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गुरुवार, 21 जुलाई 2016

दामोदर घाटी परियोजना का मैथन डैम

अब हमें रात की ट्रेन से बिकास बाबू के गाँव बराकर जाना था। इनका गाँव नदी पार करने के बाद झारखंड एवं पश्चिम बंगाल की सीमा पर है। मत्यूंजय पाठक जी के साथ हम इस ट्रेन में चढ गए। अब सोना भी मुश्किल था क्योंकि बराकर रात तीन बजे आने वाला था। अगर सो गए तो नींद आगे हावड़ा में ही खुलेगी। जैसे तैसे करके बराकर पहुंच गए। यहाँ रुकने के लिए कोई होटल नहीं है, परन्तु मारवाड़ी बस्ती होने के कारण धर्मशालाएँ जरुर हैं। हमको जैन धर्म शाला में स्थान मिला। मुंह अंधेरे हम जैन धर्मशाला पहुंच गए और बिकास बाबू हमको यहाँ छोड़ कर अपने घर रवाना हो गए। हमने भी सोचा कि थोड़ी देर आराम कर लें। 
बराकर मार्केट की सुबह
सुबह उठकर तपास करने पर पता चला कि यह बराकर नदी के तीर पर बसा बंगाल एक पुराना कस्बा नदी का नाम ही धारण करता है। यह भी कोयलांचल का एक हिस्सा है। सीमा रेखाएं नदी नाले तय करते हैं, वरना तासीर से यह हिन्दी पट्टी का ही एक गांव है। नदी के उस पार झारखंड और इस पार बंगाल। सीमा क्षेत्र पर बसे गांव और शहर महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र हो जाते हैं। इसका एक कारण राज्यों की असमान कर प्रणाली भी होती है। छत्तीसगढ के सीमावर्ती महाराष्ट्र के व्यापारी रायपुर से व्यापार करते हैं क्योंकि महाराष्ट्र में छत्तीसगढ से 4% अधिक चुंगी कर लगता है। यही स्थिति यहाँ भी है। यहां के निवासी झारखंड एवं बंगाल दोनो का मजा लेते हैं। सीमा क्षेत्र पर संस्कृतियाँ भी मिली जुली होती है। बहुधा यहां के लोग बहुभाषी होते हैं और यहां से संस्कृतियों का बदलाव प्रारंभ होता है जो स्पष्ट दिखाई देता है। उदाहरणार्थ नदी के पार से ही रेल्वे के नगर नाम पट बंगाली मे लिखे दिखाई देने प्रारभ हो जाते हैं।
बराकर स्टेशन
व्यापार का संबंध व्यापारियों से होता है। राजस्थान एवं हरियाणा की व्यापारिक जातियों को मारवाड़ से कोई संबंध नही होने पर भी "मारवाड़ी" कह दिया जाता है। वर्तमान मे यह शब्द व्यापारी का स्थाई भाव धारण कर चुका है। जहां न जाए गाड़ी, वहां जाए मारवाड़ी। मारवाड़ियों का व्यापारिक कारवां सदियों से वर्तमान तक चल रहा है। इन्होने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं लांघ कर विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए सामाजिक सरोकारों नही छोड़ा। अपनी संस्कृति एवं भाषा को बनाए रखते हुए रोजगार क्षेत्र की संस्कृति को भी धारण किया। 
बराकर का मुख्य बाजार
शास्त्रों मे कहा गया है जिस नगर मे नदी, पितातुल्य राजा, कुशल चिकित्सक एवं संकट के समय अर्थ सहयोग करने वाला महाजन न हो, वहां एक पल भी निवास नही करना चाहिए। आज इस नगर मे मारवाड़ियों द्वारा बनाई गई 4 धर्मशाला, नदीतट, शहरे खामोशां है। धर्मशाला मे यात्रियों को निःशुल्क निवास की सुविधा है। हम महावीर भवन मे ठहरे है। पंखा है, एसी है और भरपूर आराम भी। चायोपरांत आगे की घुमक्कड़ी सिद्ध की गयी। बिकास बाबू, परिजनों के साथ समय व्यतीत करने लगे, आए भी कई महीनों के बाद थे। 
दामोदर घाटी परियोजना का मैथन डैम
पहले दिन हमारी घुमक्कड़ी शाम को शुरु हुई। हम बराकर से पहुंचे मैथन डैम। यह भारतवर्ष के झारखंड प्रदेश में स्थित धनबाद से 52 किमी दूर मैथन बांध दामोदर वैली कारपोरेशन का सबसे बड़ा जलाशय है। इसके आस-पास का सौंदर्य पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। बराकर नदी के ऊपर बने इस बाँध का निर्माण बाढ़ को रोकने के लिए किया गया था। बाँध के नीचे एक पावर स्‍टेशन का भी निर्माण किया गया है, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपने आप में आधुनिकतम तकनीक का उदाहरण माना जाता है। 
मैथन डैम की सांझ
इसकी परिकल्पना 1948 में जवाहरलाल नेहरू ने की थी। इसके पास ही माँ कल्‍याणेश्‍वरी का एक अति प्राचीन मंदिर भी है। लगभग 65 वर्ग किमी में फैले इस बाँध के पास एक झील भी है, जहाँ नौकायन और आवासीय सुविधाएँ उपलब्‍ध है। इसके अतिरिक्त एक मृगदाव तथा पक्षी विहार भी है, जहाँ पर्यटक जंगल के प्राकृतिक सौन्‍दर्य तथा विभिन्‍न किस्‍म के पशु-पक्षियों को देख सकते है। 15,712 फीट लंबे और 164 फीट ऊँचे इस बाँध से 60,000 किलोवाट बिजली का उत्‍पादन होता है। कुल मिलाकर यह स्थान बहुत सुंदर है और एक बार देखने लायक जरुर है। हमने बांध से नीचे उतर कर कई चित्र लिए और लौट आए। रात को बंगाली के होटल में खाना खाया, इसने चालिस रुपए में मस्त भोजन करवा दिया। धर्मशाला में रात को बिजली संकट आ गया और पूरी रात खराब हो गई।  यात्रा जारी है.... आगे पढ़ें.....

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'क्या सही, क्या गलत - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. मेरा गृह नगर मे आप पधारे है । पर मुझे बहुत अफसोस है कि मै अभी अपने शहर से हजारो मील दूर असोम मे हू ।

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