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बुधवार, 20 जून 2012

मनसर की ओर यायावर ------------- ललित शर्मा

 अयोध्या का ददुवा राजा महल
जीवन चलने का नाम, चलते रहो जब तक हो प्राण। चलना ही जीवित रहने का परिचायक है, ठहरना मुर्दा होने के समान। रमता जोगी और बहता दरया, दोनो ही उत्तम होते हैं। साधू रमता रहे तो दाग लगे न कोय। साधू तो हूँ पर जोगी नहीं हूँ। साधना मुझे आता है, जोग गृहस्थ का लिया है। गृहस्थी जीवन में समय निकाल कर यायावरी करना बहुत कठिन कार्य है। फ़िर भी कुछ समय चुरा ही लिया जाता है। गत फ़रवरी माह में पारिवारिक कार्यों से नागपुर गया था, फ़िर वहाँ से उमरेड से शंकरपुर होते हुए हीरापुर गया। जो कि नागपुर से लगभग सौ किलोमीटर है। वहाँ एक मैगालिथिक पुरातात्विक साईट की खोज की है डेक्कन विश्वविद्यालय के कांति कुमार ने। तब से इस साईट को जाकर देखने की इच्छा थी। हम साईट पर बाईक से गए, बहुत सारे फ़ोटो लिए। लेकिन उसके बारे में लिखने से पहले ही मेरा मोबाईल गुम हो गया और सारी मेहनत पर पानी फ़िर गया। हीरापुर की साईट का एक भी चित्र  नहीं था मेरे पास। इसलिए उस पर लिख भी न सका। वहां पर किसी ने बताया था कि आस-पास की पहाड़ियों में आदिम मानव निर्मित शैल चित्र भी हैं। साथ यह भी चेताया था कि उस पहाड़ी पर शेर और भालु भी हैं। इसलिए दिन रहते ही जाना और आना पड़ता है। देखते हैं दुबारा कब समय मिलता है जाने का?

कवियत्री संध्या जी और सत्येन्द्र जी
तीन चार किलोमीटर पहाड़ी पर चल कर गुफ़ाएं देखना और वहाँ शैल चित्रों का अवलोकन करना, कष्टप्रद कार्य है। पर मुझे पसंद है, इसलिए फ़िर कभी जाना चाहुंगा। दुबारा महात्मा फ़ूले टैलेंट अकादमी के कार्यक्रम में 14 अप्रेल को अंजु चौधरी के निमंत्रण पर जाना हुआ। पहुंचने के पहले ही संध्या जी और सत्येन्द्र जी ने कार्यक्रम बना लिया था कि 15 अप्रेल को रामटेक जाएगें। रामटेक का नाम मैने बहुत सुना था। कुछ मराठी भाई रामटेके सरनेम भी लगाते हैं। इसलिए यह नाम जाना पहचाना लगा और रामटेक जाने का मन भी बना लिया। नागपुर से रामटेक 56 किलोमीटर है और वर्धारोड़ सोमलवाड़ा से 70 किलोमीटर है। अप्रेल की भीषण गर्मी में वहाँ जाना मूर्खता से कम नहीं था, परन्तु पहले से कार्यक्रम बन गया था,हमने बाईक से जाना तय कर लिया। पारा 45-46 डिग्री पर चल रहा था। सुबह 8 बजे से ही धूप चमकने लगती थी। सुबह की सैर से लौटने में ही पसीने की धार बह निकलती थी। बाईक से लम्बा सफ़र करना तकलीफ़देह तो है, पर बाईक से ही चल कर आस पास के सभी स्थान आसानी से देखे जा सकते हैं। सड़क पर जाम लगने की स्थिति में थोड़ी सी ही जगह मिलने पर आसानी से निकला जा सकता है। इस तरह समय की बचत के साथ सफ़र चलता रहता है।

कुलेश्वर दर्शन
सुबह 10 बजे हम तीनों (मैं, संध्या जी, सत्येन्द्र जी) दो मोटर सायकिलों पर प्रात:रास के प्रश्चात चल पड़े। वर्धा रोड़ सोमलवाड़ा से हम सीधे ही नेशनल हाईवे 7 पर सवार पर हो गए। यह हाईवे कामठी के बाद कन्हान पार करके मनसर जाता है, यही से आगे रामटेक के लिए राज्य मार्ग है। सत्येन्द्र जी ने गर्मी से बचने के लिए टोपी लगा ली और संध्या जी ने स्कार्फ़ बांध लिया। मुझे आदत नहीं सिर ढक कर चलने की, चाहे कितनी भी लू चले। एक गॉगल आँखों पर चढा लिया वही बहुत है। हेलमेट लगाने में भी समस्या होती है। पहली बार जब हेलमेट लगाया था, तब एक बार में जी भर के पान थूक लिया और हेलमेट की नमस्ते हो गयी। हमने भी उससे पीछा छुड़ा लिया। हाईवे नम्बर 7 पर चलते हुए हम कामठी पहुंचे। शहर के भीतर से चल कर पुन: हाईवे पर आ गए। तिराहे पर मुझे मनपसंद सामान मिल गया। मतलब बर्फ़ की चुस्की (गोला भी कहते हैं) मिल गयी। तुंरत गाडी किनारे लगाई और तीन चुस्की बनवाई। जलती बरसती गर्मी में चुस्की से कुछ राहत मिली। पर एक चुस्की से क्या होना था। दूसरी भी बनवा ली, पहली खत्म होते ही। यहां से रिचार्ज होकर आगे बढे, 4 लाईन हाईवे पर फ़ुल स्पीड में बाईक ड्राईव करने का मजा आ रहा था। सड़के के किनारे पेड़ों पर तोरी (तोरई) की सूखी बेलें लटकी हुई थी। उनमें सूखी तोरई भी लटक रही थी। एक बार तो मन किया कि रुक कर इसे तोड़ा जाए। (ग्रामीण जानते हैं सूखी हुई तोरई किस काम आती है) समय की कमी को देखते हुए रुकना ठीक न समझा।

मनसर से रामटेक की ओर
कन्हान से लगभग 25 किलोमीटर चलने पर मनसर कस्बा है यहाँ से एक रास्ता  दाहिनी तरफ़ रामटेक के लिए जाता है। इस रास्ते पर स्वागत द्वार बना हुआ है। मनसर नाम देखते ही मेरे मन में बिजली सी कौंधी। लगा कि यह नाम कहीं सुना है, क्यों सुना, किस लिए सुना, किसने सुनाया?  कुछ याद नहीं, बस नाम कुछ जाना पहचाना सा लगा। मैने सत्येन्द्र जी को बाईक रोकने के लिए इशारा किया और किसी दुकान वाले से इस गाँव की विशेषता के बारे में पूछने कहा। पूछने पर पता चला कि यहाँ से 4 किलो मीटर पर खुदाई में कोई प्राचीन स्थल मिला है। तब दीमाग की घंटी बज गयी, एक दिन रायपुर पुरातत्व परिमंडल के तात्कालीन अधीक्षण प्रवीण मिश्रा जी ने इसके विषय में बताया था और यहाँ जाकर एक बार देखने कहा था, साथ किसी भी जानकारी के लिए नागपुर पुरातत्व मंडल में कार्यरत नंदिनी साहू जी का मोबाईल नम्बर भी दिया था। अब तो सोने में सुहागा हो गया, मन चाही जगह रास्ते में ही मिल गयी। दीदे खोल कर हम आगे बढे। 4 किलों मीटर पर बाएं हाथ की तरफ़ बहुत सी बुद्ध की मूर्तियाँ लगी है तथा बहुत बड़ा इलाका चार दीवारी से घेरा हुआ है। हमने यहीं पूछना उपयुक्त समझा। संस्थान के भीतर प्रवेश करने पर पेड़ की छांव में दो लोग बैठे दिखाई दिए। बाईक स्टैंड पर लगा कर हमने उत्खनित स्थल के विषय में पूछा तो एक व्यक्ति ने पीछे की तरफ़ की पहाड़ी की ओर ईशारा कर दिया। परिचय पूछने पर उसने अपना नाम प्रो रामचंद्र उके एवं संस्थान का केयर टेकर होना बताया।

नागार्जुन स्मारक संस्था एवं अनुसंधान केंद्र
उन्होने कुर्सियाँ मंगवाई, बैठने के बाद उस स्थान के विषय में चर्चा होने लगी। उन्होने बताया कि पहाड़ी पर नागार्जुन से संबंधित पुरावशेष उत्खनन में प्राप्त हुए हैं तथा जापान के आर्थिक सहयोग से यहाँ उत्खनन हुआ है। यहां से एक किलोमीटर की दूरी पर नालंदा के विश्वविद्यालय जैसी संरचना भी प्राप्त हुई है। यह सुनने के पश्चात मेरी जिज्ञासा और बढ गयी। यहाँ उत्खनन करने वाले विद्वान का नाम पूछने पर उन्होने अरुण कुमार शर्मा जी नाम लिया। बताया कि शर्मा जी ने 1998 से 2008 तक यहाँ अपने निर्देशन में उत्खनन कार्य करवाया। अरुण कुमार शर्मा जी से मेरी भेंट होते रहती है। लेकिन नालंदा जैसे विश्वविद्यालय की बात मेरे गले से नहीं उतरी। मैने बैठे-बैठे सोच लिया कि इस स्थल के चित्र लिए जाएं और वास्तविक जानकारी शर्मा जी से सिरपुर जाकर प्राप्त कर लेगें। यही उत्तम रहेगा। हम नागपुर से ही अपने साथ खाने का सामान लेकर चले थे और साथ में पानी भी। 12 बज गए थे और सूरज सिर पर पहुंच कर भीषण आग बरसा रहा था। इतनी गर्मी झेलना बहुत ही कठिन है। संध्या जी गर्मी से हलाकान हो रही थी। पहाड़ी पर चढने पर तो इससे भी अधिक गर्मी झेलनी पड़ेगी। खैर हमने अपनी बाईक वहीं खड़ी की और संस्थान के पिछले दरवाजे से पहाड़ी की ओर चल पड़े……… जारी है मनसर कथा…… आगे पढें

