काला पहाड़ - मंदिर के विध्वंस के कारण के रुप में एक कहानी काला पहाड़ की भी सुनाई देती है। काला पहाड़ मुस्लिम आक्रांता था और उसने मंदिर पर आक्रमण करके इसकी कुंजी शिला को निकाल दिया जिसके कारण मंदिर ढह गया। इतिहास बताता है कि भारत में विदेशी आक्रमणकारियों ने लूटपाट की दृष्टि से बहुत हमले किए और लूट कर चले गए। परन्तु मुगलों ने आने के बाद जाने का नाम नहीं लिया। वे शासन करने लिए अपना लश्कर बढ़ाने लगे। लूट पाट एवं नरसंहार करते हुए उनका लश्कर काश्मीर की तरफ़ बढ़ा तो कौतुहल वश कई युवा छुप कर लश्कर देखने आए जहाँ फ़ौज डेरा डाल कर आराम कर रही थी। लड़कों के सामने एक सिपाही आ गया तो उन्होने से सिपाही से पूछा कि बहुत अच्छी महक आ रही है, क्या पक रहा है? सिपाही ने कहा कि अब तुम हिन्दू नहीं रहे क्योंकि पक रहे गौमांस को तुमने पसंद कर लिया।
यह बात आग की तरह फैली और जब वह लड़का गाँव पंहुचा तब पंचायत हुई । और पंचायत ने उसे अलग कर दिया । क्योकि उसने गाय के मांस की तारीफ की । क्षमा याचना का भी असर नही हुआ पंडितो ने भी उसे धर्म से अलग किया । हर धर्म अधिकारी से गुहार यहाँ तक बनारस तक से उस युवक को निराशा मिली । वह युवक क्रोधित हुआ और उसने अपमान का बदला लेने के लिए हिंदू धर्म को छोड़ कर मुस्लिम धर्म अपनाया । और बदला लेने के लिए हिन्दुओं का संहार किया । किद्व्नती है उसने अस्सी किलो जनेऊ काटे और वह काला पहाड़ के नाम से जाना गया ।
आगे चल कर इस काला पहाड़ नामक आक्रांता ने मंदिर तोड़ने प्रारंभ कर दिए। 1568 ई. में उसने उड़ीसा पर चढ़ाई की और वहाँ के राजा को पराजित किया तथा बाद में पुरी के जगन्नाथ मन्दिर को लूटा। इसके बाद उसने राजा नर नारायण के भाई चिला राय की कोच सेना को हराया। आसाम में वह तेजपुर तक चढ़ गया और गौहाटी के निकट कामाख्या मन्दिर को नष्ट कर दिया। 1583 ई. में वह राजमहल के निकट नौसैनिक लड़ाई में बादशाह अकबर की फ़ौजों से हार गया और मारा गया। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मदन पंजी बताते हैं, कि कालापहाड़ ने उड़ीसा पर हमला किया। कोणार्क मंदिर सहित उसने अधिकांश हिन्दू मंदिरों की प्रतिमाएं भी ध्वस्त की। हालांकि कोणार्क मंदिर की २०-२५ फीट मोटी दीवारों को तोड़ना असम्भव था, उसने किसी प्रकार से दधिनौति (मेहराब की शिला) को हिलाने का प्रयोजन कर लिया, जो कि इस मंदिर के गिरने का कारण बना। दधिनौति के हटने के कारण ही मंदिर धीरे-धीरे गिरने लगा और मंदिर की छत से भारी पत्थर गिरने से छत भी ध्वस्त हो गयी।
इसके बाद १५६८ में उड़ीसा मुस्लिम नियंत्रण में आ गया। तब भी हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के निरंतर प्रयास होते रहे। इस समय पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पंडों ने भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति को श्रीमंदिर से हटाकर किसी गुप्त स्थान पर छुपा दिया। इसी प्रकार, कोणार्क के सूर्य मंदिर के पंडों ने प्रधान देवता की मूर्ति को हटा कर, वर्षों तक रेत में दबा कर छिपाये रखा। बाद में, यह मूर्ति पुरी भेज दी गयी और वहां जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित, इंद्र के मंदिर में रख दी गयी। अन्य लोगों के अनुसार, यहां की पूजा मूर्तियां अभी भी खोजी जानी बाकी हैं। लेकिन कई लोगों का कहना है, कि सूर्य देव की मूर्ति, जो नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी है, वही कोणार्क की प्रधान पूज्य मूर्ति है।
फिर भी कोणार्क में, सूर्य वंदना मंदिर से मूर्ति के हटने के बाद से बंद हो गयी। इस कारण कोणार्क में तीर्थयात्रियों का आना जाना बंद हो गया। कोणार्क का पत्तन (बंदरगाह) भी डाकुओं के हमले के कारण, बंद हो गया। कोणार्क सूर्य वंदना के समान ही वाणिज्यिक गतिविधियों हेतु भी एक कीर्तिवान नगर था, परन्तु इन गतिविधियों के बन्द हो जाने के कारण, यह एकदम निर्वासित हो चला और वर्षों तक एक गहन जंगल से ढंक गया। सन १६२६ में, खुर्दा के राजा, नृसिंह देव, सुपुत्र श्री पुरुषोत्तम देव, सूर्यदेव की मूर्ति को दो अन्य सूर्य और चन्द्र की मूर्तियों सहित पुरी ले गये। अब वे पुरी के मंदिर के प्रांगण में मिलती हैं। पुरी के मदल पंजी के इतिहास से ज्ञात होता है, कि सन १०२८ में, राजा नॄसिंहदेव ने कोणार्क के सभी मंदिरों के नाप-जोख का आदेश दिया था। मापन के समय, सूर्य मंदिर अपनी आमलक शिला तक अस्तित्व में था, यानि कि लगभग २०० फीट ऊंचा।
कालापहाड़ ने केवल उसका कलश, बल्कि पद्म-ध्वजा, कमल-किरीट और ऊपरी भाग भी ध्वंस किये थे। पहले बताये अनुसार, मुखशाला के सामने, एक बड़ा प्रस्तर खण्ड – नवग्रह पाट, होता था। खुर्दा के तत्कालीन राजा ने वह खण्ड हटवा दिया, साथ ही कोणार्क से कई शिल्प कृत पाषाण भी ले गया। और पुरी के मंदिर के निर्माण में उनका प्रयोग किया था। मराठा काल में, पुरी के मंदिर की चहारदीवारी के निर्माण में कोणार्क के पत्थर प्रयोग किये गये थे। यह भी बताया जाता है, कि नट मंदिर के सभी भाग, सबसे लम्बे काल तक, अपनी मूल अवस्था में रहे हैं। और इन्हें मराठा काल में जान बूझ कर अनुपयोगी भाग समझ कर तोड़ा गया। सन १७७९ में एक मराठा साधू ने कोणार्क के अरुण स्तंभ को हटा कर पुरी के सिंहद्वार के सामने स्थापित करवा दिया। अठ्ठारहवीं शताब्दी के अन्त तक, कोणार्क ने अपना, सारा वैभव खो दिया और एक जंगल में बदल गया। इसके साथ ही मंदिर का क्षेत्र भी जंगल बन गया, जहां जंगली जानवर और डाकुओं के अड्डे थे। यहां स्थानीय लोग भी दिन के प्रकाश तक में जाने से डरते थे। इस तरह सूर्य मंदिर के विध्वंस की कथाएं सामने आती हैं। जारी है, आगे पढ़े …
सुंदर विवरण एवम् चित्र संयोजन....
जवाब देंहटाएंसुंदर विवरण एवम् चित्र संयोजन....
