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बुधवार, 17 जुलाई 2013

दिल्ली की कार वाली बाई और ठगों की जमात

नागपुर में डायमंड क्रासिंग 
दिल्ली में कार वाली बाई ने टक्कर क्या मारी सारा नक्शा ही बदल गया। छठी इंद्री जागृत हो गई, जैसे जापानी झेन गुरु अपने शिष्य के सिर पर डंडा मार उसे चेतन करते हैं वैसे ही सराय रोहिल्ला थाने के सामने मुझे कार से टक्कर मार कर बाई ने चेतावनी दे दी। घुटना चोटिल हो गया, हाथ में मोच आ गई। डेढ महीने के हिमाचल ट्रेकिंग के मंसूबों पर पानी फ़िर गया। धूल धुसरित सड़क से उठा, पीठ पर पिट्ठू का बोझ भी लदा था। घर पहुंचते ही मैने हिमाचल यात्रा स्थगित करने का पहला काम किया। घोषणा हो गई कि आज रात की बस से हिमाचल नहीं जाएगें। टिकिट बुकिंग एजेंट को फ़ोन लगा कर बताया कि यात्रा स्थगित हो गई है। फ़ोन वाली बाई ने कहा कि आपकी टिकिट के रुपए वापस नहीं होगें। हमारे साईट पर बुक कराने के नियमावली में लिखा है कि 12 घंटे से पहले यात्रा टिकिल कैंसिल कराने पर पैसे वापस नहीं होगें। छोड़ो जाने दो, जो होगा सो देखा जाएगा।

कांस्टिट्युशन क्लब का मुख्यद्वार 
दोपहर तनि आराम करने के बाद शाम के कार्यक्रम के लिए कांस्टिट्युशन क्लब चल पड़े। वहाँ का झमाझम कार्यक्रम निपटाने के बाद रात हो गई थी। रात गई बात गई, सुबह हिमाचल के राज्यपाल के निजी सचिव का फ़ोन आ गया। उन्होने पूछा कि आप अभी कहाँ पहुंचे हैं? महामहिम ने पूछा है। मैने अपने कार्यक्रम के स्थगन की सूचना दे दी और बता दिया कि दुर्घटना में डेमेज होने के कारण मुझे यात्रा स्थगित करनी पड़ी। मेरी यात्रा का कार्यक्रम हिमाचल राज्यपाल के यहां से तय हो गया था। 19 तारीख की सुबह मुझे शिमला पहुंचकर अपनी यात्रा प्रारंभ करनी थी तथा लाहौल स्पीति पहले जाना था। वहाँ मैने अजय लाहूली जी को फ़ोन करके भी बता दिया। घुटने की चोट के कारण हिमाचल में ट्रेकिंग संभव नहीं थी। इसलिए मैने अपना कार्यक्रम स्थगित किया था। अब दिल्ली से घर वापसी का मन बना लिया। परन्तु ट्रेन में सीट खाली नहीं थी। दुर्भाग्य ऐसा कि केंद्रीय मंत्री की पैरवी के बाद भी टिकिट कन्फ़र्म नहीं हुई तो देहरादून की टिकिट बुक करवा ली। 

पद्म सिंह, पवन जी, सुनीता जी 
एक दिन और व्यतीत हो गया। आज रविवार था, कुछ मित्रों से मिलने का कार्यक्रम बनाया। पद्मसिंह को फ़ोन लगाया, कई बरस हो गए थे मुलाकात हुए। मन खूब कर रहा था मिलने का। रतन सिंह जी कहीं फ़ंस गए दिल्ली आने के बाद। वैसे दिल्ली आने के बाद फ़ंसना ही पड़ता है। जो दिल्ली में न फ़ंसे वे कहीं नहीं फ़ंसेगें। शाम कनाट प्लेस के काफ़ी हाऊस में मिलन तय हुआ। पवन जी, सुनीता और मैं याने हम तीन प्राणी कनाट प्लेस पहुंच गए। पद्म सिंह को आने में थोड़ा विलंब था। काफ़ी हाऊस में मौजूद लोगों की गतिविधियाँ देखते हुए आनंद ले रहे थे। तभी पद्म सिंह भी पहुंच गए। इतने दिनों में काफ़ी चर्बी घट गई लगा मुझे। काफ़ी हाऊस में सूचना लिखी थी कि आज रात 8 बजे के बाद अनिश्चितकाल के लिए काफ़ी हाऊस बंद किया जा रहा है। मुझे समझ नहीं आया दिल्ली प्रशासन के साथ मेरी क्या दुश्मनी है। जब भी दिल्ली आता हूँ कुछ न कुछ बंद हो जाता। एक बार तो बिजली ने पसीने निकाले थे। खैर छोड़ो, मुझे यहाँ क्या बसना है। हम पंछी तो दो दिन के मेहमान। खाए-पीए और खिसके।

