घुमक्कड़ी और लेखन का सिलसिला ही टूट गया, 4 महीने हो गए, जब से दिल्ली में चोट खाई तब दना-दन चोटें जारी हैं, एक ठीक होती है दूसरी लग जाती है। इनसे उबरने की कोशिश जारी है फ़िल्में देख-देख कर साधो सहज समाधि भली। जितनी फ़िल्में सारे जीवन में नहीं देखी, उतनी एक महीने में देखी। नेट और यू ट्यूब का अच्छे से दोहन किया। थोड़ा बहुत समय फ़िल्मों के बीच मिलता है वह फ़ेसबुक की भेंट चढ जाता है। घुमक्कड़ी से हासिल उर्जा जीवन की गाड़ी को आगे बढाती है। घुमक्कड़ी रुक जाती है तो लगता है कि दुनिया ठहर गई, सांसों का स्पन्दन भी सुनाई नहीं देता। चलती है धीरे-धीरे जीवित होने का अहसास कराते हुए।
बरसात की झड़ी जारी है। बरसती बूंदों के बीच फ़सल हरिया रही है तो रुपया पीला पड़ते हुए मरणासन्न है, औंधे मुंह गिर रहा है धरा पर। जिसके पास धरा है वह भी धरे-धरे धराशाई हो रहा है और जिसके पास नहीं धरा वह तो नंगा ही खड़ा है, क्या खाए और क्या खिलाए। देश की अर्थ व्यवस्था धराशाई हो रही है और नेताओं के खजाने में अकूत संपत्ति जमा होती जा रही है। जिसे गिनने वाला कोई नहीं। बोरों में भरे हुए नोट गिनने का समय इनके पास कहाँ है? भरे के भरे बोरों का इस्तेमाल ही जाता है।
रायपुर से घर लौटते हुए रास्ते में डूमरतराई के समीप गोलगप्पे का ठेला लगा देखा तो कंट्रोल नहीं हुआ। चलो गोल गप्पे खा लिए जाएं। गोल गप्पे में भरने के लिए मुझे अपनी पसंद का मसाला चाहिए। जिसमें प्याज होना जरुरी है। गोलगप्पे वाले कहा कि - महाराज प्याज नहीं है। मैने एक लड़के को 10 रुपए देकर प्याज लेने भेजा। वह 10 रुपए में एक ही प्याज लेकर आया। देख माथा खराब हो गया। प्याज की एक-एक परत एक-एक रुपए हो गई। जिसके पास हराम का धन है उसे क्या फ़र्क पड़ने वाला है। एक बार कुर्सी पर बैठते ही सात पुश्तों का जमा कर लेते हैं और गोवा में जाकर आयटम सांग करते हैं। यहाँ जांगर तोड़ कमाने के बाद भी कुछ नहीं बचता।
सबसे अधिक त्रासदी तो अब मध्यमवर्ग भुगतने वाला है। अभी तक किसानों के द्वारा ही आत्महत्या करने की खबरें मिलती थी। अब अर्थ व्यवस्था का यही हाल रहा तो मध्यमवर्ग से भी समाचार आने प्रारंभ हो जाएगें। खाद्य सुरक्षा बिल लोकसभा में पास हो गया। वोटों की राजनीति के कारण मुफ़्त बांटने की परम्परा शुरु हो गई। सत्तारुढ पार्टियाँ वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से जनता की गाढी कमाई को दोनों हाथों से मुफ़्त बांट रही है। जिसका भार मध्यम वर्ग को झेलना है। उच्च वर्ग को टैक्स चुरा कर काला धन बनाने में लगा हुआ है। मध्यम वर्ग को ही प्रत्येक स्थान पर अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष कर देना पड़ता है। मुफ़्त का माल मिलने से कामचोरी बढते जाएगी। अगर खाना मुफ़्त में मिल जाएगा तो कमाने कौन जाएगा?
