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स्नानोपरांत सबसे पहले दर्शन के लिए नर्मदा कुंड पहुंचे। अन्य तीर्थों की तरह यहाँ भी भिखारियों की भरमार दिखी। एक खास बात और है कि यहाँ तथाकथित वैद्य जड़ी बूटियाँ लेकर बैठे रहते हैं जो जूड़ी ताप से लेकर कैंसर के इलाज तक का दावा करते हैं। कोई न कोई बंदा तो इनके झांसे में फ़ंस ही जाता है। कहते हैं जिस बिमारी की कोई दवा नहीं होती उसके हजार वैकल्पिक इलाज हैं। वैसे भी भारत में मुफ़्त की सलाह देने वाले भी बहुत मिलते हैं। जो ऐसे-ऐसे इलाज बताते हैं कि आदमी खा कर मर जाए या अपना माथा पीट ले। ऐसा ही एक कैंसर का इलाज करने वाला मिला था जिसे चड्डा जी ने फ़टकार दिया। उस बेचारे का मुंह उतर गया।
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नर्मदा उद्गम कुंड का प्रवेश द्वार |
नर्मदा उद्गम कुंड परिसर में कई मंदिर बने हुए हैं। जिसमें कुंड के समीप ही लगा हुआ नर्मदा माता का मंदिर है, मंदिर में असित पाषाण की प्रतिमा स्थापित है तथा इसके बांए तरफ़ किसी भग्न मंदिर का आमलक रखा हुआ है। जिस पर लोग फ़ूल चढा कर पूजा करते हैं। मुंडन करवाने वालों की भी अच्छी भीड़ दिखाई दी। समीप ही कार्तिकेय स्वामी जी का मंदिर है जहां लिखा है - अपस्मार कुष्ट क्षयार्श: प्रमेह ज्वरोन्मादि गुल्मादि रोगा महंत:, पिशाचाश्च सर्वे भवत् पत्र भूतिम् विलोक्य क्षणाक्तारकारे द्रवन्ते।। नर्मदा कुंड के भीतर श्री बंगेश्वर महादेव, लक्ष्मी नारायण, रोहणी माता, शिवालय, सिद्धेश्वर महादेव एवं अन्य मंदिर बने हुए हैं, जिनमें एक मंदिर रक्त पाषाण निर्मित है। परिसर के द्वार पर प्रसाद का काऊंटर बना हुआ है, जहाँ से दर्शनार्थी प्रसाद खरीदते हैं।
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बुलकने का खेला |
नर्मदा मंदिर एवं उद्गम कुंड के मध्य असित पाषाण की सिरकटी गज सवार एवं लोहित पाषाण की अश्व सवार की प्रतिमाएं स्थापित हैं। गज प्रतिमा के साथ किंवदन्ति जुड़ी हुई है कि इसके पैरो में मध्य से सिर्फ़ धर्मात्मा ही निकल सकता है चाहे वह कितना ही मोटा हो। अगर कोई पापी रहे तो पतला भी इसमें फ़ंस जाता है। लोग इस खेल का मजा लेते हैं। गज के इस खेल से पंडित जी की दुकान चलती है। वे प्रत्येक से दक्षिणा स्वरुप 10-20 रुपया लेते हैं। कुछ लोग पोल खुलने के भय से ही गज के पैरों से निकलने का प्रयास नहीं करते। गत यात्रा के समय इसके बीच से मैं दो बार निकला था सिर्फ़ थोड़ी सी ट्रिक की आवश्यकता होती है।
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लक्ष्मी नारायण |
धार्मिक ग्रंथों में नर्मदा की महिमा अपार बताई गई है। नर्मदा नदी को समस्त तत्वों की जननी कहा गया है। नर्मदा को सरितां वरा माना जाता है। नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद गंगा तट पर नहीं जाते क्योंकि नर्मदा जी से मिलने के लिए स्वयं गंगा जी आती है। नर्मदा अपने उद्गम स्थान से प्रकट होकर नीचे से उपर की ओर बहती है। कहते हैं कि नर्मदा में प्रवाहित अस्थियाँ एवं लकड़ियां कालांतर में पाषाण में परिवर्तित हो जाती हैं। नर्मदा अपने उदगम स्थान से लेकर समुद्र पर्यन्त उतर एवं दक्षिण दोनों तटों में, दोनों ओर सात मील तक पृथ्वी के भीतर प्रवाहित होती हैं , पृथ्वी के उपर तो वे मात्र दर्शनार्थ प्रवाहित होती हैं | नर्मदा नदी के तट पर जीवाश्म प्राप्त होते हैं। नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा ही एक मात्र नदी देवी हैं, जो सदा हास्य मुद्रा में रहती है |
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नर्मदा स्नान कुंड |
जनमान्यता है कि नर्मदा (प्रवाहित ) जल में नियमित स्नान करने से असाध्य चर्मरोग मिट जाता है। नर्मदा कभी भी मर्यादा भंग नहीं करती है, वर्षा काल में पूर्व दिशा से प्रवाहित होकर, पश्चिम दिशा के ओर ही जाती हैं। अन्य नदियाँ, वर्षा काल में अपने तट बंध तोडकर अन्य दिशा में भी प्रवाहित होने लगती हैं। नर्मदा पर्वतो का मान मर्दन करती हुई पर्वतीय क्षेत्र में प्रवाहित होकर जन ,धन हानि नहीं करती हैं (मानव निर्मित बांधों को छोडकर )अन्य नदियाँ मैदानी, रेतीले भू-भाग में प्रवाहित होकर बाढ़ रूपी विनाशकारी तांडव करती हैं। नर्मदा ही विश्व में एक मात्र नदी हैं जिनकी परिक्रमा का विधान हैं, अन्य नदियों की परिक्रमा नहीं होती हैं। नर्मदा के दक्षिण और गुजरात के भागों में विक्रम सम्बत का वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को प्रारंभ होता हैं।
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नर्मदा कुंड स्थित श्री बंगेश्वर महादेव |