अगले कार्यक्रम की रुपरेखा बनाते पवन जी 
कैमरे के लिए मोनो पैड लेना था। पद्मसिंह ने बताया कि यहीं मिल जाएगा कनाट प्लेस में। देखा तो कनाट प्लेस की मार्केट की आज छूट्टी थी तो हम पालिका बाजार की तरफ़ बढ लिए। पालिका बाजार भी बंद होने वाला था, वहाँ मौजूद गार्ड किसी को भीतर नहीं जाने दे रहे थे। अगर उन्हे पता चलता कि 4 बंदों में से 3 कविताकार हैं तो गेट छोड़ के ही भाग खड़े होते। पद्म सिंह का रौब दाब काम आया और हमें प्रवेश मिल गया। लगभग सारी दुकाने बंद होने की कगार पर थी, कुछ के शटर गिर गए थे, कुछ तैयारी में थे। एक दुकान में मिल गया मोनो पैड। लेकिन उसने फ़्लिप कार्ट से भी 500 रुपए अधिक मूल्य बताया। मैने कुछ मोल भाव किया पर वह उस मूल्य में देने को तैयार नहीं हुआ। मैने मोनो पैड लेना स्थगित कर दिया और सोचा कि ओनलाईन ही मंगवा लेगें। घर पहुंचने पर भोजनोपरांत देहरादून की बस पकड़ ली।

पहचान लो, यही थी वह घटिया बस 
गर्मी का मौसम था इसलिए वातानुकूलित बस से देहरादून की यात्रा करना ठीक समझा। बुकिंग नेट से करवाई थी इसलिए पता नहीं था कि बस किस तरह की मिलेगी। 9 बजे का समय देने के बाद बस एक घंटे विलंब से आई। मेरी तरह की और सवारियां भी बस के इंतजार में दुबली हो रही थी। मौज में सिर्फ़ एक कच्छाधारी अंग्रेज था। गांजे की सिगरेट लगाने के बाद वह फ़ुटपाथ पर ही बैठ कर गिटार बजाने लग गया। कुछ गुनगुनाने के साथ रिक्शा वाले से अंग्रेजी में बात कर रहा था। रिक्शा वाला भी दिल्ली वाली अंग्रेजी बोल रहा था। बस के आते तक मैने दोनों के खूब मजे लिए। वैसे भी कभी रात 9 बजे के बाद मैं भी अंग्रेजी बोलने समझने के लायक हो जाता थ। जब मुंह लगी छूटी तब से अंग्रेजी समझ ही नहीं आती है। लगता है जैसे कोई करीबी रिश्तेदारी छूट गई हो। 

धोखा धडी करने वाले का पूरा पता 
बस आ गई और हम सवार हो गए। वेब साईट पर तो बस की सींटें भरी हुई दिख रही थी जैसे की राशन कार्ड पर ही मिलेगी। यहाँ बस खाली पड़ी थी। आनंद विहार से गाजियाबाद पहुंचने तक बस की सीटें भरी नहीं थी। कंडेक्टर रास्ते की चलती सवारियां उठा रहा था। गाजियाबाद बार्डर से बस आगे बढी तो नींद आने लगी। सीट पर बैठे-बैठे झपकी लेना मुझे भारी पड़ता है। नींद तो तब ही आती है जब लातें लम्बी हो जाएं। किसी तरह आँख बंद किए पड़ा रहा। बिजली के लूज कनेक्शन की तरह नींद आती रही और जाती रही। रास्ते में एक होटल में बस रुकी। लगभग 1 बज रहे थे यहां ड्रायवर कंडेक्टर का खाना होना था। मैने पानी की बोतल ली और एक आईसक्रीम का कोन लेकर मन बहलाया। आधे घंटे के बाद बस आगे बढी। फ़िर हिचकोलों के साथ नींद का उनींदा सफ़र शुरु हो गया। सुबह पौ फ़टने के करीब आँखे खुली। लगभग 6 बजे हम हरिद्वार पहुच चुके थे। 

