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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

बूढ़ा नीलकंठ में सूतल विष्णु : काठमांडू

नेपाल यात्रा प्रारंभ से पढें
शुपतिनाथ मंदिर के बाद हमारा अगला पड़ाव बूढ़ा नीलकंठ था। काठमांडू की गलियों के बीच वातानुकूलित बस का ड्रायवर कुशलता का परिचय दे रहा था। बड़ी लक्जरी बस को आसानी के साथ चौड़े चौक चौराहों पर मोड़ लेता था। हमारी बस काठमांडू की सड़कों पर चक्कर काटते हुए बूढ़ा नीलकंठ मंदिर पहुंची। मंदिर से थोड़ी दूरी पर बस को विश्राम दिया गया और हम गली से होते हुए मंदिर तक पंहुचे। काठमांडू के मध्य से 10 किलोमीटर की दूरी पर शिवपुरी हिल के समीप यह मंदिर स्थित है। पूजन सामग्री की दुकाने नीचे ही गली में लगी हुई थी। इन दुकानों  में अधिकतर महिलाएं काम करते दिखाई दी। 
   खाई - खाजा की दुकान 

मंदिर के प्रवेश द्वार की चंद्रशिला के उपर पद्मांकन दिखाई दिया। उसके पश्चात पैड़ियों के बीच में चतुर्भुजी विष्णु की प्रतिमा स्थानक मुद्रा में स्थापित है। मुख्य द्वार के किवाड़ों पर पीतल का पतरा चढा हुआ है तथा उसके एक किवाड़ पर  शिव परिवार के सदस्य कार्तिकेय एवं दूसरे किवाड़ पर गणेश जी विराजमान हैं। इस स्थान पर हमने कुछ चित्र लिए। द्वार पर पुष्प पत्र बेचने वालों ने कब्जा जमा रखा था तथा इस मंदिर में भी एकमात्र हिंदुओं को ही प्रवेश की अनुमति है। अन्य धर्म के लोग यहाँ प्रवेश नहीं कर सकते। 
कार्तिकेय 

प्रवेश द्वार के समक्ष जल का विशाल कुंड बना हुआ है, जिसमें शेष शैया पर लेटे हुए भगवान विष्णु की चर्तुभुजी प्रतिमा है। प्रतिमा का निर्माण काले बेसाल्ट पत्थर की एक ही शिला से हुआ है। प्रतिमा का शिल्प मनमोहक एवं नयनाभिराम है। शेष शैया पर शयन कर रहे विष्णु की प्रतिमा की लम्बाई 5 मीटर है एवं जलकुंड की लम्बाई 13 मीटर बताई जाती है। शेष नाग के 11 फ़नों के विष्णु के शीष पर छत्र बना हुआ है। विष्णु के विग्रह का अलंकरण चांदी के किरीट एवं बाजुबंद से किया गया है। प्रतिमा के पैर विश्रामानंद की मुद्रा में जुड़े हुए हैं। शेष नाग भी हष्ट पुष्ट दिखाई देते हैं।
 सुनीता यादव, रविन्द्र प्रभात, राजीव शंकर मिश्र, नमिता राकेश, मनोज भावुक, मनोज पाण्डे 

जलकुंड को चारदीवारी से घेरा गया है सभी ब्लॉगर शंख, चक्र पद्म एवं गदाधारी चतुर्भुजी विष्णु की प्रतिमा के चित्र ले रहे थे तथा मैं इस जुगत में था कि इस विशाल प्रतिमा का एक बढिया सा चित्र लिया जाए। मैंने कुंड की चार दिवारी में प्रवेश करके एक चित्र लिया तो एक व्यक्ति ने मुझे वहाँ लिखी चेतावनी की ओर इंगित किया। जिस पर लिखा था कि चार दिवारी के भीतर चित्र लेना वर्जित है। फ़ोटो खींचने के बाद सभी ब्लॉगर एक वृक्ष की छांव में बैठ गए तथा सुनीता सभी के विडियो बनाने लगी। अभी हमारे दल का नेतृत्व राजीव शंकर मिश्रा बनारस वाले कर रहे थे। 
अक्षिता पाखी, आकांक्षा यादव, कृष्ण कुमार यादव, मुकेश तिवारी, सुनीता यादव

मंदिर से लौटते हुए उन्होनें उपस्थित ब्लॉगर्स को रुद्राक्ष के कुछ फ़ल भेंट किए तथा बताया कि इन फ़लों से रुद्राक्ष निकालने के लिए कैसी साधना करनी पड़ती है। अब यहाँ पर समस्या यह थी कि मंदिर का नाम बूढ़ा नीलंकठ है तथा शेष शैया पर भगवान विष्णु विराजे हैं, द्वार पर जय विजय की तरह शिव परिवार के उत्तराधिकरी कार्तिकेय एवं गणेश पहरा दे रहे हैं और भगवान विष्णु क्षीर सागर में मजे से आनंद ले रहे हैं। बूढ़ा नीलकंठ महादेव तो कहीं दिखाई नहीं दिए। जब बूढा नीलकंठ ही इस स्थान पर नहीं है तो यह नाम इस स्थान के लिए रुढ कैसे हो गया? यह प्रश्न दिमाग में कौंध रहा था।
बूढ़ा नीलकंठ

