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शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

ब्लॉगर्स के लिए उपयोगी होगा रचना शिविर --- ललित शर्मा

परिचय का दौर
द्वितीय सत्र प्रारंभ होने पर साहित्यकारों का परिचय आरंभ हुआ। अतिथि साहित्यकारों ने भी अपना परिचय दिया, हम तो काऊंटर पर थे इसलिए बिना परिचय के ही रह गए। लोग कहते हैं क्या धरा है नाम में। लेकिन यहाँ आकर मुझे पता चला कि बहुत कुछ धरा है नाम में। एक कवि ने बताया कि- वे अपनी रचना अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए भेजते थे, लेकिन नहीं छपती थी। एक बार उन्होने महिला के नाम से उसी रचना को भेज दिया और दुसरे ही दिन उसी अखबार में प्रकाशित हो गयी। मुझे यह आईडिया पहले नहीं आया, नहीं तो महिला के नाम सरीखा उपनाम रखता और खूब छपता। हा हा हा। अब तो छपास की बीमारी ही खत्म हो गयी है, ब्लॉग पर छाप-छाप कर। ब्लॉग पोस्ट की उम्र 24 घंटे की होती है। तारीख बदलते ही उसे नयी पोस्ट चाहिए। ब्लागरों और साहित्यकारों की दुनिया ही अलग है। अगर शिविर में न आता तो पता न चलता। भला हो जय प्रकाश जी का जिन्होने मुझे मौका दिया इस रचना शिविर में सम्मिलित होने का। साहित्य से जुड़े रचनाकार ब्लॉगर्स को अवश्य ही रचना शिविर में उपस्थिति दर्ज करानी चाहिए और सभी को सुनना चाहिए। मैने भी यही किया। सभी के विचार सुने और ज्ञानरंजन हुआ।

प्रफ़ुल्ल कोलाख्यान (आलोचक)
साहित्य जगत में क्या घट रहा है? किस विधा में कहाँ पर क्या लिखा जा रहा है? यह शिविर में आने से ही पता चलता है।  ब्लॉग पर कुछ लोग सार्थक लेखन भी कर रहे हैं। आवश्यक है उनकी प्रशंसा होनी चाहिए। ब्लॉगर्स को सीखने का मौका कहीं पर भी नहीं छोड़ना चाहिए अगर ब्लॉगिंग को आप गंभीरता से लेते हैं तो रचना शिविरों में अवश्य ही उपस्थिति दर्ज कराएं। मनोयोग से सुने और सोचे, विचारें। द्वितीय सत्र में प्रफ़ुल्ल कोलाख्यान, नरेन्द्र पुंडरिक,ड़ॉ चितरंजन कर, अशोक सिंघई, रोहिताश्व, नासिर अहमद "सिकंदर" ने समकालीन कविता: भाव मूल्य और सरोकार पर धुवांधार व्याख्यान दिया। सिकंदर ने अपनी कविता के माध्यम से ही इस विषय पर प्रकाश डाला। हमने भी भाव मूल्य समझने की भरसक चेष्टा की। सरोकार भी जानना आवश्यक है। इस सत्र के अध्यक्ष प्रफ़ुल्ल कोलाख्यान ने समकालीन कविता पर अपने विचार व्यक्त किए। इसके बाद शाम का सत्र समाप्ति पर था। 

नीलकमल वैष्णव और लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल"
8 बजे से कवियों के कविता पाठ का आयोजन था। जिसमें नीलकमल वैष्णव और लक्ष्मीनारायण लहरे की कविताओं का विमोचन हुआ। कार्यक्रमों में पुस्तकों का विमोचन थोक में हो जाता है। अलग से कवियों को खर्च नहीं करना पड़ता, पर उनकी रचनाओं पर चर्चा नहीं हो पाती। शाम हो चुकी थी, जंजघर की व्यवस्था देखकर समझ आ गया था कि यह रात रुकने के लायक नहीं है। लैट्रिन बाथरुम सब जाम पड़े थे। कार्यक्रम की दृष्टि से स्थान सही था पर रात रुकने की दृष्टि से नहीं। हमने अपना ठिकाना बदल लिया। एक रात की नींद भी परेशान कर रही थी। अपने आपको मच्छरों के हवाले फ़िर कर देते तो राम नाम सत्य तय था। हमारे साथी राम भरोसा जी भरोसा तोड़ गए और मौका पाते ही सटक लिए। इतने गुरुतर व्याख्यान शायद उनके पल्ले नहीं पड़े। सूचना मिली की रात के कार्यक्रम में जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल जी की उपस्थिति रही। आमंत्रित अथिति रवाना हो गए अपने होटल में, बाकी निमंत्रित बच गए जंजघर में। हम भी अपने ठिकाने की ओर चल पड़े।

