चाय आप अभी पीयेगें या स्नानाबाद? सुनकर आँख खुली तो बाबु साहब पूछ रहे थे। घड़ी साढे पांच बजा रही थी। मैने कहा - अभी ही, स्नान तो उसके बाद में ही होगा। बाबु साहब चाय बनाकर लाते हैं और अपनी सुबह हो जाती है। बाबु साहब तैयार हो गए हैं और हम भी थोड़ी देर में तैयार हो लेते हैं। घोड़ी भी दाना-पानी लेकर तैयार हो गयी यात्रा के लिए। आज हमारा पहला पड़ाव जांजगीर का विष्णु मंदिर है। बहुत दिनों से तमन्ना थी इसे देखने की। परन्तु सुअवसर आया ही नही था। आज मुहूर्त निकला इसे देखने का। हम 6 बजे जांजगीर के लिए चल पड़े। सूर्योदय हो चुका था। अधिक समय होने पर गर्मी झेलने को तैयार रहना था। विष्णु मंदिर देखते ही तबियत हरी-भरी हो गयी। भीतर से आवाज आई कि "इसे तो पहले ही देख लेना था।" लेकिन समय और अवसर भी कोई चीज होती है। बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता। सामने दो मंदिर दिखाई दे रहे हैं, एक अधूरा और एक पूरा। अधुरा मंदिर लाल बलुआ पत्थरों का बना है तथा दूसरा मंदिर चूना पत्थरों का। चूना पत्थर छत्तीसगढ में बहुतायत में पाए जाते हैं। अधिकतर निर्माण इसी से होता है।
जांजगीर जाज्वल्य देव की नगरी है। यह मंदिर कल्चुरी काल की मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर में जड़े पत्थर शिल्प में पुरातनकालीन परंपरा को दर्शाया गया है। अधूरा निर्माण होने के कारण इसे "नकटा" मंदिर भी कहा जाता है। इतिहास के झरोखों में जाज्वल्य देव द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण 12 वीं शताब्दी में होना बताया जाता है। विष्णु मंदिर कचहरी चौक से आधा किलोमीटर की दूरी पर जांजगीर की पुरानी बस्ती के समीप है। यह मंदिर कल्चुरी कालीन मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित इंस मंदिर की दीवारें भगवान विष्णु के अनेकों रूपों के अलावा अन्य देवताओं कुबेर, सूर्यदेव, ऋषि मुनियों, देवगणिकाओं की मूर्तियों से सुसज्जित किन्तु खंडित है। विष्णु मंदिर के पास ही कल्चुरी काल का एक शिव मंदिर भी है। मंदिर का अधिष्ठान पांच बंधनों में विभक्त है। नीचे के बंधन सादे किन्तु उपरी बंधनों में रत्न पुष्प अलंकरण है। अधिष्ठान के पार्श्व में गजधर दो भागों में विभक्त है। अंतराल और गर्भगृह के भद्ररथों पर देव कोष्ठ हैं। कर्णरथों पर दिपाल एवं अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी गई।
विष्णु मंदिर के बगल में ही विशाल भीमा तालाब है। सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल में फैल भीमा तालाब को भीम ने बनाया था, ऐसी मान्यता है। मंदिर के चारों ओर अत्यन्त सुंदर एवं अलंकरणयुक्त प्रतिमाओ का अंकन है जिससे तत्कालीन मूर्तिकला के विकास का पता चलता है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार के दोनो ओर देवी गंगा और जमुना के साथ द्वारपाल जय-विजय स्थित हैं। इसके अतिरिक्त त्रिमूर्ति के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति है। ठीक इसके ऊपर गरुणासीन भगवान विष्णु की मूर्ति स्थित है। मंदिर की जगती के दोनों फलक में अलग-अलग दृश्य अंकित हैं। एक फलक पर धनुर्धारी राम, सीता, लक्ष्मण तथा रावण और मृग अंकित हैं। दूसरे फलक पर रावण का भिक्षाटन और सीता हरण के दृश्य है।श्री राम द्वारा मृग वध और रावण द्वारा सीता हरण के दृश्य मंदिर के प्रवेशद्वार के दोनों पार्श्वों पर दो-दो के जोड़े में हैं जो दो मुख्य खंडों में बँटे हैं।
