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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

गाजीपुर: सड़कों में गड्ढे-गडढों में सड़क

नेपाल यात्रा प्रारंभ पढें
भादो की धूप मंद रहते हुए भी उमस से झुलसा डालती है। पसीने की चिप-चिप और पसीना चूसने वाली मक्खियाँ तन पर बैठती हैं तो लगता है भोगने वाला नरक यही है। आज की गर्मी भी कुछ ऐसी ही थी। नेकर के नीचे की उघड़ी टांगों से पसीना धार धार बह रहा था।। मंत्रणा हुई कि अब आगे बढा जाए चुनारगढ़ भले ढंग से देख भाल लिए। गाईड को विदा करते हुए मैने उससे बनारस जाने का मार्ग पूछा तो उसने जमुई होते हुए जाने को कहा। पाबला जी ने भी चलते-चलते एक छायाचित्र का शौक फ़रमा दिया। विहंगम दृष्यावलि को कैमरे की आँख से समेटते हुए चल पड़े। गढ़ में पर्यटक पसीने से लथपथ चंद्रकांता तथा कुमार विरेंद्र के राजनैतिक प्रेम से रुबरु होने के लिए आ रहे थे। खाकी वर्दीधारी पंजी में उनके हस्ताक्षर और मोबाईल नम्बर लेकर आगे बढने दे रहा था।
रानी झरोखे से कचहरी दर्शन: चुनारगढ़

चुनारगढ़ को समृतियों में समेट कर हम आगे बढे। गढ़ के नीचे से सड़क जमुई की ओर जाती है। जीपीएस वाली बाई ने कह दिया कि 100 मीटर ते सज्जे मुड़ो और 8 किलोमीटर सीद्दे चलते रओ। हम तो इसी के भरोसे पर अपनी यात्रा कर रहे थे। किसी से पूछने की आवश्यकता ही नही थी। बस्ती खत्म होने के बाद थोड़ी देर चलने पर वन प्रांत दिखाई देने लगा। वैसे भी चुनारगढ़ हमारे मार्ग में नहीं था। सुबह जब चाय दुकान से फ़ोटो लगाए फ़ेसबुक पर तो अरविंद मिश्रा जी ने पूछा कि - आप लोग बनारस के लिए चले थे और चुनारगढ़ कैसे पहुंच गए? बस पहुंच ही गए, चुनारगढ़ से परिचित जो होना था। समय हमारे पास सीमित था वरना कालिंजर भी नहीं छोड़ते और राजा उदयन से गुफ़्तगुं अवश्य करके आते। गिरीश भैया कहने लगे - अरे वह टीवी में जो सीरियल आता था, उसी चंद्रकांता का ही है न यह चुनारगढ़, चलो अच्छा हुआ देख लिए वरना मै तो कुछ और ही समझ रहा था। 
धान की लहलहाती फ़सल

हम आपस में चर्चा करते हुए जमुई से आगे बढ रहे थे। चुनारगढ़ की तरफ़ आने के लिए हमने मुख्यमार्ग से रेल्वे फ़ाटक पार किया। अब पुन: मुख्य मार्ग पर जाने के लिए बोग्दा से निकले। थोड़ी देर बाद बनारस का रिंग रोड़ दिखाई दिया। फ़र्राटे से उस पर से गाड़ियाँ जा रही है। उबड़-खाबड़ रोड़ पे चलते हुए कई घंटे हो गए थे। शानदार हाईवे देखकर मजा आ गया जैसे कोई जलती हुई देह पर ठंडे पानी की फ़ुहार डाल दे। हमने फ़टाफ़ट गाड़ी हाईवे पर चढा ली। जीपीएस वाली बाई ने 40 किलोमीटर सिद्दे चलदे रओ का आदेश सुना दिया। हमारी गाड़ी भी फ़र्राटे लेने लगी। यहीं हाईवे पर रुक कर एक ढाबे में कल की बची हुई पूरियाँ पूर्ण की और आगे बढ़े। 
गाजी पुर सड़क प्रारंभ

40 किलोमीटर बाद बांए मुड़ने का संकेत मिला। रास्ता देखने पर सिंगल सड़क दिखाई दी। सिंगल सड़क से आगे बढे बढने पर एक मोड़ फ़िर आया। वहाँ 1 पुलिस वाला बैठा था, रास्ता पूछने पर उसने कहा कि सड़क खराब है धीरे-धीरे निकल जाइए, गाजीपूर के बाद अच्छी सड़क मिल जाएगी। लो जिस गलती को करने लिए लखनपुर के भुक्तभोगी साथियों ने मना किया था वही गलती जीपीएस के कारण हम कर रहे थे। परन्तु 45 किलोमीटर चल चुके थे तो वापस जाने का भी मन नहीं था। थोड़ा धीरे चल लेगें। 1 घंटा अधिक लग जाएगा, यही सोच कर हम आगे बढ गए। 4-5 किलोमीटर खराब सड़क मिलने के बाद बढिया डबल रोड़ आ गया। मैने कहा कि वे लड़के खराब सड़क देख कर ही वापस लौट गए होगें। उन्हे क्या पता कि आगे चलने पर बढिया सड़क भी आएगी। बस यहीं चूक हो गयी।
थोड़ा और आगे बढ़े

