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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

भूतों का भानगढ़

मोडा सेठ की हवेली
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भानगढ़ के उजड़ने के पीछे कई कहानियाँ है, जिनमे सिंधु शेवड़े और भूतों की कहानी अधिक प्रसिद्ध हो गई। मैं भानगढ को भिन्न नजरिए से देख रहा था। लोग यहाँ भूतों की तलाश में आते हैं। वो भूत जिन्हें किसी ने देखा नहीं, सिर्फ़ किस्से बनकर रह जाते हैं। भानगढ़ को जितना अधिक नुकसान जिंदे भूतों ने पहुंचाया, उतना किस्से कहानियों में प्रचलित भूतों ने नहीं। भानगढ़ कोई अधिक पुराना कस्बा नहीं है, 16 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसे राजा भगवंत दास ने बसाया था। इसके बाद राजा मान सिंह के भाई माधो सिंह ( अकबर के दीवान)  ने अपनी रियासत की राजधानी बनाया। जब कोई राजा राजधानी बसाता था तो उस स्थान को सामरिक दृष्टि से सुदृढ़ मान कर ही निर्माण कार्य करवाता था। क्योंकि पड़ोसी राजाओं की कब साम्राज्यवादी नीति का शिकार हो जाए, कब राजधानी पर आक्रमण हो जाए इसका पता नहीं चलता था। क्योंकि ये युद्ध बैर, विद्वेश की दृष्टि से नहीं होते थे, साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से किए जाते थे।

त्रिपोलिया द्वार
भानगढ़ खंडहर हो चुका है, लेकिन यहाँ के सभी मंदिर सुरक्षित हैं और अपनी गरिमा के साथ खड़े हैं। इससे प्रतीत होता है कि कभी मुसलमानों ने इस पर आक्रमण नहीं किया। अगर मुसलमान आक्रमण करते तो मंदिर को सबसे पहले हानि पहुंचाते। इसके उजड़ने का कारण हिंदु राजाओं की ही आपसी प्रतिद्वंदिता रही होगी। जिन्होने गढ पर आक्रमण कर उसे धराशायी किया होगा तथा दैवीय आपदा के भय से मंदिरों को नहीं छेड़ा होगा। दूसरी श्रेणी के सुरक्षा घेरे के मुख्य द्वार को त्रिपोलिया द्वार कहते हैं। इस द्वार से आगे बढने पर दांई तरफ़ बलुआ पत्थर से नागर शैली में ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित गोपीनाथ जी का मंदिर दिखाई देता है। इस मंदिर में गर्भ ग़ृह में कोई भी देव प्रतिमा नहीं है। गर्भ गृह के निर्माण को देख कर प्रतीत होता है कि यहाँ विष्णु के ही किसी अवतार का विग्रह रहा होगा।

गोपीनाथ जी का मंदिर
मंदिर शिल्प मनमोहक है। मंडप के वितान सुंदर पद्माकृति का अंकन के साथ १६ तरह के वाद्यों के साथ वाद्यकों का भी चित्रण किया गया है। द्वार पट पर विष्णु के दशावतारों का अंक है, तथा शीर्ष पर गणेश जी विराज मान हैं तथा नीचे की चौखट में कल्प वृक्ष का अंकन है। बाईं तरफ़ के झरोखे में उमामहेश्वर को स्थान दिया गया है, इस मूर्ति के आधार पर नागरी लेख है और दाईं तरफ़ के झरोखे में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के द्वार पर सुंदर वल्लरियों, लता पुष्पों का अंकन है तथा सिरदल पर हाथी, घोड़ों एवं ऊंटों को स्थान दिया गया है। विग्रह नहीं होने के कारण मंदिर में पूजा नहीं होती। इस मंदिर से आगे बढने पर भग्नावशेषों में एक छतरी दिखाई देती है। चारों तरफ़ की दीवालों में आले बने हुए हैं तथा छतरी के उपर स्थानक मुद्रा में महावीर की प्रतिमा दिखाई देती है। इससे प्रतीत होता है कि यह जैन मंदिर रहा होगा तथा महल के प्रांगण में स्थित होना इसे विशिष्ट बनाता है। जाहिर है कि राजा ने जैन व्यापारियों को अपने राज्य में विशिष्ट स्थान दे रखा होगा।

