यस्य नास्ति स्वयंप्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्याम विहिनस्य दर्पणा: किम करिष्यति॥
आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में सुभाषितानी में उपरोक्त नीति शतक का श्लोक पढ़ा था। आज के घटना क्रम को देख कर स्मरन हो आया। आज विश्व के 197 देशों में योग दिवस मनाया गया। भारत की प्राचीन विद्या को सम्पूर्ण विश्व में प्रचार एवं स्थान मिला। दुनिया का कौन ऐसा प्राणी है जो स्वस्थ्य रहना नहीं चाहेगा। पर मनुष्य को छोड़ कर अन्य प्राणी योग विद्या का लाभ नहीं उठा सकते। ईश्वर ने इस विद्या को धारण करने के लिए मनुष्य को ही बनाया।
आज गर्व का दिन है कि भारतीय योग पद्धति को सम्पूर्ण विश्व अपना रहा है तथा वर्ष में एक दिन "योग दिवस" के रुप में मनाने के लिए विश्व समुदाय द्वारा निर्धारित किया गया। अगर इसका श्रेय किसी को दिया जाना चाहिए तो वह हैं "बाबा रामदेव" और "प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी"। उन्होने विस्मृत हो चुकी इस प्राचीन विद्या को घर-घर तक पहुंचा दिया। लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरुक हुए और उन्होने अपनी जीवन शैली बदली।
यह देश के जनमानस में एक क्रांतिकारी परिवर्तन माना जा सकता है। बाबा रामदेव ने हठयोग और व्यायाम को जोड़ कर स्वास्थ्य का पैकेज तैयार किया और उसकी ब्रांडिग भी की। जिन्होने योग और जीवन शैली में बदलाव कर प्राचीन शास्त्रोक्त आचार विचार को अपनाया उन्हें आशातीत परिणाम भी मिले। जो उनके घोर विरोधी है, वह भी असाध्य व्याधि से ग्रसित होने पर चुपचाप भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं योग की शरण लेते हैं। कंबल ओढ़ कर गुड़ खाते हैं, पर किसी को दिखना नहीं चाहिए। जो जन्म भूमि से प्यार करता है वह हमारी प्राचीन जीवन विद्या को भी मानता है।
कुछ लोग दुनिया में नकारात्मकता लेकर पैदा होते हैं, कितना भी अच्छा काम हो जाए उन्हें उसमें बुराई दिखाई ही देती है क्योंकि उन्होने कभी सकारात्मक जीवन ही नहीं जीया। सुबह से एक चित्र फ़ेसबुक पर घूम रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री सुखासन में बैठ कर योग क्रिया कर रहे हैं। तो लोग कह रहे हैं उन्हें पद्मासन लगाना नहीं आता। कोई कह रहा है अर्धपद्मासन लगा रखा है। अरे भाई जरा किताबें पढ़ लो, देख लो, समझ लो, अर्ध पद्मासन कहीं होता ही नहीं है और यह किसी योगाचार्य ने नहीं कहा कि सुखासन में अनुलोम विलोम नहीं किया जा सकता। आप अपने सांसो की किसी भी प्रकार के आसन में सुख पूर्वक बैठ कर साध सकते हैं।
अब यह तो नहीं हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने प्राचीन भारतीय विद्या योग को विश्व में पहचान दिलाने का कार्य किया है तो योग के सारे आसन आपको करके दिखाएं। यह तो खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने वाली कहावत हो गयी।अब कहोगे कि चाहे कुछ भी हो मुझे तो विरोध करने से मतलब है। तो भाई इसका ईलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है।
लेकिन यह तो स्वीकारना पड़ेगा कि भारत में आदि शंकराचार्य ने धर्म की पुनरुस्थापना की, महर्षि दयानंद ने वेदों को जन-जन तक पहुंचाया और उसी ॠषि परम्परा पर चलते हुए स्वामी रामदेव ने योग को विश्व के कोने कोने तक पहुंचाने का कार्य किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसे विश्व में मान्यता दिलाने का महान कार्य किया। उपर लिखे श्लोक का अर्थ बताते हुए अपनी बात खत्म करता हूँ…… जिसके पास स्वयं का विवेक नहीं है, उसे शास्त्र कोई ज्ञान नहीं दे सकते जिस प्रकार प्रज्ञा चक्षू को दर्पण उसकी छवि नहीं दिखला सकता। इसलिए आंखे खोलिए और जो अच्छा है उसे स्वीकार कीजिए …… अस्तु॥
