शिवालयों में द्वारपट, स्तंभों, भित्तियों में एक भयावह मुखाकृति बनी दिखाई देती है। इस आकृति को शिल्पकार अपनी कल्पना शक्ति के अनुसार भयावह निर्मित करते थे। देखने से प्रतीत होता है कि किसी राक्षस की प्रतिमा है। भक्तजन इस मुखाकृति को प्रणाम कर आगे बढ जाते हैं। परन्तु उनके मन में हमेशा इस मुखाकृति के प्रति कौतुहल बना रहता है। कुछ मित्र मुझसे इस आकृति के विषय में हमेशा चर्चा कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं। उनका प्रश्न रहता है कि इस आकृति को शिवालयों में क्यों निर्मित किया जाता है? यह आकृति शिवालयों के साथ जैन मंदिरों के शिल्प में भी पाई जाती है। खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर में भी इस मुखाकृति को मंदिर शिल्प में स्थान दिया गया है।
कीर्तिमुख (भीमा-कीचक) मल्हार छत्तीसगढ़ |
इस मुखाकृति को कीर्तिमुख कहा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसका जीवंत निर्माण लंका के प्रवेशद्वार पर शुक्राचार्य द्वारा किया गया था। वर्णन है कि शुक्राचार्य ने "रुद्र कीर्तिमुख" नाम का दारुपंच अस्त्र लंका के प्रवेशद्वार पर स्थापित किया, बाहर होने वाली प्रत्येक गतिविधि इस पर चित्रित होकर दिखाई देती थी। इसके मुख से अग्नि का गोला निकल कर शत्रु का संहार करता था। लंका में कीर्तिमुख का अस्त्र के रुप में प्रयोग किया गया। वर्तमान में हम घरो, दुकानों एवं अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर सी सी टी वी कैमरों का इस्तेमाल करते हैं, इसी तरह कीर्तिमुख अस्त्र का निर्माण कर प्रयोग किया गया था।
कीर्तिमुख के विषय में एक कथा मत्स्य पुराण अ 251 में आती है - अंधकासुर के वध के समय भगवान शंकर के ललाट से पृथ्वी पर जो स्वेद बिंदू गिरे उनसे एक भयानक आकृति का पुरुष प्रकट हुआ। जिसने अंधकगणों का रक्त पान किया, परन्तु अतृप्त ही रहा। अतृप्त होने के कारण वह भगवान शंकर का ही भक्षण करने चल दिया। इस कारण महादेवादि देवों ने इसे पृथ्वी पर सुलाकर वास्तु देवता के रुप में प्रतिष्ठित किया और उसके शरीर में सभी देवताओं ने वास किया। इसलिए यह वास्तु पुरुष या वास्तु देवता कहलाने लगा। देवताओं ने वास्तु को गृह निर्माण, वापी, कूप, तड़ाग, गरी, मंदिर, बाग बगीचा, जीर्णोद्धार, यग्य मंडप निर्माणादि में पूजित होने का वरदान दिया। तब से यह वास्तु देवता के रुप में पूजित एवं प्रतिष्ठित है।
कीर्तिमुख (ताला) छत्तीसगढ़ |
एक अन्य कथा में बताया गया है कि प्राचीन काल में जलंधर नामक एक महाशक्तिशाली दैत्य उत्पन्न हुआ जिसने अपनी तपस्या के बल पर ब्रह्मा को खुश करके कई वरदान प्राप्त कर लिये। इसने जंगल के मध्य अपने लिए एक भव्य भवन का निर्माण कराया और एक राक्षसी सेना भी तैयार कर ली। इससे इसकी ताकत बहुत बढ़ गई और मन में अहंकार भी समा गया। अब वह प्रतिदिन संध्या समय एक सुंदर रथ पर सवार होकर भ्रमण के लिए निकलता था और ऐसे-ऐसे कार्यों को अंजाम दे डालता था जिससे प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठती थी।
इसी क्रम में एक दिन जलंधर रथ पर सवार होकर घूम रहा था कि एक मादक सुगंध उसके नाक में समा गई जिससे वह चकित हो उठा और चतुर्दिक दृश्यों को निहारने पर एक अद्वितीय सुंदर नारी जंगल में घूमती हुई दिखाई दी। तब वह चौंका – कौन है यह नारी? इस सुन्दरी के अंदर तो सृष्टि की सारी सुघड़ता सिमटी जैसी दिखाई दे रही है। ‘यह कैलासपति शिव की पत्नी पार्वती है’, एक सेवक ने उत्तर दिया तो वह हंस पड़ा, ‘भला उस बूढ़े शिव के साथ इस अनुपम सुन्दरी का क्या काम? मैं इसे अपनी पटरानी बनाऊंगा।’ दैत्य ने मन में ठान लिया और बेचैन होकर महल में वापस लौट आया फिर अपने एक सेवक को दूत बनाकर शिव के पास भेजा।
कीर्तिमुख पंचायतन शिवालय सुरंग टीला सिरपुर छत्तीसगढ़ |
