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बुधवार, 2 जुलाई 2014

मानस को प्रभावित करती कविता वर्मा की कहानियाँ

साहित्य काल का संवाहक होता है, वह समय की अच्छाईयों, सामाजिक विद्रुपताओं एवं परिस्थितिजन्य तथ्यों को समाज के समक्ष लेकर आता हैं। इसका प्रभाव क्षेत्र व्यापक होता है। साहित्य के एक प्रभावी माध्यम के रुप में कहानियों का चलन आदिकाल से है, पुराण जैसे ग्रंथ भी कथानकों के माध्यम से समाज को शिक्षित करते हैं और पंचतंत्र जैसी कहानियाँ मानव का निर्माण करती हैं। कभी-कभी तो कोई कहानी मनुष्य के जीवन के इतनी अधिक प्रेरक हो जाती है कि उसकी जीवन यात्रा में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर देती है। साहित्य की स्वस्थता से उत्तम समाज का निर्माण भी होता है। भारत में व्यक्ति की  जीवन यात्रा दादी-नानी की कहानी से होती है। बच्चे को होश संभालते ही कहानियों से लगाव हो जाता है और कहानियों के प्रेरक कथानकों के माध्यम से उसे जीवन पथ मिल जाता है। प्राचिन राजा-रानियों की कहानियाँ से पृथक वर्तमान में नई कहानियाँ भी साहित्य में अपना मुकाम हासिल कर रही हैं। 
कहानियाँ समाज का दर्पण होती हैं, कहानीकार समाज से विषय उठाता है और वृहद दायरे में समाज को ही सौंप देता है चिंतन करने के लिए। कविता वर्मा की कहानियाँ भी वर्तमान समाज के भीतर चल रही हलचल को पाठक के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। "परछाईयों के उजाले" कहानी संग्रह में 12 कहानियों को स्थान दिया गया है, जिसमें ये कहानियाँ प्रमुखता से नारी जिजिविषा एवं उसकी जीवटता को सामने लाती हैं। कहानी संग्रह में "जीवट" कहानी की मुख्य पात्र फ़ुलवा की जीवटता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। जब वह कहती है " अगर मैं उसे छ: महीने खिला सकती हूं, तो अपने बच्चों को क्यों नहीं। मुझे किसी के सहारे की क्या जरुरत है, औरत हूँ तो क्या?" स्त्री अब समाज में कमजोर नहीं रही, अगर ठान ले तो अपने जीवन का निर्णय स्वयं कर सकती है उसे किसी आसरे या सहारे की आवश्यकता नहीं।
गणित जैसे विषय की सिद्धहस्त कविता वर्मा सहज ही प्रवाहमय शब्दों के साथ कहानियों के माध्यम से अपना प्रभाव छोड़ती हैं। इनकी कहानियों में गणित भी दिखाई देता है। जब "जीवट" कहानी की पात्र फ़ुलवा ट्रक ड्रायवर को छोड़ कर जाती है, पहले गुणा भाग कर सारा हिसाब निकाल लेती है और जो उसे शेष दिखाई देता है उसमें ही उसे जीवन की चमक दिखाई देती है। हानि को लाभ में बदलने के लिए वह अपना निर्णय ले लेती है। "परछाइयों के उजाले" कहानी की पात्र सुमित्रा भी कुछ ऐसा ही जोड़-घटाना लगाती नजर आती है।
कविता वर्मा की कहानी "निश्चय" स्वार्थ, षड़यंत्र, शोषण एवं प्रतिकार दिखाई देता हैं। मंगला की पति से क्या खटपट हुई कि फ़ायदा मालकिन ने उठा लिया और पति-पत्नी के बीच स्वयं स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए दरार डालकर मिलने नहीं दिया। यह कहानी स्त्री का स्त्री के द्वारा भावनात्मक शोषण का पक्ष उजागर करती है। " मंगला की आंखों में अंधेरा छा गया। इतना बड़ा धोखा, जिस प्यार और हमदर्दी की वह दिन रात-सराहना करती थी, उसके पीछे इतना छल?" यही संसार की वास्तविकता है, इससे जाहिर अकारण हमदर्दी स्वार्थ की नींव पर टिकी होती है और कहीं न कहीं शोषण की एक नई कहानी गढती रहती है।
शब्दों की बुनावट में कसावट एवं कथा की प्रस्तुति से नहीं लगता कि कविता वर्मा का यह प्रथम कहानी संग्रह है। इसमें वे एक मंजी हुई कहानीकार के रुप में समक्ष आती हैं। इस कहानी संग्रह में "सगा सौतेला" "पुकार" "लकीर" "आवरण" एक खाली पन अपना सा" "दलित ग्रंथी" "डर" "पहचान" कसौटी पर खरी उतरती हैं। 
कहानी संग्रह की प्रतिनिधि कहानी "परछाइयों के उजाले" अंतिम में प्यार का अनूठा अहसास छोड़ जाती है। एक निस्छल प्रेम जो सामाजिक बंधनों एवं वर्जनाओं के बीच भी अपनी जगह बना लेता है। जीवन के उतरार्ध का यह प्रेम सागर की गहराईयों में उतर जाता है। कहानी कहती है " नारी मन को किसी मजबूत भावनात्मक सहारे की जरुरत होती है और ये जरुरत उम्र के हर पड़ाव की जरुरत है। स्त्री, पुरुष की विशाल बाहों में खो कर अपनी चिंताएँ, जिम्मेदारियाँ, अकेलापन भूल कर सिमट जाती है।" नारी का संबंल होता है उसका प्रिय पुरुष, चाहे वह किसी भी रुप में हो।
जीवन यात्रा की उतराईयों में भी प्रेम समाज से डरता है, समाज के समक्ष मुखर होने से डरता है। मन की लहरें समाज के बंधनों के उतुंग पर्वतों को लांघना चाहती हैं पर कहीं न कहीं वर्जनाओं की बाड़ आगे आ जाती है। सुमित्रा कहती है  "इस उम्र में जब प्यार में दैहिक आकर्षण का कोई स्थान नहीं है। मानसिक संतुष्टि पाने पर भी समाज का डर है।" जीवन की इस अवस्था को भी मनुष्य को लांघना पड़ता है, यहाँ से आगे बढना पड़ता है, पर प्रेम वह संजीवनी है जो सूखे हुए वृक्ष में भी जीवन का संचार कर उसे हरा भरा कर देता है। "परछाईयों के उजाले" कहानी संग्रह पठनीय है।

कहानी संग्रह : परछाईयों के उजाले
लेखिका : कविता वर्मा (इंदौर)
प्रकाशक: मानव संस्कृति प्रकाशन
12- ए, संगम नगर, सन्मति चिकित्सालय के पास इंदौर मप्र
दूरभाष:0731-4245373
पृष्ठ: 142
मूल्य : 150/- रुपए

6 टिप्‍पणियां:

  1. bahut dino se aapki sameekshatmak pratikriya ka intzar tha ...aapne bahut man se kahaniyon ko padha hai aur usme nihitarth ko behad khoobsurati se shabdon me dhala hai ..abhar ..

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  2. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@दर्द दिलों के
    नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं

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  3. बहुत प्रभावी समीक्षा...बधाई कविता जी को...

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  4. लाजवाब समिक्षा की आपने....कविता जी को असीम शुभकामनायें।

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