घरठ
जैन मंदिर से महल की ओर आगे बढने पर एक घरठ दिखाई देती है। कभी इसका उपयोग निर्माण कार्य में चूना मिलाने के लिए किया गया होगा। लेकिन यह अभी तक यथावत है। कई स्थानों पर इसे हटा दिया जाता है तथा घरठ का गोल पत्थर ही मिलता है। प्रतीत होता है कि नगर उजड़ने से पूर्व तक यहाँ निर्माण कार्य जारी था। यहाँ पर्यटकों ने पत्थर के छोटे-छोटे घरों के प्रतीक बना रखे है।मान्यता कि जिसका मकान नहीं होता वे ऐसी मनौती करते हैं जिससे खुद का मकान हो जाता है। महल में प्रवेश करने पर बारहदरी दिखाई देती है। जिनके समक्ष कमरे बने हुए हैं। किवंदन्ती है कि यह महल सात मंजिला था, महल के पीछे पहाड़ी स्थित है। निर्माण विधि के अनुसार यह महल सातमंजिला नहीं दिखाई देता। उस काल में राज प्रसादों में कई चौक हुआ करते थे, जिनसे गुजरने के बाद  ही रनिवास तक प्रवेश किया जाता था। हो सकता है कि इस महल के 7 खंड रहे हों। जिसके कारण इसे सतखंडा महल कहा जाने लगा हो।

राजमहल का प्रवेश एवं पार्स्व में राजमहल
महल के उपर की मंजिल में रनिवास था, रनिवास के चिन्ह अभी भी मिलते हैं। रनिवास में कमरों के साथ शौचालयों का निर्माण हुआ है। उपर की मंजिल पर जाने के बाद बाईं तरफ़ रत्नावती का मंदिर बताया जाता है। इस मंदिर में कोई विग्रह नहीं है। लेकिन धुंवे से दीवारे काली हो चुकी है। अवश्य ही कोई तांत्रिक प्रयोग यहाँ पर होता दिखाई देता है। सिंदुर और पूजा की सामग्री हमें यहां पर मिली। रनिवास में स्थित इस मंदिर में अवश्य ही राजपरिवार की कुल देवी का मंदिर रहा होगा। क्योंकि राजा अपनी कुलदेवी का स्थान निवास में ही रखते थे। राजस्थान एवं अन्य प्रदेशों में मुख्य निवास में देवी का "थान" बनाने की परम्परा दिखाई देती है। मूर्तियों के चोरों ने मंदिर के विग्रह को चुरा लिया होगा इसलिए कालांतर में जन सामान्य में रत्नावती के मंदिर का नाम प्रचलित हो गया होगा।

महल के भग्नावशेष एवं रत्नावती का मंदिर
महल के निचले तल में तहखाना है, जहाँ घोर गुप्प अंधकार रहता है। हमने इस तहखाने की भी पड़ताल की। तहखाने की पैड़ियों पर बहुत सारी कबूतरों की बीट पड़ी थी। अंधेरा इतना गहरा है कि दो पैड़ियों के बाद रास्ता दिखाई नहीं देता। इस स्थान के विषय में अफ़वाहें फ़ैलाई गई है कि यहाँ पर कैमरे का शटर काम नहीं करता। किन्ही कारणों से यहाँ मैग्नेटिक फ़िल्ड का निर्माण होने से वह कैमरे को प्रभावित करता है इसलिए उसका शटर काम नहीं करता और फ़ोटो नही लिए जा सकते। इसके कमरों में भूतों की आवाजें आने की कहानियाँ चटखारे लेकर सुनाई दी जाती हैं, परन्तु हमें तो कोई आवाज सुनाई नहीं थी तथा न ही भय का अहसास हुआ। अगर किसी स्थान पर नकारात्मक शक्ति होती है तो वह अवश्य ही मनुष्य की चेतना को प्रभावित करती है और अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाती है। यहाँ मुझे किसी भूत प्रेत के अस्तित्व का अहसास नहीं हुआ।

सोमेश्वर महादेव मंदिर
राजमहल से बाहर निकलने पर कुंए दिखाई देते हैं, जो कि अब कचरे से पाट दिए गए हैं। इसके बाईं तरफ़ सोमेश्वर महादेव का मंदिर है। कहते हैं कि इसे सोमनाथ नाई ने बनवाया था। इस विशाल मंदिर के समीप कुंड बना हुआ है जहाँ पानी पहाड़ से रिसकर आता है। अभी इस पानी में गंदगी हो गई है, कभी यह कुंड निर्मल खनिज जल से भरा रहता होगा। इस मंदिर का निर्माण भी बलुई पत्थर से हुआ है। मंदिर में शिवपरिवार विराजित है तथा नंदी के साथ गणेश की सवारी मूषक महाराज भी विराजित हैं। नंदी संगमरमर पत्थर से बना है और मूषक काले पत्थर से। मैने पहली बार नंदी के साथ मूषक की स्थापना कहीं पर देखी है। इससे पहले नंदी के साथ मूषक की स्थापना  मुझे कहीं देखने नहीं मिलती। इस मंदिर का द्वार भी अलंकृत है। गढ में यह मंदिर सतत पूजित है।