जो पैसा संसाधनों के विकास में लगना चाहिए वह मुफ़्तखोरी की भेंट चढता जा रहा है। लगाए जाओ तुम्हारे बाप का है, तुमने तो कमाया नहीं है जो खर्च करने में जान निकलेगी। इधर चीन बार बार सीमाएं लांघ जाता है। भारतीय सैनिकों के खाना-पानी मांगता है। मांगने की बीमारी प्रत्येक जगह है। अब तो म्यांमार के सैनिक भी मांगने भारतीय सीमा में घुसे चले आ रहे हैं। सोचता हूँ खाद्य सुरक्षा लागु होने के बाद देश में कहीं पर भी भिखारी नहीं दिखाई देगें। क्योंकि जब सरकार भरपेट में मुफ़्त में भोजन देगी और निराश्रित पेंशन इत्यादि मिल रही होती तो भीख मांगने की आवश्यकता ही खत्म हो जाएगी। हर हाथ को काम की जगह नारा होना चाहिए "हर पेट को खाना"।
कई स्थानों से संगोष्ठियों के निमंत्रण आ रहे हैं। कई तो एक ही दिन पड़ रहे हैं, ऐसे में अलग-अलग स्थानों पर एक ही तारीख को उपलब्ध हो पाना असंभव है। रविन्द्र प्रभात जी भी काठमांडू में कार्यक्रम कर रहे हैं। परिकल्पना की टीम ने नेपाल में सम्मान देने की घोषणा की है। उन्हें समारोह की सफ़लता के लिए मेरी शुभकामनाएं। बरसात खत्म हो तो कुछ यात्राएं की जाएं। भोपाल में "मीडिया चौपाल" का इस वर्ष पुन: आयोजन हो रहा है। अनिल सौमित्र जी का निमंत्रण आया हुआ है। उम्मीद है कि नेपाल नहीं सही तो भोपाल जाना हो सकता है तथा उसके साथ ही आस-पास के स्थानों की घुमक्कड़ी करने का इरादा है।
दो बरस हो गए, पांडीचेरी गए। वहाँ काफ़ी मित्र हैं जो इंतजार करते हैं। भाषा अवश्य समस्या बनती है पर भावों से काम चल जाता है। नागमणि दूभाषिए की भूमिका निभा लेती हैं। एक बार पुन: पांडीचेरी जाने का मन बन रहा है। मित्र वी तंगम का फ़ोन आया था कि दो बरस हो गए पांडीचेरी आए। वैसे अभी पांडीचेरी का मौसम अच्छा होगा। समुद्र ठाठें मार रहा होगा और लहरें सिंहगर्जना कर रही होगी। रात के समय समुद्र किनारे आँख बंद कर बैठने पर लहरों का स्वर किसी दूसरी दुनिया में ले जाता है तथा बड़ा ही अलौकिक एवं अद्भुत अनुभव होता है। इसके साथ किनारे पर स्थित "ली कैफ़े" की काफ़ी और "शंकरा" के चखने का तो कोई तोड़ ही नहीं है। अभी तो जयपुर की दाल-बाटी-चूरमा का योग बन रहा है। फ़िर जोधपुर के मिर्ची भजिए का। बाकी बाद में देखा जाएगा।
अजी आप तो आप हम भी आपकी घुमक्क्डी पोस्ट के बहाने कित्ता कुछ घूम फ़िर लेते हैं , फ़ौरने बांधिए बोरा डंटा और निकल जाइए , जयपुर जोधपुर ,पांडिचेरी ..।कहीं प्याज सस्ती दिखे मिले तो भर लाइएगा
जवाब देंहटाएंमनचक्कर का घनचक्कर.
जवाब देंहटाएंसहजता ही तो साधुता है । सुन्दर रचना । बधाई ।
जवाब देंहटाएंपोस्ट और लेबल का क्या सम्बन्ध है , पता चले तो आगे टिप्पणी करें !
जवाब देंहटाएंकभी कभी एकान्त बहुत से भेद खोल देता है।
जवाब देंहटाएंजल्दी से नयी यात्रा पर निकलिए, जिससे कि हम लोगों को भी कुछ नया पढ़ने को मिले।
जवाब देंहटाएंये दिल्ली में चोट खाने से क्या मतलब है भाई शर्मा जी ? मैं खुद ही इधर ब्लॉग से गायब हूँ इसलिये पूछ रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंचलो आपकी पोस्ट दिखाई दी ! मै भी बहुत दिनों से आपकी पोस्ट का इंतजार कर रहा था :) सुनकर अच्छा लगा कि घुमक्कड़ी फिर से प्रारंभ होने वाली है ! भगवान आपका स्वास्थ्य अच्छा बनाये रखे जिससे हमें भी नयी नयी जगहों के बारे में जानकारी मिलती रहे :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख !