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शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

संगोष्ठी के बाद घुमक्कड़ मिलन एवं डेरे की ओर मुसाफ़िर

उज्जैन कुंभ में सिहंस्थ के अवसर पर मौन तीर्थ सेवार्थ फ़ाऊंडेशन, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना एवं अक्षरवार्ता शोध पत्रिका के तत्वाधान में सार्वभौमिक मूल्यों के प्रचार प्रसार में साहित्य, संस्कृति और धर्म-अध्यात्म की भूमिका विषय पर गहन मंथन करने के लिए 8 मई को शोध संगोष्ठी का आयोजन मंगलनाथ जोन, गंगाधाट स्थित चित्रकूट सभा भवन में किया गया था। जिसमें संगोष्ठी का लाभ उठाने के लिए डॉ शैलेन्द्र शर्मा जी ने मुझे भी आमंत्रित किया था। इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश-विदेश के विद्वानों के उपस्थित होने की सूचना भी थी। रात को बिकाश शर्मा का भी फ़ोन आया कि वो भी सुबह तक उज्जैन पहुंच रहा है। हमने उसे संगोष्ठी स्थल पर ही बुला लिया था।
मंगलनाथ जोन की ओर जाते हुए भीड़
सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर हम गंगाघाट के लिए पैदल निकल लिए। पैदल इसलिए कि कोई साधन नहीं था और हमें भी पता नहीं था कि गंगाघाट कहाँ पर है। पूछताछ करने पर पता चला कि हमारे डेरा से लगभग सात किमी की दूरी पर है। श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी अधिक थी कि वाहन से चलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हम पैदल चल रहे थे और आसमान तपने लगा। गर्मी और पसीने से बुरा हाल हो रहा था। भीड़ की स्थिति देखकर आयोजकों को भी फ़ोन करके गाड़ी भेजने की कहने में संकोच हो रहा था। जैसे तैसे करके एक छोटा हाथी मिला। उसने पुल तक छोड़ दिया और रास्ता बता दिया। 
बिकाश शर्मा के साथ संगोष्ठी स्थल पर
पुल से भी दूरी तीन किमी से अधिक थी, जितनी दूर तक पैदल चला गया, उतना चले। फ़िर एक ऑटो दिखाई दिया, उससे पूछे तो उसने मना कर दिया। फ़िर एक मियां का ऑटो मिला, वो बोला पचास रुपए में पहुंचा दुंगा। उसने ठिकाना पता किया, लोगों ने सांदीपनी आश्रम के आगे बताया। ऑटो वाला हमें ठिकाने तक पहुंचा गया। गंगा घाट पर भी स्नानार्थियों का मेला लगा हुआ था। लोग राम घाट से स्नान करके गंगाघाट पहुंच रहे थे। यही पर चित्रकूट भवन एव सभागार बना हुआ है। यहां पहुंचने पर हमारी भेंट डॉ प्रभु चौधरी से हुई। उस समय वही यहां पहुचे थे, फ़िर कुछ अन्य स्थानों से शोधार्थी भी आए।
उद्घाटन भाषण देते हुए शैलेन्द्र शर्मा एवं मंचासीन अतिथि
कार्यक्रम का शुभारंभ केन्द्रीय मंत्री श्री थावरचंद गहलोत जी को करना था। तय समय से एक घंटा विलंब से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। मंत्री जी ने सधे हुए शब्दों में उपरोक्त विषय पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और समारोह प्रारंभ हो गया। डॉ शैलेन्द्र शर्मा जी ने मेरा परिचय मंत्री जी से करवाया। बिकास शर्मा ने मौके का लाभ उठाते हुए फ़ोटो खिंचवा ली। मामला फ़िट हो गया। कार्यक्रम प्रारंभ होने के बाद दो सत्र चले और फ़िर आश्रम के अन्न सत्र में ही सभी ने भोजन किया। इसके बाद अंतिम सत्र में मुझे भी बोलने का मौका मिला। मैने भी उपरोक्त विषय पर अपनी बात रखी। इसके बाद समापन सत्र में किन्ही विशिष्ट अतिथि को आना था। सांझ ढल रही थी, इसलिए हम कार्यक्रम स्थल से निकल लिए।
सामाजिन न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के साथ