होशंगाबाद मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का जल गंगाजल से भी ज्यादा शुद्ध है। इस तथ्य का खुलासा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में हुआ है। नर्मदा के पानी में घुलित आक्सीजन का निम्नतम स्तर गंगा नदी से काफी ज्यादा है, इस कारण नदियों की ग्रेडिंग में नर्मदा को बी और गंगा को सी ग्रेड दी गई है। बोर्ड विभिन्न स्रोतों से प्राप्तजल की मासिक सेंपलिंग कर उसका परीक्षण करता है। इसमे देश भर की विभिन्न नदियों के पानी काभी परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के आधार पर नदी जल की ग्रेडिंग होती है।प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त जल में नर्मदा नदी के पानी को सर्वाधिक उच्च गुणवत्तायुक्त पाया गया है।
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परिसर स्थित शिवालय |
नर्मदा जी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगा जी ज्ञान की, यमुना जी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वती जी विवेक के प्रतिष्ठान के लिये संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोडता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। नर्मदा तटवासी माँ नर्मदा के करुणामय व वात्सल्य स्वरूप को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। बडी श्रद्धा से पैदल चलते हुए इनकी परिक्रमा करते हैं।
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कुंड के पश्चात नर्मदा का प्रवाह राम घाट |
नर्मदा जी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और तेरह दिनों में पूर्ण होती है। अनेक देवगणों ने नर्मदा तत्व का अवगाहन ध्यान किया है। ऐसी एक मान्यता है कि द्रोणपुत्र अभी भी माँ नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। इन्हीं नर्मदा के किनारे न जाने कितने दिव्य तीर्थ, ज्योतिर्लिंग, उपलिंग आदि स्थापित हैं। जिनकी महत्ता चहुँ ओर फैली है। परिक्रमावासी लगभग तेरह सौ बारह किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। श्री नर्मदा जी की जहाँ से परिक्रमावासी परिक्रमा का संकल्प लेते हैं वहाँ के योग्य व्यक्ति से अपनी स्पष्ट विश्वसनीयता का प्रमाण पत्र लेते हैं। परिक्रमा श्री नर्मदा पूजन व कढाई चढाने के बाद प्रारंभ होती है।
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मंदिर परिसर का दृश्य |
नर्मदा की इसी ख्याति के कारण यह विश्व की अकेली नदी है जिसकी विधिवत परिक्रमा की जाती है । प्रतिदिन नर्मदा का दर्शन करते हुए उसे सदैव अपनी दाहिनी ओर रखते हुए, उसे पार किए बिना दोनों तटों की पदयात्रा को नर्मदा प्रदक्षिणा या परिक्रमा कहा जाता है । यह परिक्रमा अमरकंटक या ओंकारेश्वर से प्रारंभ करके नदी के किनारे-किनारे चलते हुए दोनों तटों की पूरी यात्रा के बाद वहीं पर पूरी की जाती है जहाँ से प्रारंभ की गई थी । व्रत और निष्ठापूर्वक की जाने वाली नर्मदा परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिन में पूरी करने का विधान है, परन्तु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं । आजकल सडक मार्ग से वाहन द्वारा काफी कम समय में भी परिक्रमा करने का चलन हो गया है । मोटर सायकिल से नर्मदा परिक्रमा करने की मेरी भी इच्छा है अब समय ही बताएगा इच्छा कब पूरी होती है।
जारी है ……… आगे पढें
नर्मदा और अमरकंटक के दर्शन लाभ के लिए बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी तस्वीरें !
बहुत अच्छा साहब !! अच्छा लिखा है आपने , किन्तु दो पक्ष और भी हैं , एक तो लोककथाएँ जो "नर्बदा मैय्या " से जुडी हैं और मंदिर आदि की ऐतिहासिक जानकारी , यथा कब बने किसने बनाए इत्यादि |
जवाब देंहटाएंनर्मदा परिक्रमा अपन के एजेंडे में भी है।
जवाब देंहटाएंनर्मदा परिक्रमा अपन के एजेंडे में भी है।
जवाब देंहटाएं@ सौरभ अनिल
जवाब देंहटाएंबाकी अगली यात्रा में………
बढ़िया जानकारीयुक्त विवरण फोटो बढ़िया लगे
जवाब देंहटाएंकुछ पाने के लिए कुछ खोना भी होता है,,पश्चिम वाहनी माँ नर्मदा कुंड के बाद जब पतली सी धार के रूप में आगे बढ़ती तो दोनों तरफ ब्राह्मी बूटी थी पर जल स्रोतों को बढ़ाया गया अब यहाँ सरोवर के रूप दिखाई देता है.. लेकिन ब्राह्मी बूटी की जल समाधि हो गई,,फिर शायद कभी उग आए ..हर हर नर्मदे .
जवाब देंहटाएंBahut badhiya .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनर्मदा परिक्रमा अपन के एजेंडे में भी है।
जवाब देंहटाएंदशकों पहले अमरकंटक हम भी घूमे हैं, लेकिन अब तो बहुत परिवर्तन दिख रहा चित्रों के सहारे
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख.फोटोभी सुन्दर.
जवाब देंहटाएंHarr Harr Narmade
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