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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

राजिम कुंभ में एक दिन

चित्रोत्पला गंगा महानदी, सोंढूर और पैरी नदी के त्रिवेणी संगम पर माघ पूर्णिमा को प्रतिवर्ष मेला भरता है तथा इस मेले का समापन शिवरात्रि को होता है। भारत में तीन नदियों के संगम स्थल को पवित्र माना जाता है, यहाँ लोकमान्यतानुसार धार्मिक कर्मकांड सम्पन्न कराए जाते हैं। राजिम त्रिवेणी संगम में मेले का आयोजन कब से हो रहा है इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती पर सन 2000 में इसका सरकारीकरण हो गया। फ़िर 2004 में भाजपा की सरकार सत्ता में आने के बाद इसे कुंभ का नाम दे दिया गया। जिससे स्वस्फ़ूर्त पारम्परिक आयोजन सरकारी आयोजन में बदल गया। इसके साथ ही माने हुए साधू संतों का आगमन प्रारंभ हो गया। धार्मिक कथा-प्रवचनों के आयोजनों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी जन मनोरंजार्थ होने लगा। धीरे-धीरे राजिम मेला कुंभ में परिवर्तित हो गया।
राजिम कुंभ समिति सचिव गिरीश बिस्सा
कुंभ के आयोजन की तैयारियाँ एक माह पूर्व प्रारंभ हो जाती हैं, कुंभ में समन्वय स्थापित करने के लिए शासन के अधिकारियो के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों को मिलाकर एक आयोजन समिति का निर्माण किया जाता है। कुंभ का संचालन एवं आगतों की आवास, भोजन एवं सुरक्षा की व्यवस्था महत्वपूर्ण होती है। कुंभ में हजारों साधू-संत जुटते हैं जिनकी व्यवस्था करने के लिए समिति वालों को दिन रात एक करना पड़ता है साथ ही विशेष ध्यान रखा जाता है कि कहीं अव्यवस्था न फ़ैले। लोग मेला देखने जाते हैं और घूम फ़िर कर मनोरंजन करके चले आते हैं पर उन्हें पता नहीं रहता कि इस भव्य आयोजन के पार्श्व में दिन-रात मेहनत करने वाले कौन लोग हैं। राजिम कुंभ के सचिव के रुप में गिरीश बिस्सा 10 वर्षों से आयोजन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, सहयोग करने के लिए इनके साथ कर्मचारियों का बड़ा अमला है, जिससे कार्यों का निष्पादन होता है।
राजिम कुंभ में उदय भैया
बचपन में देखा था कि मेला प्रारंभ होने के एक सप्ताह पहले से ही बैल गाड़ियों का रेला प्रारंभ हो जाता है। लोग अपना खाना दाना लेकर हफ़्ते या पखवाड़े भर मेले में ठहरने की व्यवस्था करके आते थे। अब वे बैलगाड़ियां कहीं दिखाई नहीं देती, वर्तमान में आवागमन के आधुनिक साधन होने के कारण लोग सुबह मेले में आते और रात तक लौट जाते हैं। मैने मेले का पैदल ही भ्रमण किया। मेले में मनोरंजन से लेकर खाने-पीने की वस्तुओं की दुकानों के साथ खिलौने, दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं तथा महिलाओं द्वारा खरीदी जाने वाली श्रृंगार सामग्री का विशेष आकर्षण दिखाई दिया। नदी  की रेत में मुरम की अस्थाई सड़क बना कर तत्कालिक नगर बसाया गया है। 
संत नगर
लोमश ॠषि आश्रम में गत वर्ष नागा साधुओं एवं स्थानीय साधुओं के बीच मारपीट और हंगामें की खबर सामने आई थी। इस वर्ष नागाओं को लोमश ॠषि आश्रम में स्थान नहीं दिया गया। सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस की व्यवस्था की गई थी। लोमश ॠषि आश्रम से मेले का विशाल दृश्य दिखाई देता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर में दर्शनार्थियों की लाईन लगी हुई थी। मंदिर के समीप ही नागलोक की प्रदर्शनी लगाई गई है। इसके साथ ही इस तरह की अन्य पाँच प्रदर्शनियाँ भी लगी हैं, इनको जंगल सफ़ारी, स्वर्ग नर्क इत्यादि नाम दिए गए हैं। 
नाग लोक की झांकी
हम नागलोक की प्रदर्शनी देखने पहुंचे। प्रदर्शनी में लाईट एवं साऊंड के संयोजन से जीवंत प्रभाव उत्पन्न किया गया है, द्वार टिकिट लेने वालों की लाईन लगी हुई थी। प्रवेश द्वार पर चिखली दुर्ग निवासी प्रकाश वैष्णव से मुलाकात होती है, इस प्रदर्शनी के वे मालिक हैं। पूछने पर कहते हैं कि - इस वर्ष मेलें कम ही लोग आए, उम्मीद से कम कमाई हो रही है। प्रदर्शनी बनाने में 1 लाख रुपया लग जाता है, फ़िर कर्मचारियों एवं बिजली का खर्च अलग देना पड़ता है साथ ही ट्रांसपोर्टिंग का खर्च पहले से अधिक हो गया है। ऐसी स्थिति में अगर 3 लाख रुपए से कम आवक हुई तो खा-पीकर सब बराबर हो जाता है।" इस कुंभ में वे 10 वर्षों से लगातार झांकी लगा रहे हैं, पहले एक ही झांकी होने से अच्छी आमदनी हो जाती थी, लेकिन अब झांकियों की संख्या बढने से आमदनी में कमी हो गई।
नाग लोक में नाग कन्याओं का सुवा नृत्य 
झांकियों का विषय धार्मिक रखा जाता है। जिसमें देवी देवताओं की फ़ाईवर की मूर्तियाँ लगाई जाती हैं, जिसे बिजली की मोटरों द्वारा संचालित करके झांकियों में जीवंत प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। इसके बाद हमने जंगल सफ़ारी नामक झांकी का अवलोकन किया। जिसमें जंगल के जानवरों को दिखाया गया है। कहानी में जंगल के जानवर बैठक करके सशरीर स्वर्ग जाना चाहते हैं तथा इसके लिए वे गणेश जी एवं महादेव से विनती करते हैं। इसके पश्चात अनुमति मिलने पर वे स्वर्ग पहुंच कर मेनका, रंभा, उर्वशी नामक अप्सराओं के संग नृत्य करते दिखाई देते हैं। ग्रामीणों के स्वस्थ मनोरंजन का यह उत्तम उपाय है तथा इसे देख कर बच्चे भी रोमांचित होते हैं।
मुफ़्त में तारामंडल दर्शन
कुलेश्वर मंदिर के समीप ही एक स्थान पर लम्बी लाईन लगी हुई थी, देखने पर पता चला कि संस्कृति विभाग की तरफ़ से यहाँ पर मुफ़्त तारामंडल दिखाया जा रहा है। बड़ी संख्या में महिलाएं सौंदर्य प्रसाधन के सामान खरीदती दिखाई दे रही थी। मुख्य मंडप की तरफ़ बढने पर चश्मे की दुकान लगाए सुनील वंशकार से मुलाकात होती है। ये जबलपुर से मेले में दुकानदारी करने आए हैं। पूछने पर बताया कि - इस वर्ष मेले में कम लोग आए हैं, आसाराम बापू का कार्यक्रम होता था तो मेले में उनके शिष्यों की अधिक भीड़ होने से अच्छी कमाई हो जाती थी। उनके जेल जाने की वजह से कार्यक्रम नहीं हो पाया।" आगे कहते हैं कि -" वो अपराधी है कि नहीं यह तो न्यायालय तय करेगा, परन्तु उनके समर्थकों के आगमन से हमारी तो अच्छी कमाई हो जाती थी।"
गोदना गोदवा ले न……
चश्मे वाले समीप ही गोदना की दुकान सजी हुई है, यहाँ भिन्न-भिन्न तरह के गोदने के डिजाईन दिखाई दे रहे थे। इस दुकान के मालिक कलीम हैं। पूछने पर पहले तो अपना नाम लल्लू बताते हैं फ़िर कहते हैं कि "मेरा नाम कलीम है। फ़ाफ़ामऊ से आया हूँ और राजिम कुंभ में सन 2000 से प्रतिवर्ष आ रहा हूँ।" आमदनी के विषय पर पूछने पर कहते हैं कि "अबकि बार आमदनी कुछ कम ही है, ले-देकर दैनिक खर्च निकल रहा है।" गोदना करना इनका पारम्परिक पेशा है, पहले इनके पिता जी करते थे 1991 से अब इन्होने अपना पुस्तैनी धंधा अपना लिया। ये वर्ष भर मेलों में घूम कर रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं। जिससे बच्चों का लालन पालन हो सके। इनका सारा समय मेलों और यात्राओं में बीत जाता है। दो महीने बस घर में रहते हैं।
मुख्य मंच राजिम कुंभ
मेलों के विषय में पूछने पर ये बताते हैं कि " हमारी यात्रा जेठ के महीने में अभार माता छतरपुर मेले से प्रारंभ होती है, फ़िर मंडौर ललितपुर का मेला करते हैं। सावन में सोनभ्रद शिवद्वार का मेला 1 महीने चलता है, भादो में काशी धाम बनारस चले जाते हैं। कार्तिक में रायपुर बंजारीधाम,  अगहन में बाराबंकी का महादेवा मेला, पूष में गोरखनाथ का मेला गोरखपुर, मकर संक्राति के खिचरी तिहार के बाद छत्तीसगढ़ आ जाते हैं जिसमें राजिम कुंभ, शिवरीनारायण मेला के पश्चात चैत्र नवरात्र में कामाख्याधाम गाजीपुर चले जाते हैं, यह मेला नवरात्र में एक महीने चलता है फ़िर दो महीना आराम करते हैं और फ़िर यही कार्यक्रम शुरु हो जाता है।
खैनी बनाओ और खाओ
गोदना से रक्त जनित बीमारियाँ फ़ैलने के विषय में कहते हैं कि - मैं पूरा ध्यान रखता हूँ कि इसके द्वारा एच आई वी न फ़ैले। गोदना से पहले डेटाल लगाता हूँ, एक गोदना गोदने के बाद मशीन की सुईयां बदल देता हूँ तथा रीगल कम्पनी की सुइयों का ही प्रयोग करता हूँ, इस मशीन से गोदना करने पर खून नहीं निकलता है, स्याही सिर्फ़ त्वचा की पहली परत के नीचे तक ही जाती है। साथ ही गोदना करने के बाद हल्दी लगा दी जाती है। हल्दी सबसे बड़ी एन्टीबायोटिक है। यह हमारा खानदानी पेशा है, इसलिए सारी सावधानी बरती जाती है। इस बातचीत के मध्य एक लड़की गोदना गोदाने के लिए आ जाती है। वह अपने हाथ में सिर्फ़ अंग्रेजी के दो अक्षर "P k" लिखवाती है और पुरा नाम लिखवाने की बजाए संकेत से ही काम चलाती है।
उखरा वाली
राजिम के मेले में "उखरा" बेचने वाले प्रतिवर्ष आते हैं, मेले की यही खई-खजानी है। धान की लाई को गुड़ या गन्ना रस में सान कर उसे मीठा कर दिया जाता है, पहले तो आठ आने में बहुत सारी मिल जाती थी। लेकिन अब इसका छोटा पैकेट 10 रुपए और बड़ा पैकेट 20 रुपए में मिलता है। शकुंतला ने उखरा की दुकान लगा रखी है। कहती है कि - मंहगाई बहुत बढ गई है। इसलिए उखरा का भी दाम बढाना पड़ा। वरना मुद्द्ल भी निकालना कठिन है। उसके बच्चे दुकान के आस पास ही घूम रहे हैं। साथ ही एक ढिमरिन चना बेच रही है। कुल्फ़ी, आईसक्रीम, गन्ना रस, चाट पकौड़ी, मिठाई, खिलौनों इत्यादि की दुकाने सजी हुई है। सभी को मेले से आमदनी की प्रतीक्षा है।
खिलौनों की दुकान
पहले मेले में गिलट के आभुषणों की दुकाने खूब दिखाई देती थी। लेकिन अब दिखाई नहीं दी, लगता है अब इनका चलन कम हो गया है। इनका स्थान आर्टिफ़िसियल ज्वेलरी ने ले लिया है। लोहार के बनाए हुए खेती एवं घरेलू उपरकर्णों की दुकाने भी नदारत हो गई है। सिर्फ़ चौकी बेलना बेचता हुआ एक बढई दिखाई दिया। एक स्थान पर दारु पीकर झगड़ा करता हुआ रामकंद बेचने वाला दिखाई दिया। आस पास के दुकानदारों ने कहा कि इससे वे बहुत परेशान हैं। सुबह से शाम तक पिए रहता है और दुकानदारों से रार करते रहता है।
डोर पर जिन्दगी
अब हम संतों के मंडप की तरफ़ पहुंचे, यहाँ पर एक लड़की रस्सी पर चलकर संतुलन साधने वाला खेल दिखा रखी थी। नटों का यह परम्परागत पेशा है। तरह तरह के करतब दिखा कर जीविकोपार्जन करते हैं। हजारों साल से ये कौतुक दिखाने का पेशा चला आ रहा है। राजे रजवाड़ों के खत्म होने के बाद इन्हें मेले-ठेलों में प्रदर्शन करना पड़ता है, वरना इन नटों को राजाश्रय प्राप्त होता था और राजपरिवार के मनोरंजन के लिए सदैव उपलब्ध रहते थे। छोटी सी लड़की बांस को गले में लटकाए सिर पर कलश रखे रस्सी पर चलकर संतुलन साध रही थी, नीचे बिछे हुए तौलिए पर लोग इच्छानुसार पैसे डाल रहे है जिन्हें उसकी माँ सकेल रही थी।
व्यवस्थाओं में व्यस्थ प्रताप पारख
संतों के कुंभ स्नान करने के लिए नदी की रेत को हटा कर विशाल जल कुंड तैयार किया गया है। इसके प्रवेश द्वार पर मंत्री द्वय के फ़्लेक्स लगे हैं। कुछ स्नान कर रहे थे तो कुछ लोग किनारे बैठ कर खैनी घिस रहे थे। अखाड़ों के संतों महंतो को डोम बना कर दिए गए हैं, जिसके पास जितनी बड़ी फ़ौज है, उसके डोम उतने ही बड़े हैं। संस्कृति विभाग के कर्मचारी इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में लगे हुए दिखाई दिए। एक स्थान पर प्रताप पारख से मुलाकात होती हैं। संतों के अस्थाई नगर के बीच कुंभ में आने वाली विशिष्ट लोगों के लिए चायपानी की व्यवस्था की गई है। इसकी जिम्मेदारी शिवनंदन दूबे मुस्तैदी से निभा रहे हैं। मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुति की जिम्मेदारी राकेश तिवारी, युगल तिवारी संभाल रहे हैं तथा सतपाल, समीर टल्लू, सुधीरे दुबे, प्रमोद पाण्डे कुंभ की व्यवस्था संभालने में सक्रीय हैं।
शंकराचार्य मंडप
लोमश ॠषि आश्रम के पास ही नागा साधुओं का डेरा लगा हुआ है, भभूत रमाए नंग धंड़ग साधू मेलार्थियों को आकर्षित करते हैं। धूने की अग्नि सिलगाए चिलम से धुंआ उड़ाते दिखाई देते हैं। मै जब इनके टोले में पहुंचा तो एक युवा नागा साधू ने करतब दिखाना शुरु किया। पहले अपने लिंग को एक डंडे पर लपेट लिया फ़िर उस डंडे पर दोनो तरफ़ एक एक साधू को खड़ा कर दिया, लोग दांतों तले अंगुली दबा कर इस कौतुक को देख रहे थे। फ़िर कहने लगा कि - इसे कहते हैं पावर, है कोई जो यह कर सके। इस तरह उसने कई करतब दिखाई और इसके बाद उदय मुझसे कई तरह के सवाल करता और रास्ते भर पैदल चलते हुए मैं उसकी शंकाओं का समाधान करते रहा। इसके पश्चात हम चाय की तलब पूरी करने टेंट में आ गए।
कुलेश्वर महादेव में दर्शनार्थी एवं पुलिस व्यवस्था
चाय पानी के पश्चात दिन ढलने लगा, मौसम भी कुछ नरम बना हुआ था, बदलियों से लग रहा था कि कभी भी बरस सकती हैं। अगर बरसात होती है तो इतने सारे लोगों को सिर छुपाने के लिए जगह तलाशनी पड़ेगी। मुख्य प्रवेश द्वार के समीप गीता प्रेस गोरखपुर वालों का स्टाल लगा है। साथ ही आर्युवेदिक दवाई वाले तथा ज्योतिष भी मेले का लाभ उठा रहे हैं। पुलिस की पैट्रोलिंग करती गाड़ियाँ एवं बैरिकेट के समीप कंट्रोम रुम से सुरक्षा पर नजर गड़ाए अधिकारी दिखाई देते हैं। इस बीच संतों की कलश यात्रा आती दिखाई देती हैं, मैं कैमरे से 2-4 चित्र लेता हूँ, एक परसुधारी संत मुझे फ़ोटो लेते हुए देखकर अपने मंडप में मिलने के लिए कहते हैं, शायद उन्हें फ़ोटुओं की जरुरत होगी। लेकिन मेरे पास इतना समय नहीं था कि उनसे मंडप में मिलने जाऊं।
कुछ माला मुंदरी हो जाए मेला कि निशानी
पूजा की सामग्री बेचने वालों की दुकाने सजी हैं, इसमें कुछ लोग इलाहाबाद, प्रयाग, मालवाचंल के खंडवा निमाड़ क्षेत्र, बनारस इत्यादि से आए हुए हैं। राजिम कुंभ विशेषता यह है कि जिस स्थान पर लगता है वहां तीन जिलों की सीमाएं मिलती हैं, एक तरफ़ लोमश ॠषि आश्रम धमतरी जिले में है तो दूसरी तरफ़ राजीव लोचन मंदिर गरियाबंद जिले में आता है और नयापारा नगर रायपुर जिले में। तीन जिलों के प्रशासन के संयुक्त प्रयास से ही राजिम कुंभ का सफ़ल आयोजन होता है। संस्कृतियों, धर्मों, पंथों एवं मेलानुरागियों का मिलन क्षेत्र अब राजिम कुंभ बन गया है। समन्वित सहयोग एवं प्रयास से ही यह भगीरथ कार्य सम्पन्न होता है।

(डिस्क्लैमर - सभी चित्र एवं लेखन सामग्री लेखक की निजी संपत्ति हैं, इनका बिना अनुमति उपयोग करना कापीराईट के अधीन अपराध माना जाएगा।)

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर वर्णन और चित्र भी बोलते से प्रतीत हो रहे हैं...

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  2. नाग लोक में सुवा नृत्य करती नागकन्याओं की सुन्दर झांकी छत्तीसगढ़ी लोककला का परिचय दे रही है ...

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  3. पूरा मेला घूमा दिया आपने। बचपन के देखे मेले याद आये। लगने को तो अभी भी लगते हैं मेले , मगर अब भीड़ से बचने की "सफिस्टकेटिड"! अवस्थाएं/ आदतें जाने नहीं देती मेले में :)
    रोचक वर्णन !

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  4. संस्कृति और सभ्यता के संपर्क बिन्दु है ऐसे मेले।

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  5. एक से बढ़कर एक सुंदर झलकियां और जानकारी.....!!!

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