जवाब देंहटाएंशानदार। जानकारी ज्ञानवर्धक रहती है आपकी हर पोस्ट में। धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंयात्रा वृत्तांत लेखन में आप महारथी है, रोचक शैली में लिखते हैं
जवाब देंहटाएंयात्रा वृत्तांत लेखन में आप महारथी है, रोचक शैली में लिखते हैं
जवाब देंहटाएंशानदार। जानकारी ज्ञानवर्धक रहती है आपकी हर पोस्ट में। धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंकाला पहाड़: सूर्य मंदिर विध्वंस का मुख्य किरदार - कलिंग यात्रा की विस्तृत जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंकाला पहाड़ की जानकारी थी लेकिन कहानी अतिशयोक्तिपूर्ण लगी थी। सुन्दर, आगे बढें।
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रामधारी सिंह 'दिनकर' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंगौरव - वैभव ।
जवाब देंहटाएंबंगाल के इतिहास में काला पहाड़ एक अत्याचारी शासक के रूप में जाना जाता है.
जवाब देंहटाएंक्या आपको मालूम है कि काला पहाड़ का असली नाम कालाचंद राय था और वह एक बंगाली ब्राहम्ण युवक था.
पूर्वी बंगाल के उस वक्त के मुस्लिम शासक की बेटी को कालाचंद राय से प्यार हो गया. दरअसल, कालाचंद राय बांसुरी बहुत अच्छी बजाता था. बादशाह की बेटी को उसकी बांसुरी की धुन बहुत पंसद थी. धीरे धीरे उसको कालाचंद राय से प्रेम हो गया और शहजादी ने उससे शादी की इच्छा जाहिर की. वह उससे इस कदर प्रेम करती थी कि इस्लाम छोड़कर हिंदू विधि से शादी करने को तैयार हो गई.
लेकिन हमेशा की तरह उस वक्त भी हिन्दू धर्म के ठेकेदार अड़ गए. उनको जब पता चला कि कालाचंद राय एक मुस्लिम राजकुमारी से शादी कर उसे हिंदू बनाना चाहता है, तो उन्होंने कालाचंद का विरोध करते हुए उसे धर्म और जाति से बेदखल करने की चेतावनी दे दी.
लेकिन कालाचंद राय ने धर्म के ठेकेदारों के सामने से झुकने से मना कर दिया और राजकुमारी से शादी करने को तैयार हो गया. इस पर उस मुस्लिम युवती के हिंदू धर्म में आने का हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने न केवल विरोध किया, बल्कि धर्म व जाति बहिष्कृत कर कालाचंद राय और उसके परिवार को भी समाज से बेदखल कर अपानित भी किया.
अपने और परिवार के अपमान से बौखलाकर कालाचंद गुस्से से आग बबुला हो गया और उसने इस्लाम स्वीकारते हुए उस युवती से निकाह कर लिया. निकाह करते ही वह राज सिंहासन का उत्तराधिकारी हो गया.
उसके बाद धर्म के ठेकेदारों से अपने अपमान का बदला लेने के लिए कालाचंद राय ने तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाना शुरू कर दिया.
उसका एक ही नारा था मुसलमान बनो या मरो.
पूरे पूर्वी बंगाल में उसने इतना कत्लेआम मचाया कि लोग तलवार के डर से मुस्लिम धर्म स्वीकार करते चले गए. बंगाल को इस अकेले व्यक्ति ने तलवार के बल पर इस्लाम में धर्मांतरित कर दिया. उसकी निर्दयता के कारण लोग उसे काला पहाड़ कहने लगे थे.
कालाचंद राय ने ऐसा केवल इस लिए किया था कि वह उन मूर्ख, जातिवादी, अहंकारी व हठधर्मी हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को सबक सिखना चाहता था.
इतिहास इस प्रकार के एक नहीं कई उदाहरणों से भरा पड़ा है जब हिंदूओं ने अपनी संकीर्ण सोच से न जाने कितने कालाचंद राय का अपमान कर भारत को इस्लाम में परिवर्तित कर उसको इतिहास बदलने पर मजबूर कर दिया.
लोगो को सही जानकारी दे, वैसे भी तो आप गूगल से ही कॉपी पेस्ट किये हो तो अपनी मनगनत बातें क्यो जोड़ दिए।
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