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रविवार, 8 जनवरी 2012

बचा लो भगवान, बचा लो, बस्तर यात्रा की समापन किश्त -- ललित शर्मा

ढोकरा कला कृतियाँ
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यदेव जी के घर से निकले ही थे कि बहन का फ़ोन आ गया। उसने बताया कि खाना बनकर तैयार है विलंब न करें। दो शिल्प खरीदे गए थे, बिजली न होने के कारण उन पर पालिश नहीं हो पाई, जयदेव जी के पुत्र ने पालिश के लिए बिजली आने का इंतजार करने कहा। तब तक हमने भोजन करना ही जरुरी समझा। बहन के घर पहुंचे, वह बेताबी से इंतजार कर रही थी। बहनोई मनोज जी भी मधुप रस लाकर तैयार थे। उन्हे दो दिन पहले ही आर्डर कर दिया था। थोड़ा स्वाद चख कर भोजन किया। कोण्डागाँव में हरिहर वैष्णव जी रहते हैं। इन्होने हल्बी भाषा पर बहुत काम किया है। अभी बस्तर के परम्परागत संगीत पर कार्य कर रहे हैं। इनसे भी मिलना था, कर्ण जयदेव जी के यहां गया और मैं और मनोज जी, हरिहर वैष्णव जी के घर। इनका घर सरगी पाल मोहल्ले में है। मनोज जी को घर का पता था इसलिए सीधे इनके घर ही पहुंच गए।

श्री हरिहर वैष्णव जी
फ़ोन लगाने पर उनका बालक बाहर निकला। हमें बैठक में बिठाया, थोड़ी देर में हरिहर वैष्णव जी पटका पहने उपस्थित हो चुके थे। मेरी उनसे पहली भेंट थी। चलभाष पर चर्चा तो होते रहती है पर रुबरु अभी ही हुए। इन्होने 12 किताबें बस्तर पर लिखी हैं, और विदेशी शोध कर्ता इनके सम्पर्क में रहते थे। मैने इन्हे "मोहनी" को लेकर फ़ोन किया था। अगर कोई मोहनी बनाने वाला मिले तो उसके विषय में कुछ सत्यान्वेषण किया जाए। मोहनी के विषय में चर्चा करने वे ठठा कर हँस पड़ते हैं। बोले कि - एक व्यक्ति मेरे साथ काम करता है। उसने पूछा किसके लिए बनाना है? तो मैने उसे टाल दिया। मैने कहा कि कभी समय मिला तो उनसे सम्पर्क करेगें। "मोहनी" के विषय में बचपन से सुनता आया हूँ लेकिन जिज्ञासा अभी तक शांत नहीं हुई है। अभी तक इसकी खोज में हूँ। कहीं उचित माध्यम मिले तो बताऊंगा। छत्तीसगढी का गीत भी है "का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फ़ूल" और भी कई गीत मोहनी को लेकर रचे गए हैं।

दंतेवाड़ा मंदिर में फ़ोटो ग्राफ़र का कलर प्रिंटर
नेट के विषय में वैष्णव जी से चर्चा होती है कि वे अपने काम को ऑन लाईन करें, जिससे उनका काम दुनिया तक पहुंचे।  वे कहते हैं कि - मैं वन विभाग में एकाऊंटेंट था, सेवानिवृति के 4 वर्ष पूर्व ही वी आर एस ले लिया। वी आर एस लेने का कारण यह था कि मेरे पास शोध कार्य के लिए समय कम है और काम अधिक है। नौकरी में रहते हुए इस कार्य को नहीं कर सकता था। इसलिए मुझे वी आर एस लेना पड़ा। उनके पास कम्पयुटर एवं नेट की सुविधा है, वे अपना लेखन कार्य कम्पयुटर पर ही करते हैं। छोटी सी मुलाकात के दौरान दो बार साथियों के फ़ोन आ जाते हैं कि अब चलना चाहिए। मैं उनसे इजाजत लेता हूँ तो वे चाय का आग्रह करते हैं। मैं चाय के लिए मना करता हूँ, लेकिन वे नहीं मानते। तो लाल चाय बनाने के लिए कहता हूँ। थोड़ी देर में लाल चाय बन कर आ जाती है। चाय पीकर हम उनसे विदा लेते हैं, वे आग्रह करते है दुबारा भेंट के लिए। हम चल पड़ते है।