बाल कविताकार श्री रमेश तैलंग जी
बरसात रात से हो रही थी, सिर मुंडाते ही ओले भी पड़े, सर फ़ूट सकता था, वो तो छत आड़े आ गयी, वरना घायल भी हो सकते थे। सुबह जागने पर देखा तो बरसात चालु थी। हमें कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना था। बारिश 10 बजे तक होती रही। भतीजे ने कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाया। वहाँ पहुंच कर देखा तो ब्लॉगर साथी नदारत थे। फ़ोन लगाने पर पता चला कि वे भी कूच कर गए हैं। दैनिक नित्य क्रिया के लिए स्थान ढूंढते रहे, फ़िर घर जाना ही सही समझा। कार्यक्रम की शुरुवात हो चुकी थी। बालगीत पर चर्चा होनी थी। प्रतिष्ठित बालगीत कार शम्भूलाल शर्मा जी और दिल्ली से पधारे रमेश तैलंग जी ने अपने बाल गीत पढे, साथ ही अपने बाल काव्य यात्रा के संस्मरण भी बांटे। रमेश तैलंग जी ब्लॉग पर भी हैं। बाल कविताकार का बाल मन होता है तभी उनकी स्वझरणी से बाल कविताएं झरती हैं। उन्होने बताया कि सबसे पहली बाल कविता उन्होने शिशु की तुतली भाषा में ही लिखी थी। इस सत्र में बाल कविताओं पर गहन विमर्श हुआ और भोजनावकाश हो गया।

कवि रवि श्रीवास्तव जी
अगले सत्र में नवगीत पर चर्चा हुई। विषय था "नवगीत: लघुक्षण में सघन भाव व्याकुलता"। इस सत्र में गजलकार मुमताज भाई, डॉ चितरंजन कर, श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी (लखनऊ) ने नवगीत पर अपना दृष्टिकोण प्रगट किया। श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी ने बताया कि उन्होने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को बहुत करीब से देखा, जाना और समझा हैं। वे त्रिपाठी जी के घर समीप ही रहते थे। मुझे रवि श्रीवास्तव जी का नवगीत पर भाषण बहुत पसंद आया। उन्होने कहा कि - मैं बहुत संक्षिप्त में अपनी बात कहुंगा, नयी कविता का कवि हूँ लेकिन नवगीत बहुत पढता हूँ। गीत एवं नवगीत मुझे बहुत पसंद हैं। ऐसा नहीं है कि एक नयी कविता का कवि हो और उसकी दुरी नवगीत से बनी रहे। मैं अपनी बात जो नारायण लाल परमार की पंक्तियों से प्रारंभ करता हूँ-

प्रलोभन थे मगर मन के नियम संयम नहीं डूबे, 
सघनतम आस्था के द्वीप सुंदरतम नहीं डूबे, 
यहाँ पागल अंधेरे की जरा सी धमकी पर, 
विवश हो सूर्य भी डूबा वहां हम नही डूबे। 

सूर्यभानु गुप्त की 4 लाईने याद आ रही हैं, - 

छत पर जमी  हुई  है काई, धूप के पांव भी फ़िसलते हैं। 
हम तो सूरज हैं सर्द मुल्कों के, मुड आता है तो निकलते हैं। 