लोचनाभ्याम विहिनस्य दर्पणा: किम करिष्यति॥
आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में सुभाषितानी में उपरोक्त नीति शतक का श्लोक पढ़ा था। आज के घटना क्रम को देख कर स्मरन हो आया। आज विश्व के 197 देशों में योग दिवस मनाया गया। भारत की प्राचीन विद्या को सम्पूर्ण विश्व में प्रचार एवं स्थान मिला। दुनिया का कौन ऐसा प्राणी है जो स्वस्थ्य रहना नहीं चाहेगा। पर मनुष्य को छोड़ कर अन्य प्राणी योग विद्या का लाभ नहीं उठा सकते। ईश्वर ने इस विद्या को धारण करने के लिए मनुष्य को ही बनाया।
आज गर्व का दिन है कि भारतीय योग पद्धति को सम्पूर्ण विश्व अपना रहा है तथा वर्ष में एक दिन "योग दिवस" के रुप में मनाने के लिए विश्व समुदाय द्वारा निर्धारित किया गया। अगर इसका श्रेय किसी को दिया जाना चाहिए तो वह हैं "बाबा रामदेव" और "प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी"। उन्होने विस्मृत हो चुकी इस प्राचीन विद्या को घर-घर तक पहुंचा दिया। लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरुक हुए और उन्होने अपनी जीवन शैली बदली।
यह देश के जनमानस में एक क्रांतिकारी परिवर्तन माना जा सकता है। बाबा रामदेव ने हठयोग और व्यायाम को जोड़ कर स्वास्थ्य का पैकेज तैयार किया और उसकी ब्रांडिग भी की। जिन्होने योग और जीवन शैली में बदलाव कर प्राचीन शास्त्रोक्त आचार विचार को अपनाया उन्हें आशातीत परिणाम भी मिले। जो उनके घोर विरोधी है, वह भी असाध्य व्याधि से ग्रसित होने पर चुपचाप भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं योग की शरण लेते हैं। कंबल ओढ़ कर गुड़ खाते हैं, पर किसी को दिखना नहीं चाहिए। जो जन्म भूमि से प्यार करता है वह हमारी प्राचीन जीवन विद्या को भी मानता है।
कुछ लोग दुनिया में नकारात्मकता लेकर पैदा होते हैं, कितना भी अच्छा काम हो जाए उन्हें उसमें बुराई दिखाई ही देती है क्योंकि उन्होने कभी सकारात्मक जीवन ही नहीं जीया। सुबह से एक चित्र फ़ेसबुक पर घूम रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री सुखासन में बैठ कर योग क्रिया कर रहे हैं। तो लोग कह रहे हैं उन्हें पद्मासन लगाना नहीं आता। कोई कह रहा है अर्धपद्मासन लगा रखा है। अरे भाई जरा किताबें पढ़ लो, देख लो, समझ लो, अर्ध पद्मासन कहीं होता ही नहीं है और यह किसी योगाचार्य ने नहीं कहा कि सुखासन में अनुलोम विलोम नहीं किया जा सकता। आप अपने सांसो की किसी भी प्रकार के आसन में सुख पूर्वक बैठ कर साध सकते हैं।
अब यह तो नहीं हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने प्राचीन भारतीय विद्या योग को विश्व में पहचान दिलाने का कार्य किया है तो योग के सारे आसन आपको करके दिखाएं। यह तो खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने वाली कहावत हो गयी।अब कहोगे कि चाहे कुछ भी हो मुझे तो विरोध करने से मतलब है। तो भाई इसका ईलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है।
लेकिन यह तो स्वीकारना पड़ेगा कि भारत में आदि शंकराचार्य ने धर्म की पुनरुस्थापना की, महर्षि दयानंद ने वेदों को जन-जन तक पहुंचाया और उसी ॠषि परम्परा पर चलते हुए स्वामी रामदेव ने योग को विश्व के कोने कोने तक पहुंचाने का कार्य किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसे विश्व में मान्यता दिलाने का महान कार्य किया। उपर लिखे श्लोक का अर्थ बताते हुए अपनी बात खत्म करता हूँ…… जिसके पास स्वयं का विवेक नहीं है, उसे शास्त्र कोई ज्ञान नहीं दे सकते जिस प्रकार प्रज्ञा चक्षू को दर्पण उसकी छवि नहीं दिखला सकता। इसलिए आंखे खोलिए और जो अच्छा है उसे स्वीकार कीजिए …… अस्तु॥
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