Menu

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

बर्फ़ानी आश्रम एवं संत बालयोगी का योग ---------- ललित शर्मा

प्रारंभ से पढें

र्मदा माई के दर्शन करके हम बर्फ़ानी बाबा की खोज में निकले। यह पता नहीं था कि उनका आश्रम नर्मदा उद्गम स्थल के पीछे ही है। दो-चार किलोमीटर के चक्कर काट कर हम आश्रम के मुख्यद्वार पर पहुंचे। द्वार पर सिक्योरिटी गार्ड मुस्तैद थे। उनसे पूछने पर पता चला कि बाबा जी आराम कर रहे हैं। भीतर कोई होगा तो जाकर उनसे पूछ लीजिए। भीतर जाने पर श्वेत वस्त्रधारी युवा विराजमान थे कुर्सी पर। उनके सामने दो व्यक्ति जमीन पर बैठे थे। हाव-भाव से लगा कि यही प्रमुख हैं यहाँ के। मदन साहू बर्फ़ानी बाबा से मिलना चाहते थे। उनकी उम्र 221 साल बताई जाती है। अमरकंटक में चीन के युद्ध के पश्चात 1965 में आए। बर्फ़ानी दादा जी का पैतृक निवास उन्नाव जनपद के दोदियाखेड़ा ग्राम है। ये ब्राह्मण जमीदार परिवार से हैं। इनके पिता का नाम हरिदत्त दूबे था। इन्होने 36 अंचल बिलासपुर, डोंगरगढ और खैरागढ में ही समय बिताया। इनका मुख्याश्रम छत्तीसगढ के राजनांदगांव में है। उन्हे ब्रह्मर्षि बर्फ़ानी दादा जी के नाम से जाना जाता है। अमरकंटक में संत लक्ष्मण दास बालयोगी जी उपलब्ध थे। 

हमने भी उनकी बैठक में स्थान ग्रहण किया और चर्चा होने लगी। बालयोगी जी के पास एक डेस्कटॉप और एक लैपटॉप रखा हुआ था। कहने लगे कि इंटरनेट का कनेक्शन बंद है। शिकायत दर्ज कराने पर भी चालु नहीं हुआ है। मैने अपने बीएसएनएल के डॉटाकार्ड से चलाने की कोशिश की तो वहाँ पर नेटवर्क नहीं मिला। बालयोगी जी से बर्फ़ानी दादा जी के विषय में चर्चा हुई। उन्होने बताया कि वे इस आश्रम से एक पत्रिका भी निकालते हैं। हमारे स्वामी जी उनकी प्रत्रिका के वार्षिक सदस्य बने। लेकिन पत्रिका कई माह से प्रकाशित नहीं हो पायी थी। इस तरह हमारे स्वामी जी भाव विभोर होकर टेसन पर खड़ी रेल में टिकट लेकर बैठ गए। पता नहीं गाड़ी चली भी है या नहीं या स्वामी जी गाड़ी खुलने का इंतजार ही कर रहे हैं। बालयोगी जी ने बताया कि उन्हे कम्पयुटर और नेट चलाना आता है। जो पत्रिका वे निकालते हैं उसकी डिजाईन वे स्वयं ही करते हैं। डीटीपी के साथ कोरल पर भी काम जानते हैं। होना भी चाहिए, वर्तमान में बहुतेरे संत इलेक्ट्रानिक माध्यमों का उपयोग कर धर्म एवं संस्था के प्रचार प्रसार में लगे है।

लेखक एवं संत लक्ष्मण दास बालयोगी
बालयोगी जी की अर्थेजर्निक योग भक्ति फ़ाऊंडेशन नामक संस्था भी है। जिसके माध्यम से प्राण शक्ति बढाने वाले योग का प्रचार प्रसार करते हैं। योग शास्त्र कहता है- योगश्चित्तवृत्ति निरोध:। अगर मनुष्य नियमित यौगिक दिनचर्या का पालन करे तो अस्वस्थ हो ही नहीं। बालयोगी जी ने मुझे अपने प्रकाशन की तीन किताबें 1- नमस्कार सूर्य, 2-अर्थेजर्निक योग भक्ति साधना उर्जा एवं अर्थेजर्निक योग भक्ति साधना (अर्थ और उर्जा के साथ परम लक्ष्य की प्राप्ति सप्रेम भेंट की। हमने उनके साथ फ़ोटो ली। योगी जी को पत्रिका निकालने के लिए एक कम्पयुटर आपरेटर चाहिए। जो अमरकंटक में रह कर इनका काम करे। मानदेय के विषय में पूछने पर इन्होने बताया कि मानदेय योग्यतानुसार दिया जाएगा। आश्रम के एक हिस्से का कालेज के छात्रों के लिए छात्रावास के रुप में प्रयुक्त हो रहा है । आश्रम में अतिथियों के लिए जलपान की कोई व्यवस्था नहीं है। यह सोच कर थोड़ा ताज्जुब लगा। आमसेना वाले महाराज तो बिना जलपान किए किसी को वापस ही नहीं आने देते हैं। चाहे जितने दिन भी रहिए, तीन समय का भोजन प्रसाद अवश्य मिलेगा। चाहे वह व्यक्ति आम हो या खास हो।

बालयोगी जी व्यवहार कुशल एवं मृदूभाषी हैं। इनका व्यवहार शांत एवं मनमोहक है। अर्थेजर्निक योग भक्ति साधना उर्जा की प्रस्तावना में लिखते हैं कि शारीरिक एवं आध्यात्मिक उर्जा संचित करने के लिए अर्थेनर्जिक योग, भक्ति के अंतर्गत योग साधना के छ: अलग-अलग कोर्स बनाए गए है। इनमें पहला कोर्स है "भूमिका" जो तीन दिवसीय प्रयोग है, यह मुख्य रुप से शरीर साधना से संबंधित है। इसके बाद दूसरा कोर्स है "उर्जा"। यह कोर्स सात दिवसीय प्रयोग है और यह शरीर साधना के साथ आध्यात्मिक साधना से जुड़ा हुआ है। इसी परिपेक्ष में यह पुस्तक प्रकाशित की गयी है। इसमें मुख्य रुप से सात दिवसीय उर्जा का संकलन किया जा रहा है। सात दिवसीय यह उर्जा कोर्स समाज के बदलते परिवेश को दृष्टिगत करते हुए निर्धारित किया गया है क्योंकि वर्तमान में  व्यवहार जगत की सक्रियता लगातार बढते जा रही है, इस समय न तो कोई चैन से बैठना चाहता है और न ही किसी से पीछे रहना चाहता है ऐसे में शारीरिक उर्जा का महत्व और भी बढ जाता है।

बालयोगी जी से हम पुस्तकें ग्रहण कर अपने अगले पड़ाव की ओर चल पड़त है। वे हमें मुख्यद्वार तक पहुंचाने आते हैं, हम उनसे विदा लेते हैं। अमरकंटक में वैसे भी छत्तीसगढी बोली का प्रयोग निवासी सामान्यत:  करते हैं। इसे बंटवारे में छत्तीसगढ को ही दिया जाना चाहिए था। लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी एवं दोनों प्रातों में एक ही राजनैतिक दल की सरकार होने के कारण बंदर बांट हो गयी। अमरकंटक जैसा सुरम्य इलाका छत्तीसगढ में रहने से वंचित हो गया। पहले जब किसी को टी बी इत्यादि बीमारी हो जाती थी तो डॉक्टर उसे पेंड्रारोड या अमरकंटक जाकर स्वास्थ्य लाभ करने के लिए कहते थे। जैसे दिल्ली वाले गर्मी के मौसम में स्वास्थ्य लाभ करने शिमला या कुल्लू मनाली जाते हैं। अमरकंटक में भी गर्मी के दिनों में इसी तरह का मौसम होता है और शीतल बयार चलती है। मन एवं आत्मा प्रफ़ुल्लित हो जाती है। जब भी आओ यहीं बसने का मन होता है। घर के समीप इस हिल स्टेशन पर भी एक घर होना चाहिए। … आगे पढें

13 टिप्‍पणियां:

  1. अमरकंटक मैं एक बार गया हूँ. बस मन वहीँ पर रह गया है .. आज आपका लेख पढ़ा तो बस उन्ही यादो में चला गया .

    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. छत्‍तीसगढ़ के मन में बसा है अमरकंटक.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुरम्य स्थान है अमरकंटक, आपका यात्रा वृतांत दिलचस्प और जानकारी पूर्ण रहा, शुभकामनाएं.

    रामराम

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर वृत्तांत. बर्फानी बाबा से मुलाक़ात नहीं हो पायी होगी. . "हमारे स्वामी जी उनकी प्रत्रिका के वार्षिक सदस्य बने....... इस तरह हमारे स्वामी जी भाव विभोर होकर टेसन पर खड़ी रेल में टिकट लेकर बैठ गए। पता नहीं गाड़ी चली भी है या नहीं या स्वामी जी गाड़ी खुलने का इंतजार ही कर रहे हैं।" इतना अंश कंफ्यूस कर रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  5. कभी नहीं जाना हुआ अमरकंटक..आपने दिखा दिया.आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. अमरकंटक का जीवंत वर्णन .शानदार चित्रों सहित मनमोहक वृतांत

    जवाब देंहटाएं
  7. अमरकंटक मैं एक बार गई हूँ....वर्षों पहले...रोचक वृत्तांत पढ़ कर वहां के सुरम्य दृश्य याद आ गए....

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रकृति अपने सौन्दर्य से खीचती है, बसने का मन करने लगता है।

    जवाब देंहटाएं