अच्छी सड़क के बाद इतनी खराब सड़क आई की, हमने इसके विषय में सोचा भी नहीं था। सड़क होती तो कोई बात होती। वहाँ तो सड़क ही नहीं थी। ट्रकों के चलने के कारण डेढ-डेढ फ़ुट गहरी पटरियाँ बनी हुई थी। हमारी गाड़ी का एक चक्का पटरियों के बीच के टीले पर और दूसरा गड्ढे में था। ऐसे ही चले जा रहे थे सोचकर कि थोड़ी देर बाद अच्छी सड़क आ जाएगी और गाजीपुर 25 किलोमीटर है थोड़ी तकलीफ़ और पा लेते हैं। एक स्थान पर जाकर गाड़ी इंजन और टंकी सब बीच वाले टीले पर टंगा गए। गाड़ी के चक्के अधर होने से गाड़ी ने चलने से इंकार कर दिया। दोपहर की धूप तप रही थी। पानी भी कम ही था साथ में। अब लग गया कि यहीं फ़ंस गए और हो गया काम। हमारे फ़ंसने के कारण पीछे गाड़ियों की लाईन लग गई। पाबला जी ने खूब जोर मारा रिवर्स गेयर लगा कर हमने धक्का मारा। फ़िर भी गाड़ी टस-से-मस नहीं हुई।
देखिए सड़क का हाल

आस-पास के गाँव के लोग हमें फ़ंसा हुआ देख कर मजा ले रहे थे। कह रहे थे कि इधर से तो ट्रक भी नहीं निकल सकता, आप लोग कैसे आकर फ़ंस गए। किसी ने गलत रास्ता बताया है। हमारे पीछे नागालैंड की गाड़ी थी। उसके ड्रायवर कंडेक्टर ने रस्सा निकाल कर हमारी गाड़ी को टोचन किया और पीछे खींचा तो रस्सा ही टूट गया। उन्होने दुबारा बांध कर प्रयास किया तो गाड़ी निकल गई। लगा कि दिन ठीक है वरना फ़ंसे खड़े रह जाते। गाँव के कोई ट्रैक्टर मंगवाते, वह अनाप-शनाप पैसे मांगता तब कहीं गाड़ी गडढे से बाहर आती। हम ने यू टर्न ले लिया। वहाँ से वापस उसी रोड़ पर लौट चले। लगभग 2 बजने को थे। रास्ते में चौक पर वही पुलिस वाला फ़िर बैठा दिखाई दिया। एक बार तो मेरे मन में उसकी सेवा पानी करने का इरादा हो गया था। परन्तु समय नहीं था। वैसे भी विलंब से चल रहे थे।
इदरिच फ़ंसे

हम पुन: उसी मार्ग पर आ गए। अब आजमगढ़ होकर गोरखपुर पहुंचना था। अब हमारा जीपीएस आजमगढ़ वाली सड़क पर पहुंचाने के लिए बनारस की गलियों के चक्कर कटवाने लगा। भीड़ भाड़ भरी असड़कों (सड़क ही नही) के बीच से पाबला जी ड्राईव कर रहे थे। यहाँ से गाड़ी हम दोनो ने ड्राईव करनी शुरु कर दी। स्टेयरिंग और एक्सीलेटर पाबला जी के हाथ में था और ब्रेक मेरे पैर में। जब भी कोई सामने दिखता है, मेरा पैर तुरंत ब्रेक लगा देता। बात तालमेल की थी। इस तरह चलते हुए हमने बनारस शहर पार किया। गिरीश भैया को अपनी जन्मभूमि की याद आने लगी। उनका जन्म बनारस में ही हुआ है। कहने लगे कि बाबू देवकीनंदन खत्री के प्रपौत्र से उनकी अच्छी मित्रता है। समय की कमी थी वरना उनसे मिलते हुए चलते। एक बारगी तो हमारी गाड़ी ने वन वे में प्रवेश कर लिया। कचहरी के सामने वन वे का बोर्ड लगा था। 
बनारस प्रवेश

थोड़ा आगे चलकर हमने बनारस के पान का स्वाद लिया। दूई बीड़ा पान बंधवाए और एक बीड़ा खाए। बनारस आए और पान नहीं खाए तो आना व्यर्थ हो जाता। बनारसी पत्ते पर किमाम की रगड़ और गीली सुपारी की गिलौरी के आनंद का कहना ही क्या था। गाना याद आ गया, "पान खाए सैंया हमारो, मलमल की कुर्ती पे छींट लाल"। छींट लगाने लायक कुरती तो थी नहीं। पर काले रंग का अंगरखा जरुर पहने थे। काले रंग पे चढे न दूजो रंग। सफ़ेद कुरती होती तो 2-4 छींट लगाए ही लिए होते। चमेली भी खुश कि सैंया पान खाए हैं और चम्पा भी खुश कि किमाम की मस्त खस्बू है। बनारस शहर से आजमगढ़ की सड़क पर पहुंचने के बाद भी गडढों से पीछा नहीं छूटा। यहाँ भी ट्रांसपोर्ट नगर की सड़क गायब मिली। बस मुंह से एक ही जयकारा निकला "जय हो पुत्तर प्रदेश की"
लोहापुल बनारस

आगे बढने पर जामिया इस्लामिया की बिल्डिंग दिखाई दी। काफ़ी बड़ी जगह में यह संस्थान बना हुआ है। यह इलाका मुस्लिम बहुल है। रात लगभग 10 बजे के बाद गोरखपुर बायपास रोड़ पर पहुंचे। अब समस्या थी कि ठहरा कहाँ जाए? अरविंद झा को फ़ोन लगाए तो उनका मोबाईल नो रिप्लाई हो रहा था। जीपीएस में होटल आदि के पते दर्ज हैं। वहीं से एक होटल का पता दे दिया गया। गाड़ी चलती रही। स्टेशन के पास पहुंचने पर जीपीएस वाली बाई ने कहा कि आपकी मंजिल आ गई है। होटल सड़क के उस पार था। वहां जाकर देखने पर रुम नहीं मिला। उसके सामने ही एक होटलों की कालोनी है। वहां एक रुम मिल गया। भोजन के बाद यहाँ से पुन: सुबह 4 बजे चलने की चर्चा होने लगी तो मैने कह दिया कि जब नींद खुलेगी तभी चलेगें। सुबह जल्दी उठने के कारण सारा जैविक सिस्टम गड़बड़ हो गया है। आखिर में तय हुआ कि जब नींद खुल जाएगी तब चल पड़ेगें। नेपाल यात्रा की आगे की किश्त पढ़ें ………

15 टिप्‍पणियां:

  1. ओह, तो गूगल का जीपीएस भी गलत रास्ता बताता है, गूगल वालों को रिपोर्ट करके और लोगों का भला कीजिये..

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  2. बड़ा कठिन डगर लग. यात्रा वृत्तांत तो बांधे रहा

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  3. आप के कुछ शाब्दिक प़योग मज़ेदार हैं , जैसे जीपीएस वाली बाई , ख़राब सड़क के
    लिए असड़क और गड्ढों में सड़क आदि । वर्णनकौशल आप के पास है ।

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  4. रोचक, मजेदार, पान का स्वाद भूले नहीं, भूल रहा। एक घुमक्कड़ ही लिख है इतना प्यारा।

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  5. बड़ी ही मुश्किल यात्रा .. विवरण बढ़िया.

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  6. Paan khakar tippani likh rah hun ....badi kathin yatra rahi kabhi gajipur nahin jaunga ....

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  7. देहात मे जी पी एस खेत देखने लगता है !
    वैसे अच्छा हुआ गाड़ी टोचन नहीं करनी पड़ी ! :)

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  8. ये कहाँ कहाँ घुमाडियाते रहे आप सब ?

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  9. विवेक रस्तोगी जी
    रास्ता तो सही था व्यवस्था ठीक नहीं थी
    वैसे, Waze के सहारे शिकायत कर दी है गूगल को
    जबकि गूगल का कोई लेना देना नहीं हमारी कन्या नेवीगेटर का :-)

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  10. उल्‍लेखनीय, दर्शनीय सड़कें :)

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  11. चित्र बतला रहे हैं किस्सा सड़क का वाह जी जिजीविषा यात्रा की

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  12. सड़क के नाम पर कलंक है यह, इससे अच्छी गाँव की पगडंडी..

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  13. खइके पान बनारस वाला
    मुंह से निकला जयकारा
    "जय हो पुत्तर प्रदेश की"
    जवाब नहीं आपकी वर्णन शैली का … कार चलाना हो या फिर शब्दों की रेल बात तालमेल की है…लाज़वाब तालमेल

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