बाल स्वरुप राही की पंक्तियाँ - 

गजब का एक सन्नाटा कहीं कोई पत्ता नहीं हिलता,
किसी कमजोर तिनके का समर्थन भी नहीं मिलता। 
कहीं उन्माद हँसता है कहीं उम्मीद रोती है। 
हाँ वहीं से, वहीं से जिन्दगी प्रारंभ होती है।
आज के छत्तीसगढ के इस दौर में सबसे अच्छे नवगीत अम्बिकापुर के अनिरुद्ध नीरव लिख रहे हैं। देश की तमाम पत्र पत्रिकाओं में अनिरुद्ध नीरव के गीत छप रहे हैं। नवीनतम गीतों को लेकर उनका अभी एक संग्रह आया है, अदभुत संग्रह है "उड़ने की मुद्रा में"। आप पढ सकते हैं, पूरे देश में जो लिखा जा रहा है उस पर भारी पड़ेगा। त्रिभुवन पाण्डे को मैं याद कर रहा हूँ। "सुनो सुत्रधार और कागज की नाव" पिछले 4 वर्षों में दो विशुद्ध नवगीत के संग्रह आए हैं। मैं राजिम में रहता हूँ, पवन दीवान ने बहुत अच्छे नवगीत लिखे हैं। हिन्दी साहित्य के हमारे पुरोधा, संज्ञा जैसी पत्रिका के सर्जक और पृथक छत्तीसगढ राज्य जो बना है, दुनिया ने सपना देखा था, लेकिन हरिठाकुर से बड़ा सपना किसी ने नहीं देखा। हरि ठाकुर बहुत बड़े नवगीतकार थे। भिलाई में अभी हैं अशोक शर्मा, केशव पाण्डे, मोहन भारती और भगवान स्वरुप सरस पैदा हो तो हुए मैनपुरी इटावा में और नौकरी करने आए छत्तीसगढ और छतीसगढ में रहते हुए उनकी मृत्यु हो गयी, आज से तीस साल पहले उनका नवगीत संग्रह "नैनों से झांकता सूरज" आया था, अगर कोई आज भी उस संग्रह के नवगीतों को पढेगें तो अगर कहेगें कि यह पिछले साल ही निकला है तो लोग मान लेगें। ये समय से बहुत पहले भगवान स्वरुप सरस ने लिख लिया था। ( आगे आप इसकी रिकार्डिंग सुन सकते हैं।)



बाल कविताकार शम्भुलाल शर्मा करमागढ
इस सत्र की समाप्ति के पश्चात आयोजकों द्वारा निर्णय लिया गया कि तीन दिन के कार्यक्रम को आज ही समाप्त कर दिया जाए। शाम 7 बजे चाय पानी के पश्चात कवियों को सुना जाएगा और सम्मान चिन्ह के साथ सम्मान पत्रों दिए जाएगें। चाय-पान के पश्चात पुन: सत्र प्रारंभ हुआ। जनकवि आनंदीसहाय शुक्ल जी का शाल श्री फ़ल से सम्मान किया गया। इसके पश्चात कविता पाठ हुआ, कविताओं पर विशेषज्ञों ने अपनी टिप्पणियाँ दी। इस सत्र की समाप्ति के पश्चात प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन के हाथों उपस्थित कवियों और कहानीकारों का सम्मान हुआ। कुल मिलाकर रचना शिविर का आयोजन सार्थक रहा। हमें बहुत कुछ सीखने मिला। खाली दिमाग लेकर गए थे,इसमें बहुत कुछ काम की चीजें भरकर लाए जो जीवन में मार्ग दर्शन करेगीं। अगर प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान छत्तीसगढ में न होता तो मैं छत्तीसगढ के साहित्यकारों से नहीं मिल पाता और देश के प्रख्यात साहित्यकारों को सुन नहीं पाता। अनुभव और ज्ञान घर बैठे नहीं मिलते, इसलिए मैं यायवर की तरह भटकता रहा हूँ। एक स्थान पर बैठ जाऊं तो बुद्ध हो जाऊंगा, बुद्ध होने से भला बुद्धू यायावर होना ठीक है, कमियाँ हर आयोजन में होती हैं। इसलिए सार सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय। इस आयोजन के लिए प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान को साधुवाद एवं कोटिश धन्यवाद।

