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रविवार, 7 फ़रवरी 2016

बड़ा दिन 25 दिसम्बर



बड़ा_दिन - कल 24 दिसम्बर की रात साल की सबसे बड़ी रात मानी जाती है, आज 25 दिसम्बर से रातें छोटी और दिन बड़े होने प्रारंभ होते हैं। खगोलीय गणना के अनुसार सूर्य साल एक में बार उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध और वापस उत्तरी गोलार्ध आता है। सूर्य जब दक्षिणी गोलार्ध से, उत्तरी गोलार्ध के लिये वापस चलता है तो उसे सूर्य का उत्तरायण होना कहा जाता है।सूर्य के उत्तरायण होते ही, उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं। हिन्दुओं में इस दिन का खास महत्व है। पितामह भीष्म ने मरने का वह दिन चुना जब सूर्य को उत्तरायण होना था। यह दिन भी बदल रहा है। पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग २५,७०० साल में चक्कर लगाती है। इस कारण विषुव भी खिसक रहा है। इसे विषुव अयन कहा जाता है। सूर्य के उत्तरायण का दिन भी खिसक रहा है। आजकल सूर्य के उत्तरायण २२ दिसंबर को होता है। सूर्य का उत्तरायण होना तीन दिन पहले, यानि कि २५ दिसंबर को, लगभग २१० साल पहले होता था।
भारत और इसके पड़ोसी देशों (अंग्रेज शासित) मे इसे बड़ा दिन यानि महत्वपूर्ण दिन कहा जाता है। किसी देश पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिये सबसे अच्छा तरीका है कि वहां की संस्कृति, सभ्यता, धर्म पर अपनी संस्कृति, सभ्यता और धर्म को कायम करो। 210 साल पहले, अंग्रेजों ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। अंग्रेजों ने बड़ा दिन मनाने की शुरुवात फ़ौज से की। सबसे पहले फ़ौज में इस दिन बड़ा दिन मनाया जाने लगा और बड़ा खाना का आयोजन किया जाने लगा और उसे उत्सव का रुप दिया गया। बड़ा खाना में सामान्य दिनों से हटकर कुछ अलग त्यौहारों के जैसा खाना और कैम्प फ़ायर उत्सव का प्रारंभ किया गया। यह वह समय था जब ईसाई धर्म फैलाने की जरूरत थी। अंग्रेज, यह करना भी चाहते थे। उस समय 25 दिसम्बर वह दिन था, जबसे दिन बड़े होने लगते थे। हिन्दुओं में इसके महत्व को भी नहीं नकारा जा सकता था। शायद इसी लिये इसे बड़ा दिन कहा जाने लगा ताकि हिन्दू इसे आसानी से स्वीकार कर लें।
भारत में क्रिसमस को बड़ा दिन कहने के पीछे कई अलग अलग मान्‍यताएं प्रचलित है। कहा जाता है पहले इसे रोमन उत्‍सव के रूप में मनाया जाता था इस दिन लोग एक दूसरे को ढेर सारे उपहार देते थे। जब धीरे-धीरे ईसाई सभ्‍यता पनपने लगी तब भारत में यह दिन मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाने लगा। इसके अलावा बड़े दिन के पीछे ईसा के जन्म से जुड़ी कई कथाएं भी प्रचलित हैं। 25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था भारत में इस तिथि को एक रोमन पर्व खासकर संक्रांति से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है जिसकी वजह से इसे बड़े दिन के नाम से मनाया जाने लगा। 
क्रिसमस के दिन संता क्‍लॉज का भी अपना अलग महत्‍व है, कहते हैं इस दिन सांता क्‍लॉज बच्‍चों के लिए ढेर सारे खिलौने और चॉकलेट लाते है। सांता क्‍लॉज को क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है जो केवल क्रिसमस वाले दिन ही आते हैं। क्रिसमस का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि ईसा मसीह के जन्म की कहानी का संता क्लॉज की कहानी के साथ कोई संबंध नहीं है, कहते हैं तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप संत निकोलस के नाम पर सांता क्‍लॉज का चलन करीब चौथी सदी में शुरू हुआ वे गरीब और बेसहारा बच्‍चों को तोहफे दिया करते थे।
वर्तमान में इसका नया रुप उभर कर सामने आ रहा है, बाजारवाद ने इस त्यौहार को मनवाने के लिए नए नए हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए। बाजार में सांताक्लाज, केक और उससे संबंधित सामानों के ढेर लगे हैं। लोगों ने इसे भी एक त्यौहार के रुप में स्वीकार कर लिया और नए साल के इंतजार में बीते साल की पार्टियाँ खाने एवं दारु के साथ नाच गाना भी प्रारंभ हो गया। बड़े होटल नये साल के पर्व के आयोजनकर्ता बनकर नई मानसिकता के युवाओं का मनोरंजन कर खूब नोट बटोर रहे हैं। दिनों दिन यह चलन बढ़ता जा रहा है। कोई आश्चर्य नहीं होगा जब भारत में भी घर घर में आकाशदीप के क्रिस्मस ट्री दिखाई देने लगेगें। 

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