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बुधवार, 12 सितंबर 2012

काश!............


भिनसारे भिनसारे ही
कोयलिया की कूक
सुनाई देने लगी
सोचने लगा, अभी कौन से आम बौराए हैं
जो कोयलिया कूक रही है
विहंग को कौन बांध पाया है?
वे कोई मानव नहीं?
किसी प्रांत के एपीएल,
बीपीएल कार्डधारी लाभार्थी नागरिक नहीं
जो किसी के बंधन में बंध कर परतंत्र हो जाएगें
जीवन स्वतंत्र है
स्वतंत्र जन्मे और स्वतंत्र मरें
परतंत्रता तो इन्हे पल की नहीं सुहाती
न ही सीमा पार करने के लिए
किसी सरकार के अनुज्ञा-पत्र की दरकार होती
जब चाहें तब पंख फ़ड़फ़ड़ाए और उड़ जाते हैं
जब मन में आए तो गाने लगते हैं
काश! विहंग सा जीवन ही क्षण भर को मिल जाए
तो मन करता है
पूरा एक जीवन ही जी लूं

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत रचना सच कहा वो किसी बंधन में थोड़े न बंधे हैं जो किसी के कहने पर ही बोलेंगें खायेंगे या उडेंगे सार्थक रचना |

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  2. ललित भैया जी आसमान में उड़ने की चाह पंछी सा जीवन आपके संग उड़ने किचाह बन गई

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  3. पंख तने हो, नील गगन हो,
    गति हो, लय हो, पवन मगन हो।

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  4. पंछी.नदिया ,पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके

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  5. काश!!!! विहंग सा जीवन क्षण भर को मिल जाए....हम तो बचपन से चिड़िया बनने की चाह रखते हैं, रोज सपने में उड़ते हैं... लाज़वाब रचना

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  6. किसी बंधन में जीना भी कोई जीवा है ... काश बंधन मुक्त हो सकें सभी ...

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  7. बहुत सही व सुन्दर.
    घुघूतीबासूती

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