24 टिप्‍पणियां:

  1. चलते जाइए...लिखते जाइए.....
    आपके साथ हम भी हैं.....

    सादर

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  2. मनसर की प्रतीक्षा रहेगी आपकी अगली पोस्ट में।

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  3. बहुत सुंदर ~ आपने घूमा दिया तो हम भी घूम गए(आए) समझिए

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  4. धूप में खूब घूम लिये अब आगे चलें ..!

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  5. बहुत बढ़िया जगह की सैर हो रही हैं ..चलते रहे ..इस भीषण गर्मी में हम आपको हिल स्टेशन ले जाते है और आप हमें गर्मी में झोक देते हो ....तुम्हारी लीला अपरम्पार है प्रभु .....:)
    ग्रामीण आँचल में बचपन गुजरा है तो इतना पता है की सुखी तोराई छिलकर हाथ -पैर साफ करते थे ....हा हा हा हा हा

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  6. नयी जगह, नए स्थान का पता चला, बहुत अच्छा वर्णन, धन्यवाद

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  7. राम राम जी...

    आपके साथ बहुत घूम-फिर रहे है हम भी....
    क्षमा करना जी हम आपके भ्रमण कराने का धन्यवाद भी नहीं कर पते है....

    कुँवर जी,

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  8. सचमुच बहुत ही सुन्दर अद्भुत ऐतिहासिक स्थल है, जिसे देखकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना ना था बाकि जानकारी मिलने से ख़ुशी और बढ़ जाएगी हमने इसे अपनी आँखों से देखा और कल्पना की है, कि कभी यह कितना भव्य और शानदार रहा होगा. आगामी पोस्ट की प्रतीक्षा है...

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  9. बहुत मेहनत का काम कर रहे हैं , इस भीषण गर्मी में .

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  10. aap to badhiya ghumakkad insaan hain.
    yaatra varnan sundar laga.
    chitra aur jyada lagayiye.

    ab aage padhne ki utsukta hai...

    aabhaar !!!

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  11. सच गृहस्थ जीवन में रहते हुए यायावरी की साधना बहुत कठिन है। मगर आप इसे साध पा रहे हैं। यह बहुत बडी बात है। फिर मित्रों को घर बैठे सब दूर की सैर कराते हैं ।
    शुभकामनाएं कि आगे भी एसे ही साधते रहें।

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  12. sach aapki yayavari ko salaam
    bina dhoop pani ki chinta kiye nayee jaghon ke bare me janane ki aapki utkantha adbhut hai.

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  13. मज़ा आता है ऐसी जगहों पे घूमने में |

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  14. गृहस्थ जीवन में से यायावरी साधना के लिए वक्त निकालना वाकई जिगर का काम है और आपका जिगर बहुत बड़ा है ...अच्छा है , हमें बहुत कुछ जानने को मिल रहा है !

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  15. यायावरी जीवन के अपने आनन्द है. वर्णन चित्रात्मक है. मित्रों को घर बैठे सब दूर की सैर कराते हैं. आभार्

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  16. पूरा पढ़ा ...
    आखिर तक रुचिकर !
    आभार आपका !

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  17. आपकी यायावरी हमारी जानकारी का सबब बनती है .... बढ़िया पोस्ट

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  18. मानसर हम भी चल रहे हैं, आप के साथ साथ.

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  19. बहुत सुन्दर संस्मरण है ! आपने सुनाया भी है बहुत ही दिलचस्प तरीके से ! आपकी यायावरी इसी तरह फलती फूलती रहे और आपके माध्यम से हम भी उन ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा का आनंद उठा लें यही शुभकामना है ! आगे बढ़ते रहिये हम भी पीछे-पीछे आ रहे हैं !

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  20. Namaskar ji, yaha par aapne kuleshwar mahadev ka chitra rakha hey, wah stahan kaha par
    birajman hey.

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