16 टिप्‍पणियां:

  1. हरेक ब्लागर साहित्यकार जैसा हो जाये की तर्ज़ वाली आपकी अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही लग रही है :)

    ब्लागर एक अलग किस्म का माध्यम है जहां साहित्यकार भी खप सकते हैं :)

    पत्रकार , छायाकार , तजुर्बेकार ,नातजुर्बेकार ,विज्ञान , खेलजगत जैसे अनेकों आयाम हैं जिनके लिए साहित्यकारों से सीखने का सन्देश अवांछित सा लगता है :)

    संयोग से स्वर्गीय प्रमोद वर्मा जी के साथ काम करने के वक़्त के कुछ संस्मरण है ! कभी अवसर मिला तो ब्लाग में डाल देंगे हम भी :)

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  2. @ali - आपसे सहमत हूँ, पर मैने कविता,कहानी, व्यंग्य आदि लिखने वाले ब्लॉगर्स के लिए कहा है। :)

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  3. सार्थक आयोजन कमियों के बावजूद असरदार होता है , जिसे आपने खुले मन से स्वीकार भी !
    रोचक रपट !

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  4. ऐसे रचना शिविरों का अपना महत्व होता है .....एक रचनाकर का बहुपठित और बहुश्रुत होना आवश्यक है ....जहाँ तक ब्लॉगिंग की बात है वहां पर जो कुछ भी हमारे मन में आता है वही कुछ हम कह जाते हैं और उसे साहित्य की संज्ञा दे देते हैं ....लेकिन साहित्य के मानकों पर पहुंचना आवश्यक है , उन्हें समझना आवश्यक है ......! तभी इसकी सार्थकता बनी रहेगी ....आपने एक अच्छे अवसर का लाभ उठाया इसके लिए आपको ढेरों शुभकामनाएं .....!

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  5. रिसप्शन में रहकर इतनी भारी रपट! अच्छा ही लगा. आभार.

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  6. रोचक विवरण, रचनात्मकता यूँ ही पल्लवित होती रहे।

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  7. टेक इट इजी वाले ललित जी का यही तो लालित्‍य है.

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  8. आपकी हर-एक पोस्ट जानकारी पूर्ण होती है, आभार |

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  9. भैया जी नमस्कार...
    एक बार फिर से बधाई आपके इस पोस्ट के लिए, सुन्दर और रोचक जानकारी को आपने दी जो हम दूसरे दिन रचना शिविर से अपनी कुछ परेशानियों के साथ शिविर अधूरा छोड़ घर आ गए थे वो जानकारी आपने पूर्ण करा दी है इसका धन्यवाद

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  10. काफी कुछ समाहित है रिपोर्ट में.सार्थक .

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  11. केवलजी की बातों से पूर्णतया सहमत हूँ , यदि हम ब्लोगिंग को साहित्य के नजरिये से देखते हैं तो उसे साहित्य के मानकों पर पहुंचना आवश्यक है , तभी इसकी सार्थकता है.
    बहुत अच्छी रिपोर्ट लिखी है ललितजी आपने सही है इन शिविरों से कहाँ क्या हो रहा है सब पता चल जाता है, लेकिन हमें आपकी इस पोस्ट द्वारा बहुत सी जानकारी मिल गयी... आभार और शुभकामनाये...

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  12. चलिये कुछ तो हुआ और आगे भी होगा रही बात ट्रेनिंग या रचना शिविर की तो लेखक की ट्रेनिंग उसका पठन ही होता है शैली सुधार के लिये वरिष्ठो का मार्गदर्शन चाहिये। खैर अगले शिविर मे जरूर साथ जायेगे गुरू चेला :)

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  13. बढि़या रपट, आपके साथ-साथ हम भी घूम आये रायगढ़.

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  14. चलिए कही तो महिलाओं का नाम सार्थक हुआ ...

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  15. आपकी विस्तृत, रोचक और सार्थक पोस्ट ने रचना शिविर की सैर करवा दी।
    हमारे लिये तो एसा रहा कि हल्दी लगी न फिटकरी और चोखा रंग आ गया।

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