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गुरुवार, 4 अगस्त 2016

ओरछा का जहाँगीर महल

जहाँगीर महल का निर्माण बुंदेला राजाओं एवं मुगलों की दोस्ती का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबुल फज़ल को शहजादे सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिए भेजा था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया। इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी।
जहाँगीर महल का प्रवेश द्वार हाथी दरवाजा
जब जहाँगीर गद्दी पर बैठा तो उसके ओरछा आगमन को लेकर इस महल का निर्माण कराया गया। यह महल मुगल एवं हिन्दु शैली के मिश्रित वास्तु की पहचान है। परन्तु जहाँगीर के आगमन को लेकर इस महल का निर्माण संदेह के दायरे में हैं। क्योंकि इसके निर्माण में कई बरस लग गए होंगे। शायद यह महल पूर्व से तैयार होगा और यहाँ जहाँगीर को ठहराने के बाद इसका नामकरण जहाँगीह महल हो गया होगा।
जहांगीर महल का पंच कुंडीय आँगन
वैसे, ये महल बुंदेलाओं की वास्तुशिल्प के प्रमाण हैं। खुले गलियारे, पत्थरों वाली जाली का काम, जानवरों की मूर्तियां, बेलबूटे जैसी तमाम बुंदेला वास्तुशिल्प की विशेषताएं यहां साफ देखी जा सकती हैं। हमने कुछ फ़ोटो गलियारे से भी लिए। महल के निर्माण में चूना सूर्खी का प्रयोग हुआ है। 
जहांगीर महल की भित्तियों में चित्रांकन
जहाँगीर महल ओरछा के कक्षों में जड़ी हुई पाषाण की चौखेंटों (प्रस्तर द्वारशाखाओं) का अलंकरण खूबसूरत है। सिरदल में अर्ध पद्म के साथ पक्षियों का अंकन किया गया है। चौखट के किवाड़ों ;में आयताकार अलंकरण त्रिआयामी दिखाई देता है। तत्कालीन शिल्पकारों की मेहनत एवं कुशलता उनके कार्य में परिलक्षित होती है।
जहाँगीर महल से राम राजा दरबार का दृश्य
चूना मिलाने का यंत्र यहां देखा जा सकता है तथा इसका उपयोग वर्तमान में भी संरक्षण कार्य के लिए प्रतीत होता है। बेतवा (वेत्रवती) नदी के तट पर बसे हुए ओरछा की सुरक्षा पंक्ति त्रिस्तरीय है, इसके अतिरिक्त बेतवा नदी  भी एक बड़ी प्राकृतिक सुरक्षा प्राचीर का कार्य करती है।
जहाँगीर महल का भीतरी दृश्य
विडम्बना है कि बेतवा नदी की गोद में बुंदेला राजाओं ने जन्म लिया और उसी की गोद में चिर निदा में लीन हो गए। जहाँगीर महल में 136 कक्ष हैं, मध्य में बड़ा आंगन है, जिसमें पंच भूतों के प्रतीक पाँच कुंड बने हुए हैं, इसके साथ ही महल के द्वार पर दो प्रस्तर हस्ति बने हुए हैं, एक की सूंड़ में जंजीर है और दूसरे की सूंड़ में फ़ूल।
जहांगीर महल का गज शिल्प
इसके लिए कहा जाता  है कि बुंदेलों से दोस्ती करोगे तो फ़ूलों जैसे रहोगे और दुश्मनी करोगे तो कैद मिलेगी। महल के समक्ष ऊंट खाना बना हुआ है। इसके समीप ही हौद जैसी संरचना बनी हुई है, मुझे तो लगता है यह लोहा गलाने की भट्टी होगी, जिसमें राजकीय हथियार बनाने के लिए लोहा गलाया जाता रहा होगा।
राज महल होटल का भीतरी दृश्य
जहांगीर महल भ्रमण के बाद हम भोजन करने के लिए राजमहल होटल आ गए। यह एक सितारा होटल रिसोर्ट है तथा इसका डायनिंग हॉल भी बहुत बड़ा है। गरमी के समय ठंडा दही भोजन के लिए उपयुक्त रहता है। वैसे भी मुझे सितारा होटलों का भोजन जमता नहीं है, क्योंकि सब्जियों में अत्यधिक ग्रेवी रहती है। सब्जियां तो घर की ही पसंद आती हैं। जारी है........आगे पढ़ें.......  

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ... ..
    अभी तक तो जा नहीं पाए ओरछा ..पढ़कर और सुन्दर फोटो देखकर मन हो रहा है अभी चले चले ..........

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'जिंदगी के सफ़र में किशोर कुमार - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. बहुत सुन्दर वर्णन व चित्र. और दो हाथी वाली खास जानकारी। बहुत ही रोचक लगी...

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  4. बहुत ख़ूबसूरत चित्रकथा! ऐसा लगा मानो इतिहास का हिस्सा हैं हम भी!

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  5. वर्णन पढ़ कर देखने का मन हो रहा है । आपने वर्णन अधूरा ही छोड़ दिया । कृपया पूर्ण करें ।

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    1. मदन गोयल जी, इस पोस्ट पर हाइपर लिंक लगाने में चूक हो गयी। आप अगली पोस्ट पर जाइए पूरी ओरछा गाथा पढ़ने मिलेगी।

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