बहन के घर पर पहुंचकर देखता हूँ कि जाने की सब तैयारी हो चुकी है। बहन बार-बार मेरे दोहरे से इकहरे होने का राज जानना चाहती है। मैं कहता हूँ राज को राज ही रहने दो तो ठीक है। फ़िर आने का आश्वासन देकर वहाँ से चल पड़ते हैं। बारिश फ़िर शुरु हो चुकी है। चित्रकूट आते हुए भीगे होने के कारण हमने गाड़ी के काँच बंद कर लिए थे तो सांसों की भाप से विंड स्क्रीन के अंदर की तरफ़ भाप जम जाती थी। उसे लगातार साफ़ करना पड़ता था। हीटर चलाने पर और बढ जाती थी। आज हमने काँच खुले रखे, इससे विंड स्क्रीन पर भाप नहीं जमी। जगदपुर के रास्ते में कोण्डागाँव से केसकाल के बीच में कुछ वृक्ष सड़क के किनारे ही हैं। एक दम डामर रोड़ से सटे हुए। मैने कई वृक्षों पर दुर्घटना के चिन्ह देखे। अगर आपने अपनी लैन थोड़ी सी भी छोड़ी तो इन वृक्षों से टकरा कर दुर्घटना ग्रस्त हो सकते हैं। मैने इस मार्ग पर पेड़ों से टकरा कर कई गाड़ियाँ दुर्घटना ग्रस्त होते देखी है। इस रास्ते पर गाड़ी संभाल के ही ड्राईव करनी पड़ती है।

पुन: केसकाल घाट पहुंचते है, बादलों और बारिश के कारण दिन ढलने का पता ही नहीं चल रहा। धीरे-धीरे घाट से गाड़ी उतारते हैं। कर्ण को बताते जा रहा हूँ कैसे चलना है और घाट पर गाड़ी कैसे उतारना है। घाट पार करके हम कांकेर पहुंचते है, फ़िर वही बायपास पकड़ लेते है। शहर के बीच नहीं जाना पड़ता। पिछली बार जब बरसात के समय कांकेर आया था तो नदी के पुल पर भीड़ लगी थी। देखने के लिए रुका तो नदी में अठखेलियाँ करता एक बड़ा अजगर साँप दिखाई दिया। इतना बड़ा अजगर मैने अपनी आँखों से नहीं देखा था। वह कभी नदी के इस किनारे पर जाता कभी उस किनारे पर। थोड़ी देर बाद मैं आगे बढ लिया। लेकिन दूसरे दिन नई दुनिया समाचार पत्र में उसकी फ़ोटो और समाचार छपा था। वन विभाग वालों ने बड़ी मशक्कत से उसे पकड़ा था। कांकेर से आगे माकड़ी ढाबे में पुन: खीर खाने की योजना बन जाती है। लेकिन मैं खीर की बजाए सिर्फ़ चाय ही लेता हूं। क्योंकि मेरी भी जासूसी हो रही है जासूसों द्वारा। मीठा नहीं खाना चाहिए। चाहे हमारे जासूस रोज हलवा खाएं चोरी छुपे।

श्री एवं श्रीमती विनोद चौहान
कांकेर से चारामा के आगे छोटा सा घाट पड़ता है। अंधेरा हो चुका था, गाड़ी की लाईटें रोशन कर ली गयी। मैं मोनु से ब्लूटूथ पर कुछ फ़ोटुंए मांग रहा था। सुबह से कर्ण ही गाड़ी चला रहा था। उसके पापा मम्मी पीछे बैठे थे और मैं उसकी बगल में सामने। चाराम घाट का मुझे ध्यान नहीं रहा। जगदलपुर से घाट शुरु होते ही घाट के पहले मोड़ को चौड़ा कर दिया गया है और उसके बीच में सीमेंट के ब्लॉक रख कर डिवाईडर बना दिया गया। अचानक गाड़ी डिवाईडर पर चढते दिखाई देती है। पीछे से मोनु की आवाज आती है "बचा लो भगवान, बचा लो भगवान।" गाड़ी डिवाईडर पर चढ गयी लेकिन थोड़ी देर में संभलने के बाद एक जगह के निकले हुए ब्लॉक से फ़िर रास्ते पर आ गयी। कर्ण के होश गुम हो चुके थे। गाड़ी साईड में रुकवा कर मैने टार्च से गाड़ी के नीचे देखा। सामने से चेचिस तगड़ी रगड़ खा गया था। दाहिने तरफ़ की लाईट बंद हो गयी थी। अभी पता न था कि गाड़ी चलने की स्थिति में है या नहीं। थोड़ी देर गाड़ी को अच्छे से देखा, तभी छोटे भाई का फ़ोन आया। उसने हाल चाल पूछा और कहा कि -मैने सोचा आप गाड़ी ड्राईव कर रहे होगें इसलिए फ़ोन नहीं किया।