विषपान करने के पश्चात जब भगवान शिव का कंठ जलने लगा तब उन्होने विष के प्रभाव शांत करने के लिए जल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक स्थान पर आकर त्रिशूल का प्रहार किया जिससे गोंसाईकुंड झील का निर्माण हुआ। सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है गोसाईंकुंड झील जो 436 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. काठमांडू से 132 उत्तर पूर्व की ओर स्थित गोसाईंकुंड पवित्र स्थल माना जाता है। मान्यता है कि बूढा नीलकंठ में उसी गोसाईन कुंड का जल आता है, जिसका निर्माण भगवान शिव ने किया था। श्रद्धालुओं का मानना है कि सावन के महीने में विष्णु प्रतिमा के साथ भगवान शिव के विग्रह का प्रतिबिंब जल में दिखाई देता है। इसके दर्शन एक मात्र श्रावण माह में होते हैं।
चतुर्भुजी विष्णु

बूढ़ा नीलकंठ प्रतिमा की स्थापना के विषय में स्थानीय स्तर पर दो किंवदंतिया प्रचलित हैं, पहली प्रचलित किंवदंती है कि लिच्छवियों के अधीनस्थ विष्णु गुप्त ने इस प्रतिमा का निर्माण अन्यत्र करवा कर 7 वीं शताब्दी में इस स्थान पर स्थापित किया। अन्य किंवदन्ती के अनुसार एक किसान खेत की जुताई कर रहा था तभी उसके हल का फ़ाल एक पत्थर से टकराया तो वहाँ से रक्त निकलने लगा। जब उस भूमि को खोदा गया तो इस प्रतिमा का अनावरण हुआ। जिससे बूढ़ा नीलकंठ की प्रतिमा प्राप्त हुई तथा उसे यथास्थान पर स्थापित कर दिया गया। तभी से नेपाल के निवासी बूढ़ा नीलकंठ का अर्चन पूजन कर रहे हैं। 
सरोज सुमन, मुकेश तिवारी, रविन्द्र प्रभात, मनोज भावुक विश्रामासन में 

नेपाल के राजा वैष्णव धर्म का पालन करते थे, 12 वीं 13 वीं शताब्दी में मल्ल साम्राज्य के दौरान शिव की उपासना का चलन प्रारंभ हुआ तथा 14 वी शताब्दी में मल्ल राजा जय ने विष्णु की आराधना प्रारंभ की एवं स्वयं को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया। 16 वीं शताब्दी में प्रताप मल्ल ने विष्णु के अवतार की पराम्परा सतत जारी रखी। प्रताप मल्ल को दिखे स्वप्न के आधार पर ऐसी मान्यता एवं भय व्याप्त हो गया कि यदि राजा बूढ़ा नीलकंठ के दर्शन करेगें लौटने पर उसकी मृत्यु अवश्यसंभावी है। इसके पश्चात किसी राजा ने बूढ़ा नीलकंठ के दर्शन नहीं किए। इस मंदिर में देवउठनी एकादशी को मेला भरता है तथा श्रद्धालु भगवान विष्णु  के जागरण का उत्साह पूर्वक आशीर्वाद लेकर जश्न मनाते हैं। 
काठमांडू नगर 

काठमांडू में इसके अतिरिक्त विष्णु की शयन प्रतिमाएं हैं, एक प्रतिमा बालाजु बाग में स्थापित है जिसका दर्शन आम जनता कर सकती है तथा दूसरी प्रतिमा राज भवन में स्थापित है, जिसके दर्शन आम आदमी के लिए प्रतिबंधित हैं।बौद्ध धर्मी नेवारी समुदाय इसे बुद्ध मान कर पूजा करता है तथा हिन्दुओं के द्वारा मना करने पर उनकी पूजा करने की परम्परा चली आ रही है। हम बूढ़ा नीलकंठ के दर्शन करने के उपरांत आगे की नेपाल दर्शन यात्रा में चल पड़े। अब हमारा अगला पड़ाव पाटन दरबार चौक था।

नेपाल यात्रा की आगे की किश्त पढें……

11 टिप्‍पणियां:

  1. चित्रों के साथ इतिहास की जानकारी भी …अत्युत्तम !

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  2. शिव और विष्णु साथ साथ -पढ़ रहे हैं !

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  3. नेपाल की भाषा की सुन्दर झलक शीर्षक में दिख रही है…उत्कृष्ट लेखन , मनोरम दृश्य और अनूठी जानकारियां … नेपाल घूमकर आने के २ साल बाद आज आपके द्वारा खुला 'बूढ़ा नीलकंठ' का रहस्य … आभार

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  4. हमेशा की तरह खूबसूरत यात्रा व्रतांत, मैं ब्लागिंग के मामले में एक्दम नया हूं आप सभी के आशिर्वाद का आकांक्षी, http://jhansian.blogspot.in

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  5. अद्भुत वृतांत। क्या कहा जाय। सुखद।

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