इस सेवक का नाम रोनू था। वह कैलास पर्वत पर पहुंचा तो भोलेनाथ योगसाधना में मगन थे। इससे रोनू तनिक सहमा किंतु शीघ्र अपनी राक्षसी प्रवृत्ति के अनुकूल जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ‘आप पार्वती को तुरंत हमारे हवाले करें क्योंकि दैत्यपति जलधर को वह पसंद आ गयी है।’ शिव कुछ सुन नहीं पाये क्योंकि उनकी आंखें मुंदी थीं और पूरा शरीर एकदम स्थिर था। मगर रोनू का हठ तो पराकाष्ठा पर पहुंच गया और अपनी बात चिल्ला-चिल्ला कर बताने लगा। उसकी चिल्लाहट से शिव की तंद्रा टूट गयी और और उन्होंने रोनू की तरफ लाल-लाल आंखों से देखा फिर क्रोध से अपने त्रिनेत्र खोल लिये। इस त्रिनेत्र के खुलते ही आक्रोश की एक रक्तिम धारा बहने लगी जिससे एक विचित्र जीव पैदा हो गया।
इस जीव के चेहरे का आकार बाघ पशु के समान चौड़ा एवं मजबूत था जबकि हाथ-पैर रस्सी की भांति पतला तथा छिन्न। यह जीव जन्म लेते ही भूख-भूख चिल्लाने लगा और रोनू की ओर लपका। वह शिव के चरणों में गिर पड़ा और प्राण रक्षा के लिए गुहार लगाने लगा। रोनू के गिड़गिड़ाने से शिव को दया आ गयी और उन्होंने माफ कर दिया, पर उस जीव की भूख को मिटाना आवश्यक था। इससे शिव सोच में पड़ गये किंतु शीघ्र ही इस जीव का नामकरण कीर्तिमुख किया फिर प्रेमपूर्ण दृष्टि से निहारते हुए समझाया – पुत्र कीर्तिमुख, जब तक भोजन का प्रबंध नहीं होता तब तक अपने ही हाथ-पैर खाकर भूख मिटा लो।
कीर्तिमुख कंसुवा शिवालय कोटा (फ़ोटो - रिंकेश अग्रवाल कोटा) |
बस फिर क्या कहना था, कीर्तिमुख अपने ही हाथ-पैर पर टूट पड़ा और पेट-पीठ भी खा गया। इसके बाद गर्दन की ओर बढ़ा तो शिव ने रोकते हुए कहा पुत्र कीर्तिमुख, तुम्हारा जीवित रहना आवश्यक है ताकि मेरी कुटिया की सुरक्षा होती रहे अत: तुम द्वार पर नियुक्त हो जाओ। शिव से आदेश पाकर कीर्तिमुख इनके द्वार का प्रहरी बन गया और अपने जीवन को धन्य कर लिया। इस जीव के अंदर शिव-मस्तिष्क का कल्याण समाहित है, इसलिए शिवालयों में इसकी दैत्यनुमा आकृति बनाने की परम्परा है और यह भी मान्यता है कि जो व्यक्ति कीर्तिमुख की पूजा करके शिवालय में प्रवेश करता है उसकी प्रार्थना शिव तुरंत सुनते हैं। इसी मान्यता स्वरुप शिवालयों में कीर्तिमुख का निर्माण किया जाता है।
very nicely written :-) very Interesting and informative :-) Thanks Lalit Jee
जवाब देंहटाएंरोचक
जवाब देंहटाएंबहुत उत्सुकता थी इस भयावह मुखाकृति के बारे में जानने की। पौराणिक कथाएं बड़ी ही रोचक लगी। जानकारी देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंवास्तुअनुसार घर पर बाहर से नजर आने वाली राक्षस आकृतियों को मकान के दिठौने के रूप में लगाने का विधान है . इसका भी कीर्तिमुख से ही सम्बन्ध हो कहीं ? .
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी !
@ वाणी गीत जी
जवाब देंहटाएंजिस तरह हम बच्चों को काला टीका लगाकर ब्रूरी नजरों से बचाते हैं। इसी तरह प्रासाद एवं भवनादि को बुरी नजर इत्यादि से बचाने के लिए प्राचीन काल से वर्तमान तक प्रयोग होता आया है। इसके पीछे यही कारण होगा।
मुझे तो यह भारतीय शिल्प पर मंगोल शैली का प्रभाव लगता है !
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंरोचक और नई जानकारी ......
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी...
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएंBahut sundar jankari thanks
जवाब देंहटाएंBahut sundar jankari thanks
जवाब देंहटाएंIsver ka sukriya hai
जवाब देंहटाएंIsver ka sukriya hai
जवाब देंहटाएंकीर्तिमुख की मूर्ति कहाँ से मिलेगी
जवाब देंहटाएंजिस किसी को यह मूर्ति चाहिए कृपया मेरे फेसबुक अकाउंट में मैसेंजर में मैसेज करें मूर्ति की कीमत 5000 और आकार दस इंच इंच, मार्बल की बनी है
हटाएंबहुत ही सुंदर एवं ज्ञानवर्धक जानकारी है ईस्वर की लीला वे ही जाने महादेव सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं
जवाब देंहटाएंकिर्तीमुख के चेहरे का जो शिल्प है उसके डौनो बाजू में मोर की प्रतिमा क्यू बनाई जाति है ?
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