उदय नयी यूनिफ़ार्म में
अब चौहान जी ने गाड़ी संभाली, धीरे-धीरे गाड़ी चलाते हुए बातें शुरु हो गयी। चौहान जी एक बात अपने बेटे से कही - दुर्घटनाएं सीख देती हैं। अब तुम बिना कहे की संभल कर चलोगे। सही है जब तक स्वयं गड्ढे में न गिरे तब तक गड्ढे का पता नहीं चलता। घर फ़ोन करके खाने की सूचना दी, हम लगभग 9 बजे घर पहुंचे। बच्चों को एक साल बाद देखते ही रौनक आ गयी। सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं दी, उदय ने पूछा कि उसकी स्कूल यूनिफ़ार्म सिली की नहीं? हा हा हा जिस दर्जी को उसकी यूनिफ़ार्म दी गयी है। लगता है वह एक साल में सिल कर लाएगा। मैने उसे आश्वासन दिया कि 2012 में पक्की सिल जाएगी। अभी तो तुम्हारे पास है ही काम चलाने के लिए। भोजनोपरांत चौहान जी का कारवां आगे बढ गया और बच्चों के साथ मशगुल हो गए। मैं सोच रहा था कि दर्जी के लिए कौन सा फ़ार्मुला फ़िट किया जाए जिससे वह उदय की स्कूल यूनिफ़ार्म सिल कर ले आए। आखिर कपड़े दिए 4 महीने हो गए, हद है भाई..................

19 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्‍त मुसाफिरी, न अटके, न भटके.

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  2. राहुल सिंह जी से आगे...

    डिवाइडर के झटके यूनिफार्म पे अटके

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  3. बहुत अच्छी रही बस्तर यात्रा, आपको समापन के लिए और नन्हे उदय को नयी युनिफोर्म मिलने की बधाई...

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  4. बढिया रही यात्रा।
    बधाई हो।

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  5. माकड़ी ढाबे की यादें ताज़ी हो गयीं. आभार. आजकल धमतरी के पहले भी एक ढाबे में में खीर मिलती है. याद नहीं आ रहा.

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  6. घुमंतू विवरण....!

    रोचक और यादगार...!!

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  7. सेहत का राज तो राज ही रह गया -----मुश्किल पर अच्छी यात्रा रही ....

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  8. बहुत ही दिलचस्प रही बस्तर की यात्रा।
    आपके यात्रा वर्णनों में हर स्थान के मुताबिक सावधानी रखने की नेक सलाह भी होती है। इन जगहौं पर जाने के पहले आपका ब्लाग पढकर जाना बहुत उपयोगी हो सकता है।
    आपके जासूस अच्छे हैं, शुभचिंतक हैं आपके।
    सब सकुशल लौट आए, भगवान का शुक्रिया।

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  9. बाकी सब तो बढ़िया है..पर ये लाल चाय पहली बार सुना.काली, हरी,सफ़ेद चाय सुनी है.ये लाल चाय क्या बला है???

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  10. @shikha varshney

    एक = कप पानी
    50= ग्राम गुड़
    एक चम्मच चाय पत्ती
    छोटी सी अदरक
    पानी को केटली में चढाकर बाकी समान डालक्रर उबालें
    नास्ता इच्छानुसार वापरें
    फ़िर छान कर गर्मा गरम सर्व करें
    चाय लाल मिलेगी

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  11. मकड़ी ढाबे की खीर!
    यम्मी यम्मी

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  12. शिखा जी, कांच के गिलास में पड़ी चाय से आरपार झांकते हुए किसी रौशनी को देखिए जो रंग दिखे वही चाय का रंग :-)

    वैसे मुझे सुनहरी चाय ज़्यादा पसंद है!

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  13. गुड की चाय के बारे में किसी कहानी में पढ़ा था , आपने तरीका भी बता दिया ...
    मोहनी के बारे में विस्तार से नहीं बताया , क्या बला है यह ??
    इतनी लम्बी यात्रायें होंगी तो एकहरा होना राज कहाँ है !
    रोचक वर्णन !

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  14. यायावरी की बढ़िया रिपोर्ट ..मोहनी क्या है ? जानने की जिज्ञासा है ..

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  15. Priy bhaaii Lalit jii,

    Aapne yeh post likhaa kintu mujhe bataayaa tak nahin. Bataate to main ise awashya hii padhtaa. Abhii bhaaii Ghanshyam Singh Nag aur bhaaii Rameshwar Sharmaa ji ke saath net par kuchh khoj rahaa thaa ki aapkaa yeh post dikh gayaa. Post mein mera ullekh karne ke liye dhanywaad.

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