देहरादून रेलवई टेसन 
कनखल वाले चौक पर ड्रायवर ने गाड़ी खड़ी कर दी और कहने लगा कि इससे आगे गाड़ी नहीं जाएगी। देहरादून की सिर्फ़ 4 सवारियाँ थी। बाकी सवारियाँ हरिद्वार की ही थी। अब वह 4 सवारियाँ लेकर देहरादून जाने को तैयार नहीं था। सवारियां झगड़ने लगी। जब बस देहरादून तक नहीं जानी तो सवारियां क्यों बुक की? सौ रुपए में दिल्ली से हरिद्वार तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन सुविधा के कारण 500 रुपए दिए। जब वह नहीं माना तो मैने उसे धमकाया और पुलिस में रिपोर्ट लगाने की बात कही तो ड्रायवर बस लेकर आगे बढा। उसने ॠषिकेश में स्टैंड पर बस लगा दी और आगे जाने को तैयार नहीं हुआ। फ़िर उसके कंडेक्टर ने हमें सरकारी बस में बिठाया और 45 रुपए की टिकिट लाकर दी। इसलिए ओन लाईन टिकिट करवाने वालों से यही सलाह है कि दिल्ली के ठगों से बच कर रहो। सुबह 6 बजे देहरादून पहुंचने वाले हम साढे नौ बजे पहुंचे।

24 टिप्‍पणियां:

  1. दिल्ली में लगी चोट ने बड़ी चोट से बचा भी तो लिया !
    बस का तो अनुभव नहीं है मगर ट्रेन टिकट की ओनलाईन बुकिंग में कभी धोखा नहीं हुआ , सुविधाजनक ही रहता है .

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  2. एकदम वीवीआईपी, फाइव स्‍टार.

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  3. कई बार तो लगता है कि हम ठगों के बीच रहते हैं, सावधानी हटी और आपकी जेब कटी।

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  4. प्राइवेट बीएस सर्विस वाले ऐसा करते हैं फंस चुका हूँ

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  5. कुल मिला कर इस बार आपकी दिल्ली यात्रा यादगार रही ....अच्छी या बुरी ....ये आपने बता ही दिया है :)

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  6. यह यात्रा तो एडवेंचरस रही। दिल्ली की लड़कियां , दिल्लीकी गाड़ियाँ -- ज़रा बच कर चलो भैया ! :)

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  7. सावधानी हती दुर्घटना घटी, सटीक आलेख.

    रामराम.

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  8. महामहि‍मों और केंद्रीय मंत्रि‍यों की कंपनी वाले आप तो बहुत रसूखदार हैं जी, मैं तो अब आपका नाम लेकर यार-दोस्‍तों पर लंबी लंबी-लंबी छोड़ सकता हूं :-) अलबत्‍ता इस क्रॉउन वाले का नाम याद रखने की कोशि‍श करूंगा. वैसे इन प्राइवेट-बस वालों का कोई दीन ईमान नहीं होता , कोशि‍श रहनी चाहि‍ए की सरकारी रोडवेज़ की ही बस ली जाए , अब तो अधि‍कतर रोडवेज़ की सरकारी बसें भी एअरकंडीशंड मि‍लने लगी हैं हां यह ज़रूर है कि इनके फ़्रीक्‍वेंसी कुछ कम होती है.

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  9. दिल्ली के ठगों से बचना नामुमकिन है महाराज :)

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  10. पैसे ठुके लेकिन अनुभव तो अनमोल हुआ !

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  11. 'बाई'शब्द मध्यभारत में आदर का सूचक है लेकिन दिल्ली या उत्तर भारत में किसी को बाई या बाईजी कहें तो ...सोच लीजिए पहले ही!

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  12. दिल्ली की कार वाली बाई को आप शायद ही कभी भुला पायें !
    शानदार यात्रा विवरण !!

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  13. श्रीमान जी दिल्ली दिल वालों की है। यहां ठगी नहीं होगी तो और क्या होगा।

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  14. दिल्ली से हरिद्वार ऋषिकेश और देहरादून के लिए प्राइवेट ऑपरेटरों की बस तो भूल के भी नहीं लेनी चाहिए. इनका कोई समय सारणी नहीं होती !

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  15. कमाल का सफर रहा आपका । तयशुदा यात्रा नही हुई पर यात्रा हुई और पोस्ट भी ।

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  16. जाना था जापान पहुँच गए चीन... :)
    कोई बात नहीं जान सलामत यात्रायें तो होती रहेंगी... दिल्ली वाली बाई की दुआ से

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  17. ऐसे ठगों से आपने सही चेताया है हम सबको ...
    रोचक और प्रेरक प्रस्तुति

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