सोमेश्वर महादेव मंदिर का गर्भ गृह
पहले राजा और सेठ जैसे धनी मानी लोग ही मंदिर, प्याऊ, तालाब \इत्यादि का निर्माण करवाते थे। यहाँ पर किसी नाई द्वारा मंदिर बनवाना हैरत में डालता है। सबसे बड़ी बात यह हैं कि मंदिर राजमहल की परिधि के भीतर है। बिना राजा की सहमति के इस स्थान पर मंदिर नहीं बनाया जा सकता। किसी नाई द्वारा महल परिसर में मंदिर बनाने के निर्णय से राजा की ठकुराई को भी ठेस पहुंच सकती थी। लेकिन इस मंदिर के निर्माण की अनुमति देने से राजा की सहिष्णुता का परिचय मिलता है। राजा अपनी प्रजा के लिए निष्ठावान एवं दयालु था। तभी इस स्थान पर सोमेश्वर नाई द्वारा मंदिर बनाया जा सका। भानगढ के समीप स्थित अजबगढ में सोमेश्वर नाई द्वारा निर्मित "सोम सागर" का जिक्र भी सुनाई देता है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के खल्लारी (खल्वाटिका) में देवपाल नामक मोची ने विष्णु मंदिर बनवाया था। मोची द्वारा उस काल में मंदिर बनवाया जाना बड़ी घटना था। इससे शासकों की सामाजिक उदारता का पता चलता है। ..........  आगे पढ़ें ....

13 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार वर्णन
    शहर उजड़ने के संबंध में एक जनश्रुति प्रचलित है कि- "जब जयपुर बसाया गया तब जयपुर में बसाने के लिए लोगों की जरुरत थी सो जयपुर के राजा जयसिंह ने भानगढ़ वासियों से भानगढ़ खाली करा कर जयपुर में बसा दिया|"
    लोगों के अनुसार भानगढ़ जयपुर बसने की कीमत पर उजड़ गया| शहर खाली होने के बाद आस-पास के ग्रामीणों द्वारा भवनों से अपने काम का सामान निकालने के चक्कर में इमारतों को क्षति पहुंची और निर्माण ध्वस्त हो गये| जबकि मंदिरों पर लोगों ने देवीय प्रकोप से डर के मारे हाथ नहीं डाला!
    यह किला चूँकि बाद में महाराजा जयसिंह ने अपने अधीन कर लिया था इसलिए इस पर बाहरी आक्रमण की कोई गुन्जाईस कभी नहीं रही, कारण साफ़ था जयपुर की दिल्ली के साथ मिलने से शक्ति काफी बढ़ी हुई थी जिसके चलते उस काल में जयपुर पर आक्रमण करने की किसी की हिम्मत ही नहीं होती थी|

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  2. काफी अरसे से भानगढ़ के बारे में जानने की इच्छा थी जब से टी वि में इसके बारे में कुछ किवदंतिया सुनी आज सुबह सुबह पढ़ कर कुछ तस्सली हुई आपको तहखाने में भुत तो इसलिए नहीं दिखे क्यूंकि मैं तो कर्नाटक में हूँ और बाकियों ने सोचा अब इनको कौन झेले जे हो तो यहाँ से कट लो वरना पता नहीं हमारे बारे में क्या क्या लिखेगा..खुद तो इंसानों के बिच रहता है हमें बदनाम करेगा..:)

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  3. प्रचलित कथा कहानियों से इतर भानगढ़ गाँव , किले और मंदिर के स्थापत्य , शिल्प की विस्तृत और रोचक जानकारी प्राप्त हुई .
    आप जैसे यायावार सारे रोमांच की ऐसी तैसी कर देते हैं:)

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  4. रोमांचक यात्रा व्रितांत. बहुत सुंदर. भानगढ़ निश्चय ही जाने योग्य जगह लगी.आभार.

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  5. किंवदंतियों से परे भानगढ़ को देखने का आपका नजरिया बहुत अच्छा लगा. "घरठ" हमारे लिए एक नया शब्द है, इसके बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता है...

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  6. भानगढ़ के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी और सुन्दर प्रस्तुतिकरण के लिए धन्यवाद...

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  7. बहुत बारीकी से अध्ययन किया है आपने। भानगढ़ के बारे में रोचक जानकारी दी है।
    लोग भूतों से ज्यादा भूतों के बारे में सोचकर डरते हैं। लेकिन आपको कैमरे की फ्लेश इस्तेमाल कर यह भ्रम भी मिटाना चाहिए था।

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  8. शानदार वर्णन किया आपने भानगढ़ के भूत और वर्तमान का ...

    धन्यवाद

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