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रविवार, 24 दिसंबर 2017

मोबाइल का अविष्कार चौदहवीं शताब्दी में

छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव जिले के गंडई ग्राम में फणी नागवंशीकालीन 13 वीं शताब्दी का प्रस्तर निर्मित शिवालय है। इसकी बाह्य भित्तियों में प्रतिमा अलंकरण है। भित्तियों में विभिन्न पौराणिक प्रसंगों को लेकर बनाई गयी प्रतिमाएँ जड़ी हुई हैं।
मोबाईल पर बात करती स्त्री 
इन प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा मेरा ध्यान विशेष रुपये से आकर्षित किया। इस प्रतिमा में एक स्त्री पलंग पर तकिए का सिरहाना लिए लेटी हुई है और उसके पैर भित्ति पर रखे हुए हैं तथा बाएँ हाथ को कान पर लगा रखा है।  

इस प्रतिमा को देखने से लगता है कि शिल्पकार कोई भविष्यवक्ता है जो आने वाली शताब्दी को अभिव्यक्त कर रहा है। 

हाँ जी, लगता है शिल्पकार ने इक्कीसवीं शताब्दी के मोबाइल युग शिल्प माध्यम से दिखाने प्रयास किया है। वर्तमान में यह दृश्य बहुधा दिखाई दे जाता है जब कोई स्त्री या पुरुष पलंग पर लेटकर चलभाष से कानाबाती करती दिखाई दे जाता है।

खैर तत्कालीन प्रसंग कुछ इससे पृथक या भिन्न रहा होगा। परन्तु वर्तमान में तो यह चलभाष की कानाबाती दिखाई देती है। सुदूर ग्रामांचल में होने के कारण यहां पर्यटक कम ही पहुँचते हैं। 

अगर खजुराहो जैसे मंदिरों में यह शिल्पांकन होता तो गाईड पर्यटकों को मोबाइल फोन की बातचीत बताकर रोमांचित अवश्य करते। 

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