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गुरुवार, 14 जुलाई 2016

राह में ऐसा भी होता है : दक्षिण यात्रा 19

होता है, होता है, ऐसा भी होता है। जब हम यात्रा पर निकलते हैं तो कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। कुछ चुनौतियाँ प्रकृतिजन्य होती हैं, कुछ परिस्थितिजन्य तो कुछ स्वजन्य।। हम्पी से हम बेल्लारी होते हुए अनंतपुर की ओर लौट रहे थे। बेल्लारी शहर में प्रवेश करने पूर्व जीपीएस ने एक शार्टकट रास्ता दिखाया और हम उस पर ही चल पड़े। यह रास्ता ग्रामीण इलाके बीच से होकर चल रहा था। सिंगल रोड़ था, दोनो ओर खेत और हम कर्नाटक एवं आन्ध्र के सीमावर्ती क्षेत्र के ग्रामीण अंचल से भी परिचित हो रहे थे।
ग्रामीण अंचल की सड़क एवं स्कूल से लौटते बच्चे
एक गाँव में मिर्चों के खेत दिखाई दिए, पाबला जी ने मिर्चों की फ़ोटो लेने के लिए गाड़ी रोकी। मेरा फ़ोटो लेने का मुड नहीं था, इसलिए गाड़ी में ही बैठा रहा। गाड़ी स्टार्ट थी क्योंकि एसी चल रहा था। पाबला जी फ़ोटो ले रहे थे, तभी मुझे विपरीत दिशा में कपास के खेत दिखाई दिए। मैने सोचा कि लगे हाथ कपास के खेतों की फ़ोटो ले ली जाए। कभी काम आ सकती है। मैं भी गाड़ी से बाहर आ गया और फ़ोटो लेने लगा। पाबला जी ने कैमरे से फ़ोटो लेकर उसे अपनी सीट पर रखा और दरवाजा बंद कर मोबाईल से भी फ़ोटो लेने लगे। जब मैं फ़ोटो लेकर लौटा और दरवाजा खोलने लगा तो खुला ही नहीं। मैं पाबला जी को आवाज दी, दरवाजा लॉक हो गया है। 

मिर्च के खेत
उन्होंने आकर देखा तो सारे दरवाजे लॉक हो गए हैं। गाड़ी के साथ एसी भी चालु था। अब माथे पर पसीने के साथ चिंता की लकीरें भी उभर आए। क्या किया जाए? मैने तो तत्काल निर्णय ले लिया कि अब एक बड़े पत्थर से कोई कांच फ़ोड़ा जाए और समस्या का हल निकाला जाए। पाबला जी थोड़ी देर पेड़ की नीचे खड़े रहे और मारुती एजेंसी में फ़ोन लगाया। उसने कहा कि थोड़ी देर में सोच के बताता हूँ क्या किया जाए। फ़िर उसे फ़ोन लगाया तो बोला स्केल से लॉक खुल सकता है। इतना तो हमें पता था, पर स्केल कहाँ से लाएं? हमारे सारे औजार तो गाड़ी में बंद हो चुके थे। तब मैं पास ही खेत में मिर्च तोड़ रहे लोगों के पास गया कि कोई स्केल या पट्टी मिल जाए। पर उन्हें सिर्फ़ तेलगु या कन्नड़ बोली आती थी। न वे मेरी बात समझ पाए, न मैं उन्हें समझा पाया, गाड़ी के पास लौट आया।
कपास के खेत
लगभग आधे घंटे से अधिक समय बीत चुका था। हम किंकर्तव्यविमूढ होकर सड़क पर खड़े थे। सोच रहे थे कि इस समस्या का क्या समाधान निकाला जाए। फ़िर मैने एक युटिलिटी वाहन वाले को रोका, उससे स्क्रूडायवर मांगा तो उसके पास छोटा स्क्रूडायवर मिला। ड्रायवर साईड के दरवाजे को उससे खोलने की कोशिश की। उस गाड़ी के ड्रायवर ने अपनी गाड़ी की चाबियाँ लगाकर देखी कि दरवाजा खुल जाए, पर सारे प्रयास विफ़ल रहे। आखिर निर्णय लिया गया कि पीछे के साईड कांच का रबर लॉक निकाल कर कांच निकाला जाए, फ़िर उस रास्ते से लॉक खोला जाए। स्क्रूडायवर से रबर लॉक खोला गया तो कांच बाहर आ गया।
चाबी निकालने में सहयोग देन वाले 
उस समय खेत से एक लड़का भी आ गया था, उसे गाड़ी के भीतर घुसाया गया और उसने दरवाजे की खूंटी उठाई और वह खुल गया। इस प्रक्रिया में एक घंटा लग गया। गाड़ी एक घंटे तक स्टार्ट रही। फ़िर हमने कांच का रबर लगाया और वह फ़िट हो गया। तब चलकर आगे की यात्रा प्रारंभ हुई। हुआ यूँ कि जब पाबला जी ने ड्रायवर साईड का दरवाजा खोलकर कैमरा रखा और उसे बंद किया तो झटके से लॉक की खूंटी थोड़ी सी नीचे सरक गई और गाड़ी के सभी दरवाजे लॉक हो गए। एक घंटे तक स्टार्ट गाड़ी में तेल अलग जला और समय के साथ दिमाग अलग खराब हुआ। पर हर हादसा एक सबक देता है। हमने इससे भी सीखा, सफ़र चलते एक चुनौती सामने आई और उसका हल भी ढूंढ़ा और कांच तोड़ने जैसे नुकसान से भी बचे।
ग्रामीण अंचल की बैल गाड़ी
एक घंटे की मशक्कत के बाद हमारी गाड़ी आगे बढी। पाबला जी सपाटे से ड्राईव कर रहे हैं, उनके मन में क्या चल रहा था ये तो मुझे पता नहीं, पर मैं एक घंटा बरबाद होने की सोच रहा था। क्योंकि हमें लेपाक्षी जाना था और अंधेरा होने से कुछ नहीं देख पाते। ग्रामीण इलाके की सड़क ने हमारा बहुत समय बरबाद किया। अगर इसे सकारात्मक तौर पर ले तो हमने यहां से बहुत कुछ सीखा तथा कर्नाटक एवं आंध्र की सीमा के गांव भी देख लिए। इस इलाके में बंजर जमीन बहुत अधिक है। इसलिए लोग मिर्च कपास आदि की खेती करते हैं। ग्रामीण इलाके से निकल पर हम हाईवे पर आ गए। हाईवे पर गाड़ी अपनी रफ़्तार में आ गयी। एक होटल में रुक कर भोजन किए और फ़िर लेपाक्षी की ओर चल दिए। जारी है …… आगे पढें। 

1 टिप्पणी:

  1. सफर में उस समय तो परेशानी बहुत होती हैं लेकिन बाद में पता चलता है की हमें आगे के लिए सबक भी मिला है, ...
    चलिए लेपाक्षी की यात्रा आनंदमय हो, यही शुभकामना है

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