इसमें लंबोदर तथा त्रिशीर्ष मुकुट युक्त कुबेर का अंकन है। मंदिर के शिखर में मृदंगवादिनी, पुरुष से आलिंगनबद्ध मोहिनी, खड्गधारी, नृत्यांगना मंजुघोषा, झांझर बजाती हंसावली आदि देवांगनाएँ अंकित हैं। मंदिर की उत्तरी जंघा में आंखों में अंजन लगाती अलसयुक्त लीलावती, चंवरधारी चामरा, बांसुरी बजाती वंशीवादिनी, मृदंगवादिनी, दर्पण लेकर बिंदी लगाती विधिवेत्ता आदि देवांगनाएं स्थित हैं। दक्षिण जंघा में वीणा वादिनी सरस्वती, केश गुम्फिणी, लीलावती, हंसावली, मानिनी, चामरा आदि देवांगनाएँ स्थित हैं।मंदिर के उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी जंघा में विभिन्न मुद्राओं में साधकों की मूर्तियाँ अंकित है। इसके अतिरिक्त उत्तरी जंघा के निचले छेद में स्थित मूर्ति तथा प्रवेशद्वार के दोनों पार्श्वों में अंकित संगीत समाज के दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्य देव विराजमान हैं। मूर्ति का एक हाथ भग्न है लेकिन रथ और उसमें जुते सात घोड़े स्पष्ट हैं। यहीं नीचे की ओर कृष्ण कथा से सम्बंधित एक रोचक अंकन मंदिर के है, जिसमें वासुदेव कृष्ण को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाए गतिमान दिखाये गये हैं। इसी प्रकार की अनेक मूर्तियाँ नीचे की दीवारों में खचित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय में बिजली गिरने से मंदिर ध्वस्त हो गया था जिससे मूर्तियां बिखर गयी। उन मूर्तियों को मंदिर की मरम्मत करते समय दीवारों पर जड़ दिया गया। मंदिर के चारो ओर अन्य कलात्मक मूर्तियों का भी अंकन है जिनमे से मुख्य रूप से भगवान विष्णु के दशावतारो में से वामन, नरसिह, कृष्ण और राम की प्रतिमाएँ है। छत्तीसगढ के किसी भी मंदिर मे रामायण से सम्बंधित इतने दृश्य कहीं नही मिलते जितने इस विष्णु मंदिर में हैं। यहाँ रामायण के 10 से 15 दृश्यो का भव्य एवं कलात्मक अंकन देखने को मिलता है। इतनी सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है, यह मंदिर सूना है।
किंवदंती है कि एक निश्चित समयावधि (कुछ लोग इस छैमासी रात कहते हैं) में शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर के इस मंदिर के निर्माण में प्रतियोगिता थी। भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि जो मंदिर पहले पूरा होगा, वे उसी में प्रविष्ट होंगे। शिवरीनारायण का मंदिर पहले पूरा हो गया और भगवान नारायण उसमें प्रविष्ट हुए। जांजगीर का यह मंदिर सदा के लिए अधूरा छूट गया। एक अन्य दंत कथा के अनुसार इस मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता में पाली के शिव मंदिर को भी सम्मिलित बताया गया है। इस कथा में पास में स्थित शिव मंदिर को इसका शीर्ष भाग बताया गया है। एक अन्य दंतकथा जो महाबली भीम से जुड़ी है, भी प्रचलित है। कहा जाता है कि मंदिर से लगे भीमा तालाब को भीम ने पांच बार फावड़ा चलाकर खोदा था। किंवदंती के अनुसार भीम को मंदिर का शिल्पी बताया गया है।
इसके अनुसार एक बार भीम और विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर बनाने की प्रतियोगिता हुई। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी-हथौड़ी नीचे गिर जाती तब उसका हाथी उसे वापस लाकर देता था। लेकिन एक बार भीम की छेनी पास के तालाब में चली गयी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सवेरा हो गया। भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और गुस्से में आकर उसने हाथी के दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार मंदिर अधूरा रह गया। आज भी मंदिर परिसर में भीम और हाथी की खंडित प्रतिमा है। खंडित हाथी की प्रतिमा सीढियों के उपर लगी है।
हम विष्णु मंदिर के कुछ चित्र लेते हैं फ़िर हमारी सवारी चाम्पा की तरफ़ बढ चलती है। मुझे मड़वारानी होते हुए पटियापाली जाना है, बाबु साहब ने चाम्पा में एक नया सारथी तैयार कर रखा था जो मुझे मंड़वा रानी दर्शन करवा कर पटियापाली स्कूल तक पहुंचाता और बाबु साहब कुछ आवश्यक कार्य निपटा कर पटियापाली में मुझसे मिलते। चाम्पा स्टेशन पर पहुंचने पर यादव जी स्टेशन पर मिल गए। जाते ही उन्होने प्रणाम कर नारियल का प्रसाद दिया और हम कुछ फ़ल लेकर मड़वा रानी की तरफ़ चल पड़े। रास्ते को पहचानने में कुछ समय लगा। हम चाम्पा-कोरबा मार्ग पर जा रहे थे और इस मार्ग पर मै पहले भी आ चुका हूँ। मड़वारानी पहुंच कर दर्शन किए, यादव ने बताया कि मड़वा रानी का स्थान पहाड़ी पर है और एक मंदिर नीचे भी बना हुआ है। लोग यहीं दर्शन करते हैं। मड़वारानी के पास ही जगदीश पनिका का गांव कोठारी है, जहां मै दो साल पूर्व आया था।