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रविवार, 5 फ़रवरी 2012

माघ शुक्ल त्रयोदशी शिल्पाचार्य भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिन --- ललित शर्मा

प्राचीन भारतीय विज्ञान का कोई सानी नहीं है। जब हम इस विषय पर सोचते हैं तो गौरवान्वित हो उठते है। आज जिसे हम इन्ड्रस्ट्री कहते हैं इसे वैदिक काल में शिल्प शास्त्र या कलाज्ञान कहा जाता था। इसके जानने वाले विश्वकर्मा,शिल्पी या आचार्य कहलाते थे। यज्ञ मंडप, यज्ञ कुंड, यज्ञ पात्र, शस्त्रास्त, शकट और रथ आदि जितने भी कारीगरी से संबंध रखने वाले याज्ञिक पदार्थ हैं इनका निर्माण शिल्पकारों के हाथों ही होता आया है। यज्ञ पात्र मिटटी, काष्ठ, पत्थर, कांस्य, लकड़ी, तांबा, पीतल, सोने और चांदी के हुआ करते थे। यज्ञों में अनेक प्रकार के अन्नों एवं औषधियों की आवश्यकता होती थी। इसे पैदा करने के लिए भी औजारों की आवश्यकता होती थी। हल, फ़ाल इत्यादि जोतने के लिए, चक्र आदि पानी निकालने के लिए और जमीन खोदने, काटने, पीसने, कूटने के उपकरण बनाए जाते थे। इसी तरह यज्ञ की रक्षा के लिए वाणों से लदी गाड़ियाँ और रथ भी होते थे। एक चक्रवर्ती राजा से लेकर किसान तक के आवश्यक यंत्र शस्त्रास्त्र तैयार किए जाते थे। उन दिनों कारीगरों का बहुत मान था। यह भगवान विश्वकर्मा की ही देन हैं। शास्त्र कहते हैं कि भौवन पुत्र विश्वकर्मा ने अथर्ववेद के उपवेद अर्थवेद की रचना की। इसमें शिल्पकारी से धनोर्पाजन की विद्या बताई।

विश्वकर्मा एवं विश्वकर्मा वंशियों द्वारा निर्मित की गए वैज्ञानिक यन्त्रों से तो जन साधारण विज्ञ है। वैदिक काल से लेकर आज तक विश्वकर्मावंशी परम्परागत रुप से अपने निर्माण के कार्य में लगे हैं। आज शिल्पज्ञान के दृष्टा विश्वकर्मा के विषय में इसलिए लिख रहा हूँ कि माघ शुक्ल त्रयोदशी को उनका जन्मदिन है। शास्त्रों के अनुसार माघ शुक्ल त्रयोदशी को विश्वकर्मा भगवान का जन्म हुआ था। अंग्रेजों के आने के बाद निर्माण के देवता के रुप में इनकी पूजा 17 सितम्बर को की जाने लगी। इसके पीछे किसकी क्या मान्यता है इसकी मुझे जानकारी नहीं है। पर 17 सितम्बर विश्वकर्मा जी का जन्मदिन न होकर पूजा दिवस है। इसलिए 17 सितम्बर को विश्वकर्मा भगवान का पूजा दिवस एवं माघ सुदी त्रयोदशी को जन्मदिन मनाना चाहिए।

विश्वकर्मावंशियों के निर्माण कार्यों को आज भी देख कर दांतो उंगली दबाना पड़ता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इनके शिल्प कार्य आश्चर्य चकित कर देने वाले होते हैं। एक घटना का उल्लेख करना चाहूंगा। यह घटना अधिक पुरानी नहीं है। छत्तीसगढ अंचल के मरवाही इलाके में सोन नदी पर टिपरडोल गांव के पास एक पुल का निर्माण होना था। जिसके निर्माण के लिए तत्कालीन सांसद बहुत प्रयास कर रहे थे। लेकिन सोन नदी में पुल निर्माण के लिए खुदाई करने पर रेत की थाह नहीं मिल पा रही थी। अगर थाह मिलती तभी पुल के लिए पिलर्स का निर्माण हो पाता। शासकीय इंजीनियरों ने खुदाई करके देखी पर थाह नहीं मिली। इसलिए उन्होने सांसद महोदय को कह दिया कि इस नदी पर पुल का निर्माण नहीं हो सकता। सांसद भी निराश हो गए। शासकीय इंजीनियरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए। सांसद महोदय किसी भी कीमत पर पुल का निर्माण कराना चाहते थे। कई वर्षों तक यह संघर्ष चलता रहा। कोई भी इंजीनियर जोखिम उठाने को तैयार नही था।

तभी इंजीनियरों को पता चला कि कटनी के पास गड़उवा गाँव में एक कारीगर रहता है जिसका नाम अट्ठीलाल विश्वकर्मा है। वह इस तरह के पुल बना सकता है। पुल भी छोटा नहीं था। इसकी लम्बाई 50 मीटर थी। वे अट्ठीलाल के पास गए और उससे पुल के विषय में बताया और पूछा कि वह इस पुल को बना सकता है क्या? अट्ठी लाल शिक्षा की दृष्टि से कुछ भी पढा नहीं था। उसने नदी का निरीक्षण किया और फ़िर इंजीनियरों से कहा कि वह इस पुल को बना सकता है। अगर वे चाहें तो जोखिम उठा सकते हैं। सांसद से मिलने पर उन्होने भी हामी भर दी और अट्ठीलाल के निरीक्षण में पुल का निर्माण शुरु हो गया। 1997 में टिपरडोल के पास सोन नदी पर पुल बनकर तैयार हो गया। जो आज तक चल रहा है। जिस पुल के निर्माण के लिए खंबो की थाह नहीं मिल रही थी और सारा इंजीनियरिंग अमला परेशान था। उस पर एक अनपढ अट्ठीलाल विश्वकर्मा ने पुल बना कर तैयार कर दिया।

कहते हैं कि चूहे के बच्चे को किसने बिल बनाना सिखाया। किसी ने नहीं। वह तो अपनी माँ के पेट से सीख आया है। इसी तरह विश्वकर्मावंशिय परम्परागत कारीगरों को किसी इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय से डिग़्री लेने की आवश्यकता नहीं है। ये तो पैदाइशी इंजीनियर होते हैं। विश्वकर्मावंशियों के निर्माण की गाथाओं से वेद, पुराण एवं स्मृतियां भरी पड़ी हैं। इनके निर्माण वर्तमान में भी दिखाई देते हैं। शिल्पकारों के कार्य पुरातत्व की खुदाई में प्राप्त होते हैं। भवन विन्यास एवं मूर्तिकला के बेजोड़ नमूने आज भी हजारों वर्षों के पश्चात ज्यों के त्यों खड़े है। निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा जी के जन्म दिवस पर हम उनकी वंदना करते हैं। उनको कृतज्ञता स्वरुप एक स्तुति मैने लिखी है वह भी इस आलेख के साथ प्रस्तुत है।

पोस्ट अपडेट ( 9/30 बजे)


लगभग एक साल की मेहनत के बाद दीपक विश्वकर्मा ने ग्वालियर सेंड पत्थर की नाव बनाई है। दीपक की यह नाव है तो पत्थर की लेकिन तैरती ठीक लकड़ी की नाव जैसी है। इस नाव में राम, लक्ष्मण, सीता सवार हैं तथा उसे केवट चला रहा है। दीपक के मुताबिक यह नाव दो फुट लम्बी तथा नौ इंच चौड़ी है। इसको बनाने में 70 हजार की लागत आई है। वह कहते हैं कि नाव का संतुलन बनाने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करना पड़ी। संतुलन बनाने के लिए तीन माह तक कड़ी मेहनत करने के बाद वह पूरी तरह पत्थर से बनी इस नाव को पानी पर तैराने में सफल रहे। दीपक द्वारा बनाई गई इस पत्थर की नाव का दिल्ली की प्रदर्शनी के लिए भी चयन हुआ है।

