Menu

सोमवार, 25 जुलाई 2016

कुंभ दर्शन की अभिलाषा लिए उज्जैन की ओर

हिन्दु धर्म में कुंभ मिलन को महत्वपूर्ण माना गया है। यह नदियों के तट पर भरता है और लाखों करोड़ों श्रद्धालु मिलन एवं स्नान का आनंद उठाते हैं। यह परम्परा सहस्त्राब्दियों से जारी है। वैसे तो नदियों के तट पर हमेशा जाना होता है, पर कुंभ पर्व पर कभी नहीं पहुंच पाया था। विगत चार वर्षों से उज्जैन सिंहस्थ कुंभ की प्रतीक्षा कर रहा था कि कब हो और मैं इसमें सम्मिलित होऊँ। आखिर वो दिन आ ही गया। मध्य प्रदेश के उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन हुआ, इसकी व्यवस्था की खबरों पर मेरी निरंतर निगाह थी। साथी अनुज राम साहू जी को तैयार किया, वे भी साथ चलेगें ये तय हो गया। 
उज्जैन की ओर सुधीर पाण्डे जी के साथ
मैने उज्जैन  जाने के लिए बीकानेर एक्सप्रेस से टिकिट करवा ली थी। परन्तु आखिर तक बर्थ कन्फ़र्म नहीं हुई, चार्ट निकल गया। पर सीट नहीं मिली। बिना आरक्षण के मुझसे लम्बा सफ़र नहीं होता। लगभग 10 बजे कसडोल से सुधीर पाण्डे जी का फ़ोन आया। वे भी सपरिवार कुंभ जा रहे थे। उन्होने कहा कि चिंता न करें, हमारे पास तीन कन्फ़र्म बर्थ हैं, जैसे तैसे पहुंच ही जाएंगे। उनके इस आश्वासन से कुछ ढंढास बंधा। मैने कहा कि भाटापारा से ट्रेन में बैठते ही फ़ोन कर देना। जिससे हमें कोच एवं बर्थ नम्बर की जानकारी हो जाए। हम शाम को स्टेशन पहुंच गए और ट्रेन से उज्जैन से सुधीर जी के साथ कुंभ के सफ़र पर निकल लिए। 
सहयात्री अनुज साहू जी
रात को उन्होने एक सीट हमे दे दी, जिस पर मैं और अनुज भाई फ़िट हो गए और एक सीट पर माता जी, एक सीट पर वे दोनो पति पत्नी एडजेस्ट हो गए। कुंभार्थियों को एक सीट देकर उन्होने यहीं से कुंभ स्नान का पूण्य प्राप्त करना प्रारंभ कर दिया। सुबह हुई, गाड़ी धीरे धीरे सरकते हुए बढ रही थी, हम एक एक स्टेशन गिनते हुए दोपहर को उज्जैन पहुंचे। मैने उज्जैन पहुंचने से पहले वहाँ ठहरने के लिए दो तीन स्थानों पर व्यवस्थाएँ विकल्प के तौर पर कर रखी थी। पहला शैलेन्द्र शर्मा जी ने स्टेशन के सामने एक होटल बता रखा था, दूसरा हमारे संस्कृति विभाग का पंडाल था, तीसरा हमारे प्रदेश के जनसम्पर्क विभाग का डोम। ट्रेन से उतर कर सुधीर भाई तो रामघाट स्नान के लिए चल दिए, उन्हें आज शाम की इसी गाड़ी लौटना था। 
छत्तीसगढ़ का भव्य पेवेलियन
हम होटल पर पहुंचे, तो उसने एक कमरा दिखाया, जिसका किराया दो हजार प्रतिदिन का बताया। हमने शैलेन्द्र जी को फ़ोन किया, उन्होंने होटल वाले से बात की तब भी उसने किराया कम नहीं किया। हमको यहाँ सप्ताह भर रुकना था, अगर होटल लेते तो चौदह हजार रुपए तो सिर्फ़ किराया ही हो जाता और इतने रुपए हमें कहीं से नहीं मिलने थे। यहाँ उज्जैन की व्यवस्था के लिए संस्कृति विभाग के जोशी जी लगे हुए थे, उन्हें फ़ोन करते के साथ वे गाड़ी लेकर स्टेशन आ गए और हम सदावल रोड़ पर स्थित छत्तीसगढ़ सरकार के पेवेलियन की ओर चल दिए। सारा कुंभ उजड़ा हुआ था, पांच तारीख की शाम को भयंकर तूफ़ान आया था, जिसमें पंडाल और डोम उखड़ गए, कई कुंभार्थियों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ गया।
पंडवानी कार्यक्रम की प्रस्तुति
छत्तीसगढ़ पेवेलियन पहुंचने पर उप संचालक श्री दिनेश मिश्रा जी ने हमें प्लाई बोर्ड से बनी एक खोली दे दी। जिसमें एक कूलर, लाईट एवं आरो के पानी की व्यवस्था थी। परन्तु द्वार पर ताला नहीं था। कुंभ में अगर आपको सेप्रेट रुम मिल जाए, इससे बढकर कोई वीआईपी व्यवस्था नहीं हो सकती। यहाँ से रामघाट लगभग दो किमी की दूरी पर था। छत्तीसगढ़ सरकार ने यहाँ प्रदेश से कुंभ स्नानार्थियों के अच्छी व्यवस्था कर रखी थी। चार बड़ डोम बने हुए थे, जिसमें एक एक हजार आदमी आराम से रुक सकते थे। बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए बड़े जनरेटर लगे हुए थे। भोजन की भी उत्तम व्यस्था थी। एक पंडाल में यहाँ छत्तीसगढ़ पर्यटन एवं जनसम्पर्क की फ़ोटो प्रदर्शनी लगी थी, साथ ही शाम 6 बजे से छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रति दिन आयोजन हो रहा था।
कलाकार की एक भंगिमा
हम स्नानाबाद से लौट कर तैयार हुए, आज तो सिर्फ़ यहीं आस पास घूमना था। पंडाल के बाहर एक चक्कर काट कर आए तब तक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारंभ हो चुके थे। आज पंडवानी का आयोजन था, जो हमारे प्रदेश में महाभारत को काव्य रुप में परम्परागत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात भोजन किया और रुम में आ गए। पर यहां मच्छरों की भरमार थी, मिश्रा जी से निवेदन करके इसमें हिट का स्प्रे करवाए। जिसके बाद ही आराम से सो सके। वरना सारी रात मच्छरों के बीच गुजारना कठिन हो जाता और मलेरिया लेकर घर लौटते। जारी है आगे पढें…।

4 टिप्‍पणियां: