद उत्तम है, यहाँ का संतरा मीठा है. अधिक खंटास नहीं है. कुल मिलकर मैजिक मूवमेंट (जादू) ठीक है.... अभी तो भ्रमण प्रारंभ ही हुआ है.......आगे जारी........ बिना गोले की तोप 

21 टिप्‍पणियां:

  1. ये लाल किला है क्या बला?


    बाकी तो वृतांत चकाचक!

    जवाब देंहटाएं
  2. लाल किला किस फल का नाम है ??
    रोचक यात्रा वृत्तांत !

    जवाब देंहटाएं
  3. हम भी रात को कोटा के प्लेटफार्म खरीदे थे।

    जवाब देंहटाएं
  4. छत्तीसगढ़ के योगदान के बिना देश नहीं चल सकता .

    जवाब देंहटाएं
  5. बड़ी बारीकी से लिखते हो ललित भाई .....
    ऐसा लगता है जैसे हर जगह आपके साथ हों !
    मस्त और जिंदादिल पोस्ट के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  6. चलिए हम भी घूम लिए आपके साथ-साथ.. आगे-आगे देखते हैं क्या-क्या जानने को मिलता है...

    जवाब देंहटाएं
  7. जय हो डाक्टर साहब की गुरूदेव को झटका लगा दिया पिलर नंबर से पता ये नयी जानकारी मिली

    जवाब देंहटाएं
  8. न जाने कब से इतनी लम्बी लाइन लगी है, लालकिला और देश खरीदने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  9. जब बिकने को तैयार है तो खरीदार तो मिल ही जायेगा देखा ना आइ पी एल में अच्छे भारत के गौरव बिक गए वृतांत रोचक है .

    जवाब देंहटाएं
  10. रोचक विवरण .. वैसे शायद लाल किला चावल खरीदने के लिए लाईन लगी होगी ...

    जवाब देंहटाएं
  11. एक बार मेने भी इसी तरह धुप में लाल किला खरीदा था -

    जवाब देंहटाएं
  12. बढिया विवरण .. आपकी यात्रा में हमलोग साथ चल रहे हैं !!

    जवाब देंहटाएं
  13. रोचक विवरण .. आपकी यात्रा से हमें भी काफी कुछ देखने और समझने को मिला है. छत्तीसगढ़ के मजदूर तो हमारे यहाँ भी बहुत दिखाई देते हैं, जब सरकार उन्हें इतनी सुविधा दे रही है तो उन्हें बाहर जाने की आवश्यकता क्यों है शायद ये सुविधाएँ उन तक पहुँच ही नहीं पाती...

    जवाब देंहटाएं
  14. आगे के वृत्तांत जानने को उत्सक हैं. रोचक.. हिमाचल की खूबसूरती के चित्र लगाइए ...!

    जवाब देंहटाएं
  15. गौरव का प्रणाम धर्मशाला में ही स्वीकार करें........वाकई आप इतना बेहतरीन लिखते हैं की पोस्ट कब शुरू होता है और कब ख़तम हो जाता है पता ही नहीं चलता और तो और आगे की खबर जानने के लिए बेताबी भी बनी रहती है..........बहरहाल आगे की यात्रा के लिए शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं