भोजन के वक्त विष्णु सिंह से शंकर गढ के समीप अन्य पुरातात्विक स्थानों के विषय में जानकारी ली तो उन्होने शंकरगढ के समीप ही स्थित हर्रा टोला बेलसर का जिक्र किया। हमने भोजनोपरांत हर्राटोला जाना तय किया। शंकरगढ से 5-6 किलोमीटर की दूरी पर वेलसर गाँव का हर्रा टोला एक मोहल्ला है। रास्ते में एक नदी आती है जिसका नाम पूछने पर महान नदी बताया गया। हमें दूर से ही ऊंचे आयताकार टीले पर एक भग्न मंदिर दिखाई देता है। यह स्थान चार दिवारी से घिरा हुआ है। गाड़ी रोकने पर एक व्यक्ति से मुलाकात होती है। शायद वह यहाँ का चौकीदार है।
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सामत सरना का दृश्य |
प्रवेश द्वार के समीप ही भग्न मंदिर की सामग्री पड़ी हुई है। थोड़ा आगे बढने पर किसी मंदिर के द्वार का सिरदल दिखाई देता है। मुख्य टीले पर स्थित मंदिर का शीर्ष भाग इस तरह दिखाई दे रहा था जैसे किन्ही आदिम मनुष्यों ने पत्थरों को एक दूसरे के उपर रख कर वर्तमान संरचना खड़ी कर दी हो। मंदिर के समीप पहुंचने पर दिखाई दिया कि यह कोई अकेला मंदिर नहीं है। यह तो मंदिरों का समूह है। चौकीदार ने बताया कि पहले यह मंदिर पूरा मिट्टी के टीले में दबा हुआ था। लगभग बीस साल पहले रायकवार साहब ने इसका उद्धार किया था। चलो यह तो अच्छा हुआ मैने रायकवार साहब को फ़ोन लगा कर इस स्थल के बारे में जानकारी ली और जिज्ञासा की शांति की।
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अमित सिंह, ललित शर्मा, विष्णु सिंह, बादशाह खान हर्रा टोला में |
पूर्वाभिमुखी मुख्य मंदिर के समीप ही ईष्टिका निर्मित मंदिर के अवशेष दिखाई देते हैं साथ ही छोटे-छोटे अन्य मंदिर भी हैं। मुख्य मंदिर का मंडप गिर चुका है। सरसरी तौर पर देखने से ज्ञात होता है कि मंदिर द्वार के सिरदल पर नंदीआरुढ शिव पार्वती के साथ शिव परिवार का अंकन है। जिसमें गरुड़ पर सवार कार्तिकेय एवं गणेश जी प्रदर्शित हैं। इसके साथ ही कीर्तिमुख, देवी, भारवाहक विष्णु लक्ष्मी के साथ नदी देवियों का भी अंकन किया गया है। मंदिर के द्वार के समीप ही एक प्रतिमा के केश बुद्ध की प्रतिमा जैसे दिखाई दिए, लेकिन उसके अलंकरण से बुद्ध प्रतीत नहीं होते। जी एल रायकवार ने जिज्ञासा शांत करने हेतु बताया कि यह शिव की सेना का ही एक किरदार है।
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हर्रा टोला बेलसर का भग्न शिवालय |
उन्होने बताया कि स्थापत्य शैली के अनुसार इसे आठवीं सदी के आस-पास का माना गया है। इस स्थल से प्राप्त कूछ प्रतिमाएं अम्बिकापुर स्थित जिला पुरातत्व संग्रहालय में रखी हुई हैं। आस-पास देखने और चौकीदार से पता चला कि यह मंदिर केराकछार एवं महान नदी के संगम पर स्थित है। अब सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा था और हमे अम्बिकापुर तक का सफ़र तय करना था। समीप ही एक व्यक्ति टाट लगा कर बनाई हुई छोटी सी दुकान में भजिया तल रहा था। शायद चखना जैसा ही कोई उपक्रम था। हमने कुछ चित्र लिए और हर्रा टोला से अम्बिकापुर की ओर प्रस्थान किया।
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हर्रा टोला मंदिर समूह का शिवालय |
रास्ते में महान नदी के कटाव पर रेत मिश्रित मिट्टी की कई परतें जमी हुई दिखाई दी। जिज्ञासावश गाड़ी रोक कर हमने देखने का प्रयास किया। क्योंकि नदी के तटों पर ही सभ्यताओं का विकास एवं अवसान हुआ है। इस तरह के कटाव पर ही उनके अवशेष प्राप्त होते हैं। आदिम कालीन प्राचीन प्रस्तर के मानवोपयोगी उपस्कर एवं आयुध इन परतों में स्थित होते हैं। इन्हे देखने एवं पहचानने के लिए भरपुर समय की आवश्यकता होती है। वह हमारे पास नहीं था। हम तो सिर्फ़ घुमक्कड़ है, शोध तलाश और अनुसंधान का कार्य विषय विशेषज्ञों एवं संबंधित विद्याथियों के लिए छोड़ देना सही है। हर्रा टोला पहुंच कर आनंद आया। हमने विष्णु सिंह देव को मन ही मन धन्यवाद दिया।
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भग्न मंदिर के अवशेष |
आज की रात अम्बिकापुर में विश्राम करके सुबह मैनपाट जाने का कार्यक्रम बनाया गया था। अमित सिंह देव ने अपनी सफ़ारी गाड़ी को मरम्मत के लिए गैरेज में छोड़ा था। गैरज पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी की मरम्मत का कार्य चालु है। हम अब रात्रि विश्राम के लिए सर्किट हाऊस पहुंचे। पूर्व के अनुभवानुसार पता चला कि कोई भी रुम खाली नहीं है। हमारा मोबाईल गुम होने के कारण एस डी एम तीर्थराज अग्रवाल का नम्बर गुम गया था। साथियों ने प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी। अब हमने तय किया कि वापस उदयपुर चला जाए। वहीं के विश्राम गृह में एक रात और काटी जाए। भोजन का इंतजाम हमने अमित सिंह देव की सलाह पर अम्बिकापुर के अच्छे माने जाने वाले रेस्टोरेंट विरेन्द्र प्रभा से किया। उक्कड़-कुक्कड़ खाने का मन नहीं था। सिर्फ़ अंडा करी, सादी सब्जी के साथ रोटियों और पुलाव का पार्सल लिया।
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शिव सेवक बुद्ध के रूप में |
अब हम अमित सिंह देव के साथ उदयपुर के मार्ग पर थे। रास्ते में ही इनकी जमीदारी लखनपुर आती है। हमने उन्हे घर छोड़ा और उदयपुर के विश्राम गृह पहुंचे। यहाँ पहुचने पर चौकीदार ने बताया कि एक कमरा तो बुक हो गया है। अन्य कोई शासकीय कर्मचारी ठहरे हैं। उसने हमारे लिए 1 नम्बर रुम खोल दिया। मैंने सुबह जाते वक्त चौकीदार को कहा था कि रात्रि विश्राम करने के लिए हम इधर लौट कर आएगें तो बात बन गयी थी। जब विरेन्द्र प्रभा होटल के भोजन का पार्सल खोला गया तो सब्जी में उपर तक तेल भरा हुआ था। देखते ही माथा ठनक गया। जैसे-तैसे जितना तेल सब्जी में से गिराया जा सकता था उतना फ़ेंका और भोजन किया और बिस्तर के हवाले हो गया। ठंड अच्छी थी, इसलिए सोना ही ठीक था। राहुल काफ़ी देर तक माउथ आर्गन बजा कर ब्लंडर करते रहा। पंकज और राहुल कब सोए इसका मुझे पता नहीं चला।
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हीलेबीडू के मंदिरों में देखा है कि केश विन्यास की सैकड़ों विधायें हैं। आकर देखें, विश्वास हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंरोचक !
जवाब देंहटाएंबहुत सारा पढने से छूट गया है !
आपकी पहुंच का कोई जवाब नहीं.
जवाब देंहटाएंफोटो बड़े अच्छे लगते हैं. इससे यह भी लाभ है कि एक नेताजी ने कहा कि हिन्दुओं ने क्या दिया, उन्हें भी शायद यह देखकर कुछ सद्बुद्धि मिले.
जवाब देंहटाएंघुमक्कड़ी की जय हो ....:)
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