बाहर निकलने पर देखा कि सड़क पर भारी भीड़ थी। आज की रात 9 तारीख का स्नान पर्व भी था, जिसमें संतों की रैली भी निकलनी थी। हमको एक ऑटो मिल गया, जिसमें हम तीनो लड लिए, पर मजाल है कि ऑटो अपने स्थान से सरक भी जाए। यहां से निकलने में हमें दो घंटे लग गए। ऑटो वाले ने उज्जैन की गलियों में घुमाकर हमें रामघाट के इस पार छोड़ दिया। चार किमी पैदल चलते हुए हम किसी तरह सदावल रोड़ पर स्थित अपने कमरे तक पहुंचे और आराम करने लगे। कुछ देर आराम करने के बाद सोनीपत वाले संजय कौशिक जी का फ़ोन आया। उनका दल कुंभ में पहुंच चुका था और मिलना चाहते थे। मैने अपना पता बता दिया। पर नया स्थान होने के वजह से उनके ठहरने के स्थान से अपनी दूरी नहीं बता सका।
मंच से संगोष्ठी में सहयोग
फ़िर भी वे व्यस्तता के बीच कुछ समय चुरा कर मेरे पास सात बजे पहुंच गए। उनको भी आज रात की ट्रेन से निकलना था। हमने भी प्लान बना रखा था कि रात की ट्रेन से निकल कर भोपाल पहुंच जाएगें और वहाँ  से कोई दूसरी ट्रेन से घर तक निकल जाएंगे। संजय कौशिक जी के साथ, सचिन जांगड़ा जी, हरेन्द्रर धर्रा जी, डॉ सुमीत शर्मा जी भी पहुंचे थे। सारे घुमक्कड़ों से एक स्थान पर ही भेंट हो गई। खूब दिल से मिले और रज्ज के मिले। फ़िर उनके साथ कुछ फ़ोटोएं यादगार के लिए खिंचवाई गई। आठ बजे वे निकल गए। हम भी भोजन करके आराम करने लगे। नेट से पता चला था कि एक लोकल ट्रेन रात को सवा बारह बजे भोपाल के लिए निकलती है।
तृतीय सत्र के मंचासीन अतिथि
रात ग्यारह बजे हम छत्तीसगढ़ पेवेलियन से स्टेशन जाने के लिए निकले। अब गुगल मैप स्टेशन की दूरी छ किमी से अधिक बता रहा था। नित्यानंद के पंडाल से हम लोग हाथ ठेले पर बैठकर दो किमी दूरी तय किए। उसके बाद से सड़क से आगे बढ रहे थे तो रामघाट रोड़ पर पुलिस वालों ने रेल को किसी अन्य रोड़ की ओर मोड़ दिया। जैसे जैसे तारीख बदलना करीब आ रहा था स्नानार्थियों की भीड़ बढती जा रही है। पूछने पर पता चला कि ओव्हर ब्रिज से उतरने के बाद भूखी माता के करीब ही रेल्वे स्टेशन है। पता बताने वाले ने सरलता से बता दिया और हम चक्कर काटते जा रहे थे, लगभग पांच किमी चल लिए होंगे। अन्य कोई साधन दिखाई नहीं दे रहा था।
कुंभ में सांझ के समय स्नान पर्व की भीड़
एक स्थान पर बड़ी एस यू वी वाला सवारी बैठा रहा था, उससे चर्चा हुई तो वह सौ रुपए में हम तीनों को स्टेशन छोड़ने के लिए तैयार हो गया। उसे वहीं से होकर इंदौर जाना था। जब गाड़ी से चले तो हमें स्टेशन पहुंचने में आधा घंटा लग गया। पहुंच कर टिकिट लिए। प्लेटफ़ार्म खासी संख्या में पुलिस बल लगा था। पता चला कि सवा बारह बजे वाली गाड़ी कैंसिल कर दी गई है। फ़िर एक ट्रेन इंदौर तरफ़ से आई, उसमें बड़ी मुस्किल से हम चढ पाए। बिकास और मैं एक डिब्बे में चढ गए और अनुज किसी दूसरे डिब्बे में। जोड़ी बिछड़ गई, जैसे तैसे करके रात कटी और हम सुबह भोपाल पहुंचे। पैंरो में दर्द हो रहा था, देखा तो छाले हो गए थे रात को चलने के कारण।
भोपाल में घुमक्कड़ संजय कौशिक, ललित शर्मा, सचिन जांगड़ा, हरेन्द्र धर्रा
भोपाल पहुंचने पर एक बार फ़िर संजय कौशिक जी लोगों से भेंट हुई। हमने सबने एक साथ चाय पी। उनकी गाड़ी शाम को थी, उन्हें भोपाल घूमना था। हमारी गाड़ी तमिलनाडू एक्सप्रेस आठ बजे आने वाली थी। तमिलनाडू एक्सप्रेस के आते ही हम जनरल डिब्बे में सवार हो गए, इसका नागपुर और भोपाल के बीचे सिर्फ़ इटारसी में एक स्टापेज है, इसके भोपाल पहुंचने के बाद हमे तिरुनुवेल्ली से बिलासपुर जाने वाली गाड़ी डेढ बजे नागपुर से मिलनी थी और रात तक घर पहुंचना था। इटारसी में हमने भरपेट नाश्ता कर लिया और पानी बोतल ले ली। हमारी ट्रेन अब गंतव्य की ओर चल पड़ी थी……। इति कुंभ वार्ता:

1 टिप्पणी:

  1. पहले कुंभ में बिछडते थे अब मिलन होने लगा है। अच्छा लगता है जब हमारी जैसी सोच रखने वाले आपस में मिलते है। ललित जी बहुत अच्छा लगा पोस्ट पढ कर।

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