जयति जय विश्वकर्मा विधाता
सकल सृष्टि के तुम निर्माता

तुमने जल,थल,पवन बनाए
अंतरिक्ष में गगन समाए
उसमें सूरज चांद लगाए
आकाश में तारे चमकाए

सब मंगल सुखों के हो प्रदाता
जयति जय विश्वकर्मा विधाता

रंग बिरंगे फ़ूल खिलाए
नर,नारी और जीव बनाए
पतझड़ वर्षा बसंत बनाए
रथ पुष्पक विमान चलाए

सज्जन दुर्जन सबका दाता
जयति जय विश्वकर्मा विधाता

यज्ञ, योग, विज्ञान बनाए
वेद ॠचाओं में है समाए
गिरि कंदरा महल बनाए
धरती पर अनाज उपजाए

सकल कष्टों के तुम हो त्राता
जयति जय विश्वकर्मा विधाता

अग्नि में ज्योति प्रकटाए
जनहित में आयूध बनाए
मेघों से जल बरसाए
सकल भू का हित करवाए

"शिल्पकार" ज्ञान है तुमसे पाता
जयति जय विश्वकर्मा विधाता

14 टिप्‍पणियां:

  1. विश्वकर्मा जी की जानकारी के लिए धन्यवाद .
    अकलतरा आइये माटी का गड़ फोर्ट के साथ
    दलहा पहाड़ का आनंद लीजिये .
    सर्वेस्वरी समूह का अघोर आश्रम भी देख लीजिये

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  2. @ विश्वकर्मावंशिय परम्परागत कारीगरों को किसी इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय से डिग़्री लेने की आवश्यकता नहीं है। ये तो पैदाइशी इंजीनियर होते हैं।

    एकदम सही कहा आपने .....जानकारी पूर्ण पोस्ट ...!

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  3. बातें बहुतेरी होती हैं, लेकिन अट्ठीलाल नामोल्‍लेख सहित प्रसंग का जिक्र कर आपने इस बात को पक्‍का आधार दिया है.

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  4. सच में आश्चर्य होता है, वैज्ञानिकता की स्पष्ट आधार है हमारी विश्वकर्मीय परम्परा..

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  5. विश्वकर्मा जयंती पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं... सही कहा है आपने गर्व है हमें अपनी इस विश्वकर्मीय परम्परा पर... सार्थक आलेख के लिए आपका आभार

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  6. गुलामी के चलते हमारी रचनात्मकता खत्म हो गई.

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  7. भगवान विश्वकर्मा की जयन्ती और विश्वकर्मा पूजन दिवस के अंतर को आज हमारे भारतीय समाज में विशेष रूप से प्रचारित करने की ज़रूरत है. अधिकाँश को इसकी जानकारी नहीं है,इसलिए पूजन दिवस को ही जयन्ती मान लेते हैं. ज्ञानवर्धक आलेख. शिल्प देवता की सुंदर आराधना और ज्ञात-अज्ञात ,अल्प ज्ञात तथ्यों के सार्थक विश्लेषण और प्रस्तुतिकरण के लिए आभार.

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  8. जानकारी पूर्ण पोस्ट ..शुभकामनाएं..

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  9. wishwa ke pratham engineer bhagwan wishwakarma ji ke upr sarthak lekh aur jankari ke is aalekh ke liye bahut bahut badhai....

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  10. हमारा कोई भी परंपरागत ज्ञान अवैज्ञानिक नहीं .. विदेशी शासन काल में इन्‍हें नष्‍ट कर दिया गया है .. बहुत ही ज्ञानवर्द्धक पोसट .. बढिया स्‍तुति भी !!

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  11. इतनी ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आपका धन्यवाद

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  12. jay shri vishkarma bhgban ki jay ho -jay shri ram- RK YADAV -MO 9993315077

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