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सोमवार, 1 जनवरी 2018

हिन्दी ब्लॉगिंग : दशा एवं दिशा

अरसे से मृतप्राय ब्लॉगजगत को एक बार पुनः जीवन देने का आह्वान पुराने ब्लॉगरों ने फेसबुक के माध्यम से किया। इस आह्वान पर कुछ ब्लॉगरों ने ध्यान दिया और एक जुलाई को पोस्ट भी लगाकर श्रीगणेश भी किया। मेरे व्यक्तिगत संकलक के हिसाब से चौबीस घंटों में 70 ब्लॉग अपडेट भी हुए।

कुछ ब्लॉगरों ने ब्लॉग का इतिहास सा लिख डाला तथा इसके पतन के कारणों का उल्लेख भी अपनी समझ के अनुसार किया। जब ब्लॉगिंग के मेरे प्रारंभिक दिन थे तब पचीस पचास कमेंट के साथ सौ हिट्स दिखाई देती थी। 

कालांतर में ब्लॉगिंग का पतन का दौर प्रारंभ हुआ। मठ धराशाई हुए और मेरे मायने में लोग ब्लॉगिंग की मठाधीशी एवं उसकी बंद दुनिया से निकल कर फेसबुक के उन्मुक्त वातावरण में आकर रम गये और ब्लॉग पर नहीं लौटे। 

हमारे से ब्लॉग की दुनिया नहीं छूटी, जब भी समय मिला पोस्ट लगी और फेसबुक ने एग्रीगेटर का काम निभाया, नये पाठक मिले। कभी कभी तो हिट्स का आंकड़ा चौबीस घंटे में पांच हजार से अधिक पहुँच जाता है। भले ही कमेंट न आए पर ट्रैफिक देखकर आत्मिक संतोष होता है। 

ब्लॉग जगत की उलझनों से छुटकारा मिलने के बाद लेखन का स्तर भी सुधरा, उसे भी दिशा मिली वरना राजनीतिक, नर-नारी, हिन्दू-मुस्लिम आदि विवाद चित्त को स्थिर नहीं होने देते थे। 

लेखन को नई दिशा मिलने के बाद ब्लॉग पर कभी ट्रैफिक की कमी नहीं रही और ब्लॉगिंग अद्यतन निरंतर जारी है। इदं नमं के भाव से पोस्ट करने के बाद पाठकों का आना प्रारंभ हो जाता है। जिसमें फेसबुक एवं ट्विटर की महती भूमिका है।

अगर पीछे मुड़कर देखुं तो ब्लॉगिंग को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया मठाधीशी ने। चिट्ठाचर्चा ब्लॉग ने अपने चमचों की बड़ाई की, उनकी पोस्ट का लिंक लगाया एवं उसे दूसरे गुट के किसी भी ब्लॉगर की खिल्ली उड़ाने एवं मानमर्दन करने का मंच बना लिया। 

जहाँ गुरुदेव-गुरुदेव कर चरणचंपी करने वाली नई नस्ल आई वहीं चरण पखरवाने वाले गुरुदेव अपने को किसी अखाड़े के परमहंस मठाधीश से कम नहीं समझने लगे। यही विवाद ब्लॉगिंग की जड़ में मठा डालने का काम करते रहे। 

जगजाहिर है गुट बनाकर एक दूसरे की टांग खिंचाई एवं गिरोहबाजी ब्लॉगिंग की अकाल मृत्यु का कारण बनी। अगर व्यर्थ की टांग खिंचाई और मठाधीशी से परे रहते तो ब्लॉगिंग अभी अपने उत्कर्ष पर रहती। 

अब दो दिनों से पुनः हल्ला हो रहा है ब्लॉगिंग की ओर चलो। हम तो यहीं थे, कहीं नहीं गये और हमारा ब्लाॅग भी अपडेट होते रहा। हाँ यही ब्लॉगिंग की ओर चलो का नारा देने वाले ब्लॉग पर नहीं थे। 

मुझे नहीं लगता कि ब्लॉगिंग के वह दिन फिर लौटेंगे। सभी अघा चुके हैं और फेसबुक ब्लॉगिंग का आनंद ले चुके हैं, यहाँ सभी के अपने अपने मठ हैं और खुद मुख्तयार हो चुके हैं ऐसे में जमी जमाई दुकानदारी से स्थानांतरित होना महंगा ही पड़ेगा। 

हाँ थोड़ा बहुत समय ब्लॉग को दिया जा सकता है। ऐसा भी नहीं है कि ब्लॉगरों का तोड़ा पड़ गया है, नये ब्लॉगर भी आ रहे हैं और उनकी ब्लॉगिंग चालु है। पुराने ब्लॉगरों के आह्वान पर एक एक पोस्ट तो लोगों ने चेप दी है अब देखते हैं बासी कढी में कितना उफान आता है।

2 टिप्‍पणियां:


  1. आपका कहना एकदम सटीक है की "अगर व्यर्थ की टांग खिंचाई और मठाधीशी से परे रहते तो ब्लॉगिंग अभी अपने उत्कर्ष पर रहती।"
    खेदजनक तो है लेकिन क्या करे सबके अपने-अपने विचार हैं, जिसको जो अच्छा लगता है फिर फिर वही करता है
    तब और अब में बड़ा अंतर तो आया है लेकिन चलने वाले चलते रहेंगे। हम भी चलते रहते हैं धीरे-धीरे ब्लॉग पर
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं सहित

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  2. ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को नव वर्ष के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं|

    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, भारतीय गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री सत्येन्द्रनाथ बोस की १२४ वीं जयंती “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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